विदेश में राहुल गांधी का प्रचार

राहुल गांधी से कम से कम यह तो नहीं ही कहलवाना चाहिए था कि यूरोप और अमेरिका भारत की आंतरिक राजनीति में हस्तक्षेप करें। कांग्रेस पार्टी पर पहले से ही यह आरोप लगता आया है कि इसकी स्थापना एक अंग्रेज ने ब्रिटेन के सांस्कृतिक व राजनीतिक हितों की रक्षा के लिए की थी। आज राहुल गांधी लगभग एक सौ तीस साल बाद फिर अपनी पार्टी के प्रतिनिधि बन कर उसी लंदन में गुहार लगाने चले गए। राहुल लंदन में जो बोल कुबोल बोल कर आए हैं, उसका सार यही है, ‘जहांपनाह! आप तो भारत की सरकार हमें देकर आए थे, लेकिन अब भारत के लोगों ने वह सत्ता हमसे छीन ली है। कृपया आकर हमें वह सत्ता वापस दिलवाइए।’ राहुल गांधी की ऐसी सोच से देश का कोई भला होने वाला नहीं है। कांग्रेस को भी इसका कोई लाभ मिलने वाला नहीं है। लोग ऐसी सोच के कारण कांग्रेस से दूर होते चले जाएंगे। कांग्रेस को भारतीय जनमानस की भावनाओं की कद्र जरूर करनी चाहिए। आगामी लोकसभा चुनाव एक साल में होने वाले हैं, अगर कांग्रेस इन चुनावों में कुछ अच्छा करना चाहती है, तो उसे इस तरह की गलतियों से बचना होगा। भारत में लोकतंत्र खूब फल-फूल रहा है…

इटली और इंग्लैंड में राहुल गांधी ने यूरोप और अमेरिका से गुहार लगाई कि हिन्दुस्तान में लोकतन्त्र ख़त्म हो रहा है, लेकिन अमेरिका और यूरोप के देश इस लोकतन्त्र को बचाने के लिए कुछ नहीं कर रहे। उन्होंने इन देशों में विभिन्न विभिन्न स्थानों पर जाकर भाषण नुमा बातें कहीं, जिस पर कांग्रेस के लोग लगभग जश्न मनाने की मुद्रा में पहुंच गए हैं। राहुल गान्धी ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी ने देश में से लोकतन्त्र समाप्त कर दिया है। देश में बोलने की आजादी समाप्त कर दी गई है। लोकसभा में तो जैसे ही मैं बोलने लगता हूं, मेरा माइक बंद करवा दिया जाता है। देश में अघोषित आपात काल चल रहा है। लेकिन मुख्य बात तो यह कि राहुल गान्धी को इन दोनों देशों में बोलने के लिए किसने निमंत्रित किया था? इटली के बारे में तो स्पष्ट है कि किसी ने उन्हें वहां बुलाया नहीं होगा। वे वहां स्वयं अपने नाना-नानी के घर मिलने गए होंगे।

वहां ही पत्रकार पहुंच गए होंगे। पत्रकारों को सामने देख मन पर नियंत्रण कर पाना कठिन साधना है। भारत जोड़ो यात्रा में आधी बांह की क़मीज़ पहने देख कर लगा था कि राहुल भी साधना करते हैं और अब तक उनमें वाणी संयम आ ही गया होगा। लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हुआ। वे इटली में भारत में बढ़ रहे तथाकथित नाज़ीवाद व फासीवाद के बारे में जो कह कर आए थे, वही उन्होंने इंग्लैंड में कहना शुरू कर दिया। इंग्लैंड में उन्हें बोलने के लिए कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के बिजऩेस स्कूल ने निमंत्रित किया था। इस स्कूल के प्रति कुलपति पाकिस्तान मूल के डा. कमाल मुनीर हैं। मुनीर को लगा होगा कि विश्वविद्यालय के बिजऩेस स्कूल के छात्रों को भारत की वर्तमान स्थिति पर राहुल गान्धी से अच्छा कोई वक्ता नहीं मिल सकता। वैसे भी ब्रिटेन का मीडिया संस्थान बीबीसी अभी कुछ दिन पहले ही नरेन्द्र मोदी के खिलाफ एक वृत चित्र प्रसारित कर चुका था, जिसमें मोदी को अल्पसंख्यकों का विरोधी बताया गया था और गुजरात दंगों के लिए उन्हें ही दोषी ठहराया गया था। अमेरिका में सिलिकन वैली बैंक के डूबने से कुछ दिन पहले ही अमेरिका से हिंडनवर्ग रिपोर्ट प्रसारित की गई थी, जिसमें मोदी को परोक्ष रूप से घेरने की कोशिश की गई थी। यह अलग बात है कि अमेरिका में एक के बाद एक दो नामी बैंक दम तोड़ गए लेकिन हिंडनवर्ग को भनक तक न लगी। लेकिन रपट लिखने वाले सात समुद्र पार अडानी की वित्तीय स्थिति और उसके भीतर की तथाकथित कमज़ोरियों को जरूर पकड़ते रहे।

सभी जानते हैं कि कुछ साल पहले अमेरिका में एक सैयद गुलाम अली फाई रहता था जो कि आईएसआई का छिपा हुआ एजेंट था। उसने एक एनजीओ चला रखी थी जो कश्मीर पर सैमीनार करवाती थी। वह भारत के नामी गिरामी पत्रकारों को कश्मीर पर बोलने के लिए किराया देकर बुलाता था। ये पत्रकार कश्मीर पर वही कुछ बोल कर आते थे जो पाकिस्तान की नीति के अनुकूल होता था। पत्रकार तो भाषण देकर और किराया व आतिथ्य हलाल कर चले आते थे और पाकिस्तान उनकी बतकही को अपने हित के लिए अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर उपयोग करता था। कई बार वक्ता को भी इस बात का इल्म नहीं होता कि जो वह कह रहा है, उसका देश को कितना बड़ा नुक़सान हो रहा होता है। राहुल गान्धी का यह विदेश दौरा तो यक़ीनन उनकी पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े ने ही पार्टी अध्यक्ष के नाते पार्टी फंड से किया होगा। वैसे तो यदि कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय को भारत की वर्तमान राजनीति पर कांग्रेस पार्टी की आधिकारिक राय जानने की इतनी ही जरूरत थी तो वह पार्टी अध्यक्ष को बुला सकती थी। लेकिन उनको शायद राहुल गान्धी में ही ज्यादा संभावना दिखाई दे रही होगी।

लेकिन राहुल गान्धी को इतना ध्यान तो रखना ही चाहिए था कि डा. कमाल मुनीर के जिस संस्थान का आतिथ्य वह स्वीकारने जा रहे हैं वह एक बड़ा अन्तरराष्ट्रीय जाल है जिसमें उनको इसलिए फंसाया जा रहा है ताकि उनकी बतकही का प्रयोग पाकिस्तान और अन्य भारत विरोधी गिरोह भारत के खिलाफ करेंगे। यह माना जा सकता है कि राहुल गान्धी शायद इस प्रकार इतनी दूर तक नहीं देख पाते या सोच पाते। इसलिए उन्हें बैनिफिट आफ डाऊट दिया जा सकता है । लेकिन उनके सलाहकार जो उन्हें यह सब लिख कर देते हैं और समझाते हैं, उन्हें तो यह ध्यान रखना चाहिए था। लम्बी भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गान्धी की जो छवि सुधरी थी और उनके कुछ हितैषियों को आशा जगी थी कि अब गाड़ी पटरी पर आ गई है, वे बेचारे फिर से अपने बाल नोच रहे हैं।

राहुल गान्धी से कम से कम यह तो नहीं ही कहलवाना चाहिए था कि यूरोप और अमेरिका भारत की आंतरिक राजनीति में हस्तक्षेप करें। कांग्रेस पार्टी पर पहले से ही यह आरोप लगता आया है कि इसकी स्थापना एक अंग्रेज़ ने ब्रिटेन के सांस्कृतिक व राजनीतिक हितों की रक्षा के लिए की थी। आज राहुल गान्धी लगभग एक सौ तीस साल बाद फिर अपनी पार्टी के प्रतिनिधि बन कर उसी लंदन में गुहार लगाने चले गए। राहुल लंदन में जो बोल कुबोल बोल कर आए हैं, उसका सार यही है, ‘जहांपनाह! आप तो भारत की सरकार हमें देकर आए थे, लेकिन अब भारत के लोगों ने वह सत्ता हमसे छीन ली है। कृपया आकर हमें वह सत्ता वापस दिलवाइए।’ राहुल गांधी की ऐसी सोच से देश का कोई भला होने वाला नहीं है। कांग्रेस को भी इसका कोई लाभ मिलने वाला नहीं है। लोग ऐसी सोच के कारण कांग्रेस से दूर होते चले जाएंगे। कांग्रेस को भारतीय जनमानस की भावनाओं की कद्र जरूर करनी चाहिए। आगामी लोकसभा चुनाव एक साल में होने वाले हैं। अगर कांग्रेस चाहती है कि वह इन चुनावों में कुछ बेहतर करे, तो उसे इस तरह की सोच से बचना होगा। भारत पर कौन राज कर रहा है, यह इस देश का आंतरिक मामला है। यहां लोकतंत्र खत्म हो गया है और संविधान को कुचला जा रहा है, यह भी दुष्प्रचार के अलावा कुछ और नहीं है। भारत में लोकतंत्र बखूबी फल-फूल रहा है।

कुलदीप चंद अग्निहोत्री

वरिष्ठ स्तंभकार

ईमेल:kuldeepagnihotri@gmail.com


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