कुलभूषण उपमन्यु

खासकर ठेकेदारी प्रथा के चलते डंपिंग कार्य में भारी कोताही बरती जा रही है। बांध प्रबंधन में भी लापरवाही देखने में आई है। कहीं बाढ़ के समय बांध के गेट ही नहीं खुलते हैं और कहीं बाढ़ नियंत्रण के लिए बांध में समय रहते, बाढ़ के पानी को रोकने योग्य जगह ही समय पर पानी छोड़ कर खाली नहीं की जाती...

कोई अपने पैसों से अपनी शादी में घोड़ी चढ़ रहा है, तो किसी दूसरे को अपमानित महसूस करना और दलित दूल्हे को घोड़ी से उतार देना कहां की मानवता है? ऐसे अमानवीय कृत्य करने वालों पर कानूनी कार्रवाई तो होनी ही चाहिए, किन्तु धर्म के रक्षक कहलाने वालों को सामाजिक स्तर पर भी कार्रवाई करनी चाहिए...

वर्तमान स्थिति इतनी पेचीदा हो गई है कि आर्थिक व्यवस्थाओं को संभालने के लिए भी कई तरह के भावनात्मक कथानक प्रचारित करके अपने-अपने शासन को टिकाए रखने के प्रयास होते हैं। क्योंकि समस्याएं इतनी ज्यादा और पेचीदा हैं कि उनमें से कई तो हल होने योग्य ही नहीं होती। उनसे ध्यान भटकाने के लिए नई अवास्तविक समस्याओं के कथानक घडऩे पड़ते हैं। इतना तो तय है कि आज के युग में शासन परिवर्तन के लिए कथानक घडऩे और प्रस्थापित करने में चतुर राजनेता ज्यादा सफल हो जाते हैं और समस्याओं के समाधान में गंभीर प्रयास करने वाले पिछड़ जाते हैं। जो प्रस्थापनाएं प्रसिद्ध हो जाती हैं और बहुमत की मान्यता प्राप्त

मानव समाज ज्यों ज्यों विकसित होता जा रहा है त्यों त्यों प्रकृति प्रदत्त जीवनदायी तत्वों का विनाश बढ़ता ही जा रहा है। हालांकि प्रकृति मित्र विकास के मॉडल विकसित करने के दावे और प्रयास किए जा रहे हैं, किन्तु जिस गति से प्रकृति का विनाश किया जा रहा है, उसकी भरपाई करना असंभव होता जा रहा है। हवा, पानी और भोजन जीवन की सबसे मूल जरूरतें हैं। हवा प्रदूषण इस हद तक बढ़ गया है कि विश्व के अनेक क्षेत्र गैस चैंबर बनते जा रहे हैं। जलवायु परिवर्तन के चलते धरती पर पानी के भंडार खतरे में पड़ गए हैं। हिमनदों के पिघलने की गति बढ़ती जा रही है जिसके चलते आने वाले 40-50 वर्षों में ग्लेशियर समाप्त हो

अधिकांश योजनाएं लोगों की जानकारी तक ही नहीं पहुंच पाती हैं, या उनमें बजट ही इतना कम होता है कि वे दिखावटी से आगे नहीं बढ़ पाती। जैसे कि सोलर बाड़बंदी न बंदर से फसलें बचा पाई है न अन्य जानवरों से। योजना का फैलाव भी एक प्रतिशत खेतों तक भी नहीं हो पाया है। इसलिए योजनाएं ऐसी हों जो जमीन पर दिख सकें। जैसे बागबानी का काम ठंडे क्षत्रों में दिखता है, निचले क्षेत्रों के लिए बागबानी की भी ऐसी फसलें खोजी जानी चाहिए जो वहां सफल हों...

लाहुल, हिमाचल प्रदेश के जिला लाहुल-स्पीति का पश्चिमी भाग है। जिला को कुंजुम दर्रा दो भागों में बांटता है। पूर्वी ओर स्पीति क्षेत्र पड़ता है जिसका पनढल सतलुज की ओर है, जबकि लाहुल का पनढल उसकी विपरीत दिशा में जम्मू कश्मीर की ओर है। चंद्रभागा इस घाटी के जलागम की निकास प्रणाली है। चंद्रभागा का उद्गम बड़ा शिन्ग्री हिमनद से होता है, जहां इसे चंद्रा नदी ही कहते हैं। नीचे तांदी में जब चंद्रा नदी के साथ भागा नदी का सम्मिलन हो जाता है, तो इसका नाम चंद्रभागा हो जाता है, और जम्मू कश्मीर में प्रवेश करने पर इसे चिनाब कहा जाता है। लाहुल से पश्चिम की ओर चंद्रभागा के निचले हिस्से में जिला चंबा

उपनिवेशवादी प्रबंधन ने ही लोगों को वनों से दूर किया था। उनको फिर से वनों के साथ जोडऩे का यह कानून मौका देता है, जिसका लाभ होगा। डरने की जरूरत नहीं, बल्कि मिलकर बेहतर वन प्रबंधन विकसित करने पर ध्यान देने की जरूरत है। वन विभाग यदि अपनी विशेषज्ञता का उपयोग आने वाले समय में आजीविका वानिकी की ओर करे तो बेहतर होगा। ऐसे वन जो बिना काटे रोजी-रोटी दे सकें, वही संरक्षित पर्यावरण की गारंटी हैं...

हर धर्म में समय से कुछ कमियां आ जाती हैं, इसलिए स्वयं ही उनके संशोधन को तैयार रहना चाहिए। गांधी ने इस दिशा में जातिवादी भेदभाव को समाप्त करने के लिए खुलेआम आवाज उठाई और जीवनपर्यन्त उसके लिए सच्चाई से लगे रहे...

एकमुखी समाधान से काम नहीं चलेगा। स्थानीय स्थितियों के अनुसार विविध प्रकार की तकनीकों का प्रयोग करना पड़ेगा। इसके लिए प्लास्टिक बनाने और प्लास्टिक में पैक सामान बेचने वाली कंपनियों को भी जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए। उन्हें नवाचार के लिए फंड खड़ा करना चाहिए...

आज चंबा आकांक्षी जिलों में 112वें स्थान पर है। इसलिए चंबा की ताकत को पहचानने की जरूरत है, ताकि इसके समृद्ध संसाधनों के अनुरूप जिले का विकास हो सके। हिमाचल प्रदेश को देश में प्रसुप्त राज्य के रूप में जाना जाता है और उस सुप्त अवस्था में चंबा गहन सुप्त अवस्था में पहुंच गया है। यहां तैनाती को सरकारी कर्मचारी सजा के तौर पर देखते हैं और लगातार तबादले के लिए प्रयासरत रहते हैं। इसके चलते यहां सरकारी परियोजनाओं का भी उतना लाभ मिल नहीं पाता है। चंबा प्राकृतिक संसाधनों में समृद्ध है। वर्तमान में 1300 मेगावाट से ज्यादा बिजली यहां बन रही है। चंबा चित्रकला, चंबा थाल, काष्ठकला, मूर्तिकला,