चिंतनीय है पर्यावरणीय परिवर्तन

प्राकृतिक संसाधनों का संतुलित उपयोग एवं उपभोग होने के साथ उसका संरक्षण करना बहुत ही आवश्यक है, अन्यथा आने वाली पीढ़ी हमें इस प्राकृतिक अत्याचार के लिए कोसेगी…

जब भी जीवन में कुछ अप्राकृतिक घटित होने लगता है तो मानवीय चिंताएं बढऩे लगती हैं। मनुष्य की वृति है कि जब तक सब कुछ ठीक चल रहा होता है तब तक वह परवाह नहीं करता, परन्तु जब प्रकृति में असामान्य परिवर्तन होता है तो वह घबराने लगता है, जबकि डरने या घबराने के स्थान पर इस विषय पर गम्भीर चिन्तन एवं गहन विचार की आवश्यकता है। हम सभी ने कोरोना काल की त्रासदी देखी है। मानवीय इतिहास में किसी महामारी से जान-माल की इतनी हानि कभी नहीं हुई, लेकिन अनेकों प्राकृतिक चेतावनियों के बावजूद मनुष्य की स्वार्थी वृत्ति भारी ही रही जिसका परिणाम उसे भुगतना पड़ा है। हम सभी पर्यावरण परिवेश में जीते हैं। यह प्रकृति हमें जीवन यापन के सभी प्राकृतिक संसाधन प्रदान करती है, परन्तु मनुष्य की स्वार्थी एवं कृतज्ञताहीन भावना ने उसे हमेशा ही चोट पहुंचाई है। परिणामस्वरूप मनुष्य को अति वर्षा, सूखा, बाढ़, बर्फबारी तथा भूकम्प के रूप में सजा मिलती रही है। पर्यावरण में मनुष्य, जीव जंतुओं, पशु-पक्षियों के साथ सभी निर्जीव वस्तुओं का सन्तुलन होना बहुत आवश्यक है। प्राकृतिक संरचना में पंच भूतों की महत्वपूर्ण भूमिका है।

पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश के बिना यह सृष्टि संभव नहीं है। इन सभी के बिना जीवन संभव नहीं है। इसलिए इनका संरक्षण अति महत्वपूर्ण है। दुर्भाग्यवश हम जिस सृष्टि का उपयोग कर रहे हैं उसी का ही अति दुरुपयोग कर रहे हैं जैसे कि हमारे बाद प्रकृति के इन संसाधनों की किसी को आवश्यकता नहीं पड़ेगी। इस प्राकृतिक संपदा का संतुलित रूप से उपयोग करना आवश्यक है। मनुष्य अपनी महत्वाकांक्षा के लिए भूमि पर दिन-रात अंधाधुंध भवन निर्माण, जल बांध, पहाड़ों का सीना छलनी कर बड़ी-बड़ी टनल बना रहा है। प्रकृति द्वारा प्रदत पेड़-पौधों का कटान कर सम्पूर्ण वनस्पति का विध्वंस कर रहा है। मिट्टी में हजारों प्रकार की खाद तथा रासायनों का प्रयोग भूमि की उर्वरकता को समाप्त कर रहा है। मनुष्य जल का प्रयोग भी बहुत ही बेदर्दी से कर रहा है। पुराने जल स्रोत समाप्त हो रहे हैं। आने वाले बीस-पच्चीस वर्षों के बाद पूरी दुनिया में पीने के पानी की विकराल समस्या हमारे सामने खड़ी है। अनेकों प्रकार की गंदगी पानी तथा कारखानों के रासायनिक पदार्थ पानी में प्रवाहित कर दिए जाते हैं जिससे पानी के भीतर के जीव-जन्तु मर जाते हैं। भविष्य में जल प्रदूषण की भयंकर समस्या तथा पीने के पानी की गम्भीर चुनौती आने वाली पीढ़ी के समक्ष होगी। अनेकों वैज्ञानिक प्रयोगों से पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है। इस तापमान के बढऩे से पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ चुका है। इसी कारण मई और जून महीने में बर्फबारी, तूफान तथा वर्षा से सर्दी जैसा मौसम हम सभी ने अनुभव किया है। पर्यावरणीय असंतुलन से बरसात में सूखा, दिसम्बर तथा जनवरी में गर्मी जैसा तापमान देखा जा रहा है।

वायु की चाल में भी असन्तुलन तथा दांव न बनने के कारण समय पर मानसून समय पर नहीं पहुंच रही है। धुंध, धूल, धुआं, धमाकों से वायु प्रदूषित हो चुकी है। समोक तथा फॉग से ‘समोग’ जैसे शब्दों का निर्माण हो चुका है। यह सब इस आकाश के परिवेश में घटित होने से हमारा अंतरिक्ष बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है। इसके अतिरिक्त ध्वनि प्रदूषण तथा वैचारिक प्रदूषण ने भी हमारी प्रकृति को हानि ही पंहुचाई है। हमारी भारतीय संस्कृति में जीवन के इन पंचभूतों की पूजा की जाती है तथा पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु तथा आकाश के लिए शान्ति पाठ किया जाता है। धार्मिक अनुष्ठानों में प्रकृति के संरक्षण की प्रतिज्ञा की जाती है, लेकिन मनुष्य की स्वार्थी सोच ने इस प्रकृति को लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ी है, जैसे कि हमारे बाद दुनिया समाप्त हो जाएगी। प्रकृति ईश्वर द्वारा मनुष्य को प्रदत एक सुंदर कृति है जो सभी को पोषित करती है। इस पर किसी का कोई स्वामित्व नहीं है। यह किसी की बपौती नहीं है। इस पर वर्षों तक जन्म लेने वाली मानवीय पीढिय़ों के साथ पशु-पक्षियों, जीव-जंतुओं का अधिकार है। पर्यावरण संरक्षण को मानवीय मूल्यों के साथ जोड़ा जाना आवश्यक है। शिक्षा में केवल सैद्धांतिक रूप से नहीं बल्कि व्यावहारिक रूप से विद्यार्थियों को सिखाया जाना आवश्यक है। पर्यावरण संरक्षण के लिए सामूहिक रूप से अभियान चलाए जाने की आवश्यकता है। ये अभियान न केवल कागजों तथा सरकारी फाइलों तक ही सीमित नहीं होने चाहिए, बल्कि समाज के प्रत्येक व्यक्ति तथा वर्ग को इनका हिस्सा बनाया जाना चाहिए। आमतौर पर सरकारी कार्यक्रमों की औपचारिकता निभा कर पर्यावरण संरक्षण की इतिश्री कर दी जाती है। यह कार्य केवल पर्यावरण दिवस कर कार्यक्रम आयोजित कर, भाषण देने तथा रैलियां निकालने से संभव नहीं होगा, बल्कि सभी को सामूहिक रूप से इस अभियान में शामिल होकर पर्यावरण संरक्षण के लिए अपनी सकारात्मक भूमिका निभानी होगी। कार्यक्रमों के आयोजन से तो समाज में जागरूकता पैदा करने का प्रयास किया जा सकता है।

वृक्षारोपण करने के पश्चात उसकी परवरिश नहीं होती। आवश्यक यह है कि योजनबद्ध तरीके से वृक्षारोपण अभियान चलाए जाएं तथा लगाए गए पेड़ों को कामयाब करने की भी जिम्मेदारी सौंपी जाए। यह ध्यान देने वाली बात है कि जीवन में हमें कुछ भी प्राप्त करने के लिए कीमत चुकानी पड़ती है। दुनिया में जो भी भौतिक विकास हो रहा है, वह प्राकृतिक विनाश की कीमत पर हो रहा है। विकास होना चाहिए, लेकिन मानवीय जीवन की कीमत पर नहीं। प्राकृतिक संसाधनों का संतुलित उपयोग एवं उपभोग होने के साथ उसका संरक्षण करना बहुत ही आवश्यक है, अन्यथा आने वाली पीढ़ी हमें इस प्राकृतिक अत्याचार तथा संसाधनों के अत्यधिक प्रयोग के लिए कोसेगी। प्राकृतिक संसाधन सभी के हैं तथा इन पर सभी का सामूहिक अधिकार है। इनका दुरुपयोग रुकना चाहिए। भौतिक संसाधनों का दुरुपयोग व पर्यावरण संरक्षण एक चुनौती बन गया है। सामाजिक सरोकार के साथ यह एक मानवीय सरोकार का विषय है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को अपनी रचनात्मक एवं सकारात्मक भूमिका निभानी होगी, अन्यथा इसका परिणाम हमारी आने वाली पीढ़ी को भुगतना पड़ेगा। निश्चित रूप से यह पर्यावरणीय परिवर्तन सभी के लिए चिंता का विषय है, लेकिन इसे बचाने के लिए मात्र चिंता नहीं, बल्कि सामूहिक रूप से रचनात्मक तथा सकारात्मक चिंतन होना आवश्यक है।

प्रो. सुरेश शर्मा

शिक्षाविद


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App