पर्यावरण और स्कूल शिक्षा

यह आवश्यक है कि विद्यालय में पाठ्यक्रम और कार्यक्रमों के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण में विद्यालयों की भूमिका को सुनिश्चित किया जाए…

इस बार भी विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून को मनाया गया। इस दिन को मनाने का उद्देश्य लोगों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता पैदा करना है। हालांकि आज के औद्योगीकरण के दौर में पेड़ों की अंधाधुंध कटाई चिंता का विषय बन गया है। इसके चलते दुनियाभर के इकोसिस्टम में तेजी से बदलाव देखने को मिल रहा है। हम सबको पर्यावरण प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, ग्रीन हाउस के प्रभाव, ग्लोबल वार्मिंग, ब्लैक होल इफेक्ट आदि ज्वलंत मुद्दों और इनसे होने वाली विभिन्न समस्याओं के प्रति संवेदनशील बनना होगा जिसकी शुरुआत स्कूल शिक्षा के जरिये होनी चाहिए। मनुष्य और पर्यावरण एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं। पर्यावरण जैसे जलवायु प्रदूषण या वृक्षों का कम होना मानव शरीर और स्वास्थ्य पर सीधा असर डालता है। मानव की अच्छी-बुरी आदतें जैसे वृक्षों को सहेजना, जलवायु प्रदूषण रोकना, स्वच्छता रखना भी पर्यावरण को प्रभावित करती है। मनुष्य की बुरी आदतें जैसे पानी दूषित करना, बर्बाद करना, वृक्षों की अत्यधिक मात्रा में कटाई करना आदि पर्यावरण को बुरी तरह से प्रभावित करती हैं जिसका नतीजा बाद में मानव को प्राकृतिक आपदाओं का सामना करके भुगतना ही पड़ता है। पर्यावरण के जैविक संघटकों में सूक्ष्म जीवाणु से लेकर कीड़े-मकोड़े, सभी जीव-जंतु और पेड़-पौधों के अलावा उनसे जुड़ी सारी जैव क्रियाएं और प्रक्रियाएं भी शामिल हैं। मानव ने अपने फायदे के लिए पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंचाया है जिसके परिणामस्वरूप आज कई समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। इनमें ग्लोबल वार्मिंग, प्रदूषण जैसी समस्याएं शामिल हैं। इसके अलावा कई गंभीर बीमारियां पर्यावरण असंतुलन के कारण होती हैं। लेकिन प्रकृति ने हमें कई उपहार दिए हैं जिसके कारण मानव आज इस धरती पर जीवित रह पाया है। जब समाज आर्थिक संकटों, युद्धों और अंतहीन सामाजिक समस्याओं का सामना कर रहा हो तब भी पर्यावरण एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। यह मायने रखता है क्योंकि पृथ्वी ही एकमात्र घर है जो मनुष्यों के पास है, और यह हवा, भोजन और अन्य जरूरतें प्रदान करता है।

हम वास्तव में पर्यावरण के वास्तविक मूल्य को नहीं समझते हैं। वायु, जल और मृदा प्रदूषण पर्यावरण को प्रभावित कर रहा है। हानिकारक ग्रीन हाउस गैसों की अधिकता से पर्यावरण गर्म हो रहा है। सुरक्षात्मक ओजोन परत नष्ट हो रही है, जिससे सूर्य की सीधी अल्ट्रा-वायलेट किरणें पृथ्वी में प्रवेश करती हैं, बर्फ पिघलने लगती है और जानवरों और मनुष्यों में गंभीर त्वचा रोग पैदा करती हैं। पेड़ों की कमी, बढ़ते प्रदूषण, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के उपयोग के कारण विभिन्न जानवर विलुप्त होने के कगार पर हैं। कभी ग्रामीण जिलों से शहरी क्षेत्रों में प्रवास करने वाले पक्षी अब उद्योगों के हानिकारक उत्सर्जन और इलेक्ट्रॉनिक तरंगों के कारण दिखाई नहीं देते हैं। प्रकृति का यह असंतुलन पृथ्वी पर लंबे समय तक चलने वाले जीवन के लिए गंभीर समस्याएं और खतरा पैदा कर रहा है। पर्यावरण के रखरखाव में स्कूल शिक्षा महत्वपूर्ण रोल निभा सकती है। इसलिए कुछ सुझाव हैं : हमारे स्कूल के प्रधानाचार्य और अध्यापकों का दृष्टिकोण स्वयं पर्यावरण के प्रति सकारात्मक, जिज्ञासापूर्ण, उत्साहवद्र्धक और उदार होना चाहिए। वे प्रकृति प्रेमी हों और उन्हें प्रकृति के प्रति रागात्मक लगाव हो। जब तक विद्यालय के प्रधानाचार्य और अध्यापक जीवन में पर्यावरण का महत्त्व स्वयं नहीं समझेंगे तब तक वे अपने छात्रों को उस दिशा में प्रेरित भी नहीं कर सकेंगे। स्कूल शिक्षण के समय अवसर की तलाश कर पर्यावरण से सम्बन्धित बातों यथा पर्वतों, जंगलों, नदियों, समुद्रों, पवन, भूमि, जीव-जन्तुओं और वनस्पतियों के सम्बन्ध में जानकारी देनी चाहिए। गंगा, यमुना, नर्मदा, हिमालय और गंगासागर का महत्त्व रुचिपूर्वक बताना चाहिए। पीपल, कदंब, नीम, आम, तुलसी आदि के धार्मिक और वैज्ञानिक महत्त्व पर प्रकाश डालना चाहिए। प्रकृति के उपादान क्यों और किस प्रकार हमारे जीवन के लिए आवश्यक हैं, इसका अनुभव समय-समय पर कक्षा में विद्यार्थियों को कराते रहना चाहिए। पर्यावरण प्रदूषण से होने वाली हानियों और प्रभावों को उदाहरण के साथ बताना चाहिए। विद्यार्थियों को विद्यालय के आसपास के पर्यावरण की जानकारी संक्षिप्त भ्रमण के माध्यम से दी जानी चाहिए।

विद्यालय जहां स्थित है, उसके चारों ओर खेत, नदी, नाले, जंगल, पहाड़, आवास, पार्क, उद्यान, बाजार आदि जो भी हों, उनकी जानकारी के लिए छात्र-छात्राओं को कभी-कभी विद्यालय से बाहर ले जाना चाहिए और इनके विषय में उन्हें बताना चाहिए। इससे विद्यार्थियों का लगाव अपने विद्यालय के समीपवर्ती परिवेश से होगा। योजनापूर्वक शिक्षण सत्र के दौरान विद्यार्थियों का एक, दो, तीन, चार या पांच दिन का भ्रमण कार्यक्रम जनपद से बाहर प्राकृतिक स्थलों के दर्शनार्थ बनाया जाना चाहिए जहां वे पर्यावरण को विस्तृत रूप में देख और समझ सकें। विद्यालय में जहां उपयुक्त स्थान है, वहां विद्यार्थियों के द्वारा पेड़-पौधे लगवाए जाने चाहिए। विद्यालय की क्यारियों में मौसमी फूलों को लगाना चाहिए तथा विद्यालय में सुविधानुसार सुन्दर उद्यान विकसित करना चाहिए। विद्यालय के पुस्तकालय में पक्षियों, जीव-जन्तुओं, नदियों, पर्वतों आदि से सम्बन्धित और पर्यावरण सम्बन्धी साहित्य होना चाहिए जिससे अध्यापक और विद्यार्थी उसका लाभ उठा सकें। विद्यालय में पर्यावरण से सम्बन्धित विषयों पर भाषण प्रतियोगिता, निबन्ध प्रतियोगिता, नाट्याभिनय, चार्ट एवं पोस्टर प्रतियोगिता का आयोजन समय-समय पर किया जाना चाहिए। प्रतियोगिता में विजयी छात्र-छात्राओं को पुरस्कृत करना चाहिए। विद्यालय में आवश्यक रूप से वर्ष में एक बार पर्यावरण प्रदर्शनी का आयोजन किया जाना चाहिए जिसमें पर्यावरण से सम्बन्धित तत्त्वों, उपादानों, पर्यावरण विनाश के परिणामों और पर्यावरण संरक्षण के उपायों का प्रदर्शन किया जाना चाहिए। पर्यावरण सम्बन्धी स्लाइड्स को प्रदर्शित किया जाना चाहिए। पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से विद्यार्थियों की समाज में पर्यावरण जागरूकता यात्रा निकालनी चाहिए जिसके दौरान वे पर्यावरण सम्बन्धी नारे लगावें और दिवारों पर पर्यावरण सम्बन्धी आदर्श वाक्य लिखें।

विकास खण्ड स्तर पर या जिला स्तर पर पर्यावरण संरक्षण की कार्यशाला का आयोजन किया जाना चाहिए जिसमें प्रत्येक विद्यालय से पर्यावरण में रुचि रखने वाले एक-एक अध्यापक अवश्य भाग लें। इस कार्यशाला में पर्यावरण संरक्षण सम्बन्धी समस्याओं पर कार्यक्रम लिए जाने चाहिए। विद्यालय के बाहर घटने वाली पर्यावरण विनाश की घटना का प्रभाव विद्यालय के विद्यार्थियों और अध्यापकों पर पड़ता है। किसी वृक्ष का कटना, किसी स्थलाकृति में परिवर्तन, जल और वायु में किसी प्रकार का प्रदूषण, प्राकृतिक रूप से रहने वाले जन्तुओं की मृत्यु, आसपास उगने वाले वनस्पतियों का विनाश और पर्यावरण के प्रति व्यक्ति का विनाशवादी दृष्टिकोण एक विद्यार्थी की चिन्ता का विषय होता है। जब विद्यार्थी के मन में यह भाव उत्पन्न होता है कि उसका पर्यावरण आकर्षक, निर्मल, उत्प्रेरक और समृद्ध हो, तब उसके मन में पर्यावरण के संरक्षण का भाव भी उत्पन्न होने लगता है। वह अपने माता-पिता, बड़ों और अध्यापकों से पर्यावरण की उपयोगिता और उसके संरक्षण के सम्बन्ध में बात करके सन्तुष्ट होना चाहता है। पहले विद्यालयों के पाठ्यक्रम में पर्यावरण का विषय नहीं था। परन्तु पिछले दो दशक से पर्यावरण विनाश को लेकर विश्व के वैज्ञानिक, पर्यावरणविद और हर देश की सरकारें चिन्तित हैं। प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रम में पर्यावरण को महत्त्व दिया जाने लगा है और पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता को विकसित किया जा रहा है। विभिन्न देशों की सरकारें पाठ्यक्रम में परिवर्तन कर जहां भी पर्यावरण के अध्ययन-अध्यापन की गुंजाइश है, उसकी व्यवस्था करने में लगी हुई हैं। यह आवश्यक है कि विद्यालय में पाठ्यक्रम और कार्यक्रमों के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण व उसके विकास में विद्यालयों की भूमिका को सुनिश्चित किया जाए।

डा. वरिंद्र भाटिया

कालेज प्रिंसीपल

ईमेल : hellobhatiaji@gmail.com


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