अनादिकाल से मनुष्य समाज के क्रमिक विकास का मूल आधार ज्ञान ही रहा है। जैसे जैसे भौतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक ज्ञान का विस्तार होता गया, मनुष्य समाज उत्तरोतर विकास की सीढिय़ां चढ़ता गया। ज्ञान का अर्थ हुआ, जानना। अर्थात उस विषय की सच्चाई को जानना। जब हम स्पष्टता से किसी विषय को जान लेते हैं
बैटरियां और इलेक्ट्रॉनिक कचरा अलग से बेचने की व्यवस्था की जाए। जो प्लास्टिक कबाड़ी उठा ले वह बेच दिया जाए। अन्य गत्ता आदि भी बिक जाता है। इसके बाद जो कचरा बच जाए उसके निपटान की व्यवस्था सरकार को करनी होगी। इसके लिए सीमेंट प्लांट और अन्य ईंधन की मांग रखने वाले उद्योगों से बात
यह भी ध्यान रखना होगा कि बांस की कौनसी किस्में ज्यादा सेलुलोस दे सकती हैं। उन्हीं का रोपण करना होगा। वन विभाग, कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर, आईएचबीटी पालमपुर और इच्छुक उद्योग एक मंच पर आकर इस कार्य को सुगमता से कर सकते हैं। इस कार्य में निवेश किसी के लिए भी घाटे का सौदा नहीं हो
हिमालयी राज्यों की सरकारें केंद्र सरकार पर दबाव डाल कर पर्वतीय विकास के लिए अलग विकास मॉडल बनवाने का प्रयास करें और केंद्र सरकार एसजेड कासिम की अध्यक्षता वाली कमेटी की रपट का अध्ययन करके और वर्तमान में नीति आयोग द्वारा बनाए गए हिमालयी क्षेत्रीय परिषद को इस काम पर लगाना चाहिए और विश्वव्यापी अनुभवों
विशेषकर हिमालय क्षेत्र में जहां की परिस्थिति बहुत नाजुक है, वहां एक दो मेगावाट से बड़े प्रोजेक्ट नहीं लगने चाहिए। अभय शुक्ला कमेटी ने सात हजार फुट से ऊपर के क्षेत्रों में जल विद्युत प्रोजेक्ट न लगाने की अनुशंसा की थी। उसे लागू किया जाना चाहिए। पर्यावरण मित्र पर्यटन को विशेष प्रोत्साहन देने के प्रयास
हमें तो हर धर्म का आदर करना सीखना होगा और आपसी मेल जोल के उदाहरणों का प्रचार करना चाहिए, न कि फूट डालने वाले उदाहरणों का… आज मैं एक ऐसे विषय पर लिख रहा हूं जिस पर बात करने से हर तरफ से आलोचना का खतरा है। फिर भी मुझे लगा कि जरूर लिखना चाहिए
हाइड्रो काईनैटिक तकनीक में तो बहते हुए पानी में तैरते प्लेटफार्म से टरबाइन जोड़ कर ही बिजली बनाई जा सकती है… इस वर्ष की बरसात पूरे देश के लिए तबाही लेकर आई है। किंतु हिमालयी क्षेत्रों में जिस तबाही के दर्शन हुए हैं, वे अभूतपूर्व हैं। शिमला-सिरमौर से लेकर चंबा तक तबाही का आलम पसर
इस दिशा में बांस उत्पादन भी एक बेहतर विकल्प हो सकता है। बांस खरपतवार वाली भूमि में भी सफलतापूर्वक लगाया जा सकता है… हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था सेब, जल विद्युत, सीमेंट और पर्यटन के इर्द-गिर्द घूम रही है। इनमें से सीमेंट कोई टिकाऊ उद्योग नहीं है। कुछ वर्षों में सीमेंट के भंडार समाप्त हो ही
ये विसंगतियां धीरे-धीरे पंचायती राज को कमजोर करने का काम करेंगी। इसके लिए ग्राम स्तरीय सूक्ष्म स्तरीय विकास योजना का कार्य सघन स्तर पर किया जाना चाहिए जिससे लगातार ग्रामसभा स्तर पर विकास की व्यापक समझ का प्रशिक्षण देकर नई प्रजातांत्रिक समझ के विकास के प्रयास होने चाहिए। सामाजिक समरसता और सामाजिक न्याय की समझ
जो साधन और समय एक-दूसरे को नीचा दिखाने और टकरावों में खर्च हो रहे हैं, वे नई-नई पैदा हो रही समस्याओं के समाधान पर खर्च हो सकते हैं। आखिर मनुष्य की बुनियादी जरूरतें और आकांक्षाएं तो एक जैसी ही हैं। रोटी, कपड़ा और मकान के साथ शिक्षा, स्वास्थ्य, विपत्तियों को निपटने की क्षमता और सुरक्षा।