रामायण मनका (108)

By: Mar 18th, 2023 12:27 am

-गतांक से आगे…

वन में चौदह वर्ष बिताओ, रघुकुल रीती निति अपनाओ, तपसी वेश बनाओं राम।। पतितपावन सीताराम।।
सुनत वचन राघव हरषाये, माताजी के मन्दिर आये, चरण कमल में किया प्रणाम।। पतितपावन सीताराम।।
माताजी मैं तो वन जाऊं, चौदह वर्ष बाद फिर आऊं, चरण कमल देखू सुख धाम।। पतितपावन सीताराम।।
सुनी शूल जब यह बानी, भू पर गिरि कौशल्या रानी, धीरज बंधा रहे श्री राम।। पतितपावन सीताराम।।
सीताजी जब यह सुन पाई, रंग महल से नीचे आई, कौशल्या को किया प्रणाम।। पतितपावन सीताराम।।
मेरी चुक क्षमा कर दीजो, वन जाने की आज्ञा दीजो, सीता समझाते राम।। पतितपावन सीताराम।।
मेरी सीख सिया सुन लीजो, सास ससुर की सेवा कीजो, मुझको भी होगा विश्राम।। पतितपावन सीताराम।।


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