पुरस्कारों की गरिमा एवं विश्वसनीयता

सरकारी तथा गैर सरकारी क्षेत्र में प्रदान किए जाने वाले इन पुरस्कारों को प्राप्त करने वाले व्यक्तियों का चयन बिना किसी पूर्वाग्रह तथा बिना भेदभाव होना चाहिए…

कौन अपने अच्छे कार्यों के लिए प्रशंसा, सम्मान या शाबाशी नहीं पाना चाहता? यह सभी की आन्तरिक इच्छा तथा दबी हुई चाहत होती है कि उनके द्वारा किए गए उत्कृष्ट शैक्षिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, प्रशासनिक, राजनैतिक तथा मानवीय कार्यों के लिए मान-सम्मान, प्रतिष्ठा तथा पहचान मिले। यह समाज में व्यक्तियों को उत्कृष्ट एवं श्रेष्ठ कार्य के लिए प्रोत्साहित करने के लिए आवश्यक भी है। वैसे श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश देते हुए केवल कर्म करने तथा फल की इच्छा न करने का संदेश दिया है। मनुष्य की इच्छाएं, आकांक्षाएं और मनोकामनाएं उसे कर्म के पश्चात फल के लिए आकर्षित तथा प्रभावित करती हैं जो स्वाभाविक भी है। आज विभिन्न सरकारी तथा गैर सरकारी क्षेत्रों में श्रेष्ठ एवं कर्मठ कर्मचारियों एवं अधिकारियों को प्रेरित एवं प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न सम्मान, अलंकरण एवं अवार्ड निर्धारित किए गए हैं। विभिन्न मानकों के आधार पर कर्मचारियों का सम्मान के लिए चयन किया जाता है, लेकिन हर बार मानकों, चयन प्रक्रिया तथा चयनकर्ताओं पर उंगलियां उठती रही हैं। इसका कारण या तो श्रेष्ठता की स्वीकार्यता नहीं है या फिर चयन प्रक्रिया दोषी होती है। अनेकों बार तो विरोध के स्वर न्यायालय तक पहुंच चुके हैं। इसके अतिरिक्त समाज में अनेकों गैर सरकारी संस्थाएं भी विभिन्न क्षेत्रों में सराहनीय कार्य करने वालों को सम्मानित कर प्रोत्साहित करती हैं। आजकल बहुत सी संस्थाएं सम्मानित होने के लिए आनलाइन तथा ऑफलाइन आवेदन आमंत्रित करती हैं। कभी-कभी ये संस्थाएं ज्यूरी द्वारा चयनित व्यक्तियों को अग्रिम फीस, आने-जाने के माध्यम तथा होटल आदि में ठहरने आदि की व्यवस्था के बारे में जानकारी प्राप्त करती हैं। कभी-कभी यह भी एक व्यवसाय के रूप में प्रतीत होता है।

सम्मान चाहने वालों में भी प्रतिस्पर्धा तथा तीव्र महत्त्वाकांक्षा सी दिखाई देती है। इसी कारण योग्य व्यक्तियों की उपेक्षा भी होती है। अनेकों बार महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति अपना कार्य छोड़ कर केवल पुरस्कारों के आवेदन, प्रबन्धन तथा जुगाड़ पर केन्द्रित रहते हैं। इससे कार्यव्यवस्था प्रभावित होती है। पुरस्कारों की इस तीव्र महत्त्वाकांक्षा तथा प्रतिस्पर्धा के कारण अनेकों कर्मठ व्यक्तियों की उपेक्षा होती है जिससे ईमानदारी से कार्य करने वालों का मनोबल भी कम होता है। अनेकों बार अंगूर खट्टे होने के कारण भी इस प्रकार की चर्चाएं जन्म लेती हैं परन्तु यह भी आवश्यक है कि जहां समाज में श्रेष्ठ कार्य करने के लिए मान-सम्मान तथा अलंकरण आवश्यक है, वहीं पर पुरस्कारों की गरिमा भी बहुत आवश्यक है। कुछ पुरस्कार महत्त्वाकांक्षी लोग किसी भी कीमत पर पुरस्कार प्राप्त करना चाहते हैं तथा वे ‘पुरस्कार प्रबन्धन कला कौशल’ में बहुत ही दक्ष होते हैं। ऐसे लोग जहां अपनी तीव्र इच्छा एवं महत्त्वाकांक्षा को पूरा करने में पूरा श्रम करते हैं तथा पूरा दिमाग एवं शक्ति लगा कर एड़ी-चोटी का जोर लगा देते हैं, वहीं पर ये लोग योग्य एवं पात्र व्यक्तियों को नीचा दिखाकर उनका मनोबल गिराने में कोई कसर नहीं छोड़ते। पिछले माह सम्पन्न हुए हिमाचल प्रदेश विधानसभा के सत्र में शिक्षा की गुणवत्ता, शिक्षकों के स्थानांतरण तथा प्रतिवर्ष राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर प्रदान किए जाने वाले शिक्षक पुरस्कारों में जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों ने चिंता जाहिर की। कुछ विधानसभा सदस्यों ने शिक्षक पुरस्कारों पर अध्यापकों के चयन पर उंगली उठाते हुए बहुत ही गम्भीर सवाल उठाए हैं। विधानसभा चर्चा में जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों ने ऐसे लोगों को भी व्यवस्था द्वारा पुरस्कृत किए जाने की बात स्वीकार की जिनका पाठशाला, बच्चों तथा कक्षा शिक्षण से दूर-दूर तक संबंध नहीं था।

जनता के प्रतिनिधियों ने ऐसे लोगों द्वारा उनके अनुमोदन के लिए जी हुजूरी करने की बात विधानसभा पटल पर स्वीकारी है। इसी कारण इन पुरस्कारों में चयन पर अनेकों बार अध्यापक माननीय न्यायालयों में भी गुहार कर चुके हैं। कुछ मामलों में तो न्यायालय ने पुरस्कारों को रद्द कर वापिस करने के भी निर्देश दिए हैं। क्या गरिमा रह गई है व्यक्तियों एवं पुरस्कारों की? किसी को अलंकृत एवं सम्मानित करने वाले पुरस्कार यदि स्वयं ही विवादित हो जाएं तो ऐसे पुरस्कारों से दूरी ही भली। सरकारों, विभागों तथा गैर सरकारी संस्थाओं को विवादों से बचने का पूर्ण प्रयास करना चाहिए तथा पूर्वनिश्चित मानकों के अनुसार पुरस्कार विजेताओं का चयन करना चाहिए। विभाग या संस्था में दिए गए उनके योगदान को ईमानदारी से वरीयता दी जानी चाहिए। वैसे भी योग्य, पात्र, कर्मठ, ईमानदार, उदाहरणीय व्यक्तियों के चयन से पुरस्कारों की गरिमा तथा विश्वसनीयता बढ़ती है। अयोग्य व्यक्तियों का सम्मान होने से दो नुकसान हैं, एक तो योग्य व्यक्ति निरुत्साहित होते हैं तथा अयोग्य सिर पर बैठ कर अपनी सामाजिक पहचान एवं कीर्ति का नाजायज फायदा उठाते हैं। वर्तमान में विभिन्न विभागों में प्रतिभाओं का आकलन, चयन करने तथा तथा पुरस्कृत करने वाली तीसरी प्रशासनिक आंख भी मोतियाबिंद का शिकार हो चुकी है। अराजपत्रित संस्थाओं में भी सम्मानित होने के लिए व्यावसायिक सम्बन्ध तथा व्यक्तिगत भाईचारा काम कर जाता है। इससे परस्पर सम्मानित तथा एक-दूसरे के यहां प्रतिष्ठित होने की संस्कृति भी प्रचलित हुई है।

सम्मान समारोह निश्चित रूप से आयोजित होने चाहिए तथा विभिन्न क्षेत्रों में कत्र्तव्यनिष्ठा तथा ईमानदारी से कार्य करने वालों का मान-सम्मान होना चाहिए। इससे समाज में उत्कृष्ट कार्य करने वालों का मनोबल बढ़ता है। सम्मान से नवाजे जाने वाली शख्सियतों से भी आग्रह है कि सच में मानवता की सेवा करें तथा परमात्मा को हाजिर-नाजिर रख कर सम्मान का हकदार बनें, अन्यथा झूठे सम्मान से आत्मग्लानि होती है। बिना फल की इच्छा से कर्म कर ईश्वर निमित्त समर्पित करते रहें। सरकारी तथा गैर सरकारी क्षेत्र में प्रदान किए जाने वाले इन पुरस्कारों को प्राप्त करने वाले व्यक्तियों का चयन बिना किसी पूर्वाग्रह तथा बिना भेदभाव एवं पक्षपात से होना चाहिए। इससे पुरस्कार, संस्था, चयन समितियों तथा पुरस्कृत व्यक्तियों की गरिमा तथा विश्वसनीयता बनी रहती है, अन्यथा इससे समाज में श्रेष्ठ कार्य करने वालों का मनोबल, आत्मविश्वास तथा कार्यसंस्कृति भी प्रभावित होती है। सम्मान होना चाहिए व्यक्ति की प्रतिभा, श्रेष्ठता, योगदान तथा महान कार्यों का, महत्त्वाकांक्षा, जुगाड़ तथा सिफारिश का नहीं होना चाहिए।

प्रो. सुरेश शर्मा

शिक्षाविद


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App