उपेक्षाओं से पनपता अवसाद व समस्याएं

By: Mar 25th, 2023 12:15 am

सुखी जीवन जीना भी स्वयं में एक कला है अन्यथा जीवनयापन एक कठिन क्रिया और जटिल समस्या है। इनसान तो इनसान स्वयं नारायण ने भी जब मानव रूप में अवतार लिया, तो जीवन भर यातनाएं सहते रहे कठिनाइयों का सामना करते रहें चाहे रामचन्द्र जी के रूप में आए चाहे श्री कृष्ण रूप में। उनके जीवन ने इनसान को स्पष्ट संदेश दिया कि जीवन की कठिनाइयों का सामना करो। प्रसिद्ध मनोशास्त्रियों ने भी जीवन भर की खोज, साधना से ये उत्कर्ष निकाला है कि अपेक्षाओं से निराशा, अवसाद पनपता है एवं समझौते से समस्याएं सुलझती है। अब जरा मानव रचना पर गौर करें जो दिमाग, शरीर एवं दिल जैसे महत्त्वपूर्ण अवयवों का अद्भुत मिश्रण है। तीनों अंग स्वस्थ रहेंगे, तो जीवन का सही मायनों में अनंद उठाया जा सकेगा।

शरीर स्वस्थ व पौष्टिक भोजन ठीक व्यायाम, सक्रिय जीवन शैली से तंदुरुस्त रखा जा सकता है। दिमाग सकारात्मक सोच, तनावरहित क्रियाओं से स्वस्थ रह सकता है। दिल निराशा, कुंठा, अवसाद आदि से दूर रहे व्यर्थ की भावनाओं से ग्रस्त न रहे, तभी तंदुरुस्त रहेगा। निराशा से बचने हेतु ज्यादा आशाएं न पाले जितनी आशाएं व अपेक्षाएं पाल लेंगे तो उनके पूरे न होने पर उतनी ही निराशा उपजनी स्वाभाविक है। व्यर्थ की कल्पना शीलता से परहेज करें। सारांश यह कि फिजूल की इच्छाओं आशाओं अपेक्षाओं को न पाले औरों से ज्यादा उपेक्षा न करे समस्याओं को समझौतों से सुलझाएं इसके एवज में सुखी, स्वस्थ, सरल सकारात्मक जीवन जिएं। यही जीवन का सार है। मूलमंत्र व दर्शनशास्त्र है पलायन विनाशकारी परिणाम पैदा करता है बकौल महापरुषों के कथनों के ‘‘ सादा जीवन उच्च विचार’’ यही है जीवन की सत्यता एवं सार’।

जे.पी. शर्मा, मनोवैज्ञानिक
नीलकंठ, मेन बाजार ऊना मो. 9816168952


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