आब-ए-तल्ख नशा या मुनाफे की दुकान

अत: मदिरापान के बढ़ते क्रेज पर लगाम लगाने के लिए नीति बने। सरकारों को शराब की बिक्री से प्राप्त राजस्व का मोह त्याग कर उन्नति के बेहतर आयाम हासिल करने के लिए आमदनी के अन्य विकल्प तलाशने होंगे…

सभ्य समाज में मयखानों को भले ही इज्जत के नजरिए से नहीं देखा जाता हो मगर मुल्क की मइशत को मजबूत करने में आब ए तल्ख एक बड़ा किरदार अदा करती है। देश के चरमराते अर्थतंत्र का बोझ काफी हद तक मधुशालाओं से लडख़ड़ा कर निकलते सुरा प्रेमियों के कंधों पर मुन्नसर करता है। मदिरापान की बढ़ती प्रवृति से महसूस होता है कि सुराप्रेमी नास्तिक शिरोमणि ‘आचार्य चार्वाक’ के उस श्लोक को जहन में बिठा चुके हैं जिसमें उल्लेख है: ‘पीत्वा, पीत्वा पुन: पीत्वा यावत् पतति भूतले, उत्थाय च पुन: पीत्वा पुर्नजन्म न विद्यते’ अर्थात पीजिए फिर पीजिए जब तक जमीन पर न गिर जाए, उठिए और फिर पीजिए क्योंकि जन्म दोबारा नहीं होता। जाहिर है मदिरापान की परंपरा व इतिहास काफी पुराना है। सोहबत-ए-मयकशी का मरकज मयखानों में युवावर्ग से लेकर उम्रदराज लोगों तक हर वर्ग की मेजबानी पूरी शिद्दत से होती है।

मधुशालाओं की दहलीज पर हर जाति, मजहब के सुराप्रेमी दस्तक देते हैं। यहां किसी से कोई भेदभाव नहीं होता। देश में मदिरालयों की संख्या व मदिरा प्रेमियों की तादाद में लगातार इजाफा दर्ज हो रहा है। वर्तमान में देश की राजधानी दिल्ली आब ए तल्ख के घोटालों को लेकर सुर्खियों का केंद्र बनी है। वहां की हुकूमत ने नई आबकारी नीति के तहत शराब पीने की न्यूनतम उम्र 25 वर्ष से घटाकर 21 वर्ष कर दी है। सुरापान के भी कुछ असूल होते हैं। इसके ऊपर जितनी बंदिश लगेगी, मदिरा की अवैध तिजारत व शराब माफिया का अवैध धंधा उतनी ही तेज रफ्तार पकड़ता है। जिन राज्यों में शराबबंदी लागू है, वहां सुरक्षा एजेंसियां लाखों रुपए की शराब जब्त कर रही हैं। शराब की कीमत में शदीद इजाफा होने के बावजूद इसकी बिक्री में कमी दर्ज नहीं होती, लेकिन शराबंदी व शराब की बढ़ती कीमत के कारण शराब माफिया की जहरीली शराब का अवैध कारोबार हर वर्ष सैकड़ों लोगों को मौत की नींद सुला रहा है। अवैध शराब यानि बिना रिकार्ड के बिकने वाली शराब। लाखों लोग इसी अवैध शराब का शिकार बनते हैं। जनवरी 2022 में जहरीली शराब ने मंडी जिला में सात नौजवानों को मौत की नींद सुलाकर सनसनी मचा दी थी। जहरनुमां शराब जानलेवा होकर अपने दुष्परिणाम दिखा रही है। अपराध व नशे की रफाकत चोली-दामन वाली रही है। कई सडक़ हादसे, फसाद, गुनाहों का पसमंजर व जुर्म की दास्तान के पीछे ज्यादातर मद्यपान की भूमिका है। जहरीले नशे के इस बहते दरिया में हजारों परिवारों के सुनहरे अरमान भी बह जाते हैं। अजीब विडंबना है। देश में नशाखोरी की मुखालफत में कई इजलास होते हैं। कई राज्य गांधी जयंती के अवसर पर प्रतिवर्ष ‘मद्यनिषेध संकल्प दिवस’ का आयोजन करके दुनिया को नशामुक्ति का पैगाम देते हैं। चूंकि ‘नशामुक्त भारत’ भी गांधी जी का सपना था।

मगर हकीकत यह है कि मधुशालाएं अर्थतंत्र का मजमून लिखकर सरकारी खजाने को गुलजार कर रहीं हैं। देश के शासक तस्लीम कर चुके हैं कि राजस्व बढ़ाने के लिए शराब के कारोबार को बुलंदी पर पहुंचाना होगा। आजादी के बाद देश में शराबबंदी के कई प्रयास हुए मगर विफल रहे। केंद्रीय योजना आयोग ने सन् 1954 में देश में शराबबंदी की सिफारिश की थी। शराबबंदी के लिए ही केंद्र सरकार ने सन् 1964 में जस्टिस ‘टेक चंद’ के नेतृत्व में एक कमेटी का गठन किया था। टेकचंद कमेटी ने शराब की आमदनी से प्राप्त कुल राजस्व का पांच प्रतिशत हिस्सा मद्यनिषेध जागरूकता आयोजनों पर खर्च करने का मशविरा भी पेश किया था, मगर मद्यपान को समाज के हर तबके की हिमायत हासिल है। देश के हुक्मरानों से लेकर अदाकारों तक की बज्म-ए-अंजुम में आब-ए-तल्ख की अंजुमन सजती है। नतीजतन देश के किसी भी राज्य की सरकार ने केंद्रीय योजना आयोग व टेकचंद कमेटी के सुझावों को मंजूर नहीं किया। शराब उपभोक्ताओं की जानकारी के लिए ‘भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण’ ने अल्कोहल की बोतलों पर संवैधानिक चेतावनी का संदेश अनिवार्य किया है कि शराब का सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, मगर मदिरा के प्रति मोहब्बत के जज्बात रखने वाले सुरा प्रेमियों पर उस चेतावनी का कोई असर नहीं होता। जहरीली शराब के खौफनाक अंजाम से हर शख्स वाकिफ होने के बावजूद मदिरापान की मकबूलियत व सेवन में कोई कमी नहीं है। मसला यह है कि धूल चेहरे पर जमी है, मगर साफ आईना किया जा रहा है। नतीजतन उपचार ही मर्ज बन रहा है। सर्जिकल स्ट्राईक अवैध शराब के सरगनाओं पर होनी चाहिए। शराब के अवैध अड्डे मरघट में तब्दील होने चाहिए, मगर जहरीली शराब से हो रही दर्दनाक मौतों पर सियासत मुआवजे का मरहम लगाकर संवेदनाओं का इजहार कर देती है। मौत की दावत जहरनुमां शराब से कफन में लिपट रहीं लाशों का जिम्मेवार कौन है, इस पर सियासत मौन है।

बेशक शराब का बढ़ता बाजार मुल्क की मइशत में इजाफा कर रहा है लेकिन गुरबत से जूझ रही आवाम के अर्थतंत्र का एक बड़ा हिस्सा मदिरा की खपत में ही नष्ट हो रहा है। हमारे सत्ताधीश दावे तो भारत को ‘जगत गुरू’ व आर्थिक महाशक्ति बनाने के कर रहे हैं। जिस युवा ताकत के बल पर राष्ट्र आलमी ताकतों में शुमार होगा वही युवावेग मद्यपान की गिरफ्त में आ रहा है। आखिर आब-ए-तल्ख नशा है या मुनाफे की दुकान या तरक्की का मॉडल। यह जहरीला प्रश्न देश के नीति निर्माताओं को अपने गिरेबान में झांकने को मजबूर करेगा। यदि सुरापान का मुनाफा ही उन्नति का स्रोत है तो गुजरात राज्य के विकास मॉडल पर रायशुमारी होनी चाहिए। नशाखोरी से उत्पन्न बोहरान का दुष्प्रभाव समाज पर ही पड़ता है। ऐसा निजाम जो राजस्व के मोह में समाज को नशेड़ी बनाकर अराजकता व अस्थिरता का तनाजुर पैदा कर दे तो मुल्क के मुस्तकबिल छात्रवर्ग का भविष्य जुल्मत के दौर में चला जाएगा। संगीन वारदातों की तम्हीद नशीली तिजारत पर अंकुश लगाए बिना राष्ट्र का इकबाल बुलंद नहीं होगा। अत: मदिरापान के बढ़ते क्रेज पर लगाम लगाने के लिए एक मजबूत राष्ट्रीय नीति बने। सरकारों को शराब की बिक्री से प्राप्त राजस्व का मोह त्याग कर उन्नति के बेहतर आयाम हासिल करने के लिए आमदनी के अन्य विकल्प तलाशने होंगे।

प्रताप सिंह पटियाल

स्वतंत्र लेखक


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