विपक्षी एकता के मुद्दे

ये हाथ धोकर हमारे भ्रष्टाचार की ही जांच क्यों कर रहे हैं। बाकी लोगों की जांच करें। हमारा पीछा छोड़ें। हम राज परिवार के लोग हैं। सत्ता के आसनों पर बैठते रहे हैं। कल फिर से बैठ सकते हैं। इन जांच एजेंसियों को हजूर किसी तरह रोकें। देश का कोई भी आदमी जिसका कानून से कुछ भी लेना-देना न हो, समझ सकता है कि कोई भी कचहरी यह कैसे कह सकती है कि जांच एजेंसियां जांच न करें। विपक्षी दलों में तो धाकड़ वकील भरे पड़े हैं। लेकिन कहा गया है, विनाश काले विपरीत बुद्धि। सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी सुप्रीम डांट लगाई कि अब इनका हाल देखते ही बनता है। कचहरी ने कहा, भला हम जांच एजेंसियों को कैसे भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करने से रोक सकते हैं? खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे। लौट के घर को आए। पिटीशन पिट गई। दरअसल सभी विपक्षी दलों को सोचना चाहिए कि उनकी पार्टियां राज परिवार की पार्टियां न रह कर देश की जनता की पार्टियां बन जाएं। लेकिन उस तरीके से नहीं जिस तरीके से कांग्रेस ने मल्लिका अर्जुन खडग़े को अध्यक्ष बनाने का ड्रामा किया है…

पिछले कुछ वर्षों से विपक्ष की अनेक पार्टियां आपस में एकजुट होने का प्रयास कर रही हैं। एकता का आधार विचारधारा ही हो सकती है। जो पार्टियां भाजपा की राष्ट्रवादी विचारधारा से सहमत नहीं हैं, वे आपस में एकजुट हो सकती हैं। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि जो पार्टियां इक_ा होने का प्रयास कर रही हैं, उनकी विचारधारा आपस में मिलती हो। परन्तु ऐसा नहीं है। इसका मुख्य कारण यह है कि विपक्षी की अनेक पार्टियां किसी न किसी परिवार की व्यक्तिगत पार्टी है। कांग्रेस का अपना राज परिवार है और लालू का अपना राज परिवार है। मुलायम सिंह का अपना राज परिवार है। उनकी मृत्यु के बाद स्वाभाविक ही राज तिलक उनके बेटे का हो गया। यह अलग बात है कि अखिलेश यादव ने पिता के जीते जी ही उनसे पार्टी की कुंजी छीन कर अपने पास रख ली। फारूक अब्दुल्ला को तो उनके पिता शेख मोहम्मद अब्दुल्ला ने विधिवत एक जनसभा में नेशनल कान्फ्रेंस के पारिवारिक कागज पत्र दिए थे। इन राज परिवारों ने लोकतंत्र में ही अपना अस्तित्व बनाया था। लोकतंत्र की सीढ़ी से ही राज परिवार ऊपर आए थे। संविधान के अनुसार ही बड़े-बड़े पदों की शपथ ली थी। सार्वजनिक रूप से ही राज परिवारों ने अपने अपने युवराजों की घोषणा की थी ताकि प्रजा को पता चल जाए कि भविष्य का उत्तराधिकारी कौन है जिसे सत्ता देनी है।

इस प्रकार ये दल किसी विचारधारा के कारण नहीं बल्कि पारिवारिक हितों को खतरे में पड़ता देख कर, भाजपा को किसी प्रकार सत्ता से हटाने के लिए एकजुट हो जाना चाहते हैं। लेकिन मामला अटक जाता है। कारण यह है कि कांग्रेस का दावा है कि देश में सबसे बड़ा राजपरिवार वह है। इसलिए देश के बाकी राजपरिवार उसके आसन के सामने लगी कुर्सियों पर बैठें। कोर्निश करने के लिए सोनिया गान्धी ने फिलहाल नहीं कहा है, यह शेष पार्टियों के राज परिवारों के लिए राहत की बात है। लेकिन इन छोटे राज परिवारों का दावा है कि कांग्रेस का पुश्तैनी राज परिवार अब इतना बड़ा नहीं रहा कि उसकी छत्रछाया में बाकी राज परिवार बैठ सकें। परन्तु कांग्रेस अपने भूतकाल से बाहर नहीं आ रही। वह पुराने किले के बाहर कितना परिवर्तन हो गया है, इसे देखने व समझने को तैयार नहीं है। एक और कारण भी है। राज परिवारों में इस बात को लेकर भी सहमति नहीं बन पा रही कि यदि एकता हो जाती है तो किस राज परिवार को कितना हिस्सा मिलेगा। विपक्षी एकता में यही सबसे बड़ा पेंच है।

अभी तक इन राज परिवारों में राजनीतिक एकता को लेकर झगड़े थे, लेकिन पैसे को लेकर सब ठीक-ठाक ही चल रहा था। लेकिन इसी बीच राज परिवार एक दूसरे संकट में घिरते गए। राज परिवारों की सम्पत्तियों की जांच होने लगी। यह सम्पत्ति कैसे बनी, इसकी जांच होने लगी। राज परिवारों ने इस प्रकार की स्थिति का सामना कभी नहीं किया था। राजा तो अपने आप को दैवी शक्ति सम्पन्न मानता है। जनता तो उसकी प्रजा है। प्रजा को जो मिलता है, वह राजा की दया के कारण मिलता है। लेकिन 1950 में बाबा साहिब भीम राव रामजी अंबेडकर एक संविधान बना गए थे जिसमें राज परिवारों की लूट खसूट बन्द करने के अनेक सूत्र भी थे। उसी के कारण इन राज परिवारों का मामला संकट में आ गया। बिहार के एक राज परिवार के मुखिया लालू यादव जेल में चले गए। राजनीतिक कारणों से नहीं बल्कि अनेक घोटालों के कारण। हरियाणा में चौधरी देवी लाल के राज परिवार के मुखिया ओम प्रकाश चौटाला को तो अपने बेटे समेत ही दस साल जेल में रहना पड़ा। सबसे बड़े राज परिवार की मुखिया सोनिया गान्धी और उनके बेटे राहुल गान्धी तो नेशनल हेराल्ड की करोड़ों की सम्पत्ति के मामले में जेल जाते जाते बचे, फिलहाल जमानत पर हैं। राज परिवारों के साथ उठने-बैठने वाले अरविन्द केजरीवाल, जो अपने साथियों सहित घर से कट्टर ईमानदार का नारा लगाते हुए निकले थे, फिलहाल शराब को लेकर फंसे हुए हैं। उनके दो कट्टर ईमानदार साथी सत्येन्द्र जैन और मनीष सिसोदिया महीनों से जेल में बन्द हैं। उनको सोनिया गान्धी और राहुल गान्धी की तरह न्यायालय जमानत भी नहीं दे रहा।

इसलिए फिलहाल राज परिवारों के आगे सबसे बड़ा संकट राजनीतिक न रह कर भ्रष्टाचार का हो गया। इस मुद्दे पर बिना किसी झगड़े के सभी विपक्षी दल एकजुट हो गए। इसमें छोटे-बड़े राज परिवार का झगड़ा समाप्त हो गया। राज परिवारों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों में जो जांच हो रही है, उसको किसी तरीके से रोकना होगा। इस मामले में विपक्षी दलों में अभूतपूर्व एकता का नजारा देखने को मिला। पूरे देश में ये दल हंसी का पात्र बने। लेकिन हंसी को मारो गोली, किसी तरीके से भ्रष्टाचार को लेकर हो रही जांच रुकवाने होगी। लोग हैरान थे। ये सभी दल एकजुट होकर उच्चतम न्यायालय पहुंच गए। त्राहिमाम त्राहिमाम। न्यायालय में पूरे आंकड़े लेकर गए थे। हजूर! हमें देश के इतने प्रतिशत लोगों ने वोट दिए हैं। इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि इस देश में हमारी भी एक हैसियत है। लेकिन सीबीआई और ईडी हमारे पीछे पड़ी हैं। इतने मुक़द्दमे दायर कर दिए। ये हाथ धोकर हमारे भ्रष्टाचार की ही जांच क्यों कर रहे हैं। बाक़ी लोगों की जांच करें। हमारा पीछा छोड़ें। हम राज परिवार के लोग हैं। सत्ता के आसनों पर बैठते रहे हैं। कल फिर से बैठ सकते हैं। इन जांच एजेंसियों को हजूर किसी तरह रोकें। देश का कोई भी आदमी जिसका कानून से कुछ भी लेना-देना न हो, समझ सकता है कि कोई भी कचहरी यह कैसे कह सकती है कि जांच एजेंसियां जांच न करें। विपक्षी दलों में तो धाकड़ वकील भरे पड़े हैं। लेकिन कहा गया है, विनाश काले विपरीत बुद्धि। सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी सुप्रीम डांट लगाई कि अब इनका हाल देखते ही बनता है। कचहरी ने कहा, भला हम जांच एजेंसियों को कैसे भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करने से रोक सकते हैं? खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे। लौट के घर को आए। पिटीशन पिट गई। दरअसल सभी विपक्षी दलों को सोचना चाहिए कि उनकी पार्टियां राज परिवार की पार्टियां न रह कर देश की जनता की पार्टियां बन जाएं। लेकिन उस तरीके से नहीं जिस तरीके से कांग्रेस ने मल्लिका अर्जुन खडग़े को पार्टी का अध्यक्ष बनाने का ड्रामा किया है।

कुलदीप चंद अग्निहोत्री

वरिष्ठ स्तंभकार

ईमेल:kuldeepagnihotri@gmail.com


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