माघ पूर्णिमा स्नान से मिलता है मोक्ष

By: Feb 4th, 2023 12:30 am

माघ पूर्णिमा या माघी पूर्णिमा का हिंदू धर्म में बड़ा ही धार्मिक महत्त्व बताया गया है। वैसे तो हर पूर्णिमा का अपना अलग-अलग माहात्म्य होता है, लेकिन माघ पूर्णिमा की बात सबसे अलग है। इस दिन संगम (प्रयाग) की रेत पर स्नान-ध्यान करने से मनोकामनाएं पूर्ण तो होती ही हैं, साथ ही मोक्ष की प्राप्ति भी होती है। मघा नक्षत्र के नाम पर माघ पूर्णिमा की उत्पत्ति होती है। माघ माह में देवता पितरगण सदृश होते हैं। पितृगणों की श्रेष्ठता की अवधारणा और श्रेष्ठता सर्वविदित है। पितरों के लिए तर्पण भी हजारों साल से चला आ रहा है। इस दिन स्वर्ण, तिल, कंबल, पुस्तकें, पंचांग, कपास के वस्त्र और अन्नादि दान करने से सुकृत्य मिलता है…

धार्मिक मान्यता

माघ माह के बारे में कहते हैं कि इन दिनों देवता पृथ्वी पर आते हैं। प्रयाग में स्नान-दान आदि करते हैं। सूर्य मकर राशि में आ जाता है। देवता मनुष्य रूप धारण करके भजन-सत्संग आदि करते हैं। माघ पूर्णिमा के दिन सभी देवी-देवता अंतिम बार स्नान करके अपने लोकों को प्रस्थान करते हैं। नतीजतन इसी दिन से संगम तट पर गंगा, यमुना एवं सरस्वती की जलराशियों का स्तर कम होने लगता है। मान्यता है कि इस दिन अनेकों तीर्थ, नदी-समुद्र आदि में प्रात: स्नान, सूर्य अघ्र्य, जप-तप व दान आदि से सभी दैहिक, दैविक एवं भौतिक तापों से मुक्ति मिल जाती है। शास्त्र कहते हैं कि यदि माघ पूर्णिमा के दिन पुष्य नक्षत्र हो तो इस दिन का पुण्य अक्षुण हो जाता है।

पौराणिक प्रसंग

शास्त्रों में एक प्रसंग है कि भरत ने कौशल्या से कहा कि ‘यदि राम को वन भेजे जाने में उनकी किंचितमात्र भी सम्मति रही हो तो वैशाख, कार्तिक और माघ पूर्णिमा के स्नान सुख से वो वंचित रहें। उन्हें निम्न गति प्राप्त हो।’ यह सुनते ही कौशल्या ने भरत को गले से लगा लिया। इस तथ्य से ही इन अक्षुण पुण्यदायक पर्व का लाभ उठाने का महत्त्व पता चलता है।

कल्पवास की पूर्णता

माघ पूर्णिमा कल्पवास की पूर्णता का पर्व है। एक माह की तपस्या इस तिथि को समाप्त हो जाती है। कल्पवासी अपने घरों को लौट जाते हैं। स्वाभाविक है कि संकल्प की संपूर्ति का संतोष एवं परिजनों से मिलने की उत्सुकता उनके हृदय के उत्साह का संचार है। इसीलिए यह स्नान पर्व आनंद और उत्साह का पर्व बन जाता है।

संक्षिप्त कथा

माघ माह की पूर्णिमा को ‘बत्तीस पूर्णिमा’ भी कहते हैं। पुत्र और सौभाग्य को प्राप्त करने के लिए मध्याह्न में शिवोपासना की जाती है। एक पौराणिक कथा के अनुसार कांतिका नगरी में धनेश्वर नामक एक ब्राह्मण रहता था। वह नि:संतान था। बहुत उपाय किया, लेकिन उसकी पत्नी रूपमती से कोई संतान नहीं हुई। ब्राह्मण दान आदि मांगने भी जाता था। एक व्यक्ति ने ब्राह्मण दंपत्ति को दान देने से इसलिए मना कर दिया कि वह नि:संतान दंपत्ति को दान नहीं करता है। लेकिन उसने उस नि:संतान दंपत्ति को एक सलाह दी कि चंद्रिका देवी की वे आराधना करें। इसके पश्चात ब्राह्मण दंपत्ति ने मां काली की घनघोर आराधना की। 16 दिन उपवास करने के पश्चात मां काली प्रकट हुईं। मां बोलीं कि तुमको संतान की प्राप्ति अवश्य होगी। अपनी शक्ति के अनुसार आटे से बना दीप जलाओ और उसमें एक-एक दीप की वृद्धि करते रहना। यह कर्क पूर्णिमा के दिन तक 22 दीपों को जलाने की हो जानी चाहिए। देवी के कथनानुसार ब्राह्मण ने आम के वृक्ष से एक आम तोड़ कर पूजन हेतु अपनी पत्नी को दे दिया। पत्नी इसके बाद गर्भवती हो गई। देवी के आशीर्वाद से देवदास नाम का पुत्र पैदा हुआ। देवदास पढऩे के लिए काशी गया, उसका मामा भी साथ गया। रास्ते में घटना हुई। प्रपंचवश उसे विवाह करना पड़ा। देवदास ने जबकि साफ.-साफ बता दिया था कि वह अल्पायु है, लेकिन विधि के चक्र के चलते उसे मजबूरन विवाह करना पड़ा। उधर, काशी में एक रात उसे दबोचने के लिए काल आया, लेकिन व्रत के प्रताप से देवदास जीवित हो गया।

माघ स्नान की महिमा

संगम में माघ पूर्णिमा का स्नान एक प्रमुख स्नान है। इस दिन सूर्योदय से पूर्व जल में भगवान का तेज रहता है, जो पाप का शमन करता है। निर्णयसिन्धु में कहा गया है कि माघ मास के दौरान मनुष्य को कम से कम एक बार पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए। भले पूरे माह स्नान के योग न बन सकें, लेकिन माघ पूर्णिमा के स्नान से स्वर्गलोक का उत्तराधिकारी बना जा सकता है। इस बात का उदाहरण इस श्लोक से मिलता है :

‘मासपर्यन्त स्नानासम्भवे तु त्रयहमेकाहं वा स्नायात्।’ अर्थात ‘जो लोग लंबे समय तक स्वर्गलोक का आनंद लेना चाहते हैं, उन्हें माघ मास में सूर्य के मकर राशि में स्थित होने पर अवश्य तीर्थ स्नान करना चाहिए।’

हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार महाकुंभ में माघ पूर्णिमा का स्नान इसलिए भी अति महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इस तिथि पर चंद्रमा अपने पूर्ण यौवन पर होता है। साधु-संतों का कहना है कि पूर्णिमा पर चंद्रमा की किरणें पूरी लौकिकता के साथ पृथ्वी पर पड़ती हैं। स्नान के बाद मानव शरीर पर उन किरणों के पडऩे से शांति की अनुभूति होती है और इसीलिए पूर्णिमा का स्नान महत्वपूर्ण है।

माघ स्नान वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। माघ में ठंड खत्म होने की ओर रहती है तथा इसके साथ ही शिशिर की शुरुआत होती है। ऋतु के बदलाव का स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर नहीं पड़े, इसलिए प्रतिदिन सुबह स्नान करने से शरीर को मजबूती मिलती है।


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