कुलभूषण उपमन्यु

लोकसभा के चुनाव सिर पर हैं। राजनीतिक दल अपनी-अपनी प्राथमिकताओं के अनुसार मतदाताओं से वादे कर रहे हैं, किंतु ज्यादातर वादे लोकलुभावन किस्म के ही होते हैं जिनमें दीर्घकालीन जनहित का अभाव देखने को मिलता है। जलवायु परिवर्तन के इस दौर में विशेषकर हिमालय और आम तौर पर पूरा देश ही संकटग्रस्त होने की स्थिति में आ गया है। बाढ़, सूखा, असमय बारिश, बर्फ बारी का कम होते जाना, ग्लेशियरों का तेज गति से पिघलना जैसे लक्षण तेज गति से फैलते जा रहे हैं। परिणामस्वरू

आज दिन तक आवंटित भूमि पर हक हासिल करने के किए कई लोग मुकद्दमों में उलझे हुए हैं। जबकि परियोजना 70 के दशक में पूरी हो गई थी और पंजाब, राजस्थान को पानी और बिजली मिलने लग गई थी। किन्तु हिमाचल के हित आज तक फंसे हुए हैं। केंद्र सरकार को भी इस ओर ध्यान देकर निर्णय करवाना चाहिए, किन्तु वहां से भी चुप जैसी स्थिति क्यों बनी रहती है, समझ से परे है। ताजा मामला

महा पंचायत समाप्त होने के बाद भीड़ निर्माण स्थल में घुस गई और सोलन पुलिस से टकराव हो गया। निर्माण कार्य को भी क्षति हुई और कुछ लोगों को चोटें भी आईं, जो हिमाचल के शांतिपूर्ण माहौल के लिए चिंता की बात है, जिसकी निंदा करना भी जरूरी है। आंदोलनकारियों के खिलाफ मुकद्दमे दर्ज कि

हमारे देश में कृषि क्षेत्र के सामने कई चुनौतियां प्रस्तुत हैं। एक ओर किसान के लिए कृषि को लाभदायक बनाने की चुनौती है तो दूसरी ओर मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बचाने-बढ़ाने की जरूरत है। मानव स्वास्थ्य का प्रश्न भी बहुत हद तक कृषि उत्पादों के जहर मुक्त होने पर निर्भर है। 140 करोड़ लोगों को खद्यान्न उपलब्ध करवाने की जिम्मेदारी तो है ही। इन सारी चुनौतियों को कुछ-कुछ निपटाने की क्षमता हो, ऐसी कृषि पद्धति की तला

हिमालय के लोग विकास रोकने के पक्ष में कदापि नहीं हैं, किंतु अंधाधुंध विकास के नाम पर होने वाली तबाही से बचकर टिकाऊ विकास के लिए आवाज उठा रहे हैं...

मंत्री जी का आर्थिक मदद के लिए धन्यवाद करते हुए यह कहना जरूरी होगा कि यदि हिमालय में पर्वत विशिष्ट विकास मॉडल के अनुरूप निर्माण को जरूरी नहीं बनाया गया तो सारे प्रयास हिमालयी क्षेत्र में तबाही लाने वाले साबित हो सकते हैं...

हिमालय की पर्यावरणीय और पारिस्थितिकीय सुरक्षा एक राष्ट्रीय मुद्दा है और सीमाओं की सुरक्षा जितना ही महत्वपूर्ण भी है। आखिर हम सीमाओं की सुरक्षा अपनी मानव आबादी की खुशहाली, संसाधनों के सदुपयोग और सुरक्षा एवं सतत विकास के लिए ही तो करते हैं। हिमालय एक सबसे कम आयु की पर्वत श्रृंखला है जो अभी तक भी निर्माण की अवस्था में है। इस कारण इसकी चट्टानें अभी तक भी भुरभुरी और नाजुक

भारतीय संस्कृति के पास एक महत्त्वपूर्ण संदेश है जिसे आत्मसात करना होगा… कोई भी संस्कृति विकास के दौर में अपने अनुभवों के आधार पर उत्पन्न जरूरतों और अपेक्षाओं की पूर्ति की दिशा में कार्यरत हो कर आगे बढ़ती है। समाज जाने-अनजाने अपने अनुभवों से सीखते हुए अपने क्रियाकलापों को संशोधित भी करता रहता है। पिछला

हालांकि इस विषय पर चर्चा तो सरकारी क्षेत्रों में चलती रहती है, वर्तमान सरकार में भी नीति आयोग द्वारा हिमालयी क्षेत्र में विकास की दिशा तय करने के लिए रीजनल कौंसिल का गठन किया गया है, किंतु अभी तक इस संस्था की कोई गतिविधि सामने नहीं आई है। अब समय है कि सब नींद से

दूसरी समस्या यह है कि पत्तों की पत्तल को एक-दो सप्ताह से ज्यादा रखना संभव नहीं होता है, इसमें फंगस लग जाती है। इसके लिए हाथ से संचालित छोटी मशीनें आ गई हैं जो गर्म डाई से प्रेस करके पत्तल को सुखा भी देती हंै और प्लास्टिक या कागज की प्लेटों की तरह थाली का