आवश्यक है सभ्य एवं संवेदनशील आचरण

एक स्वस्थ समाज का निर्माण करने के लिए हमें सभी के दु:ख, तकलीफ तथा पीड़ा को समझना होगा…

जब हम दूसरे व्यक्तियों, प्राणियों तथा जीव-जंतुओं की परेशानी, तकलीफ या दु:ख-दर्द को स्वयं में अनुभव करते व्यथित तथा द्रवित होने लगते हैं तो समझो हम शालीन, विनम्र एवं संवेदनशील हो रहे हैं। यह हमारे व्यक्तित्व का अमूल्य तथा असाधारण गुण है। मन, वचन एवं कर्म से अपने प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष आचरण तथा कृत्य से किसी को किसी प्रकार का दु:ख तकलीफ न पहुंचाना, परेशान न करना ही संवेदनशील आचरण है। हमारे समाज में प्रत्येक घर, परिवार, गली, मुहल्ले, गांव, समाज, सम्प्रदाय में पूरा वर्ष भर शादी- विवाह, पार्टियां, मेले, त्योहार, कीर्तन, जागरण, कथा-भागवत कथा सप्ताह, धार्मिक एवं सार्वजनिक उत्सव होते ही रहते हैं। धार्मिक आस्था के आनंद में मंदिरों में जयकारे, शंखनाद, घंटियां, ढोल-नगाड़े, श्रद्धालुओं के दलों का भक्ति के वातावरण में झूमना, अपने इष्ट के लिए नाचना, सुबह-शाम की आरती, गुरद्वारों में शब्द-कीर्तन, जयघोष, मस्जिदों में हर रोज़ पांच बार की नमाज़, गिरिजाघरों में प्रार्थनाएं होना स्वाभाविक है। यह हमारी श्रद्धा, भक्ति, आस्था का प्रश्न है। इस पर कोई टिप्पणी भी नहीं हो सकती क्योंकि पूजा पाठ पद्धति, धर्म-कर्म आस्था तथा विश्वास किसी भी व्यक्ति का व्यक्तिगत मामला है। प्रत्येक व्यक्ति, समुदाय मत, सम्प्रदाय तथा धर्म स्वतन्त्र है अपने आनन्द, उल्लास तथा अभिव्यक्ति के लिए। यह होना भी चाहिए क्योंकि यही हमारी सांस्कृतिक एवं धार्मिक विविधता है। सभी मतों, धर्मों तथा संस्कृतियों को स्वीकारते हुए हम एकता के सूत्र में भी बंधे हैं। लेकिन किसी भी जाति, समाज, धर्म, मत, समुदाय तथा संप्रदाय होने से पूर्व हम एक सामाजिक प्राणी तथा मनुष्य हैं, एक जागरूक नागरिक हैं तथा हम सभी को अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए। संविधान ने हम सभी को स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान किया है। यह स्वतन्त्रता तब समाप्त हो जाती है जब यह किसी और व्यक्ति की स्वतन्त्रता के लिए घातक हो जाती है।

गैर जि़म्मेदाराना व्यवहार, अमर्यादित आचरण तथा उतावलापन बन्द होना चाहिए। वैसे भी दूसरे को परेशान कर आपको कभी भी मानसिक एवं और आत्मिक शान्ति नहीं मिल सकती। अपनी अपनी रीतियों, संस्कृतियों, विधि-विधानों तथा वृतियों के अनुसार हम अपना आनन्द लेते हैं, लेकिन अपनी मौज-मस्ती, उल्लास एवं आनन्द में हम दूसरे के दु:ख तकलीफ का ध्यान रखना भूल जाते हैं। जहां इस समाज में खुशियों के अनेक अवसर प्राप्त होते हैं वहीं यह भी तो सत्य है कि इसी समाज में मृत्यु, शोक, बीमारी तथा पीड़ा से भी अनेकों लोग ग्रसित हैं। क्या यह भी सत्य नहीं है कि प्रत्येक परिवार में छोटे-छोटे मासूम बच्चे तथा पीड़ा एवं बीमारियों से ग्रसित बूढ़े भी रहते हैं? क्या यह भी सत्य नहीं है कि प्रत्येक परिवार में पढऩे वाला बच्चे तथा युवा भी आये दिन परीक्षाओं की तैयारी में जुटे रहते हैं? सबको मिलाकर यह समाज बनता है। इसलिए एक जि़म्मेदार नागरिक बन कर हमें अपने कुशल व्यवहार तथा संवेदनशीलता का परिचय देना चाहिए। किसी के दुख, तकलीफ, परेशानी की कीमत पर आपको आनन्द और उल्लास का लाईसेंस नहीं मिल सकता। प्राय: समाज में देखा गया है कि कथा, उद्यापन, भागवत, विवाह, पार्टी या धार्मिक तथा सामाजिक आयोजन में हम एक नागरिक होने की सीमाएं भूल जाते हैं। वर्तमान में हमारी युवा पीढ़ी मल्टी नेशनल कम्पनियों में आनलाइन कार्य करते हैं, उन्हें रात भर जागना पड़ता हैं इससे उनका कार्य भी प्रभावित होता है। नींद हमें शारीरिक तथा मानसिक रूप से शान्ति प्रदान करती है। विभिन्न आयोजनों पर ये ध्वनि यन्त्र तथा कानफाड़ू संगीत हमें परेशान करते हैं और हम किसी की परवाह किए बिना अपने आनन्द में मस्त रहते हैं। अपने आप को सन्तुष्ट तथा आनंदित करने के लिए हम दूसरों को परेशान कर देते हैं। हमें यह आभास तथा एहसास ही नहीं होता कि ऐसा करने किसी को कष्ट, दु:ख या तकलीफ हो सकती है। हमें संवेदनशील होना पड़ेगा। माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेशों से रात दस बजे के उपरांत किसी भी तरह के ध्वनि यंत्रों तथा पब्लिक अनाउंसमेंट सिस्टम के प्रयोग पर प्रतिबंध है, लेकिन हर रोज़ हम अपने आसपास इन नियमों की धज्जियां उड़ते देखते हैं। यह सब प्रशासन के साये में ही होता है।

नियमों का उल्लंघन होने पर सामान्य प्रशासन तथा पुलिस प्रशासन को भी आवश्यकता पडऩे पर कानून का डंडा दिखाना चाहिए। इसी प्रकार अनेक पढ़े-लिखे, समझदार व्यक्तियों को अनैतिक, असभ्य तथा अव्यावहारिक कृत्य करते देखा गया जो अपराध की श्रेणी में तो नहीं आते बल्कि ये कार्य असुविधा, अशांति तथा अव्यवस्था फैलाते हैं। गांवों में कई व्यक्तियों को दूध न देने पर अपने पालतू गऊओं, बछड़ों तथा बैलों को सडक़ों पर छोड़ते हुए देखा गया है। आवारा पशु सडक़ों पर ट्रैफिक जाम लगाते हैं तथा दूसरी ओर किसानों की फसलें उजाड़ते हैं। आये दिन इन आवारा पशुओं के आक्रमण से अनेकों राहगीर घायल होते हैं तथा कई बार उनकी मृत्यु भी हो जाती है। शहरी क्षेत्रों में रात के अंधेरे में अनेकों पढ़े-लिखे व्यक्तियों को अपने घर के कूड़े को दूसरों के गेट पर फैंकते देखा जा सकता है। इसी प्रकार पालतू कुत्तों के माध्यम से दूसरों के गेट पर गंदगी फैलाना कहां का सभ्य आचरण है? हैरानी यह कि अनेकों बार यह कार्य शिक्षित तथा संभ्रांत वर्ग से सम्बन्धित लोग करते हैं। एक जागरूक नागरिक एवं सामाजिक प्राणी होने के नाते हमें संवेदनशील होकर इन छोट-छोटे, सामान्य तथा महत्वपूर्ण विषयों पर विचार करना चाहिए कि कहीं हम प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से किसी की निजता, स्वतन्त्रता तथा शान्ति में बाधक तो नहीं बन रहे। पूछें अपनी आत्मा से कि कोई हमारे कृत्य एवं आचरण से परेशान तो नहीं हो रहा? हम अपनी स्वतन्त्रता की आड़ में किसी का सुख-चैन, शान्ति तथा स्वतन्त्रता को तो नहीं छीन रहे? समाज में उपरोक्त सामान्य अनैतिक तथा असभ्य कृत्य अनेकों बार बड़ी-बड़ी समस्याओं को जन्म देते हैं। इससे जहां समाज में नागरिकों को असुविधा तथा परेशानी होती है, वहीं पर अनेकों बार लोगों को गाली-गलौज तथा लड़ाई झगड़ा करते देखा गया है। अनैतिक तथा असभ्य आचरण से समाज में अशांति, अव्यवस्था तथा असंतोष फैलता है। एक स्वस्थ समाज का निर्माण करने के लिए हमें सभी के दु:ख, तकलीफ तथा पीड़ा को समझना होगा। एक नागरिक होने के नाते हमें जि़म्मेदार बन कर अपने एवं दूसरों के अधिकारों तथा अपने कर्तव्यों को समझना होगा। सभी जागरूक, समझदार तथा संवेदनशील बन कर एक स्वस्थ समाज की स्थापना में सहयोग कर सकते हैं।

प्रो. सुरेश शर्मा

शिक्षाविद


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App