भारतीय संगीत परंपरा एवं सुरों के राजन

बहुत ही दु:ख की बात है कि दुनिया का यह विद्वान शास्त्रीय संगीत गायक, खूबसूरत चेहरा एवं बेहतरीन इनसान आज हमारे बीच में नहीं है…

भारतीय शास्त्रीय संगीत की महान संगीत परम्परा में अनेकों श्रेष्ठ तथा धुरंधर संगीतज्ञों ने देश की कला एवं संस्कृति को विश्व पटल पर स्थापित करने में अपनी भूमिका निभाई है। भारतीय संगीत की इस महान घराना परम्परा को विभिन्न गायकों एवं वादकों ने अपनी कला साधना एवं तपस्या से भविष्य की पीढिय़ों के लिए सुरक्षित रखा है। बीसवीं शताब्दी में कुछ ऐसे ही महान गायक हुए हैं जिनमें हम संगीत सम्राट तानसेन जैसे संगीतज्ञ का अक्स देखने की परिकल्पना करते हैं। इन गायकों में अब्दुल करीम खान, सवाई गंधर्व, गंगू बाई हंगल, फैयाज खान, अमीर खां साहब, डीवी पलुस्कर, केसरबाई केरकर, मोगुबाई कुर्डीकर, हीरा बाई बड़ोदकर, विनायक राव पटवर्धन, नारायण राव व्यास, पण्डित ओमकार नाथ ठाकुर, पण्डित दिलीप चन्द्र बेदी, कुमार गंधर्व, मल्लिकार्जुन मंसूर, पण्डित भीमसेन जोशी, पण्डित जसराज जैसे बेजोड़ गायक हुए हैं। इसी के साथ बाबा अलाउद्दीन खां, उस्ताद बिस्मिल्लाह खान, पण्डित रवि शंकर, उस्ताद विलायत खां, अल्ला रक्खा, अली अकबर खां, पण्डित शिव कुमार, हरि प्रसाद चौरसिया, जाकिर हुसैन तथा अमजद अली खां जैसे महान संगीतज्ञों ने भारतीय संगीत परम्परा को विश्व भर में अलोकित किया। इसी कड़ी में बनारस घराने के बेजोड़, विख्यात एवं अद्वितीय गायक पंडित राजन मिश्रा थे, जिनका निधन दो वर्ष पूर्व 25 अप्रैल, 2021 को रविवार के दिन हुआ। संगीत के बनारस घराने को बुलंदियों तक पहुंचाने वाले शास्त्रीय गायन के पुरोधा पंडित राजन मिश्रा के देहांत की खबर सुनकर पूरे देश के शास्त्रीय संगीत प्रेमी स्तब्ध रह गए।

पंडित राजन मिश्रा हृदय की खराबी, उस पर वे कोरोना वायरस संक्रमण से हार गए। नाद ब्रह्म का यह महान साधक, संगीतज्ञ एवं सरस्वती पुत्र सदा-सदा के लिए संगीत जगत से विदा होकर ब्रह्म लोक में लीन हो गया। इसके साथ ही राजन-साजन मिश्रा नाम से शास्त्रीय संगीत की विश्व विख्यात जोड़ी टूट गई। लगभग 400 वर्षों की बनारस घराने में शास्त्रीय संगीत की पारिवारिक परंपरा को आगे बढ़ाने वाले इन दोनों भाइयों को बहुत ही आदर एवं सम्मान की दृष्टि से देखा जाता रहा है। पंडित राजन को उनके दादा पंडित बड़े राम जी मिश्रा तथा पिता पंडित हनुमान मिश्रा से संगीत शिक्षा मिली थी। पंडित राजन का विवाह पंडित दामोदर की पुत्री श्रीमती बीना से हुआ। वर्तमान में राजन मिश्रा के पुत्र रितेश मिश्रा एवं रजनीश मिश्रा भी शास्त्रीय संगीत गायक के रूप में अपने आप को प्रतिष्ठित एवं स्थापित कर चुके हैं। पंडित राजन मिश्रा के गायन का अंदाज, भाव-भंगिमाएं, स्वर लगाव, लयकारी, बहलावे, स्पाट तान, गमक, मींड, तार सप्तक में स्वर प्रयोग, रागदारी, ताल प्रयोग, बंदिशों को प्रस्तुत करने का तरीका, क्या कहने, संगीत प्रेमियों को हृदय से छू लेता था। पंडित राजन मिश्रा को अपने घराने की परम्परा तथा संगीतज्ञों पर बहुत ही गर्व था। अपने संगीत के कार्यक्रमों में वे बनारस घराने की अनेकों रागों में तथा विभिन्न तालों में निबद्ध रचनाओं को बड़े ही शौक से सुनाते थे। यह जोड़ी मंच पर बैठी इस तरह प्रतीत होती थी मानो गंधर्व लोक से कोई देव, ऋषि या फिर गंधर्व गायक युगल गायन की वर्षा कर रहा हो। धोती-कुर्ते के आकर्षक परिधान में ठहरी और गहरी बातचीत, विद्वान एवं विशाल व्यक्तित्व, संगीत और ज्ञान का अथाह सागर, संगीत सागर के मनन, चिंतन एवं मंथन में निरंतर डूबे हुए एक आदर्श उदाहरणीय एवं अनुकरणीय संगीतज्ञ की जोड़ी ने एक सच्चे संगीतज्ञ को परिभाषित किया है। पंडित राजन मिश्रा ज्ञान, शास्त्र और संगीत के ठहरे हुए समुद्र थे।

धीर-गंभीर, शांत व्यक्तित्व के स्वामी पंडित राजन अपने जोड़ीदार पंडित साजन मिश्रा के लिए बड़े भाई के साथ-साथ एक गुरु, पिता तुल्य व्यक्तित्व एवं मार्गदर्शक थे। अपनी प्रस्तुतियों में अनेकों बार साजन मिश्रा मंच पर बैठे हुए अपने बड़े भाई पंडित राजन का गायन सुनते रहते तथा सीखते रहते तथा अपने आप को एक शिष्य की तरह देखते। सन् 1951 में जन्मे राजन मिश्रा को विरासत से ही बनारस घराने की विशाल संगीत परंपरा प्राप्त हुई। इस संगीतज्ञ जोड़ी ने वर्ष 1978 में श्रीलंका में अपना पहला संगीत कार्यक्रम प्रस्तुत किया। इसके बाद उन्होंने जर्मनी, फ्रांस, रूस, स्विटजरलैंड, ऑस्ट्रिया, अमेरिका, ब्रिटेन, नीदरलैंड, सिंगापुर, कतर, बांग्लादेश और दुनिया के कई महानगरों में अपनी शास्त्रीय गायकी से संगीत प्रेमियों को रिझाया। खयाल गायन के साथ-साथ पंडित राजन तराना, टप्पा, ठुमरी तथा भजन गायकी में भी बेमिसाल थे। आकाशवाणी, दूरदर्शन तथा टीवी के लगभग सभी कार्यक्रमों में इस गायक युगल का गायन होता रहता था। प्रत्येक प्रस्तुति के पश्चात श्रोताओं की इनसे भजनों की फरमाइश जरूर रहती। पंडित राजन मिश्रा को राग अहीर भैरव, बिलासखानी, तोड़ी, भैरव, भैरवी, गुजरी तोड़ी, वृंदावनी सारंग, पूरिया, मारवा, श्री, दरबारी कान्हड़ा, मालकौंस आदि अनेक रागों पर पूर्ण अधिकार था।

‘अब कृपा करो श्री राम दुख से हमें उबारो’, ‘जय-जय दुर्गे माता भवानी’, ‘साधो ऐसा ही गुरु भावे’, ‘चलो मन वृंदावन की ओर’, ‘अब तो शाम नाम लौ लागी’, ‘धन्य भाग सेवा का अवसर पाया’, ‘जगत में झूठी देखी प्रीत’ जैसे भजनों को संगीत जगत कभी नहीं भूल सकेगा। शास्त्रीय संगीत गायन में खयाल, टप्पा तथा भजन की अनेकों एल्बम संगीत जगत को दी। भारत में लगभग हर शहर में उन्होंने शास्त्रीय संगीत के श्रोताओं को अपनी प्रस्तुतियों से रिझाया। वे करोड़ों संगीत प्रेमियों के दिलों पर राज करते थे। पंडित राजन-साजन मिश्रा को सन् 1971 में प्रधानमंत्री द्वारा संस्कृति पुरस्कार, 1995 में राष्ट्रीय सम्मान, 1998 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, वर्ष 2007 में पदम विभूषण तथा 2011-12 में तानसेन पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। पंडित राजन मिश्रा का संगीत जगत से असमय विदा हो जाना शास्त्रीय संगीत प्रेमियों के लिए बहुत बड़ा आघात है। पंडित राजन मिश्रा जैसा उत्कृष्ट कलाकार तथा बेहतरीन इनसान मिलना आसान नहीं है। बहुत ही दु:ख की बात है कि दुनिया का यह विद्वान शास्त्रीय संगीत गायक, खूबसूरत चेहरा एवं बेहतरीन इनसान आज हमारे बीच में नहीं है। संगीत जगत में इस सूर्य का डूबना बहुत ही दुखद है। संगीत में उनका योगदान अतुलनीय है। पंडित राजन मिश्रा को कभी भुलाया नहीं जा सकता। वे सदियों तक संगीत प्रेमियों के ह्रदय में अमर रहेंगे।

प्रो. सुरेश शर्मा

शिक्षाविद


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