हिमाचली हिंदी कहानी : विकास यात्रा

By: Apr 22nd, 2023 7:59 pm

कहानी के प्रभाव क्षेत्र में उभरा हिमाचली सृजन, अब अपनी प्रासंगिकता और पुरुषार्थ के साथ परिवेश का प्रतिनिधित्व भी कर रहा है। गद्य साहित्य के गंतव्य को छूते संदर्भों में हिमाचल के घटनाक्रम, जीवन शैली, सामाजिक विडंबनाओं, चीखते पहाड़ों का दर्द, विस्थापन की पीड़ा और आर्थिक अपराधों को समेटती कहानी की कथावस्तु, चरित्र चित्रण, भाषा शैली व उद्देश्यों की समीक्षा करती यह शृंखला। कहानी का यह संसार कल्पना-परिकल्पना और यथार्थ की मिट्टी को विविध सांचों में कितना ढाल पाया। कहानी की यात्रा के मार्मिक, भावनात्मक और कलात्मक पहलुओं पर एक विस्तृत दृष्टि डाल रहे हैं वरिष्ठ समीक्षक एवं मर्मज्ञ साहित्यकार डा. हेमराज कौशिक, आरंभिक विवेचन के साथ किस्त-2

हिमाचल का कहानी संसार

विमर्श के बिंदु
1. हिमाचल की कहानी यात्रा
2. कहानीकारों का विश्लेषण
3. कहानी की जगह, जिरह और परिवेश
4. राष्ट्रीय स्तर पर हिमाचली कहानी की गूंज
5. हिमाचल के आलोचना पक्ष में कहानी
6. हिमाचल के कहानीकारों का बौद्धिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक व राजनीतिक पक्ष

लेखक का परिचय

नाम : डॉ. हेमराज कौशिक, जन्म : 9 दिसम्बर 1949 को जिला सोलन के अंतर्गत अर्की तहसील के बातल गांव में। पिता का नाम : श्री जयानंद कौशिक, माता का नाम : श्रीमती चिन्तामणि कौशिक, शिक्षा : एमए, एमएड, एम. फिल, पीएचडी (हिन्दी), व्यवसाय : हिमाचल प्रदेश शिक्षा विभाग में सैंतीस वर्षों तक हिन्दी प्राध्यापक का कार्य करते हुए प्रधानाचार्य के रूप में सेवानिवृत्त। कुल प्रकाशित पुस्तकें : 17, मुख्य पुस्तकें : अमृतलाल नागर के उपन्यास, मूल्य और हिंदी उपन्यास, कथा की दुनिया : एक प्रत्यवलोकन, साहित्य सेवी राजनेता शांता कुमार, साहित्य के आस्वाद, क्रांतिकारी साहित्यकार यशपाल और कथा समय की गतिशीलता। पुरस्कार एवं सम्मान : 1. वर्ष 1991 के लिए राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार से भारत के राष्ट्रपति द्वारा अलंकृत, 2. हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा राष्ट्रभाषा हिन्दी की सतत उत्कृष्ट एवं समर्पित सेवा के लिए सरस्वती सम्मान से 1998 में राष्ट्रभाषा सम्मेलन में अलंकृत, 3. आथर्ज गिल्ड ऑफ हिमाचल (पंजी.) द्वारा साहित्य सृजन में योगदान के लिए 2011 का लेखक सम्मान, भुट्टी वीवर्ज कोआप्रेटिव सोसाइटी लिमिटिड द्वारा वर्ष 2018 के वेदराम राष्ट्रीय पुरस्कार से अलंकृत, कला, भाषा, संस्कृति और समाज के लिए समर्पित संस्था नवल प्रयास द्वारा धर्म प्रकाश साहित्य रतन सम्मान 2018 से अलंकृत, मानव कल्याण समिति अर्की, जिला सोलन, हिमाचल प्रदेश द्वारा साहित्य के लिए अनन्य योगदान के लिए सम्मान, प्रगतिशील साहित्यिक पत्रिका इरावती के द्वितीय इरावती 2018 के सम्मान से अलंकृत, पल्लव काव्य मंच, रामपुर, उत्तर प्रदेश का वर्ष 2019 के लिए ‘डॉ. रामविलास शर्मा’ राष्ट्रीय सम्मान, दिव्य हिमाचल के प्रतिष्ठित सम्मान ‘हिमाचल एक्सीलेंस अवार्ड’ ‘सर्वश्रेष्ठ साहित्यकार’ सम्मान 2019-2020 के लिए अलंकृत और हिमाचल प्रदेश सिरमौर कला संगम द्वारा डॉ. परमार पुरस्कार।

डा. हेमराज कौशिक
अतिथि संपादक
मो.-9418010646

-(पिछले अंक का शेष भाग)
छठे दशक में कैलाश भारद्वाज की कहानियां विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुईं। सन् 1953 में उनकी कहानी धर्मयुग में और सन् 1956 में साप्ताहिक हिन्दुस्तान द्वारा आयोजित कहानी प्रतियोगिता में उनकी ‘आंधी’ शीर्षक कहानी अखिल भारतीय स्तर पर पुरस्कृत हुई थी। हिमप्रस्थ के सन् 1956 के अप्रैल अंक में ‘चेहरा’ शीर्षक कहानी प्रकाशित हुई थी। इस कहानी में लेखक ने यह स्थापित किया है कि मनुष्य में चेहरा ही सब कुछ नहीं है, अन्य गुण भी हैं जो यौवन के नशे में भले ही साधारण प्रतीत होते हों, किंतु जीवन में चेहरे की अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। लेखक ने श्यामवर्णी गुण संपन्न वृद्ध पिता की पुत्री के संदर्भ में प्रतिपादित किया है। इसी अवधि में सुंदर लोहिया की ‘अधूरी चि_ी’ हिमप्रस्थ में और डायरी शैली में लिखी एक अन्य कहानी ‘दरारें’ वसुधा (जबलपुर) मासिक पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। सुंदर लोहिया की ‘डायन’ कहानी साप्ताहिक हिन्दुस्तान में सन् 1960 में प्रकाशित हुई थी। इस कहानी में पहाड़ी औरत के ह्रदय की निश्छलता और ममता को रेखांकित किया गया है। संयुक्त परिवार के कटु, मधुर अनुभव और मानवीय मूल्यों के क्षरण की चिंता है। हिंदी के स्थापित कथाकार यशपाल और निर्मल वर्मा को हिमाचल की हिंदी कहानी से तनिक किनारे रख कर देखें तो यहां सन् 1956 तक कोई भी स्वतंत्र रूप में किसी कहानीकार का कहानी संग्रह प्रकाश में नहीं आया। अंतरराष्ट्रीय ख्याति लब्ध प्रतिष्ठित कथाकारों के बाद हिमाचल की हिंदी कहानी में सुशील कुमार अवस्थी ‘तरुण’ का नाम आता है जिनका प्रथम कहानी संग्रह ‘राखी’ शीर्षक से सन् 1957 में प्रकाशित हुआ। इसमें उनकी संन्यासी, पाप का प्रायश्चित, वह लडक़ा, मानवता के ठेकेदार, दो लाशें, भिखारी और वेश्या, आंसुओं की शक्ति, राखी आदि सत्रह कहानियां संग्रहीत हैं।

कहानी संग्रह की भूमिका में अपनी बात शीर्षक के अंतर्गत उन्होंने अपने विषम और कटु सामाजिक अनुभवों की ओर संकेत किया है जिनकी वजह से वे कहानी सृजन की ओर उन्मुख हुए। उन्होंने लिखा है…‘मैंने अपने जीवन में जो अनुभव प्राप्त किया है वह सब जनता के बीच का है। फिर भी अधिक कटु है जिसका स्मरण मात्र ही कंपा देने वाला है। मैंने जिस ओर भी पग रखा है इन तोंद वाले भेडिय़ों को ही जिस किसी रूप में खड़ा पाया है।’ वे यह भी स्पष्ट करते हैं कि मैं न तो साहित्यिक हूं, न होने का गर्व ही कर सकता हूं। परंतु मुझे समाज ने जो कुछ भी दिया है वह स्वयं ही एक कहानी बनकर रह गया है। सुशील कुमार अवस्थी की इन कहानियों में सामाजिक विषमता में पिसते वर्ग की कथा के साथ नारी जीवन की दुखद नियति का चित्रण है। सहज, सरल भाषा में सामाजिक विद्रूपताओं को चित्रित करने में कहानीकार का आदर्शोन्मुखी यथार्थ परिलक्षित होता है।

सुशील अवस्थी ‘तरुण’ के बाद सत्येन शर्मा का नाम आता है जिन्होंने योजनाबद्ध रूप में हिमाचल के कहानीकारों की कहानियों का ‘बर्फ के हीरे’ शीर्षक से संपादन किया। प्रस्तुत कहानी संकलन का प्रकाशन सन् 1959 में हुआ। इसमें देवेंद्र कुमार बंसल की ‘दून व्यू होटल’ तथा ‘नई शादी’ कहानियां हैं। दोनों कहानियों में नारी संबंधों का चित्रण है। खेमराज गुप्त की ‘कब्र में मिट्टी’ और ‘पूजा भेंट’ में अंधविश्वासों को कहानियों का विषय बनाया है। वंशीधर पाठक जिज्ञासु की ‘अंतद्र्वंद्व’ और ‘अशांत’ इस संग्रह में सम्मिलित हैं। देसराज कंवल की ‘लहरों के आगोश में’ और ‘सिद्ध मकरध्वज’ में सामान्य कथानकों को सरल और कलात्मक शैली में प्रस्तुत किया गया है। कहानियां हास्य रस की सृष्टि करती हैं। कलावती ठाकुर की ‘जीत’ और ‘पगडंडी’ आदर्शवादी कहानियां हैं। रामकुमार काले ‘सन्यासी’ की रचनाएं ‘हम स्वर्ग से बोल रहे हैं’ और ‘प्रथम वियोगिनी’ हैं। इन कहानियों में विभिन्न भावनाओं और मनोस्थितियों का प्रभावोत्पादक चित्रण है। जयदेव शर्मा कमल की प्रस्तुत संकलन में ‘रोगी है वे’ और ‘वर-वरण’ कहानियां हैं। ये भी आदर्शवादी और उपदेशपरक कहानियां हैं। कार्तिक के चंद्र दत्त की ‘प्रेत और छाया’ और ‘मरीचिका’ में समाज की कुरीतियों पर तीव्र प्रहार है। जगत मोहन अंचल की ‘देवता’ और ‘बर्फ गिर रही थी’ कल्पना के अतिरेक की कहानियां हैं। रत्न सिंह हिमेश की ‘कोई क्या समझे’ और ‘नरक के कीड़े’ कहानियां इस संकलन में संग्रहीत हैं। पहली कहानी में स्टेरलाइजेशन ऑपरेशन के फेल होने पर पत्नी के प्रति पति की सशंकित दृष्टि को व्यक्त किया गया है। ‘नरक के कीड़े’ में धार्मिक अंधविश्वासों का चित्रण है। चंद्रमणि विशिष्ट की ‘धरती के उस पार’ और ‘जन्नत जहां फरिश्ते रहते हैं’ आंचलिक परिवेश को उभारने वाली कहानियां हैं। इस कहानी संकलन के प्रारंभ में रामदयाल नीरज की भूमिका है। हिमाचल की हिंदी कहानी में इस संकलन का ऐतिहासिक महत्त्व ही है क्योंकि इस संकलन में प्रकाशित होने वाले कहानीकारों में से रत्न सिंह हिमेश और खेमराज गुप्त दो कहानीकार ही बाद तक सक्रिय रहे।

सन् 1960 तक हिंदी कहानी विभिन्न आंदोलनों से गुजर कर काफी आगे बढ़ चुकी थी, जबकि हिमाचल प्रदेश कहानी लेखन के क्षेत्र में प्रारंभिक अवस्था में ही था। सन् 1962 में कृष्ण कुमार नूतन का ‘आदर्श कहानियां’ शीर्षक संग्रह मंडी से प्रकाशित हुआ। इस संग्रह में उनकी आठ कहानियां हैं। यादगार, ममता, रस कलश और राखी प्रस्तुत संग्रह की प्रमुख कहानियां हैं। ममता कहानी में सरकार द्वारा चरागाह रोकने से पशुओं की चराने की समस्या को मंडी क्षेत्र से संबद्ध करके चित्रित किया गया है। किशोर और लता की नंदी गाय के प्रति ममता कहानी की प्रमुख घटना है। राखी में कहानीकार ने वर्ग भेद की खाई को गहरा करने वाले लोगों की मानसिकता को चित्रित किया है। ‘यादगार’ नूतन की प्रौढ़ रचना है। प्रस्तुत कहानी में कथा रस महत्त्वपूर्ण है। सामाजिक परिवेश में बुनी इस संग्रह की कहानियां हिमाचल की हिंदी कहानी के इतिहास में पहल अवश्य करती हैं, पर अपना विशिष्ट महत्त्व नहीं बना पातीं। किशोरीलाल वैद्य का कहानी संग्रह ‘सफेद प्रतिमा काले साए’ सन् 1963 में प्रकाशित हुआ। प्रस्तुत संग्रह में छोटी-छोटी सोलह कहानियां हैं, पत्थर की आत्मा, अधूरा चित्र, परछाइयां, चितेरा, स्वर भेद, एक कोण तीन रेखाएं, दायरों के छोर, दिन के बादल रात की रोशनी व खामोशी के आयाम आदि। वैद्य की इन कहानियों को पढऩे से यह तथ्य सामने आता है कि उनकी अधिकांश कहानियां मध्यवर्गीय जीवन के अभाव और आकांक्षाओं को चित्रित करती हैं। कुछेक कहानियों में उनकी किशोर मानसिकता उभरी है। प्रेम, बाल विवाह, अनमेल विवाह आदि समस्याओं को भी कहानीकार ने समेटने की कोशिश की है। पर वे इन समस्याओं की तह तक नहीं पहुंचे हैं। केवल सतही और स्थूल चित्रण कहानियों में दिखाई देते हैं। जीवन की छोटी-छोटी घटनाओं की अर्थपूर्ण भावनात्मक अभिव्यंजना वैद्य की कहानियों में है। सामान्य कोटि की कहानियां होते हुए भी नीरस कहानियां नहीं हंै। वर्णन में चित्रमयता और व्यावहारिक शब्दों की सादगी और ताजगी से कहानियां साधारण होते हुए भी प्रभावोत्पादकता उत्पन्न करने में सक्षम हैं।

सातवें दशक के उत्तराद्र्ध में रमेश चंद्र शर्मा का ‘पगध्वनियां’ संग्रह सन् 1968 में प्रकाशित हुआ। प्रस्तुत संग्रह की कहानियां लेखक के जीवन के बहुआयामी अनुभव की समृद्ध पहचान कराने वाली कहानियां हैं। प्रस्तुत संग्रह में रमेश चंद्र शर्मा की पंद्रह कहानियां संग्रहीत हैं : एक दिन एक शाम, प्रेरणा, अकुलाए नयन, वीराने में, पगध्वनियां, वेदना, सौंदर्य की खोज, कैक्टस के फूल आदि। ‘एक दिन एक शाम’ में श्रीनगर के पर्यटन स्थलों के अभिराम प्राकृतिक सौंदर्य और परिवेश का चित्रण है। ‘अकुलाए नयन’ में लेखक ने ग्रामीण जीवन की सादगी, परिश्रमशीलता, अपनापन, निश्छलता, प्रेम और ममता को नारायण और उनकी पत्नी की गृहस्थी के माध्यम से प्रकट किया है। नगरबोध के फलस्वरूप विघटित होते मूल्यों और संतति की माता-पिता के प्रति विमुखता, उत्तरदायित्वहीनता और परिवार के बिखराव को चित्रित किया है। ‘वेदना’ में अंधविश्वास, जादू-टोना, साधु-महात्माओं के उपचार को व्यंग्य के धरातल पर प्रकट किया है। ‘कैक्टस के फूल’ में कहानीकार की कहानी कला की परिपक्वता नजर आती है। यह संग्रह की सबसे अच्छी कहानी है। प्रस्तुत कहानी प्राविधिक स्तर पर और वस्तु संगठन दोनों ही तरह महत्त्वपूर्ण कहानी है। संतोष शैलजा का पहला कहानी संग्रह ‘जौहर के अक्षर’ शीर्षक से सन् 1966 में प्रकाश में आया। हिमाचल की हिंदी कहानी की विकास यात्रा में वे पहली महिला कहानीकार हैं जिनका पहला निजी स्वतंत्र कहानी संग्रह प्रकाशित हुआ। इस कहानी संग्रह में साठ प्रेरणादायी कहानियां हैं। इन कहानियों का प्रेरणा स्रोत लेखिका ने वंदनीय लक्ष्मीबाई केलकर के यशस्वी व्यक्तित्व को स्वीकार किया है। इस संग्रह की कहानियों का प्रतिपाद्य वैदिक, पौराणिक और ऐतिहासिक घटनाओं से संबद्ध है। इनमें प्राचीन, मध्यकालीन और आधुनिक काल के पात्रों के माध्यम से जीवन के कुछ शाश्वत मूल्यों को व्यक्त करने की कोशिश की है। अपने इस उद्देश्य के संबंध में पुस्तक के निवेदन में लेखिका ने स्पष्ट किया है ‘नवीनता की ओर हम इतने उन्मुख हुए हैं कि प्राचीनता से पूर्णत: विमुख हो बैठे। इतना ही नहीं, उसे तो ‘कपोल कल्पित’ व ‘पुराण कथा’ कह कर उपेक्षणीय भी समझने लगे हैं। यह उपेक्षा अनुचित व ह्रदयभेदी अनुभूत हुई, इसी का परिणाम प्रस्तुत रचना है’। सभी कहानियों का प्रमुख केंद्र नारी है। नारी संबंधी गाथाओं को नूतन संदर्भों में व्याख्यायित किया गया है।

इन नारियों के चित्रण के समय लेखिका ने उनके जीवन वृतांत को प्रमुखता नहीं दी है वरन् नारीत्व, प्रेम, त्याग, उत्सर्ग, प्रतिभा, शौर्य आदि उच्च आदर्शों के परिप्रेक्ष्य में उन नारियों के चरित्रों को प्रस्तुत किया है। इस संग्रह की गोद का गौरव, भाभी, स्वातंत्र्य लक्ष्मी, लपटों के फूल, वीरांगना, संगठन आदि कुछ प्रमुख कहानियां हैं। सातवें दशक के अंत में प्रोफेसर कुलभूषण कायस्थ का बारह कहानियों का संग्रह ‘घिराव’ शीर्षक से सन् 1970 में प्रकाशित हुआ। इस संग्रह की ज्यादातर कहानियां नारी जीवन की समस्याओं को लेकर लिखी गई हैं। इस दशक में बहुत से कहानीकार ऐसे भी हैं जिनकी कहानियां विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं। इनमें कैलाश भारद्वाज, रामकृष्ण कौशल, योगेश्वर शर्मा, रत्न सिंह हिमेश, हरवंस सेठी, पीयूष गुलेरी, मस्तराम कपूर, यशवीर धर्माणी, सागर पालमपुरी, सुशील कुमार फुल्ल, सुदर्शन वशिष्ठ व नीलमणि उपाध्याय आदि प्रमुख हैं।                                                                -(शेष भाग अगले अंक में)

कवि के बुखार में तपती कविताओं का संग्रह

कविता संग्रह : बुख़ार में तपता आदमी
कवि : नवनीत शर्मा
प्रकाशक : बिंब प्रतिबिंब प्रकाशन, फगवाड़ा, पंजाब
कीमत : 220 रुपए

बुखार में यदि शरीर के बहाने, परिवेश के बहाने, परिदृश्य से उलझती यादों के भरोसे, इनसान की फितरत जब निढाल होने लगती है, तो खुद से मुलाकात करने का क्रम, अतीत को वर्तमान से जोडऩे की कारीगरी में गुम हो जाता है। कविता गुमशुदा लम्हों का संग्रहालय बन जाए या मन के दर्पण खोलकर रूबरू हो जाए, तो तपिश शरीर से दिमाग तक चढ़ती है। बुखार से तपे, गर्मी से तपे या विचारों के आक्रोश से तपे- इस तरह या उस तरह तपना कविता हो सकता है और इसी परिपाटी में नवनीत शर्मा की हालिया कविताएं, बुखार में तपता आदमी, संग्रह लेकर हाजिर हैं। नवनीत शर्मा समय को पकडऩे की महारत में कविता का किश्ती की तरह खेवन करते हैं, ‘पहाड़ जब जब चोटी पर मुग्ध रहा, उसके पैरों के खिलाफ साजिश हुई। पहाड़ झेलता है, पहाड़ सी लापरवाहियों का दंड!!’ अपने वृतांत के माहिर, शिल्प को सेंकते और भाषा को फेंटते-फेंटते कवि मोमबत्तियां जला रहे हैं। कविता अपने मुहावरे गढ़ती हुई, ‘जिहादियों के हर मौसम का दोस्त है हत्यारा, मानवता का काम है डरना, यह अधीर सभ्यता का प्रलाप है, बादल धमनियों में घुस आए हैं, जैसे मुकाम पा लेती है। संग्रह में हर कविता की अपनी परिभाषा है और यह पाठक के अर्थों में घुसपैठ करने का अधिकार पा जाती है। ‘लोकगीत’ का निर्णायक होना कविता है या कविता के सामथ्र्य में लोकगीत होने की स्वीकृति है, इस उलझन में कुछ तो है कि कही हुई कविता को स्वीकृत कराए, लेकिन बहस इससे भी आगे निकल कर ‘एक लोक कवि’ के पास कुछ यूं मिलती है, ‘लोक गायक – अपने ही मैल के पहाड़ पर खड़ा एक आदमकद बुत, आए लोक – मैल खोरी धीरे-धीरे! चरणबंदे! मैल से और लोक गायक बन गए।’

कुल 47 कविताओं के इस संग्रह का बुखार मापतीं, कुछ रचनाएं अपनी विशिष्टता में नहाती हुईं प्रतीत होती हैं। पहाड़ और समुंदर, औरंगजेब किसी एक का नाम नहीं, अब देवता ही कुछ करें, ट्रैफिक जाम में फंस कर, लाशों के बीच, मेरी धूप चोरी हो गई है, पिता जी : शब्दांजलि, बांसुरी के छेदों में भोलू, पहाड़ी गांधी बाबा कांशीराम का पत्र और दिवंगत कवि के लिए, जैसी कविताएं पाठक को खींचती, रिझातीं व कभी बाल नोंचती हुई बेहतरीन इंतखाब बन के कह उठती हैं, ‘उधर एक तीली, हरी घास के लिए लालच की। एक तीली, दूसरे के झुलसने में आनंद लेने की!! इधर एक तीली, चूल्हे में ताप भरती हुई!!! एक तीली कांगड़ी में, जीव बनकर दमकती हुई!!!!’ कविता के बीच कितना कवि, यह बहस हो सकती है, लेकिन कविता के बीच अद्यतन मूल्यों की मिलावट के साथ सिस्टम को खरी-खोटी सुनाना कविता से कहीं ऊपर है। यहां कविताएं दरअसल भाषा और संवेदना की कोशिकाओं में पिघलते हुए भाव का संचार कर रही हैं। कविता खुद से संवाद करती अपनी बुनाई करती और लिख देती है पत्रकारिता के भी कुछ पन्ने भी। कविता हालांकि मीडिया नहीं, लेकिन मीडिया के लिए कविता कुछ सामाजिक पोरों, कुछ राष्ट्रीय छेदों और कुछ सांस्कृतिक भेदों की मरम्मत करती है, ‘इस पुल के पास आते ही/चौंक जाता है/राजमार्ग का अहंकार/सिमट आती है खिसियानी चौड़ाई/रेलिंग तक – दरअसल नहीं जानता कोई/जो जोड़ता है- वही तोड़ता है।’ व्यक्तियों पर केंद्रित कविताएं अपने मनोभाव में कहती हुईं। दूसरे के शरीर में अपनी कविता खोजना मात्र एक विधा नहीं, बल्कि जीवन को पूर्ण करने की तलाश है, जो किसी के व्यक्तित्व से टपकती प्रेरणा भी हो सकती है, ‘मैं जीवन के बाद जीवन के रास्ते पर/धीरे-धीरे मंजिल हो रहा हूं/यही होता है घातक, तुम मंजिल होने से बचना!!’ अतीत में तात्कालिकता भरना कवि के लिए सहज नहीं, लेकिन नवनीत शर्मा का मीटर रुकी हुई हवाओं को आज के पंखों से माप लेता है, ‘क्या बताऊं पिता जी के बारे में/पिता होते हैं – तो मक्खी मारना भी बहादुरी में आता है।’ कुछ अपने, कुछ नजदीकी चुनते-चुनते, ये कविताएं ध्वजवाहक बन रही हैं और समर्थन में इनकलाब की बाहों पर टंगी तख्तियां गूंज रही हैं, ‘भगत-भगत करती है दुनिया/और आजाद होने के बावजूद/आजाद आजाद चिल्लाता रहता है देश।’ कविता-कविता में और कवितामय होने में छुपा अंदाज कवि को कभी ठेले पर, तो कभी मेले में ले आता है और इस एहसास की मुद्राओं में जब कभी कविता कुशलक्षेम पूछती है, तो सृजन भी मुलाकात है, अपने समय के भंवर से निकले उत्पात के साथ भी कोई कह गया, तो यह कविता है। बुखार में तपता आदमी और कर भी क्या सकता, हस्तियों के आने और जाने के बाद शेष रहे मजमूनों को चुनने के सिवाय। तपने का नाम बुखार हो सकता है, लेकिन बुखार तपने की एकमात्र या अंतिम प्रक्रिया नहीं। अलबत्ता बुखार में खुद को महसूस करने का एक खास व्याकरण कविता को अपने पहलू में रखकर पुकारता है, पुकारता रहेगा, ‘सारा दिन प्याज होती हुई, परत दर परत घर के लिए खुलती/सब्जी के जायके में ढलती – देसी भिंडी जैसी अंगुलियों वाली…।’                                                                                                                             -निर्मल असो

पुस्तक समीक्षा : सामाजिक सरोकारों से जुड़ी कविताएं
‘डर लगने लगा है’ कवि जगदीश कश्यप का प्रथम काव्य संग्रह है जिसमें उनकी चौंसठ कविताएं संग्रहीत हैं जो उनके सुदीर्घ अनुभव और समय की आंच पर पक कर उनकी कलम से निकल कर मन को झकझोरती है। उनकी कविताएं निर्धन, अभावग्रस्त, वंचित और पिछड़े वर्ग के समाज की आवाज बन कर मुखरित हुई हैं। इन कविताओं में व्याप्त दुख, आक्रोश और करुणा का समन्वित रूप प्रभावी रूप में व्यंजित हुआ है क्योंकि कवि का जीवन के यथार्थ से संबंध गहन और आत्मीय है। कवि ने लोक संवेदना अपने वस्तु जगत में समाहित करके कविता संरचना में कुशलता से विन्यस्त की है। कवि कश्यप की कविताएं प्रमुख रूप में आधारभूत सरोकारों, सामाजिक विडंबनाओं, राजनीतिक विकृतियों, जड़ अंधश्रद्धा और प्रेम अनुभूतियों से संबद्ध हैं। उनकी कविताएं हाशिये के समाज के जीवन संघर्ष, उत्पीडऩ और अन्याय को मुखरित करती हैं। यही प्रमुख रूप में उनकी कविताओं का जीव द्रव्य है। राजनीति और पूंजी के गठजोड़ से उत्पन्न भ्रष्ट तंत्र में सुविधाहीन वर्ग इस कांटेदार मार्ग पर सदियों से आचरण और व्यवहार के जड़ प्रतिमानों के अनुरूप चलने के लिए विवश रहा है। असमानता, अधिकार रहित जीवन से त्रस्त समाज की पीड़ा और अन्याय की पराकाष्ठा में आक्रोश का स्वर इन कविताओं में मूर्तिमान हुआ है। जगदीश कश्यप की ये कविताएं शोषणकारी तंत्र के अनेक रहस्यों को अनावृत करती हैं। 154 पेज की यह किताब आभी प्रकाशन शिमला से प्रकाशित है जिसकी कीमत 325 रुपए है।                                                                                                      -फीचर डेस्क


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App