दुनिया की नई फार्मेसी भारत

जिस तरह पिछले वर्ष 2022 में गम्बिया और उज्बेकिस्तान में भारतीय फार्मा कंपनियां सवालों के घेरे में आई, वैसी स्थिति भविष्य में न बने, इसका हरसंभव तरीके से ध्यान रखना होगा। उम्मीद है फार्मा सेक्टर 2030 तक करीब 130 अरब डालर और 2047 तक करीब 450 अरब डालर की ऊंचाई पर दिखाई दे सकेगा…

यकीनन इस समय देश का दवाई उद्योग घरेलू और वैश्विक मांग की पूर्ति करने के लिए छलांगे लगाकर आगे बढ़ते हुए दिखाई दे रहा है। दुनिया के कोने-कोने के देशों से दवाई आपूर्ति बढ़ाने के निर्यात आदेश लगातार बढ़ रहे हैं। ऐसे में नए वित्तीय वर्ष 2023-24 के बजट से भारतीय दवाई उद्योग को और ऊंचाई मिलने का परिदृश्य निर्मित हुआ है। वित्तमंत्री ने दवाई उद्योग के लिए अनुसंधान एवं नवाचार के जोरदार प्रावधान किए हैं। फार्मा उद्योग का जो बजट पिछले वर्ष करीब 100 करोड़ रुपए का था, उसे बढ़ाकर करीब 1250 करोड़ रुपए किया गया है। फार्मा सेक्टर के विशेषज्ञों के मुताबिक ऐसे में इस समय जो भारतीय दवाई उद्योग करीब 50 अरब डॉलर रुपए के स्तर पर है, वह 2030 तक 130 अरब डॉलर और 2047 तक करीब 450 अरब डॉलर पहुंचने की संभावनाएं रखता है। साथ ही यह सेक्टर सरकार के मेक इन इंडिया प्रोग्राम का लीडर बन सकता है। पिछले दिनों वायस ऑफ ग्लोबल साउथ बैठक को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर दुनिया के सवा सौ से ज्यादा गरीब व विकासशील देशों को आरोग्य मैत्री से प्राकृतिक आपदा या मानवीय आधार पर आवश्यक दवाएं उपलब्ध कराने का भरोसा दिलाया।

स्थिति यह है कि दवाई उद्योग की वैश्विक श्रृंखला के बाधित होने से इस समय भारत की फार्मा कंपनियों को विभिन्न दवाइयों की आपूर्ति के आदेश लगातार मिल रहे हैं। इतना ही नहीं, अमेरिका, यूरोप और रूस सहित अनेक देशों में दवाइयों की आपूर्ति में कमी के बीच दवाइयों के लिए दुनिया की निगाहें भारत की ओर लगी हुई हैं। ऐसे में भारत दुनिया की नई फार्मेसी और वैक्सीन हब के रूप में उभरकर दिखाई दे रहा है। गौरतलब है कि इस समय भारत दवाई उत्पादन की मात्रा के मामले में विश्व में तीसरे स्थान पर है और दवाई के मूल्य के मद्देनजर 14वें क्रम पर है। भारतीय फार्मा उद्योग वर्तमान में 50 अरब डॉलर से अधिक का है। वित्त वर्ष 2021-22 में भारत ने 24.62 अरब डॉलर के दवा उत्पादों का निर्यात किया था। वैश्विक मंदी के बीच भी इस बार वित्त वर्ष 2022-23 में भारत से दवा का निर्यात 27 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर को छू सकता है। भारत से दवाइयों का निर्यात न केवल गरीब और विकासशील देशों को वरन अमेरिका व यूरोप सहित विभिन्न विकसित देशों में भी किया जा रहा है। इस वर्ष अनेक भू-राजनीतिक कारणों से विभिन्न दवाइयों की वैश्विक आपूर्ति प्रभावित रही, लेकिन भारत ने अपनी आपूर्ति प्रतिबद्धताओं को अच्छी तरह से निभाते हुए दवाओं का निर्यात बरकरार रखा।

इससे हमारे उद्योग पर दुनिया का भरोसा बढ़ा है। यही कारण है कि चालू वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान अप्रैल 2022 से सितंबर 2022 तक देश के फार्मास्यूटिकल्स और चिकित्सा उपकरणों के क्षेत्र में एफडीआई प्रवाह 8081 करोड़ रुपए रहा है। चूंकि भारत में दवाई उत्पादन की लागत अमेरिका एवं पश्चिमी देशों की तुलना में बहुत कम है, इसी कारण भारत घरेलू और वैश्विक बाजारों के लिए विभिन्न महत्वपूर्ण, उच्च गुणवत्ता और कम लागत वाली दवाओं के निर्माण में एक प्रभावी भूमिका निभा रहा है। दुनिया की करीब 70 प्रतिशत जेनेरिक दवाओं की मैन्युफैक्चरिंग भारत में ही होती है। जेनेरिक दवाओं की अफ्रीका की कुल मांग का 50 प्रतिशत, अमेरिका की मांग का 40 प्रतिशत तथा ब्रिटेन की कुल दवा मांग का 25 प्रतिशत हिस्सा भारत से ही जाता है। दुनिया की 60 फीसदी वैक्सीन का भी उत्पादन भारत में होता है। इसके अलावा विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनिवार्य टीकाकरण योजनाओं के लिए 70 प्रतिशत टीकों की आपूर्ति भारतीय दवाई निर्माता कंपनियों के द्वारा की जाती है। इतना ही नहीं, भारत में सस्ती लेकिन गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा के लिए कई विकसित देश के मरीज भी भारत का रुख कर रहे हैं। भारत में चिकित्सा सेवा की लागत पश्चिमी देशों की तुलना में बहुत कम है और भारत दक्षिण पूर्व एशिया में सबसे सस्ता है। यही कारण है कि भारत को चिकित्सा पर्यटन के लिए दुनिया में लाभप्रद जगह माना जा रहा है, जहां स्वास्थ्य लाभ के अलावा खूबसूरत जगहों का भ्रमण भी किया जा सकता है। दुनिया के अनेक देशों से बड़ी संख्या में लोग भारत में चिकित्सा पर्यटन के लिए आते हैं। वैश्विक मेडिकल टूरिज्म के लिए दुनिया के पहले दस देशों में भारत का नाम रेखांकित हो रहा है।

नि:संदेह भारत के दुनिया की नई फार्मेसी और वैक्सीन का हब बनने के कई कारण उभरकर दिखाई दे रहे हैं। कोरोना महामारी के बीच भारत में दवाई का उत्पादन और वितरण तेजी से बढ़ा है। कोरोना वायरस महामारी के दौरान भारत ने दवाई उत्पादन में असाधारण भूमिका निभाई है। कोविड महामारी से जूझ रहे दुनिया के 150 से अधिक देशों को भारत ने कोरोना से बचाव की अनिवार्य दवाइयां मुहैया कराई हैं। यह बात भी महत्वपूर्ण है कि केंद्र सरकार ने दवाई उत्पादन में आत्मनिर्भरता लाने, अधिक कीमतों वाली दवाइयों के स्थानीय विनिर्माण को प्रोत्साहन देने और चीन से होने वाले दवाइयों के कच्चे माल- एपीआई (एक्टिव फार्मास्युटिकल्स इंग्रीडिएंट्स) के भारत में ही उत्पादन हेतु कोई ढाई वर्ष पहले शुरू की गई जिस प्रोडक्शन लिंक इंसेंटिव्स (पीएलआई) स्कीम के तहत 14 उद्योगों को करीब 2 लाख रुपए के आबंटन सुनिश्चित किए गए थे, उस स्कीम को बड़ी सफलता मिली है। देश में पीएलआई स्कीम के कारण वर्ष 2022-23 में अप्रैल-अगस्त के दौरान फार्मा उत्पादों के आयात में पिछले वर्ष की समान अवधि के मुकाबले 40 फीसदी की कमी आई है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि देश में फार्मास्युटिकल विभाग, रसायन और उर्वरक मंत्रालय द्वारा वित्त वर्ष 21-22 से वित्त वर्ष 25-26 की अवधि के लिए 500 करोड़ रुपए के कुल वित्तीय परिव्यय के साथ भारत को फार्मास्युटिकल उद्योग को मजबूत बनाने के लिए एसपीआई योजना के तहत फार्मा क्षेत्र में विश्व स्तर पर अग्रणी बनाने के लिए मौजूदा बुनियादी सुविधाओं के मद्देनजर फार्मा के सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्योग और फार्मा क्लस्टर को सामान्य सुविधाओं के निर्माण के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जा रही है। इससे न केवल देश में दवाई की गुणवत्ता में सुधार आएगा बल्कि दवाई क्लस्टरों का निरंतर विकास भी सुनिश्चित होगा। निश्चित रूप से इस समय दुनिया के मानचित्र पर भारत के नई वैश्विक फार्मेसी और कोरोना वैक्सीन का हब बनने की जो चमकीली संभावनाएं निर्मित हुई हैं, उन्हें रणनीतिक प्रयासों से मुठ्ठियों में लिए जाने का हरसंभव प्रयास किया जाना होगा। फार्मा सेक्टर से संबंधित पीएलआई योजना से दवाई उत्पादन बढ़ाने पर और अधिक ध्यान केंद्रित करना होगा। सस्ती दरों पर जेनेरिक दवाओं के निर्माण तथा कच्चे माल की उपलब्धता में सुधार करने हेतु देश के विभिन्न राज्यों में फार्मा सेक्टर से संबंधित कच्चे माल की विनिर्माण इकाइयों तथा इनक्यूबेटर सेंटरों की स्थापना के लिए सरकार के द्वारा अधिक समर्थन दिया जाना होगा।

सरकार के द्वारा फार्मा सेक्टर से संबंधित बुनियादी ढांचा को मजबूत बनाया जाना होगा। भारत में पेटेंटेड ड्रग मैन्युफैक्चरिंग के लिए रिसर्च और इनोवेशन को बढ़ाना होगा। निवेश के लिए इंटरनेशनल पार्टनर्स तलाशने होंगे। वैश्विक सप्लाई चेन को मजबूत बनाने के लिए रणनीति बनानी होगी। आईटी के एक्पर्टाइज और डिजिटल एक्सपर्टाइज को समन्वित रूप से काम करना होगा। जिस तरह पिछले वर्ष 2022 में गम्बिया और उज्बेकिस्तान में भारतीय फार्मा कंपनियां सवालों के घेरे में आई, वैसी स्थिति भविष्य में न बने, इसका हरसंभव तरीके से ध्यान रखना होगा। हम उम्मीद करें कि भारत का फार्मा सेक्टर जो वर्तमान में 50 अरब डॉलर से अधिक मूल्य का है, वह 2030 तक करीब 130 अरब डॉलर और 2047 तक करीब 450 अरब डॉलर की ऊंचाई पर दिखाई दे सकेगा।

डा. जयंती लाल भंडारी

विख्यात अर्थशास्त्री


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