मोदी विरोध का विदेशी चेहरा

By: Feb 20th, 2023 12:02 am

हंगरी मूल के अमरीकी कारोबारी जॉर्ज सोरोस बुनियादी तौर पर प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा के कट्टर विरोधी रहे हैं। अडानी समूह में मौजूदा गड़बड़ी और संकट तो महज एक परदा है। उसकी आड़ में सोरोस प्रधानमंत्री मोदी को निशाना बना रहे हैं। उन्होंने अभी ही भारत के प्रधानमंत्री के खिलाफ अभियान नहीं छेड़ा है, बल्कि 2014 से ही यह सिलसिला टुकड़ों-टुकड़ों में जारी रहा है। आश्चर्य है कि अमरीकी कारोबारी ने भारत के लोकतंत्र पर सवाल उठाए हैं। वह हमारे लोकतंत्र का आकलन करने वाला कौन है? इस 92 वर्षीय बूढ़े वामपंथी की सोच, पूर्वाग्रह और दुष्प्रचार बेहद खतरनाक हैं, क्योंकि वह भारत के ही कुछ तबकों, शहरी नक्सलियों और वामपंथी बुद्धिजीवियों में सेंध लगाता रहा है। उनकी आर्थिक मदद करता है और प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ अभियानों को ‘हवा’ देता है। ऐसी देश-विरोधी, विध्वंसक हरकतें उसके संगठन करीब 70 देशों में करते रहे हैं।

जॉर्ज अपने मानस के मुताबिक दुनिया का विमर्श तय करना चाहता है। इसे सनक नहीं कहेंगे, तो और क्या कहेंगे! सोरोस 2024 के चुनावी जनादेश को प्रभावित कर मोदी और भाजपा को सत्ता से बाहर करने के मंसूबे पाले बैठा है। उसका मानना है कि यदि 2024 में सत्ता-परिवर्तन होता है और कांग्रेस समेत विपक्षी गठबंधन को जनादेश हासिल होता है, तो भारत में लोकतंत्र का पुनरोत्थान हो सकता है। हमारा सवाल है कि भारत में लोकतंत्र को क्या हुआ है? उसके संकट और चुनौतियां क्या हैं? क्या भारत में लोकतंत्र के पुनरोत्थान की कोई गुंज़ाइश है? बहरहाल 70,000 करोड़ रुपए के अमरीकी कारोबारी और उसके एनजीओ भारत में सक्रिय होकर, भारत के ही खिलाफ, कोई साजि़श रचें या दुष्प्रचारों को ‘हवा’ दें, तो उसे सरकार के स्तर पर बर्दाश्त क्यों किया जा सकता है? या इतने लोकतांत्रिक लचीलेपन और विनम्रता की जरूरत ही क्या है?

सोरोस का एनजीओ है-‘ओपन सोसायटी फाउंडेशन।’ इसकी स्थापना 1993 में हुई थी, लेकिन भारत में इसका प्रवेश 1999 में हुआ। 2016 में मोदी सरकार ने ही इस एनजीओ को ‘वॉच लिस्ट’ में रखा था, क्योंकि संगठन पर भारत को अस्थिर करने के गंभीर आरोप लगे थे। दुर्भाग्य और विडंबना यह है कि जॉर्ज सोरोस के हस्तक्षेप से जो भारत-विरोधी रपटें या सूचकांक तैयार किए जाते रहे हैं, उन्हें भारत में कांग्रेस एकदम लपक लेती है और फिर दुष्प्रचार का अभियान चलाया जाता है। एक फ्रेंच संगठन ‘शेरपा’ ने राफेल विमान करार में भ्रष्टाचार का खुलासा किया था, जिसके आधार पर तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने 2019 के आम चुनाव का अभियान चलाया था-‘चौकीदार चोर है।’ सोरोस ही ‘शेरपा’ का बुनियादी आर्थिक स्रोत है। कांग्रेस की ही हालिया ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान राहुल गांधी के साथ जॉर्ज के एनजीओ का वाइस प्रेजीडेंट सलिल शेट्टी भी चलता हुआ देखा गया। इसके पहले सलिल भारत में ‘एमनेस्टी इंटरनेशनल’ का महासचिव था। भारत-विरोधी गतिविधियों के कारण सरकार ने उस संगठन को बंद कराया, लेकिन राहुल गांधी के साथ सलिल की मौजूदगी के मायने क्या समझे जाएं? बहरहाल आम चुनाव के लगभग एक साल पहले ही ये भारत-विरोधी हरकतें सामने आई हैं, जिनका सभी नागरिकों को विरोध करना चाहिए।


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