पाकिस्तान को दर्द का एहसास कराना होगा

सेना के वाहन पर यह आतंकी हमला ऐसे वक्त में हुआ जब कई सियासतदान ईद के जश्न में इफ्तार पार्टियों में मशगूल थे। देश आईपीएल के खुमार में डूबा है। इसलिए सेना के पांच जवानों का बलिदान न्यूज चैनलों की सुर्खियां नहीं बना। सशस्त्र सेनाएं किसी एक राज्य या सियासी दल की नहीं होती हैं। मुल्क की सालमियत व मोहिब्बे वतन की प्रतीक सेना भारत की शान है…

मजहब के नाम पर वजूद में आया पाकिस्तान आज तक ऐसा कोई मुकाम हासिल नहीं कर सका जिसमें वो भारत का मुकाबला कर सके। चार युद्धों में शर्मनाक शिकस्त का दंश झेल कर आलमी सतह पर बेआबरू हो चुका पाक अपनी कायराना हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। गत् 20 अप्रैल 2023 को पुंछ जिले के संगयोट क्षेत्र में आंतकियों ने सेना के वाहन पर हमले को अंजाम दिया था। उस हमले में 49 राष्ट्रीय राइफल्स के पांच जवान शहीद हो गए। सेना के वाहन पर यह आतंकी हमला ऐसे वक्त में हुआ जब कई सियासतदान ईद के जश्न में इफ्तार पार्टियों में मशगूल थे। देश आईपीएल के खुमार में डूबा है। इसलिए सेना के पांच जवानों का बलिदान न्यूज चैनलों की सुर्खियां नहीं बना। सशस्त्र सेनाएं किसी एक राज्य या सियासी दल की नहीं होती हैं। मुल्क की सालमियत व मोहिब्बे वतन की प्रतीक सेना भारत की शान है। देशरक्षा के लिए शहादत देशभक्ति की पराकाष्ठा है तथा शौर्य पराक्रम का सबसे बड़ा सबूत। पुंछ हमले में पंजाब के शहीद सिपाही कुलवंत सिंह के पिता बलवंत सिंह ने 1999 के कारगिल युद्ध में इसी कश्मीर के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था। दरअसल भारत के खिलाफ जेहाद पाकिस्तान की विचारधारा बन चुका है। 22 अक्तुबर 1947 को कश्मीर पर किए गए हमले को पाक सिपहसालारों ने जेहाद का ही नाम दिया था। 1947 के उस हमले में घुसपैठिया युद्धकला के मास्टरमांइड मेजर अकबर खान ने ‘आपरेशन गुलमर्ग’ नामक सैन्य मिशन की कयादत करके श्रीनगर का फातिम बनने का जहालत भरा ख्वाब देखा था मगर भारतीय सेना के पलटवार के बाद अकबर खान को युद्धभूमि से भाग कर जान बचानी पड़ी थी। कश्मीर के महाज पर जिल्लत भरी शिकस्त व नाकामी के बदनुमां दाग से अफसुर्दा होकर अकबर खान ने 1950 में रावलपिंडी में पाक सैन्य बगावत को अंजाम दिया था।

अपनी किताब ‘रेडर्स इन कश्मीर’ में अकबर खान ने खुद इसका जिक्र किया था। सन् 1965 में जनरल अयूब खान ने ‘आपरेशन जिब्राल्टर’ के तहत कश्मीर को हथियाने का दुस्साहस किया था। पांच सितंबर 1965 को ‘तीन डोगरा’ बटालियन के 17 जवानों ने अपना बलिदान देकर इसी पुंछ के मोर्चे पर पाक फौज को धूल चटाकर कश्मीर को बचाया था। ‘तीन डोगरा’ के हिमाचली शूरवीर कैप्टन प्रेम सिंह ‘वीर चक्र’ तथा सिपाही सुखराम ‘वीर चक्र’ (मरणोपरांत) ने उस आपरेशन जिब्राल्टर के खिलाफ अहम किरदार अदा किया था। 1971 के युद्ध में इसी पुंछ के मोर्चे पर हिमाचली सूरमा कर्नल कश्मीरी लाल रतन ‘महांवीर चक्र’ तथा कर्नल पंजाब सिंह ‘वीर चक्र’ ने सिख बटालियन का नेतृत्व करके पाक फौज की पेशकदमी को ध्वस्त करके पुंछ को महफूज रखने में निर्णायक भूमिका निभाई थी। जनरल याहिया खान के दौरे हुकूमत में दुनिया की चश्म ए पलक ने वो नजारा भी देखा जब बांग्लादेश के रामना रेसकोर्स गार्डन में भारतीय सेना ने 16 दिसंबर 1971 को पाक फौज को पाकिस्तान की गैरत को नीलाम करने पर मजबूर कर दिया था।

कश्मीर पर तमाम नाकामियों तथा तीन युद्धों में पाक सेना की करारी शिकस्त का हिस्सा रहे पाकिस्तान की सैन्य हुकूमत का सफ्फाक चेहरा जनरल ‘जिया उल हक’ मार्च 1976 को पाक सेना के आठवें सिपहसालार बने थे। जनरल जिया भारतीय सेना के आक्रामक तेवरों को भलिभांति जानते थे कि प्रत्यक्ष युद्ध में पाक फौज भारतीय सेना का सामना नहीं कर सकती। अत: 1980 के दशक में जिया उल हक ने भारत के विरूद्ध ‘ऑपरेशन टोपाक’ नाम से ‘वार विद लो इंटेसिटी’ का मंसूबा तैयार किया था। जनरल जिया को ऑपरेशन टोपाक का मशवरा देने वाले आईएसआई के तत्कालीन सरवराह व अफगान जेहाद के अहम किरदार जनरल अख्तर अब्दुल रहमान थे। जिला उल हक ने ही अफगानिस्तान के ‘कोल्ड वार’ में सोवियत संघ की सेनाओं के खिलाफ पाक के पेशावर शहर को अमरीका के हवाले कर दिया था। भावार्थ यह है कि आंतक व पाकिस्तान का चोली दामन का साथ रहा है। पाक हुक्मरानों की आंतक नीति का खामियाजा कश्मीर के साथ पाकिस्तान भी भुगत रहा है। जिया उल हक झूठी हसरत पाल बैठे थे कि ऑपरेशन टोपाक के तहत कश्मीर पाक का हिस्सा बन जाएगा मगर 13 अप्रैल 1984 को भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन मेघदूत’ को अंजाम देकर सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जा करके जिया उल हक के अरमानों को ध्वस्त कर दिया था। सियाचिन में पाक फौज की शिकस्त से मायूस होकर पाकिस्तान की मारूफ सियासी लीडर बेगम बेनजीर भुट्टो ने जनरल जिया उल हक को हिजाब पहनने का मशवरा दे डाला था।

अपनी हैसियत व औकात से बड़े ख्वाब देखना पाक जरनैलों की खासियत रहा है। पाकिस्तान की जम्हुरियत फौजी बूटों से लहुलुहान होकर कठपुतली बन चुकी है। पाकिस्तान के सियायतदान हर वक्त तख्ता पलट के खौफ में जीने को मजबूर रहते हैं मगर फिर भी मई के पहले हफ्ते में गोवा में आयोजित होने वाली शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में पाकिस्तान के विदेश मंत्री तशरीफ ला रहे हैं। बुनियादी सवाल यह है कि क्या पाक विदेश मंत्री के समक्ष कारगिल युद्ध में पाक सेना के किरदार को बेनकाब करने वाले कैप्टन सौरभ कालिया व उनके पांच साथियों की हत्या का मुद्दा उठेगा। पुंछ में बलिदान हुए पांच जवानों की शहादत पर कोई जवाब तलब किया जाएगा। सरहद के पार भारत को दहलाने के मकसद से आंतकी कैंप चल रहे हैं। एलओसी पर आंतकी घुसपैठ जारी है। अंतरराष्ट्रीय सीमा पर ड्रोन के जरिए नशा व हथियारों की अवैध तस्करी हो रही है। अत: पाक विदेश मंत्री का खैर मकदम करने के बजाय भारत को अपने रुख पर कायम रहकर सख्त लहजे में सवाल दागने होंगे। क्रिकेट डिप्लोमेसी भी बंद होनी चाहिए। मुजाकरात, खेल तथा आंतक एक साथ नहीं चल सकते। बहरहाल पाक फौज की कश्मीर को हथियाने की मुद्दत की आरजू को खाक में मिलाकर भारतीय सैन्य पराक्रम शूरवीरता की कसौटी पर सर्वश्रेष्ठ साबित हुआ है। भारतीय सेना दुश्मन की सरजमीं में घुसकर दहशतगर्दों को नेस्तानाबूद करने की पूरी सलाहियत रखती है। पुंछ में जो हिमाकत हुई है पाकिस्तान को उसके दर्द का एहसास उसी लहजे में कराना होगा। यही हमारे बलिदानी जवानों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

प्रताप सिंह पटियाल

स्वतंत्र लेखक


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