करो योग और रहो निरोग

By: Mar 10th, 2023 12:08 am

तीसरा नियम है तप। इस नियम में अपने वर्ण, आश्रम, परिस्थिति और योग्यता के अनुसार स्वधर्म का पालन करना। व्रत, उपवास आदि भी इसी में शामिल किया जाता है। यानी कि स्वयं से अनुशासित दिनचर्या में रहना है। स्वाध्याय चौथा नियम है जिससे कत्र्तव्य का बोध हो सके, मतलब शास्त्र का अध्ययन करना। महापुरुषों के वचनों का अनुपालन भी स्वाध्याय के अंतर्गत आता है। ईश्वर प्राणिधान पांचवां नियम है। ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण व संपूर्ण श्रद्धा रखना…

विकसित देशों की तरक्की में वहां के फिट नागरिकों का बड़ा योगदान है। जब तक ग्रामीण परिवेश में अधिकांश जनसंख्या रही तब तक अलग से किसी भी फिटनेस कार्यक्रम की जरूरत नहीं थी। जब से दैनिक जीवन में भौतिक सुख-सुविधाओं का विकास हुआ है तभी से फिटनेस कार्यक्रम की जरूरत महसूस हो रही है। स्वास्थ्य सबसे बड़ा धन है। बिना अच्छे स्वास्थ्य के धन दौलत, पद प्रतिष्ठा व अन्य भौतिक सुख सुविधाएं सब बेमानी लगते हैं। जन मानस का स्वास्थ्य उत्तम हो, इस सबके लिए इस कॉलम के माध्यम से बार बार योग के बारे में जानकारी देकर योग को अपनाने के लिए प्रेरित किया जाता रहा है। दौड़ती-भागती जीवन शैली के कारण मनुष्य के पास अपने लिए कोई भी कार्यक्रम नहीं है जो उनके स्वास्थ्य को सुधार कर व्यवस्थित रख सके।

आज मानव ने विज्ञान में नए नए शोध कर प्रौद्योगिकी व चिकित्सा क्षेत्र में इतनी प्रगति कर ली है कि इसके कारण जीवन काफी आसान तो हो गया है, मगर शारीरिक श्रम जो पहले यूं ही दिनचर्या में आसानी से हो जाता था, अब उसके लिए आज अलग से फिटनेस कार्यक्रम चाहिए होता है। समय बचाती दुनिया के लिए योग मुख्य विकल्प है जो कम श्रम कर अधिक फिटनेस दे सकता है। अब आम जन मानस के लिए योग के बारे में जानना जरूरी हो जाता है। पहले भी कई बार इस कॉलम के माध्यम से योग के बारे में लिखा जाता रहा है ताकि आम जनमानस इसे अपना कर स्वास्थ्य लाभ कर सकें। सैकड़ों वर्ष पूर्व महर्षि पतंजलि ने योग को लिखित रूप में संग्रहित किया और योग सूत्र की रचना की। योग सूत्र की रचना के कारण पतंजलि को योग का जनक कहा जाता है। योग के महान ग्रंथ में योग के बारे में कहा गया है कि मन की वृतियों में नियंत्रण करना ही योग है। यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान व समाधि यह अष्टांग योग के आठ सूत्र हैं। आठों अंगों में प्रथम दो यम व नियम को नैतिक अनुशासन, आसन, प्राणायाम व प्रत्याहार को शारीरिक अनुशासन व धारणा, ध्यान, समाधि को मानसिक अनुशासन बताया गया है। योग हमें यम एवं नियम द्वारा व्यक्ति के मन और मस्तिष्क को ठीक करने की सलाह देता है। आसन और प्राणायाम करने से पूर्व यदि व्यक्ति यम एवं नियमों का पालन नहीं करता है तो उसे योग से पूर्ण स्वास्थ लाभ नहीं मिल सकता है।

यम और नियम की विस्तार से चर्चा जरूरी है। संयम मन, वचन और कर्म से होना चाहिए। इसका पालन न करने से व्यक्ति का जीवन व समाज दोनों दुष्प्रभावित होते हैं। इससे मन मजबूत और पवित्र होता है तथा मानसिक शक्ति बढ़ती है। सत्य, अहिंसा, असतेय, ब्रह्मचर्य व अपरिग्रह यह नियम व्यक्तिगत नैतिकता के हैं। मनुष्य को कर्तव्य परायण बनाने तथा जीवन को सुव्यवस्थित करने हेतु पांच नियमों का विधान किया गया है । ये नियम हैं शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय व ईश्वर प्राणिधान। यम यानि मन, वचन एवं कर्म से सत्य का पालन व मिथ्या का त्याग। जिस रूप में देखा, सुना एवं अनुभव किया हो उसी रूप में उसे बतलाना सत्य है। अहिंसा दूसरा सूत्र है। इस में किसी को मारना ही केवल हिंसा का रूप नहीं है, बल्कि किसी भी प्राणी को कभी भी किसी प्रकार का दुख न पहुंचाना अहिंसा है। असतेय अर्थात चोरी न करना।

छल से, धोखे से, झूठ बोलकर, बेईमानी से किसी चीज को प्राप्त करना भी चोरी है। जिस पर अपना अधिकार नहीं उसे लेना भी इसी श्रेणी में आता है। ब्रह्मचर्य मन, वचन एवं कर्म से यौन संयम अथवा मैथुन का सर्वथा त्याग करना ब्रह्मचर्य है। सभी इंद्रिय जनित सुखों में संयम बरतना। अपरिग्रह अपने स्वार्थ के लिए धन, संपति एवं भोग की सामग्री में संयम न बरतना परिग्रह है। इसका अभाव अपरिग्रह है। आवश्यकता से अधिक संचय करना अपरिग्रह है। दूसरों की वस्तुओं की इच्छा न करना। मन, वचन एवं कर्म से इस प्रवृति को त्यागना ही अपरिग्रह है। नियमों में शौच के अंतर्गत पानी मिट्टी आदि के द्वारा शरीर, वस्त्र, भोजन, मकान आदि के मल को दूर करना बाह्य शुद्धि माना जाता है। सद्भावना, मैत्री, करुणा आदि से की जाने वाली शुद्धि आंतरिक शुद्धि मानी जाती है। केवल अपने भौतिक शरीर का ध्यान रखना पर्याप्त नहीं है। बल्कि अपने मन के विचारों को पहचान कर उन्हें दूर करने का प्रयास करना जरूरी है। शरीर और मन दोनों की शुद्धि।

संतोष दूसरा नियम है। इसमें कर्तव्य का पालन करते हुए जो कुछ उपलब्ध हो, जो कुछ प्राप्त हो, उसी में संतुष्ट रहना। किसी प्रकार की तृष्णा न करना। तीसरा नियम है तप। इस नियम में अपने वर्ण, आश्रम, परिस्थिति और योग्यता के अनुसार स्वधर्म का पालन करना। व्रत, उपवास आदि भी इसी में शामिल किया जाता है। यानि कि स्वयं से अनुशासित दिनचर्या में रहना है। स्वाध्याय चौथा नियम है जिससे कर्तव्य का बोध हो सके, मतलब शास्त्र का अध्ययन करना। महापुरुषों के वचनों का अनुपालन भी स्वाध्याय के अंतर्गत आता है। ईश्वर प्राणिधान पांचवां नियम है। ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण व संपूर्ण श्रद्धा रखना। फल की इच्छा का परित्यागपूर्वक समस्त कर्मों का ईश्वर को समर्पण करना ईश्वर प्राणिधान कहलाता है। हजारों साल पहले भारतीय शोधकर्ताओं ने योगिक क्रियाओं से होने वाले लाभों को समझ लिया था जो आज की चिकित्सा व खेल विज्ञान में योग का प्रयोग खूब हो रहा है। योग के नियमों का पालन करने के बाद अगर यौगिक क्रियाओं को किया जाता है तो मानव में शारीरिक व मानसिक स्तर पर आश्चर्यजनक रूप से अलौकिकता सुधार होता है। आज आधुनिकता की इस अंधी दौड़ में इनसान को अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देना जरूरी हो जाता है। आज जब मनुष्य के पास हर सुख सुविधा आसानी से उपलब्ध है, मगर समय का अभाव है, ऐसे में करो योग और रहो निरोग।                ईमेल:  bhupindersinghhmr@gmail.com

भूपिंद्र सिंह

अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक्स प्रशिक्षक


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