विश्वसनीयता की कसौटी पर भारतीय मीडिया

स्वस्थ एवं मजबूत लोकतंत्र की सशक्त भूमिका निभाते हुए स्वतंत्र, निष्पक्ष और निर्भीक प्रेस का होना जरूरी है…

भारतवर्ष दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। इस देश को संवैधानिक तथा लोकतांत्रिक व्यवस्था से चलाने के लिए चार मुख्य एवं महत्त्वपूर्ण स्तम्भों विधानपालिका कार्यपालिका, न्यायपालिका तथा प्रेस यानी मीडिया का निर्माण किया गया। संविधान में इन सभी के कार्य स्पष्ट रूप से परिभाषित हैं तथा ये चारों एक-दूसरे के बीच हस्तक्षेप नहीं करते। विधानपालिका देश के संचालन के लिए कानून का निर्माण करती है। कार्यपालिका के माध्यम से बनाए गए नियम या कानून सभी के लिए समान रूप से क्रियान्वित एवं लागू होते हैं। यह कानूनों को जनता में पहुंचाने, पालन करवाने तथा समान रूप से लागू करने का कार्य करती है। न्यायपालिका बनाए गए कानूनों की व्याख्या तथा कानूनी प्रावधानों के उल्लंघन होने पर सजा का प्रावधान करती है। इससे कोई भी व्यक्ति शक्ति, प्रभाव या धन बल के आधार पर कानून का उल्लघंन नहीं कर सकता। प्रेस यानी पत्रकारिता या मीडिया को लोकतन्त्र के चौथे स्तम्भ के रूप में मान्यता मिली है। यह लिखित एवं दृष्य एवं श्रव्य संसाधनों के माध्यम से स्वतन्त्र रूप से विधानपालिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका पर नजर रखता है। मीडिया की नजर तीनों स्तम्भों के जिम्मेवारी, निष्ठा तथा पक्षपात रहित कार्य करने पर रहती है। मीडिया द्वारा प्रदत जानकारी तथा जागरूकता के पश्चात निर्णय लेने की शक्ति जनता के विवेक तथा निर्णय पर निर्भर करती है। मीडिया जनता, चुने हुए प्रतिनिधियों, प्रशासन तथा न्यायिक व्यवस्था पर अपनी पैनी नजर रखते हुए सभी के बीच एक सेतु का कार्य करता है। लोकतन्त्र का घेरा लोगों द्वारा बनाई गई विधायिका से चलकर कार्यपालिका, न्यायपालिका व मीडिया से होते हुए पुन: लोगों के पास ही आ जाता है।

भारत में इन सभी को मिलाकर एक मजबूत एवं सशक्त लोकतंत्र का निर्माण होता है। प्रेस, पत्रकारिता या मीडिया संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) में अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता और अभिव्यक्ति के तहत भारत के संविधान द्वारा दिए गए मूल अधिकारों को संदर्भित करते हुए स्वतन्त्र पत्रकारिता को प्रोत्साहित करती है और लोगों को सरकार या उसके विरुद्ध अपनी राय देने की अनुमति प्रदान कर लोकतन्त्र को मजबूत करती है। भारत में प्रेस और मीडिया की स्वतंत्रता को व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त है। देश के लोगों की सुरक्षा, राष्ट्रीय एकता, संप्रभुता और देश की अखंडता को सुनिश्चित करने के लिए इसमें अनुच्छेद 19 (2) के तहत कुछ उचित प्रतिबंध भी लगाए गए हैं। अनुच्छेद 19 में घोषणा के केंद्र में कहा गया है, ‘हर किसी को राय और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है। इस अधिकार में हस्तक्षेप के बिना राय रखने और किसी भी मीडिया माध्यम से और सीमाओं की परवाह किए बिना सूचना और विचारों को प्राप्त करने और प्रदान करने की स्वतंत्रता शामिल है।’ मीडिया के अधिकार ‘फ्रीडम ऑफ स्पीच एंड एक्सप्रेशन’ के अन्तर्गत आते हैं। अभी हाल ही में माननीय उच्चतम न्यायालय ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले में मीडिया वन मलयालम चैनल के प्रसारण पर केंद्र सरकार द्वारा लगाए प्रतिबंध को हटाते हुए कहा कि मजबूत लोकतंत्र के लिए प्रेस की आजादी जरूरी है। देश के सामने सच बोलना प्रेस का कर्तव्य है तथा इससे राष्ट्र को कोई खतरा नहीं है। माननीय उच्चतम न्यायालय ने कहा कि सरकार की नीतियों की आलोचना करना कोई सत्ता का विरोध नहीं है। प्रेस की स्वतन्त्रता को बल देता हुआ यह फैसला ऐतिहासिक तो है लेकिन इसके साथ ही प्रेस को अपनी सीमाओं, मर्यादाओं तथा अधिकार क्षेत्र में रह कर अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना भी उतना ही आवश्यक है।

यह सही है कि मीडिया विचारों के आदान-प्रदान का एक सशक्त माध्यम है। यह व्यक्ति एवं निकायों को उनके कार्यों और हकों के लिए आवाज देता रहता है। मीडिया आम आदमी की आवाज है जो सामान्य व्यक्ति को सूचनाओं तथा समाचारों के साथ अभिव्यक्ति का एक सहासिक एक मंच प्रदान करता है। मीडिया संवैधानिक व्यवस्था पर नजर रख कर प्रहरी का कार्य करता है लेकिन राष्ट्रीय चरित्र तथा नैतिकता की दृष्टि से वर्तमान में मीडिया को भी अपना आत्म अवलोकन तथा आत्म विश्लेषण कर स्वयं में कुछ प्रश्नों का उत्तर ढूंढने का प्रयास करना चाहिए ताकि उसका सम्मान, गरिमा तथा विश्वसनीयता बनी रहे। वर्तमान में क्या यह सत्य नहीं है कि आज देश की जनता हर रोज ‘फेक’ न्यूज का शिकार होकर गुमराह होती है। क्या यह सत्य नहीं है कि मीडिया का भी राजनीतिकरण हो गया है? क्या यह भी सत्य नहीं है कि टीवी चैनल एवं समाचार पत्र राजनैतिक विचारधाराओं से प्रभावित हैं? क्या यह भी सत्य नहीं है कि आज मीडिया को ‘गोदी मीडिया’ पुकार कर मीडिया का उपहास उड़ाया जाता है? क्या यह सत्य नहीं है कि सुनियोजित तरीके से राष्ट्रीय, सामाजिक तथा विकासात्मक मुद्दों से हटकर जनता का ध्यान भटकाया जाता है? क्या यह भी खुला सत्य नहीं है कि बड़े से बड़े राजनैतिक, सुरक्षा, राष्ट्रीय तथा संगीन मामलों का कानून के दायरे तथा न्यायालय में जाने से पहले ही मीडिया ट्रायल हो जाता है? मीडिया हाउस बड़े-बड़े धन्ना सेठ चलाते हैं। उनकी तथा राजनैतिक दलों की अनुमति के बिना कुछ भी नहीं छप सकता। ‘पेड न्यूज’ का बोलबाला हो गया है।

वर्तमान में घृणा, अपराध, झूठे आरोप, गलत चित्रण, चरित्र हनन तथा फर्जी समाचार आदि के कारण बहुत से मुकद्दमे न्यायालयों के सामने आए हैं। मीडिया को राष्ट्र तथा समाज के सामने बिना पक्षपात तथा भेदभाव से सच्ची तस्वीर प्रस्तुत करनी चाहिए, नहीं तो जनता गुमराह ही होती है। इससे मीडिया की गरिमा एवं विश्वसनीयता कम होती है। इसमें कोई संदेह नहीं कि देश में लोकतंत्र के चौथे स्तंभ मीडिया की स्वतंत्रता के बिना मजबूत एवं स्वस्थ लोकतंत्र का चलना संभव नहीं है, तथापि यह भी बहुत आवश्यक है कि मीडिया भी अपनी भूमिका निष्ठा, ईमानदारी, भेदभाव तथा पक्षपात रहित होकर निभाए। इससे लोकतन्त्र के हितों की रक्षा के साथ लोकतन्त्र के प्रहरी के रूप में गरिमा तथा विश्वसनीयता भी बढ़ेगी। देश के निर्माण में मीडिया की भूमिका को बिल्कुल नकारा नहीं जा सकता, लेकिन लोकतन्त्र के इस चौथे स्तम्भ को और अधिक सशक्त तथा मजबूत बनाने की जिम्मेदारी भी मीडिया की ही है। लोकतन्त्र की सही स्थापना तथा प्रतिष्ठा के लिए सभी व्यक्तियों, समाजों, मतों, सम्प्रदायों, धर्मों तथा राजनैतिक दलों का जीवित रहना बहुत आवश्यक है। स्वस्थ एवं मजबूत लोकतंत्र की सशक्त भूमिका निभाते हुए स्वतंत्र, निष्पक्ष और निर्भीक प्रेस का होना बहुत आवश्यक है।

प्रो. सुरेश शर्मा

शिक्षाविद


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