राष्ट्रीय ध्वज का अपमान बर्दाश्त नहीं

भारत के प्रति हिकारत भरी इस कारकर्दगी पर इन देशों की हुकूमत के लब-ए-इजहार पर खामोशी की रजामंदी का आलम कई सवाल खड़े करता है। विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक राष्ट्र भारत की प्रतिष्ठा से जुड़े इस मुद्दे पर इन मुल्कों को अपना नजरिया साफ करना होगा…

भारत का स्वाभिमान राष्ट्रीय ध्वज शान ए तिरंगा अंतर्राष्ट्रीय पटल पर हिंदोस्तान की राष्ट्रीय पहचान को जाहिर करता है। संविधान के मौलिक कत्र्तव्यों में राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान करना भारत के हर नागरिक का मूल कत्र्तव्य माना गया है। अंग्रेजों से आजादी के लिए देश के सैंकड़ों इंकलाबी युवा तख्ता-ए-दार पर झूल गए। लंबी जद्दोजहद के बाद बर्तानियां के झंडे यूनियन जैक का सूर्यास्त हुआ तथा आजादी के प्रतीक तिरंगे का उदय हुआ। कत्र्तव्य पथ पर जश्न-ए-जम्हुरियत की शुरुआत हो या लाल किले की प्राचीर से जश्न-ए-आजादी का आगाज दोनों कार्यक्रमों का शुभारंभ राष्ट्रीय ध्वजारोहण से ही होता है। वर्तमान में कुछ देशों में भारत विरोधी मनोग्रंथी में डूब चुके तत्वों द्वारा भारत के राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करके हिंदोस्तान की संप्रभुता को चुनौती देने की हिमाकत हो रही है। स्मरण रहे देश के सैनिक मातृभूमि की रक्षा के लिए बलिदान देने का हलफ राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के समक्ष ही लेते हैं। अत: राष्ट्रीय ध्वज के अपमान से करोड़ों देशवासियों के साथ खिलाडिय़ों व सैनिकों की भावनाएं सबसे ज्यादा आहत होती हैं। राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को वैश्विक स्तर पर गौरव प्रदान करने में सबसे बड़ा योगदान हमारे खिलाडिय़ों व सैनिकों का होता है। इसीलिए अंतर्राष्ट्रीय खेल मैदानों से लेकर देश की सरहदों तक तिरंगा पूरी शान व शिद्दत से लहराता है। आजादी के बाद किशन लाल की कप्तानी में भारतीय हॉकी टीम ने लंदन ओलंपिक में 12 अगस्त 1948 को इंग्लैंड की टीम को हराकर ‘गोल्ड मेडल’ जीतकर भारत को गौरवान्वित किया था।

मल्लिका ए बर्तानियां ‘एलिजाबेथ’ उस मैच को देखने के लिए स्टेडियम में मौजूद थी। जब हॉकी टीम ने आज़ाद भारत का पहला स्वर्ण पदक जीतकर हिंदोस्तान पर दो सौ वर्षों तक हुक्मरानी करने वाले ब्रिटेन की धरती पर तिरंगा फहराकर अंग्रेजों को आईना दिखाया था। कपिल देव के नेतृत्व में भारतीय क्रिकेट टीम ने 25 जून 1983 को ‘लार्डस’ के मैदान में कैरिबियाई टीम को शिकस्त देकर विश्व कप जीतकर उसी ब्रिटेन की धरती पर तिरंगा फहराया था। भारत को क्रिकेट का विश्व विजेता बनाने वाले कपिल देव को भारतीय सेना ने ‘पंजाब रेजिमेंट’ में मानद कर्नल की उपाधि दी है। 2007 में टी ट्वेंटी तथा 2011 में वन डे क्रिकेट विश्व कप जीतकर तिरंगा फहराने वाले कप्तान महेंद्र सिंह धोनी को सेना ने ‘पैरा कमांडों’ में मानद कर्नल का ओहदा प्रदान किया है। तात्पर्य यह है कि भारत को विश्व विजेता बनाकर तिरंगा फहराने वाले खिलाडिय़ों को भारतीय सेना अपने विशेष अंदाज से सम्मानित करती है। 2008 के बीजिंग ओलंपिक में 10 मीटर एयर राइफल में स्वर्ण पदक जीतकर चीन की धरती पर तिरंगा फहराने वाले अभिनव बिंद्रा ‘सिख रेजिमेंट’ के मानद कर्नल है। 2021 टोक्यो ओलंपिक में जेवलिन थ्रो में स्वर्ण पदक जीतकर तिरंगे को वैश्विक खेल पटल पर गौरव प्रदान करने वाले नीरज चोपड़ा ‘राजपूताना राइफल’ में सूबेदार के पद पर तैनात हैं। विंग कमांडर ‘राकेश शर्मा’ ने सन् 1984 में अंतरिक्ष में तिरंगा फहरा कर भारत का मान बढ़ाया था।

27 अक्तूबर 1947 को भारतीय सेना ने श्रीनगर में तिरंगा लहराकर पाक हुक्मरानों को एहसास करया था कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बन चुका है। पाक सेना की मंसूबाबंदी को नेस्तानाबूद करके भारतीय सेना ने आठ सितंबर 1965 को लाहौर में तिरंगा फहरा दिया था। हमारे ‘राष्ट्रीय गान’ में जिस ‘सिंध’ का जिक्र होता है, कर्नल ‘भवानी सिंह’ ‘10 पैरा कमांडो’ ने 7 दिसंबर 1971 को उसी सिंध की धरती पर तिरंगा फहराकर पाकिस्तान को भारत की सैन्य हैसियत से रूबरू करवा दिया था। हिमाचल के शूरवीर मेजर ‘गुरदेव सिंह जसवाल’ ‘वीर चक्र’ ने 10 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान के अंदर घुसकर पाक सेना की किलेबंदी को ध्वस्त करके शकरगढ़ में तिरंगा फहरा कर अपना बलिदान दिया था। कारगिल जंग के नायक कै. बिक्रम बत्रा ने युद्ध के दौरान कहा था कि ‘जीत के बाद तिरंगा फहराकर आऊंगा या फिर उसी तिरंगे में लिपटकर आऊंगा लेकिन आऊंगा जरूर’। मातृभूमि के लिए बलिदान देने वाले बिक्रम बत्रा की यह जुनूनी तहरीर सात जुलाई 1999 को सच साबित हुई थी। काबिलेगौर रहे कि राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को डिजाइन करने वाले ‘पिंगली वैंकेया’ भी ब्रिटिश भारतीय सेना में सैनिक थे। आजादी से पूर्व सैनिकों को ब्रिटिश साम्राज्य के झंडे ‘यूनियन जैक’ को सलामी देनी पड़ती थी। उस वक्त पिंगली वैंकेया के जहन में भारत की आजादी के सूचक अपने राष्ट्रीय ध्वज की अहमियत का एहसास हुआ था। ‘एंग्लो बोअर’ युद्ध (1899-1902) के दौरान पिंगली वैंकेया दक्षिणी अफ्रीका में तैनात थे। उस समय पींगली वैंकेया की मुलाकात दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गांधी से हुई थी। पिंगली वैंकेया के राष्ट्रीय ध्वज के प्रति मोहिब्बे वतन के जज्बातों से गांधी जी काफी प्रभावित हुए थे। आजादी के बाद भारतीय संविधान सभा ने 22 जुलाई 1947 को तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकार किया था। सन् 2009 में भारत सरकार ने पींगली वैंकेया पर डाक टिकट जारी किया था। तिरंगे की शान के लिए सैनिकों की कुर्बानियों का सम्मान पूरी अकीदत से करना होगा, मगर विडंबना है कि ब्रिटेन, कनाडा, अमेरिका व आस्टे्रलिया जैसे देशों में भारतीय दूतावासों पर लगे तिरंगे का अपमान हो रहा है। अंतर्राष्ट्रीय प्रोटोकॉल के अनुसार हर देश को अपने सहयोगी देशों के संबंधित प्रतीक चिन्हों की सुरक्षा की जिम्मेवारी निभानी होती है। भारत के प्रति हिकारत भरी इस कारकर्दगी पर इन देशों की हुकूमत के लब-ए-इजहार पर खामोशी की रजामंदी का आलम कई सवाल खड़े करता है। विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक राष्ट्र भारत की प्रतिष्ठा से जुड़े इस मुद्दे पर इन मुल्कों को अपना नुक्ता-ए-नजऱ साफ करना होगा। राष्ट्र की अस्मिता के लिए फिदा-ए-वतन होने वाले सैनिकों का अरमान यही होता है कि राष्ट्रीय ध्वज का इकबाल हमेशा बुलंद रहे। अत: हिंदोस्तान के गौरव शान-ए-तिरंगा के अपमान का दुस्साहस बर्दाश्त नहीं होगा। इन घटनाक्रमों पर भारत सरकार विदेशी राजनयिकों को तलब करके अपने एहतेजाज का इजहार करती है। मगर विदेश मंत्रालय को राष्ट्रीय ध्वज के अपमान में मुश्तमिल दोषियों पर सख्त कार्रवाई को अमल में लाना होगा जो भविष्य में नजीर बने।

प्रताप सिंह पटियाल

स्वतंत्र लेखक


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