जरूरी है सार्वजनिक पुस्तकालयों की व्यवस्था

हालांकि यह सही है कि वर्तमान में ज्ञान के प्रचार-प्रसार में संचार, तकनीकी संसाधनों का बहुत विस्तार हुआ है, परंतु पुस्तक, पत्र-पत्रिका तथा समाचार पत्र पढऩे का अपना ही आनंद है। इससे चिंतन, मनन तथा स्व-अध्ययन की आदत का विकास होता है तथा व्यक्ति बहुत सी विकृतियों तथा बुरी आदतों से दूर रह सकता है। समाज में एक स्वस्थ, सुंदर तथा अर्थपूर्ण वातावरण स्थापित करने की आवश्यकता है। प्रदेश सरकार यदि चाहे तो बजट का प्रावधान कर सार्वजनिक पुस्तकालयों की स्थापना के लिए योजना बना सकती है…

हिमाचल प्रदेश में नवगठित सरकार द्वारा सत्र 2023-2024 के लिए अपना पहला बजट विधानसभा में प्रस्तुत किया जाना अपेक्षित है। सरकारों द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले वार्षिक बजट प्रदेश तथा देश के सर्वांगीण विकास के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होते हैं तथा लोगों को बजट से बहुत आशाएं एवं अपेक्षाएं होती हैं। हिमाचल सरकार की ओर से बजट निर्धारण में जनभागीदारी सुनिश्चित करने के लिए सुझाव मांगे जा रहे हैं। लोकतन्त्र में योजनाओं के निर्माण में लोगों की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है। जनता की मांगों, सरकार के वादों, विभिन्न विभागों की आवश्यकताओं के अनुसार इस समय सत्र 2023-24 के बजट को अन्तिम रूप दिया जा रहा है। प्रत्येक सरकार उपलब्ध वित्तीय संसाधनों के अनुरूप आर्थिक संतुलन बनाते हुए लोकहित में प्राथमिकताओं के आधार पर योजनाएं बनाती है। पठन-पाठन, अध्ययन किसी भी व्यक्ति के जीवन के लिए बहुत आवश्यक है। शिक्षा के बिना यह जीवन निरर्थक है क्योंकि ज्ञान-विज्ञान के आधार पर ही हमारा जीवन अर्थपूर्ण है अन्यथा अनपढ़ व्यक्ति तो पशु समान ही है।

ज्ञानार्जन के लिए पुस्तकों तथा पुस्तकालयों की उपलब्धता होना अति आवश्यक है। मानसिक, बौद्धिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति ही स्वस्थ चिन्तन कर स्वस्थ समाज का निर्माण कर सकता है। शिक्षण के साथ-साथ सामाजिक, प्रादेशिक, राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय विविध ज्ञान एवं जानकारियां होना अति आवश्यक है। वर्तमान में बच्चों, युवाओं तथा वृद्धों के स्वास्थ्य, मनोरंजन, शारीरिक फिटनेस के लिए शहरों तथा गांवों में बहुत संसाधन उपलब्ध हैं, परन्तु स्व-अध्ययन तथा नवीन ज्ञान प्राप्त करने के सीमित संसाधन उपलब्ध हैं। हिमाचल प्रदेश में सार्वजनिक पुस्तकालयों तथा वाचनालयों का बहुत अभाव है। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले युवाओं, सामान्य नागरिकों तथा वृद्धजनों को छोटे शहरों तथा गांवों में अध्ययन के लिए सार्वजनिक सुविधा न के बराबर है। हालांकि प्रदेश में अनेक स्थानों पर विद्यालयों तथा महाविद्यालयों के पुस्तकालयों को सार्वजनिक बना दिया गया है ताकि लोग वहां बैठ कर पढ़ सकें, लेकिन आमजन इसे संस्थानों की कार्यप्रणाली में अवरोध तथा दखल ही समझता है। इसलिए वहां भी पाठकों, अध्ययनकर्ताओं की संख्या न के बराबर ही होती है। समाज में जहां खेलकूद तथा मनोरंजन के अनेक संसाधन उपलब्ध हैं, वहीं पर वर्तमान में ज्ञानार्जन तथा स्व अध्ययन एवं प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने के लिए सामुदायिक पुस्तकालय एवं वाचनालय होना वर्तमान की आवश्यकता है। आज इसकी सरकारी व्यवस्था न होने के कारण शहरों तथा गांवों में बहुत से लोगों ने निजी पुस्तकालय, वाचनालय तथा अध्ययन कक्ष शुरू कर अच्छी सुविधाएं देकर व्यावसायिक रूप देकर अच्छी धनराशि कमाना शुरू कर दिया है। इन निजी पुस्तकालयों में प्रतियोगी परीक्षाओं में भाग लेने वाले युवा तैयारी कर रहे हैं। सामाजिक रूप से जहां यह एक अच्छी बात है, वहीं पर सरकार तथा उसके अधीन सम्बन्धित विभाग अपनी जि़म्मेदारी से नहीं बच सकते। आवश्यक है कि जहां सरकारी पुस्तकालय चल रहे हैं, उन्हें और अधिक उपयोगी बनाया जाए। उनमें सीटिंग कपैसिटी बढ़े तथा जलपानगृह तथा शौचालयों आदि की ठीक व्यवस्था हो। छोटे शहरों तथा ग्रामीण परिवेश में पुस्तकालयों तथा वाचनालयों की सुविधा होनी चाहिए। बजट में प्रत्येक पंचायत में एक सार्वजनिक पुस्तकालय या वाचनालय होना वर्तमान समय की आवश्यकता है। इसका संचालन पंचायती राज, ग्रामीण विकास, शहरी विकास, शिक्षा विभाग, संस्कृति विभाग या महिला एवं समाज कल्याण के अधीन हो सकता है तथा उपरोक्त कोई भी विभाग इस नवीन कार्य का स्वप्न लेकर इसे साकार करने के लिए पहल कर सकता है।

प्रत्येक सार्वजनिक पुस्तकालय में ज्ञान विज्ञान, इतिहास, लोक संस्कृति, सामान्य ज्ञान, करंट अफेयर्स, इतिहास, धार्मिक संस्थान, कला-संस्कृति, लोक संस्कृति, मानवीय मूल्यों, राष्ट्रीय तथा नागरिकता के मूल्यों के विकास के लिए पर्यटन के लिए सामान्य पुस्तकों के साथ कम से कम दो समाचार पत्र, पत्र पत्रिकाएं, रोजगार समाचार पत्र उपलब्ध हों। अध्ययन के लिए उपयुक्त एवं सुंदर वातावरण हो, बैठने की व्यवस्था, दृश्य एवं श्रव्य संसाधन, जलपान तथा शौचालय की व्यवस्था होना इसे और अधिक उपयोगी बना सकता है। अच्छे पुस्तकालयों तथा वाचनालयों से लोगों का बौद्धिक विकास होता है, युवाओं में सृजनात्मकता तथा रचनात्मकता बढ़ती है, वृद्धों को आध्यात्मिक शांति मिलती है तथा अच्छी आदतों का विकास होता है। युवाओं को अध्ययन सामग्री सुगमता एवं सरलता से प्राप्त हो जाती है। शारीरिक, मानसिक, नागरिक विकास के साथ लोगों का बौद्धिक विकास होना आवश्यक है। प्रदेश की प्रत्येक पंचायत में छोटा ही सही, लेकिन पुस्तकालय तथा वाचनालय अवश्य होना चाहिए। पुस्तकालय लोगों को पढऩे और सीखने की आदत विकसित करने के लिए आकर्षित करते हैं। इससे पढऩे तथा ज्ञानार्जन की प्यास बढ़ती है। हालांकि यह सही है कि वर्तमान में ज्ञान के प्रचार-प्रसार में संचार, तकनीकी संसाधनों का बहुत विस्तार हुआ है, परन्तु पुस्तक, पत्र-पत्रिका तथा समाचार पत्र पढऩे का अपना ही आनंद है। इससे चिन्तन, मनन तथा स्व अध्ययन की आदत का विकास होता है तथा व्यक्ति बहुत सी विकृतियों तथा बुरी आदतों से दूर रह सकता है। समाज में एक स्वस्थ, सुन्दर तथा अर्थपूर्ण वातावरण स्थापित करने की आवश्यकता है। हिमाचल प्रदेश सरकार यदि चाहे तो स्वस्थ समाज में एक अच्छी आदत की स्थापना एवं बौद्धिक, मानसिक, नागरिक, सामाजिक तथा मानवीय विकास के लिए बजट का प्रावधान कर सार्वजनिक पुस्तकालयों की स्थापना के लिए योजना बना सकती है।

प्रो. सुरेश शर्मा

लेखक घुमारवीं से हैं


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