खामोशियों के खिलाफ

By: Mar 8th, 2023 12:05 am

हिमाचल में विपक्ष की सक्रियता में विरोध की अनुगूंज के फायदे और नुकसान देखे जा सकते हंै, लेकिन सत्तारूढ़ कांग्रेस में सरकार और संगठन के बीच तालमेल का इम्तिहान बताएगा कि जन स्वीकृतियों के आईने में ये पांच साल किस तरह प्रदेश को आगे ले जाते हैं। कुल्लू की जनाक्रोश रैली में नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर का सियासी गणित जिन मुद्दों को छू गया, उससे आगामी बजट सत्र की तासीर का पता चलता है। जाहिर है भाजपा के लिए उद्वेलित माहौल की सुर्खियों में डिनोटिफाई किए गए संस्थान रहेंगे और यह भी कि सामने सुखविंदर सुक्खू के रूप में एक ऐसा मुख्यमंत्री डटा है, जो व्यवस्था की लीक बदलने के लिए शाबाशियां बटोर रहा है। प्रगति और परिवर्तन हमेशा खामोशियों के विरुद्ध रहेंगे और इसीलिए हिमाचल में ऐसी सरकार आई है, जो काम के तौर तरीके और आर्थिक आधार के सलीके बदलना चाहती है। यहां विपक्षी तल्खियों का सत्ता की सख्तियों से मुकाबला रहेगा और रहना भी चाहिए ताकि यह दौर निर्णायक रूप से कुछ हासिल कर सके। सुक्खू सरकार की आलोचना में विपक्ष के स्वर जिस तरह ऊंचे हो रहे हैं, उससे मुआयने और पारदर्शी प्रक्रियाएं बढ़ेंगी ही। यहां सवाल नीति और नीयत से भी जुड़ता है। पिछले एक दशक या इससे भी अधिक समय से सरकारों ने अपने अंतिम दौर में मिशन रिपीट या रिवाज बदलने के नारों के बीच नीति व नीयत के बजाय घोषणाओं के आश्चर्य पैदा किए। बिना किसी सर्वेक्षण, माकूल बजट, योजना और प्रदेश के आर्थिक हितों के सरकारों ने अंतिम दौर को सियासी चरागाह बना दिया।

इसी फिजूलखर्ची के आलम पर चोट करती वर्तमान सरकार ने सख्ती दिखाई है, तो तर्क, यथार्थ व कार्रवाइयों के पैमाने सियासी सौहार्द पैदा नहीं करते, अलबत्ता पहली बार सरकार ने कुछ नया करके दिखाने का दम भरा है। अब तक के फैसलों में अगर पिछली सरकार के निर्णयों पर कैंची चली है या पेपर लीक मामले के निष्कर्षों ने कर्मचारी चयन आयोग के अस्तित्व पर प्रश्न चस्पां किए हैं, तो निर्णायक होने के लिए अलोकप्रिय फैसलों की ईमानदारी पर संदेह नहीं किया जा सकता। ड्राइंग मास्टर भर्ती परीक्षा में पचास हजार में बिका पेपर अगर एक उम्मीदवार को गलत तरीके से टॉपर बना देता है, तो इस सड़ांध भरे माहौल को सजा क्यों न मिले। सुक्खू सरकार का संतुलन लोकप्रियता का सूचकांक इस दृष्टि से नहीं हो सकता कि विपक्ष अपनी शुरुआत में ही गुस्से से लाल पीला क्यों हो रहा है, बल्कि ऐसे परिवर्तन की पहल बताएगी कि वर्तमान सरकार करना क्या चाहती है। यह दीगर है कि सत्ता के बीच सियासी संतुलन या संगठन संबंधी अपेक्षाएं पूरी करनी पड़ेंगी, क्योंकि फैसले केवल सरकार का मंचन ही नहीं कर रहे, बल्कि ये कांग्रेस के सियासी चेहरों और मोहरों से मुलाकात करने का सफर भी है। सियासी तौर पर सरकार का मुकाबला ऐसी पार्टी से है जो जनाक्रोश तैयार करने के लिए जनता के बीच पहुंच रही है, तो फैसलों में जन उपेक्षा ढूंढी जा रही है। इसीलिए भाजपा सरकार को अस्थिर साबित करने का मनोविज्ञान खड़ा कर रही है।

नेता प्रतिपक्ष जयराम या उनके सिपहसालार सरकार के अस्तित्व पर प्रश्न टांकते हुए कांगड़ा का राग या ऐसी आशंकाओं के बीज बो रहे हैं, जो सरकार के हर फैसले के बरअक्स आक्रोश पैदा करने का मौका तैयार कर रहे हैं। इसका सीधा व सरल अर्थ यह है कि सरकार ने अपने भीतर शेष बचे संकट दूर नहीं किए, तो भाजपा ने विरोध की मिट्टी पर अपने गुम हुए चिराग जला देने हैं। मिजाज बदलने की पराजय को कबूल न करने के बजाय, विपक्ष ऐसे तंत्र व अवसर खोज रहा है जहां वर्तमान राज्य सरकार की खामियों से औजार पैदा किए जा सकें। भाजपा के सपने सुक्खू सरकार को पहले दिन से ही यह अवसर दे रहे हैं कि व्यवस्था परिवर्तन से जन स्वीकृतियां पैदा की जाएं और अगर जनता भी इस अभियान की पवित्रता व ईमानदारी से रूबरू हो गई, तो मिशन रिपीट का पाठ्यक्रम और प्रदेश के विषय वर्तमान सरकार के अनुयायी बन सकते हैं। सरकार के लिए कुछ सियासी शर्तों की अनुपालना भी जरूरी है और जब सरकार का ऊंट पूरी करवटें बदल लेगा, तो पूरा राज्य देखेगा कि उसके हिस्से कितनी सरकार आई। यानी कुछ ताजपोशियां, कुछ सियासी नियुक्तियां तथा कुछ नए मंत्रियों के आगमन से यह सरकार कितनी मुकम्मल होती है, यह वास्तविक संतुलन होगा। फिलहाल कठिन फैसलों के बावजूद सुक्खू सरकार के साथ जन स्वीकृतियां शिरकत कर रही हैं, लेकिन इन्हें संरक्षित रखने की चुनौती में सुशासन व कामकाज के तरीके पारदर्शी बनाकर निरंतर प्रदर्शन करना होगा।


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