सुपुर्दे ढाका की तारीख दोहराने का वक्त

चार युद्धों में अपनी मारक क्षमता से पाक फौज को मफलूज करने वाली भारतीय सेना पाक हुक्मरानों की हनक जमींदोज करके सुपुर्दे ढाका का इतिहास दोहराने की पूरी सलाहियत रखती है…

वीरभूमि हिमाचल के सैन्य दस्तावेज का हर पन्ना पहाड़ के रणबांकुरों की दास्तान-ए-शुजात से भरा है। देश रक्षा के मोर्चे पर पहाड़ का शौर्य हमेशा सर्वश्रेष्ठ साबित हुआ है। लेकिन जम्मू-कश्मीर राज्य को लेकर देश के सियासी हुक्मरानों की ढुलमुल नीतियों का खामियाजा देश के सैनिक व सैन्य परिवार 75 वर्षों से भुगत रहे हैं। 4 मई 2023 को पाक विदेश मंत्री ने ‘गोवा शंघाई सहयोग’ के इजलास में दहशतगर्द मुल्क का तर्जुमान बनकर शिरकत की थी। दौरे से पूर्व 20 अप्रैल को पुंछ के ‘भाटा दूरियां’ इलाके में आतंकी हमले में पांच जवान शहीद हो गए। 20 अप्रैल 2023 को दंत्तेवाड़ा में ‘डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गाड्र्स’ के ग्यारह जवान नक्सली हमले में जांवाहक हो गए। ‘एससीओ’ मीटिंग के दौरान ही 5 मई 2023 को राजौरी सेक्टर में आंतकी मुठभेड़ में भारतीय सेना की ‘स्पेशल फोर्स’ के पांच कमांडो वीरगति को प्राप्त हो गए, जिनमें दो सपूतों का बलिदान हिमाचल के हिस्से आया है।

कमांडो प्रमोद नेगी का संबंध सिरमौर तथा कमांडो अरविंद कुमार का ताल्लुक कांगड़ा जिला से था। दुनिया की सर्वोत्तम सेनाओं में शुमार भारतीय स्पेशल फोर्सेज के जवानों का आतंकी हमलों में शहीद होना दुर्भाग्यपूर्ण है। देश रक्षा के लिए प्रतिबद्ध सैनिक फिदा-ए-वतन हो रहे है, मगर सैन्य शौर्य के सबूत मांगने वाले व धारा 370 के वियोग में अश्क बहाने वालों से लेकर मुल्क के रहबर सैनिकों की शहादत पर खामोश हैं। उत्तर प्रदेश में एक तसादुम में हलाक हुए माफियाओं की फुरकत में अब भी मातम मनाया जा रहा है। देश की सियासत अपने चुनावी समीकरण को साधने में मशगूल है। कश्मीर घाटी में आतंकी वारदातें हों, नक्सली हमले या अन्य राज्यों में सांप्रदायिक हिंसा तशद्दुद के भयानक दौर में देश की सुरक्षा व्यवस्था को दुरुस्त रखने के लिए हुक्मरानों की नजर-ए-करम सुरक्षा बलों पर ही होती है। जम्मू-कश्मीर के लिए हिमाचल की सैन्य कुर्बानियों का इतिहास रियासती दौर से ही रहा है। जम्मू-कश्मीर रियासत की सरहदों को विस्तार देने का श्रेय जनरल जोरावर सिंह कहलूरिया को जाता है। मेजर जनरल ‘जनक सिंह कटोच’ व कर्नल ‘रघवीर सिंह पठानियां’ जैसे हिमाचल के सैन्य अधिकारियों ने पहली जंगे अजीम व कई सैन्य मिशनों में जम्मू-कश्मीर रियासत की सेना का नेतृत्व किया था।

जनक सिंह कटोच व न्यायमूर्ति मेहर चंद महाजन ने जम्मू-कश्मीर रियासत की सियासत में भी अहम भूमिका निभाई थी। कश्मीर पर 1947 में पाक हमले के खिलाफ सिरमौर के ‘कर्नल शेरजंग’ ने ‘कश्मीर नेशनल मिलिशिया’ फौज का हिस्सा बनकर अहम किरदार अदा किया था। फरवरी 1948 में ‘कर्नल शेरजंग थापा’ ‘महावीर चक्र’ ने पीओके स्थित ‘स्कार्दू किले’ पर कब्जा करके अदम्य साहस का परिचय दिया था। 1947 के पाक हमले में कश्मीर को महफूज रखने के लिए हिमाचल के 43 सैनिकों ने बलिदान दिया था। मेजर ‘सोमनाथ शर्मा’ व कै. ‘बिक्रम बत्रा’ दोनों ‘परमवीर चक्र’ विजेताओं की जांबाजी की दास्तान कश्मीर के लिए ही मिसाल बनी थी। यह भारतीय सैन्य पराक्रम का ही जलवा था कि ‘सुपुर्दे ढाका’ की शिकस्त में पाक सैन्य तारीख को शर्मिंदा करने वाले सिपहसालारों याहिया खान व आमीर अब्दुल्ला नियाजी को पाकिस्तान ने दम-ए-इताब में आकर सेवानिवृत्त करके गुमनाम जिंदगी जीने पर मजबूर कर दिया था। दो जुलाई 1972 को हिमाचल की राजधानी शिमला उस तारीख का चश्मदीद बना जब 1971 की भारत-पाक जंग के 93 हजार पाक युद्धबंदियों को छुड़ाने के लिए पाक सदर व बिलावल भट्टो के नाना जुल्फिकार अली भुट्टो अमन का पैरोकार बनकर शिमला में तशरीफ लाए थे।

शिमला समझौते के बाद जुल्फिकार अली भुट्टो ने पाकिस्तान जाकर कहा था कि घास की रोटी खाकर भी भारत से एक हजार साल तक लड़ेंगे। भुट्टो की वो तहरीर सच साबित हो रही है। पाकिस्तान की आवाम घास की रोटी खाने को मजबूर है। कई मुल्कों से खैरात मांगकर पाक हुक्मरान ‘आईएमएफ’ की कदमबोसी भी कर रहे हैं, मगर आतंक को पनाह देने से पाक तौबा नहीं कर रहा। अत: बिलावल को भारत के प्रति हिकारत भरा नजरिया विरासत में मिला है। 1990 के दशक में अपनी सियासी जमीन तलाशने के लिए पाक वजीरे आजम मोहतरमा बेनजीर भट्टो की कश्मीर को लेकर जहर उगलती तकरीरें घाटी में आतंक का नुक्ता-ए-आगाज साबित हुईं। पाक पोषित आतंक को घाटी में वहां की सियासत व स्थानीय आवाम की हिमायत हासिल होने से ‘कश्यप ऋषि’ की तपोस्थली कश्मीर आतंक में तब्दील हो गया। आतंक के खौफनाक मंजर से कश्मीर के मूल निवासी अपने ही राज्य में शरणार्थी होकर फरियादी बन गए। देश में कई सियासी रहनुमां व मानवाधिकारों की पैरवी करने वाले दहशतगर्दों के हलाक होने पर अश्क जरूर बहाते हैं। मगर घाटी में एक मुद्दत से विस्थापित हुए कश्मीरी पंडितों का मुद्दा राष्ट्रीय व आलमी सतह पर उस शिद्दत से नहीं उठा कि आतंक के कारण पंडितों का विस्थापन दुनिया की तवज्जो का मरकज बन सके।

कश्मीर में आतंकी हमले ‘अफस्पा’ हटाने की वकालत करने वालों के लिए आईना हैं। अब कश्मीर में होने वाला जी-20 देशों का इजलास पाक हुक्मरानों को खटक रहा है। भावार्थ यह है कि हमारे बहादुर सैनिकों ने पाक फौज की हर पेशकदमी तथा आतंकियों के तमाम मंसूबों को ध्वस्त करके आतंक के मरकज पाकिस्तान को आलमी सतह पर भी शर्मसार किया है। मगर मुल्क की सियासत ने देश रक्षा के महाज पर ऐसा कोई साहस नहीं दिखाया जिस पर राष्ट्र गर्व कर सके। देश पर शासन करने की हसरत लेकर विपक्ष को एकजुट करने में जुटे सियासी रहनुमा भी आतंक के मुद्दे पर खामोश हैं। बहरहाल वतन-ए-अजीज की हशमत के लिए कुर्बान होकर तिरंगे में लिपट कर आने वाले सैनिकों के परिवारों के दर्द भरे जज्बातों को समझने की जरूरत है। चार युद्धों में अपनी मारक क्षमता से पाक फौज को मफलूज करने वाली भारतीय सेना पाक हुक्मरानों की हनक जमींदोज करके सुपुर्दे ढाका का इतिहास दोहराने की पूरी सलाहियत रखती है, बशर्ते देश की सियासत इच्छाशक्ति दिखाए। आतंक की पनाहगाह पर सैन्य कार्रवाई ही एकमात्र विकल्प है। सैनिकों के बलिदान को देश नमन करता है।

प्रताप सिंह पटियाल

स्वतंत्र लेखक


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