नौकरी में आने के बाद भी खेल अनिवार्य हो

By: Apr 28th, 2023 12:05 am

युवा सेवाएं एवं खेल विभाग पंजीकृत पात्र खिलाडिय़ों को उनका जायज हक दे…

वरिष्ठ राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिता में पदक विजेता बनने के लिए दस वर्षों से भी अधिक समय तक खिलाड़ी को एकाग्रता से कठिन परिश्रम करना पड़ता है। इसलिए वह पढ़ाई के साथ-साथ सामाजिक व आर्थिक मोर्चे पर भी पीछे रह जाता है। खिलाडिय़ों के त्याग व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेल के महत्व को देखते हुए काफी सोच विचार के बाद केन्द्र व विभिन्न राज्यों की सरकारों ने खिलाडिय़ों को अपने यहां विभिन्न विभागों में नौकरी के लिए आरक्षण देना शुरू किया है। हिमाचल प्रदेश में भी खेलों के लिए वह वातावरण ही नहीं बन पा रहा था जिसमें खिलाडिय़ों को सही मंच मिल सके। सरकारी नौकरियों में खेल आरक्षण के बगैर हिमाचल से खिलाडिय़ों को पलायन करना पड़ता था। इसलिए काफी लंबे संघर्ष के बाद हिमाचल प्रदेश में खेलों को बढ़ावा देने के लिए दो दशक पूर्व तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने सरकारी नौकरियों में तीन प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान करवा कर राज्य में खेलों को लोकप्रिय बनाने में बहुत बड़ा काम किया है। लालफीताशाही व विभागीय भाई-भतीजावाद के कारण आज जब खिलाड़ी को अपने खेल जीवन में नौकरी व आर्थिक सहायता की बहुत जरूरत होती है, उस समय उसे नौकरी नहीं मिल पा रही है। इस विषय पर सरकार को ध्यान देना होगा।

दो दशक पहले सरकारी नौकरियों में एक प्रतिशत आरक्षण तो था मगर उसे मंत्रिमंडल की मंजूरी से उसे ही दिया जाता था जिसकी पहुंच बहुत ऊपर तक होती थी। रोस्टर में पद का प्रावधान नहीं होने के कारण पद में भर्ती होते समय काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। सरकारी नौकरियों के आरक्षण में सभी तृतीय श्रेणी या उससे निचली श्रेणी के लिए रोस्टर में प्रावधान किया है तथा प्रथम व दूसरे दर्जे के पदों को ओलंपिक, राष्ट्रमंडल व एशियाड में पदक विजेताओं को मंत्रिमंडल की अनुमति से भरने का प्रावधान रखा है। इसलिए प्रथम श्रेणी के पद पर ओलंपियन रजत पदक विजेता शूटर विजय कुमार, एशियाड में स्वर्ण पदक विजेता कबड्डी टीम के सदस्य अजय ठाकुर व अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खिलाड़ी सुषमा वर्मा को हिमाचल प्रदेश पुलिस में मंत्रिमंडल की सहमति से सीधे डीएसपी भर्ती किया है। खेल विभाग में भी राष्ट्रीय खेलों के मुक्केबाजी में स्वर्ण पदक विजेता व अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाजी प्रशिक्षक अनुराग को भी मंत्रिमंडल की शिफारिश पर जिला युवा सेवाएं एवं खेल अधिकारी के प्रथम श्रेणी पद पर पदोन्नत किया है। पदमश्री अजय ठाकुर व ओलंपिक पदक विजेता शूटर विजय कुमार भी खेल आरक्षण से हिमाचल पुलिस में डीएसपी हैं। खिलाडिय़ों का वर्गीकरण करने के लिए ओलंपिक के पदक विजेताओं को कैटेगरी एक तथा एशियाड व राष्ट्रमंडल खेलों के पदकधारियों को कैटेगरी दो में रखा गया। वरिष्ठ राष्ट्रीय खेलों के पदक विजेताओं को कैटेगरी तीन में स्थान दिया गया। कैटेगरी चार में अखिल भारतीय अंतर विश्वविद्यालय, स्कूली व कनिष्ठ राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं के पदक विजेताओं के साथ-साथ भारत सरकार के खेल मंत्रालय द्वारा आयोजित पायका व अंडर 25 वर्ष आयु वर्ग की महिलाओं की राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के पदकधारियों को भी इसमें शामिल किया गया। कैटेगरी चार में ही वरिष्ठ राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में तीन बार प्रतिनिधित्व करने वाले खिलाडिय़ों को भी इसमें शामिल किया गया है।

कैटेगरी तीन तक के उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले खिलाडिय़ों को सरकारी नौकरियों में भर्ती के समय किसी भी प्रवेश परीक्षा या साक्षात्कार से छूट है। विभाग रोस्टर में आये पदों को सीधे खेल विभाग में बने खेल आरक्षण सैल को भेजता है। खेल विभाग का आरक्षण सैल की कमेटी खिलाडिय़ों की वरिष्ठता सूची तय करती है और फिर इस सूची को वाापिस उसके विभाग को भेजा जाता है। कैटेगरी चार के खिलाडिय़ों को कमीशन या विभाग द्वारा ली गई भर्ती परीक्षा में पास अंक प्राप्त करने वाले खिलाड़ी प्रतिभागियों की सूची को खेल विभाग के आरक्षण सैल को भेज कर खेल प्रदर्शन के आधार पर वरिष्ठता तय की जाती है। पिछले सालों में हुई पटवारी भर्ती में भी इस तरह की हेराफेरी हुई थी और कुल्लू व कांगड़ा जिलों के कुछ प्रतिभागियों को उच्च न्यायालय के माध्यम से अपनी सीट को प्राप्त करना पड़ा था। कुछ विभाग स्वयं ही जिला स्तर पर भर्ती प्रक्रिया पूरी करवाते हैं। जब मैदान व लिखित छंटनी परीक्षा के लिए भर्ती चयन बोर्ड बना है तो फिर राजस्व विभाग सहित कई अन्य विभाग क्यों इस भर्ती प्रक्रिया को स्वयं कराने में इच्छुक हैं? अगर विभाग स्वयं भर्ती प्रक्रिया संपन्न करवाते तो फिर खेल आरक्षित सीटों को खेल विभाग को क्यों नहीं भेजते। पुलिस व वन विभाग भी सिपाही व वन रक्षक की भर्ती में मैदान परीक्षा भी होने के कारण स्वयं कराते हैं मगर ये विभाग खेल आरक्षण की सीटों की मैरिट बनाने के लिए खेल विभाग से सहायता लेने के लिए उपयुक्त नाम मांगते हैं। राजस्व विभाग को चाहिए था कि वह खेल कोटे के सभी पास प्रतिभागियों की सूची मैरिट तय करने के लिए खेल विभाग को भेजते जैसा सभी विभाग करते हैं।

राजस्व विभाग लिखित परीक्षा में सब से अधिक अंक प्राप्त खिलाड़ी प्रतिभागी को सीट दे देता है, यह भी नहीं जानता कि वह खिलाड़ी कोटे की शर्तों को पूरा करता भी है कि नहीं। खेल आरक्षण के नियमानुसार किसी भी भर्ती के लिए न्यूनतम योग्यता प्राप्त करने के बाद अंतिम मैरिट में खेलों में उच्च प्रदर्शन करने वाले को पहले स्थान मिलेगा चाहे वह लिखित परीक्षा में सब से पीछे हो। यानी खेल कोटा उन्हें मिलेगा जिन की खेलों में योग्यता क्रम में सब से ऊपर होगी और यह तय खेल विभाग करेगा न कि कोई अन्य विभाग। लिपिक व पंचायत सचिव के हजारों पद पिछले कुछ सालों में भरे गये हैं। इन के खेल आरक्षित पदों पर भी काफी अनियमितता हुई है। वर्तमान सरकार हजारों पद शिक्षा व अन्य विभागों में अस्थायी रूप से भरने जा रही है। वहां भी रोस्टर के अनुसार खेल आरक्षण लागू हो। हिमाचल प्रदेश के कुछ टीम स्पर्धाओं के खिलाडिय़ों ने एशियन, राष्ट्रमण्डल व विश्व प्रतियोगिताओं में भारत का प्रतिनिधित्व किया है, मगर उन्हें आज तक खेल आरक्षण से महरूम रखा है। इन खिलाडिय़ों को राष्ट्रीय विजेता के समकक्ष मान कर खेल आरक्षण देना चाहिए। चतुर्थ श्रेणी के पदों को कब और कैसे भरा जाता है और यहां खेल आरक्षण किसे मिला इस का ब्यौरा भी नहीं है। युवा सेवाएं एवं खेल विभाग पंजीकृत पात्र खिलाडिय़ों को उन का जायज हक दे। हिमाचल प्रदेश के खिलाड़ी को उनके खिलाड़ी जीवन में ही सरकारी नौकरी में आरक्षण दे ताकि वह हिमाचल में रह कर अपना प्रशिक्षण प्राप्त कर राष्ट्रीय स्तर पर हिमाचल प्रदेश की टीम से कम से कम अगले पांच वर्षों तक अनिवार्य रूप से खेले।

भूपिंद्र सिंह

अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक्स प्रशिक्षक

ईमेल: bhupindersinghhmr@gmail.com


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