ई-कॉमर्स में गेम चेंजर ‘ओएनडीसी’

ओएनडीसी को भी एक ऐसी प्रणाली के रूप में देखा जा रहा है जो उपभोक्ताओं के शोषण को रोक सकती है…

एक दशक से अधिक समय से, ई-कॉमर्स में भारत और दुनिया में भारी वृद्धि देखने को मिली है। भारत में कुल खुदरा व्यापार का लगभग 6.5 प्रतिशत आज ई-कॉमर्स के माध्यम से होता है। ई-कॉमर्स ने जीवन को बेहद आसान बना दिया है, क्योंकि लोगों को घर बैठे एक बटन क्लिक करने पर आसानी से वस्तुएं और सेवाएं मिल जाती हैं। रेल-बस टिकट हो या हवाई यात्रा, होटल बुकिंग हो या टैक्सी, ऑटो से आना-जाना सब कुछ बेहद सुविधाजनक हो गया है। इतना ही नहीं, ई-कॉमर्स के माध्यम से विभिन्न प्रकार की घरेलू और व्यावसायिक सेवाओं तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। लेकिन इसके साथ ही कुछ बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियों का दबदबा बढ़ रहा है, जिससे पारंपरिक व्यवसायों को भारी नुकसान हो रहा है। सवाल केवल कमीशन का नहीं है, ये ई-कॉमर्स कंपनियां डेटा पर अपने एकाधिकार के कारण विभिन्न विक्रेताओं के बीच भेदभाव करती हैं और अपने पसंदीदा विक्रेताओं को वरीयता देती हैं और इस प्रकार अन्य विक्रेताओं को नुकसान होता है। हालांकि, ये कंपनियां अपने ग्राहकों को सस्ता सामान और सेवाएं प्रदान करने का दावा करती हैं, लेकिन वास्तव में अपनी आर्थिक ताकत के चलते ये कंपनियां छोटे पारंपरिक दुकानदारों, ट्रैवल एजेंटों आदि को बाजार से बाहर करने के लिए उपभोक्ताओं को भारी छूट देती हैं। अपने स्वयं के पैसे से और ड्राइवरों को आकर्षित करने के लिए उन्होंने भारी प्रोत्साहन भी दिया। लेकिन अब अपना व्यवसाय स्थापित करने के बाद, उबर सरीखे एग्रीगेट्रों के द्वारा उपभोक्ताओं को अधिक भुगतान करने के लिए मजबूर किया जाता है, और ड्राइवरों की कमाई का लगभग एक तिहाई इन एग्रीगेट्रों द्वारा छीन लिया जाता है।

एग्रीगेटर के रूप में काम करने वाली ई-कॉमर्स कंपनियां छोटे वेंडरों और गरीब कामगारों की आमदनी का एक बड़ा हिस्सा हड़प रही हैं। ऐसे में उनके पास केवल दो विकल्प हैं, या तो अपना शोषण होने दें या व्यवसाय छोड़ दें। इतना ही नहीं, ई-कॉमर्स कंपनियों के कैश बर्निंग मॉडल की वजह से परंपरागत कारोबारी भी धंधे से बाहर हो रहे हैं। चाहे किराना दुकान हो या रेडीमेड परिधान की दुकान या इलेक्ट्रॉनिक्स और घरेलू सामान के शोरूम, या पारंपरिक ट्रैवल एजेंट, ई-कॉमर्स कंपनियों के आने से विभिन्न प्रकार के खुदरा व्यापार में लोगों के रोजगार का क्षरण हुआ है। कहा जा सकता है कि आज का ई-कॉमर्स समावेशी नहीं है। हालांकि, हम ई-कॉमर्स को बंद नहीं कर सकते हैं और ऐसा करने की कोई आवश्यकता भी नहीं है; सवाल विक्रेताओं और उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा का है। क्या हम इन ई-कॉमर्स दिग्गजों के लालच पर रोक लगा सकते हैं? इन सवालों के जवाब भारत सरकार द्वारा शुरू किए गए ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ओएनडीसी) में मिल रहे हैं, जो कंपनी अधिनियम की धारा 8 के तहत पंजीकृत एक कंपनी है। ओएनडीसी नेटवर्क ई-कॉमर्स को एक चैनल प्रदान कर रहा है। यह खरीददारों और विक्रेताओं के बीच एक कड़ी प्रदान करने की कोशिश करता है, जो शोषणकारी नहीं है। इस प्रणाली में, ई-कॉमर्स कंपनियां डेटा पर एकाधिकार और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के उपयोग के माध्यम से विक्रेताओं के बीच भेदभाव नहीं कर सकती हैं। कुल मिलाकर ओएनडीसी एक ऐसा चैनल होगा जिसमें उपभोक्ता विभिन्न प्रकार के विक्रेता, सेवा प्रदाता आदि को आसानी से खोज सकेंगे और ई-कॉमर्स बाजार में एकाधिकार के बजाय प्रतिस्पर्धा के आधार पर विक्रेताओं के व्यवसाय को बढ़ावा दिया जा सकेगा।

ओएनडीसी क्या है? : ओएनडीसी सामान्य ई-कॉमर्स कंपनियों जैसा प्लेटफॉर्म नहीं है। आमतौर पर ई-कॉमर्स कंपनियां एक प्लेटफॉर्म के जरिए काम करती हैं। विक्रेता या सेवा प्रदाता संबंधित प्लेटफॉर्म पर अपना पंजीकरण कराते हैं और उन्हें कई प्लेटफॉर्म पर पंजीकरण कराना होता है। हालांकि, ये प्लेटफॉर्म उपभोक्ताओं और विक्रेताओं दोनों को छूट और प्रोत्साहन का लालच देकर, अपनी आर्थिक ताकत के बलबूते उन्हें आकर्षित करने की कोशिश करते हैं, लेकिन एक बार जब उनका व्यवसाय स्थापित हो जाता है, तो अपने लाभ को अधिकतम करने के लिए वे उपभोक्ता और विक्रेता, दोनों का शोषण करते हैं। ओएनडीसी वास्तव में विभिन्न प्लेटफार्मों और उपभोक्ताओं के बीच की एक कड़ी है जो लाभ के उद्देश्य से काम नहीं करता है। अभी तक सामान्य ई-कॉमर्स में विक्रेता और सेवा प्रदात्ताओं को प्लेटफॉर्म पर रजिस्ट्रेशन कराना होता था, इसलिए वे उन प्लेटफार्मों पर निर्भर होते हैं। उपभोक्ता प्लेटफॉर्म पर केवल उन्हीं विक्रेताओं को देख पाते हैं, जो उस प्लेटफॉर्म पर पंजीकृत हैं। ओएनडीसी एक ऐसी प्रणाली है जिसमें विभिन्न प्रकार के प्लेटफॉर्मों को ही पंजीकरण की सुविधा प्रदान की जाती है। लेकिन ओएनडीसी की शर्त यह है कि इनमें से किसी भी प्लेटफॉर्म पर जिन वेंडरों या सेवा प्रदाताओं ने खुद को पंजीकृत कराया है, उनके द्वारा प्रदान की जाने वाली वस्तुएं और सेवाएं ओएनडीसी पर आने वाले सभी ग्राहकों को दिखाई देंगी। यानी ओएनडीसी एक ऐसी प्रणाली है जिसमें कुछ भी अपारदर्शी नहीं है। यह प्रणाली जियोग्राफिक इनफारमेशन सिस्टम (जीआईएस) यानि भौगोलिक सूचना प्रणाली के माध्यम से काम करती है और लाखों विक्रेताओं व करोड़ों उपभोक्ताओं को उनके स्थान यानि लोकेशन के आधार पर सुविधा प्रदान कर सकता है।

उदाहरण के लिए, यदि कोई उपभोक्ता घर बैठे किसी रेस्तरां से खाना या किराना सामान मंगवाना चाहता है, तो ओएनडीसी प्रणाली में, आस-पास के सभी रेस्तरां या किराना स्टोर तक वो पहुंच सकता है और जो भी वो खरीदना चाहता है, खरीद सकता है। ये सभी विक्रेता और सेवा प्रदाता, विभिन्न प्लेटफार्मों पर पंजीकृत होने के बावजूद, ओएनडीसी पर संभावित खरीददारों को दिखाई देंगे। हालांकि, जिन ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर वेंडर पंजीकृत हैं, वे वेंडर के साथ अपने समझौते के अनुसार शुल्क लेना जारी रख सकते हैं, लेकिन व्यवसाय लाने के लिए प्लेटफार्मों के बीच प्रतिस्पर्धा से उनका कमीशन अपने आप कम हो सकता है। हर प्लेटफॉर्म ज्यादा से ज्यादा बिजनेस लाने के लिए अपना कमीशन कम रखना चाहेगा। इस प्रकार ओएनडीसी ई-कॉमर्स को प्लेटफार्मों के एकाधिकार से मुक्त करता है और स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहित करता है। ओएनडीसी ई-कॉमर्स बिजनेस के नियमों में बदलाव कर सकता है। हालांकि, ई-कॉमर्स कंपनियों ने भी ओएनडीसी के नेटवर्क में शामिल होने में रुचि दिखाई है और कुछ प्लेटफॉर्म और भुगतान कंपनियां भी ओएनडीसी के साथ पंजीकृत हो रही हैं। हालांकि ओला, उबर जैसी टैक्सी सेवाओं ने अभी तक इस पर अपना पंजीकरण नहीं कराया है, लेकिन कुछ नई ई-कॉमर्स मोबिलिटी कंपनियां ओएनडीसी में रुचि दिखा रही हैं। ओएनडीसी को हाल ही में पेश किया गया है, ओएनडीसी प्रणाली में बहुत कम व्यवसाय किया जा रहा है, लेकिन उम्मीद है कि यह व्यवसाय निकट भविष्य में तेजी से बढ़ेगा। इससे छोटे ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के लिए भारी विज्ञापन खर्च के बिना उपभोक्ताओं तक पहुंचना संभव हो सकता है। बड़े या छोटे ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म, सभी पंजीकृत विक्रेता ओएनडीसी व्यवस्था में उपभोक्ताओं को समान रूप से दिखाई देंगे, क्योंकि ओएनडीसी प्रोटोकॉल विभिन्न विक्रेताओं के बीच अंतर नहीं करता। यदि ओएनडीसी प्रणाली सफल होती है, तो इसके साथ-साथ ई-कॉमर्स के सभी फायदे तो बदस्तूर मिलेंगे ही लेकिन इसकी अधिकांश कमियों से बचा जा सकेगा। गौरतलब है कि अब तक मौजूदा सरकार के तकनीक समर्थित सभी प्रयास सफल होते दिख रहे हैं। आज यूपीआई दुनिया में एक मिसाल बन चुका है और इसके माध्यम से ऑनलाइन भुगतान जल्दी और बिना किसी लागत के संभव हो रहे हैं। आज दुनिया में जितने भी ऑनलाइन लेन-देन होते हैं, उनमें से 40 फीसदी से ज्यादा भारत में हो रहे हैं। इसी तरह, ओएनडीसी को भी एक ऐसी प्रणाली के रूप में देखा जा रहा है जो न केवल उपभोक्ताओं और विक्रेताओं के शोषण को रोक सकती है, बल्कि स्थानीय व्यवसायों को सुविधा प्रदान करके सकल घरेलू उत्पाद और रोजगार में वृद्धि कर सकती है।

डा. अश्वनी महाजन

कालेज प्रोफेसर


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