प्रदेश के लिए ग्रोथ एजेंडे की प्रासंगिकता

उद्यमी का खून चूस कर सरकार को अपनी आय नहीं बढ़ानी है, बल्कि उसके साथ खड़े होकर प्राप्त लाभ का उचित अंश टैक्स के रूप में सरकार के कोष में जाना चाहिए…

‘‘भारतीय उद्योग परिसंघ’’ (सीआईआई) ने इस बार अपने वार्षिक अधिवेशन में दिनांक 7 मार्च को शिमला में मुख्यमंत्री को अध्यक्षता का न्योता दिया। गत वर्षों की भांति मुझे भी इसमें भाग लेने का अवसर मिला, परंतु इस बार मात्र आयोजन की औपचारिकताएं नहीं थी, अपितु मुख्यमंत्री ने बहुत ही स्पष्ट तरीके से आने वाले पांच वर्षों का सरकार का एजेंडा हिमाचल के विकास के लिए स्पष्ट किया। ऐसा महसूस हुआ कि यह एजेंडा प्रदेश की नैसर्गिक क्षमताओं, कमियों, आने वाले अवसरों व बाधाओं की पहचान कर गहराई से विश्लेषण करने के पश्चात तय किया गया है। मुख्यमंत्री के संबोधन में, जो वह कह रहे थे, उसे चरणबद्व तरीके से पूर्ण करने का एक विश्वास व प्रतिबद्धता स्पष्ट झलक रही थी, जिसकी वहां उपस्थित उद्यमियों ने मुक्तकण्ठ से सराहना की। हिमाचल के बारे में बात करने पर सामने आता है- यहां का शांत, स्वच्छ वातावरण, कसी हुई कानून व्यवस्था, जनता का कमोबेश कानून के प्रति आदर, सरप्लस व गुणवत्तायुक्त बिजली, सौहार्दपूर्ण लेबर मैनेजमेंट संबंध, प्रशासन तक सहज पहुंच आदि जो निवेशकों को और दूसरे बड़े राज्यों की स्थिति देखते हुए हिमाचल में निवेश करने को प्रेरित करते हैैं। परन्तु साथ ही जब कनैक्टिविटी की बात हो, ट्रक यूनियन की समस्या हो, औद्योगिक निवेश के लिए जमीन लेने में ‘‘धारा 118’’ की पेचीदगियां आती हों, कच्चे माल व बाजार की परेशानियां हों, लगभग 20-22 सरकारी विभागों की अनुमतियां प्राप्त करने के लिए प्रयासों की बात हो, औद्योगिक बस्तियों में समुचित सामाजिक अधोसंरचना का विकसित न होना आदि कारणों से शायद उद्यमी यहां निवेश से पहले हर पहलू पर विचार अवश्य करता है। इस अधिवेशन में सरकार की ओर से आमंत्रित प्रतिनिधियों ने पिछली सरकार की नीतियों के कारण प्रदेश के वित्तीय दिवालियेपन की ओर जाने, 75000 करोड़ के कर्ज के बोझ, वर्तमान में 11000 करोड़ की देनदारियों आदि का जिक्र भी किया गया, परंतु इन डराने वाले आंकड़ों के बावजूद मुख्यमंत्री ने सबको आशान्वित किया कि यद्यपि आने वाले समय में प्रदेश को पटरी पर लाने के लिए चुनौतियां बहुत बड़ी हैं, परन्तु उन्होंने फिर कहा कि छोटी सोच के साथ हम आगे नहीं बढ़ सकते। उनका मानना है कि आज ‘‘सरवाइवल ऑफ दि फिटैस्ट’’ का युग है, जो परिस्थितियों से लडऩा जानता है, वही अपना अस्तित्व बनाए रख सकता है। प्रदेश सरकार के मुखिया का यह कथन उद्यमियों में भी सकारात्मकता का संचार करेगा।

उद्यमियों का आह्वान करते हुए मुख्यमंत्री ने हिमाचल की शक्ति ‘‘पर्यटन’’ को ग्रोथ एजेंडा में सबसे ऊपर रखा। अब तक नाममात्र का बजट हर साल हिमाचल में पर्यटन विकास के लिए दिया जाता था। अब यहां के अनछुए पर्यटक स्थलों की पहचान कर पर्यटन अधोसंरचना को सुदृढ़ किया जाएगा, ‘‘गगल एयरपोर्ट’’ का विस्तारीकरण होगा, आने वाले दो-तीन वर्षों में हर जिला ‘हैलीपोर्ट’ से जुड़ेगा। कांगड़ा जिला को ‘‘पर्यटन राजधानी’’ के रूप में विकसित किया जाएगा, पौंग डैम जो अब तक सरकारी नियम-कानूनों के कारण उपेक्षित सा था, वहां नियमों में ढील देकर शिकारा, बोटिंग, जलखेल आादि को विकसित किया जाएगा। कांगड़ा में थीम पर्यटन, गोल्फ कोर्स, रोप-वे, अंतरराष्ट्रीय स्तर का चिडिय़ाघर व साहसिक पर्यटन को बढावा दिया जाएगा। मकसद यह है कि पूरे हफ्ते चौबीसों घंटे पर्यटन गतिविधियां कैसे चलें ताकि पर्यटक यहां की सुविधाओं व नैसर्गिक सौंदर्य से अभिभूत हो बार-बार यहां आने को लालायित हो सके। एक अन्य महत्वपूर्ण एजेंडा प्रदेश में ‘‘हरित क्रांति’’ लाना है- अर्थात राज्य को एक ‘‘ग्रीन राज्य’’ के रूप में विकसित करना है, जिसमें ‘‘ग्रीन हाइड्रोजन’’ की एक अहम भूमिका है। मुख्यमंत्री ने जोर देकर उद्यमियों को आश्वास्त किया कि अभी ‘सपना’ सा प्रतीत होने वाला यह विषय दो-तीन वर्षों में पूरा होगा। सरकार इस संबंध में इस क्षेत्र के बड़े-बड़े उद्यमियों के साथ समझौता करेगी। आगामी तीन वर्षों में 2500 परिवहन की बसें ई-वाहनों से बदली जाएंगी। 4-5 ‘‘ग्रीन-कॉरीडोर’’ बनाए जाएंगे, जगह-जगह सुलभ स्थानों पर चार्जिंग स्टेशन बनेंगे। शायद इतना स्पष्ट एजेंडा ‘‘ ग्रीन राज्य’’ बनाने का किसी और राज्य का नहीं है। निश्चित रूप से सरकार के इस प्रयास से ‘पर्यटन विकास’ और ‘पर्यटन निवेश’ को और पंख लगेंगे। मुख्यमंत्री ने अगला महत्वपूर्ण एजेंडा ‘‘उद्यमियों’’ को एक ‘‘भयमुक्त निवेश प्रदेश’’ देना बताया।

अपने मांगपत्र में सीआईआई ने अन्य मसलों के अलावा एक अति संवेदनशील विषय मुख्यमंत्री के समक्ष रखा, वह है- सत्ता में प्रभावशाली व्यक्तियों के नाम पर उद्यमियों का ‘‘शोषण’’ व ‘‘जबरन वसूली’’, जिसे बहुत गंभीरता से लेते हुए उन्होंने उद्यमियों को अपने उद्बोधन में आश्वासन दिया कि यदि किसी उद्यमी के साथ इस प्रकार का वाक्या पेश आता है तो उनके मोबाइल पर संदेश भेज दें, वे स्वयं उससे शीघ्र संपर्क साधेंगे और आरोप सही सिद्ध होने पर दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी, चाहे दोषी कितना भी प्रभावशाली क्यों न हो, बख्शा नहीं जाएगा। उनका मानना है कि निवेश तभी आएगा, जब उद्यम, उद्यमी व उसके कर्मियों को प्रदेश में सुरक्षा का एहसास हो। सरकार की नीतियों व कार्य पद्धति के प्रति उद्यमी का विश्वास होना बहुत आवश्यक है। उद्यम लगेगा तो रोजगार सृजित होगा व टैक्स के रूप में सरकार की आय होगी। इसके लिए बहुत आवश्यक है कि निवेश के लिए आवश्यक उचित माहौल उपलब्ध करवाया जाए। यदि उद्यमी अपना समय पटवारी, तहसीलदार के कार्यालयों में व सरकारी अनुमतियां लेने में ही लगाएगा तो उसकी परियोजना समय पर कैसे लगेगी? उसकी परियोजना लागत भी बढ़ेगी और सरकार को जो आय होनी है, उसे मिलने में भी विलंब होगा, अत: प्रस्तावित नई ‘‘निवेश नीति’’ के अंतर्गत सरकार चाहती है- ‘‘आओ, लगाओ, कमाओ और हिमाचल को भी खिलाओ’’। मुख्यमंत्री की परिकल्पना है कि ‘‘नई औद्योगिक नीति’’ में उद्यमियों को और सरकार दोनों को अपना-अपना धर्म ईमानदारी से निभाने वाली भावना दिखेगी। उद्यमी का खून चूस कर सरकार को अपनी आय नहीं बढ़ानी है, बल्कि उसके साथ खड़े होकर प्राप्त लाभ का उचित अंश टैक्स के रूप में सरकार के कोष में जाना चाहिए। यह स्पष्ट किया गया कि सरकार की वर्तमान कमजोर माली हालत के दृष्टिगत ‘‘आर्थिक प्रोत्साहनों’’ के मुकाबले प्रक्रियाओं, नियमों का सरलीकरण किया जाएगा।

संजय शर्मा

स्वतंत्र लेखक


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