सियासत के दामन पर गुनाहों के दाग

जब देश की सीमाएं चीन व पाकिस्तान जैसे आतंक की हिमायत करने वाले मुल्कों से सटी हों तो राष्ट्र को सशक्त नेतृत्व क्षमता वाले सियासी रहनुमाओं की जरूरत है, अपराधियों के जमींदोज होने पर विलाप करने वालों की नहीं…

देश के हजारों इंकलाबी चेहरों की लंबी जद्दोजहद के बाद बर्तानिया हुकूमत से हिंदोस्तान को आजादी नसीब हुई थी। आजादी के बाद लोकतांत्रिक व्यवस्था की बहाली के लिए देश के राजाओं ने अपनी सैंकड़ों रियासतों का भारत में स्वैच्छिक विलय करके राष्ट्रवाद की नजीर पेश की थी। ज्यादातर रियासतों पर राजपूत वर्चस्व था। राजाओं के त्याग के बाद ही मुल्क का निजाम लोकतांत्रिक हुआ था, मगर देश का तंत्र पूरे तौर पर लोक को आज भी समर्पित नहीं हो रहा है। लोकतंत्र में सियासतदान अपने जीवन की शुरुआत जनसेवक के रूप में करते हैं, मगर सत्ता की दहलीज पर पहुंचने के बाद सियासी हुक्मरान स्वयं को जम्हूरियत का गालिब मान बैठते हैं। देश के कई सियासतदानों के नाम के साथ माफिया, डॉन व बाहुबली जैसे शब्द जुडऩे से सियासत कुख्यात हो चुकी है। कई सियासतदानों के कैरियर का आगाज गुनाहों की गलियों से हो रहा है। 20 अप्रैल 2023 को पुंछ जिले में राष्ट्रीय राइफल्स के वाहन पर आतंकी हमले में सेना के पांच जवान शहीद हो गए। गत 26 अप्रैल को छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में पुलिस फोर्स के ग्यारह जवान नक्सली बर्बरता का शिकार हो गए, लेकिन हाल ही में उत्तर प्रदेश में माफियाओं की मौत तमाम न्यूज चैनलों पर बहस का मरकज बनी रही। देश की रक्षा में मुस्तैद जवानों के बलिदान की जगह माफियाओं की मौत को ही तवज्जो दी गई। उन माफियाओं की फुरकत में देश की सियासत से लेकर बैरूनी मुल्कों तक मातम मनाया जा रहा है। यह स्पष्ट है कि सियासी पनाह के बिना किसी माफिया या बाहुबली की पैदाईश नहीं होती। ऐसा कोई संगीन जुर्म नहीं जो सियासतदानों के दामन पर न लगा हो।

विडंबना है कि रंगदारी, अपहरण व कत्ल जैसी संगीन वारदातों में मुल्लविश जिन माफियाओं पर अदालतें फैसला सुनाने से बचती हों, पुलिस व प्रशासन कानूनी कार्रवाई करने से खौफजदा रहते हो, खुद को आईन से ऊपर समझने वाले जिन माफियाओं के अपराध को रोकने में सलाखें भी लाचार हैं, उन माफियाओं के रुखसत होने पर सियासत में भूचाल आ जाता है। सियासी वर्चस्व की जंग को अदावत में तब्दील करने वाले माफियाओं की मौत पर कई सियासतदान घडिय़ाली अश्क बहाकर कानून की दुहाई दे रहे हैं। मौजूदा सियासत की यही खुसुसियत लोकतांत्रिक प्रणाली के भविष्य के लिए अशुभ संकेत साबित हो रही है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में सुरक्षा एजेंसियों से लेकर देश के हर इदारे पर हुक्मरानी सियासी रहनुमाओं की होती है। लोगों की काफी उम्मीदें चुने हुए प्रतिनिधियों पर टिकी होती हैं। मगर देश के करोड़ों लोगों की नुमांईदगी करने वाली लोकतंत्र की संस्थाओं में दागी व माफियाओं का संगम यदि जम्हूरियत की जीनत बन जाए तो लोगों का लोकतंत्र से भरोसा उठना तय है। हालात इस कदर बेकाबू हो रहे हैं कि समाज में शराफत भरे लोग माफियाओं से ज्यादा कानून व सुरक्षा एजेंसियों से डर रहे हैं। आम लोगों के हकूक की आवाज लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ सहाफत बुलंद कर रहा है। मजलूमों की आवाज समाज का दर्पण कहे जाने वाले सहाफी बन रहे हैं। देश के न्यायालय न्यायाधीशों की कमी से जूझ रहे हैं।

सुरक्षा एजेंसियों से लेकर देश के लगभग हर विभाग में अहलकारों के हजारों पद रिक्त पड़े हैं। उच्च शिक्षित युवावर्ग बेरोजगारी के बोहरान में फंसकर गर्दिश-ए-तकदीर को कोस रहे हैं। बेरोजगारी की शिद्दत युवावेग के दिशाहीन होने का कारण बन रही है। मौसम के बेरुखे मिजाज से कृषि अर्थतंत्र की बुनियाद किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें बढ़ रही हैं। मगर देश में सियासी जमातों की तादाद व सियासतदानों की सुख सुविधाओं में कोई कमी नहीं है। जिन सियासी रहनुमाओं की नीतियों पर देश के भविष्य की तस्वीर तय होगी, वे अपने सियासी साम्राज्य के मुस्तकबिल को बचाने वाली नीतियों में मशगूल हैं। अतीतकाल से अध्यात्म, राष्ट्रभक्ति व वसुधैव कुटुंबकम जैसी महान संस्कृति का वारिस रहा ‘विश्व गुरु भारत’ यदि वर्तमान में सांप्रदायिक माहौल की दहलीज पर खड़ा है तो इसका श्रेय भी देश की सियासत व मजहब के रहनुमाओं को ही जाता है। कई सियासतदान संविधान का हवाला देकर अपनी तकरीरों में जहर उगल कर देश के आईन को ही आईना दिखाने में गुरेज नहीं करते। सियासी वजूद को बचाने के लिए जाति मजहब व मुतनाजा बयानबाजी का सहारा लिया जाता है। जनप्रतिनिधियों का यह आचरण सियासत में अस्थिरता का तनाजुर पैदा कर रहा है। अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए सियासी कयादत यदि अपराधिक पृष्ठभूमि से जुड़े लोगों की मेजबानी इसी तरह करती रही तो लोकतांत्रिक ढांचे में अराजकता का मंजर पैदा होना स्वाभाविक है। बारूद उगलती सियासी तकरीरों से आहत होकर भाषा की शालीनता, तहजीब, मर्यादा, नैतिकता, गरिमा व अदब जैसे शब्द अपना वजूद बचाने को मजबूर हो चुके हैं। हिकारत भरी भाषणबाजी से लोगों के जज्बात भी महफूज नहीं हैं।

देश की सर्वोच्च अदालत ने सख्त रुख अख्तियार करके सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को हेट स्पीच देने वालों पर बिना किसी शिकायत के मामला दर्ज करने का फरमान जारी किया है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में विश्व की सबसे बड़ी आबादी की सदारत करने वाली लोकतांत्रिक व्यवस्था में बढ़ते अपराधिकरण का जिम्मेवार कौन है। सियासतदानों को अपने वोट की ताकत से जम्हूरियत का हाकिम बनाने वाली सर्वोच्च ताकत मतदाताओं को इस विषय पर तफसील से गौर फरमानी होगी। राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण से सियासी रहनुमाओं में राष्ट्रवाद की भावना का अभाव साफ झलकता है। देश को उन्नति के शिखर पर पहुंचाने के लिए राष्ट्रीयता की भावना के साथ आदर्श शासन व्यवस्था जरूरी है। बहरहाल जब देश की सीमाएं चीन व पाकिस्तान जैसे आतंक की हिमायत करने वाले मुल्कों से सटी हों तो राष्ट्र को राष्ट्रहित के मुद्दों पर सशक्त नेतृत्व क्षमता वाले सियासी रहनुमाओं की जरूरत है, सभ्य समाज से लेकर सुरक्षा एजेंसियों व न्यायिक व्यवस्था के लिए चुनौती बन रहे अपराधियों के जमींदोज होने पर विलाप करने वालों की नहीं। लोकतंत्र का वजूद बचाने के लिए लाजिमी है कि सियासत के रुखसार पर लगे गुनाहों के दाग रुखसत होने चाहिए।

प्रताप सिंह पटियाल

स्वतंत्र लेखक


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