भारत यूएनएससी में स्थायी सदस्यता का असली दावेदार, संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिक दिवस की 75वीं वर्षगांठ पर बोले राजनाथ
दिव्य हिमाचल ब्यूरो — नई दिल्ली
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में स्थायी सदस्यता की भारत की मांग को दोहराते हुए कहा कि यदि सबसे अधिक आबादी वाले देश को स्थायी सदस्य के रूप में सीट नहीं मिलना संयुक्त राष्ट्र की नैतिक वैधता की कमजोरी को परिलक्षित करती है। श्री सिंह ने संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिक दिवस की 75वीं वर्षगांठ के मौके पर राजधानी दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि संयुक्त राष्ट्र निकायों को अधिक लोकतांत्रिक और नए युग की वर्तमान वास्तविकताओं का प्रतिनिधि बनाने का समय आ गया है और भारत को इसका स्थायी सदस्य बनाया जाना चाहिए। सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्य बनने के लिए भारत असली दावेदार है।
संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना में भारत के योगदान पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि भारत संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में सबसे बड़े योगदानकर्ताओं में से एक रहा है। वर्ष 1950 में कोरिया में अपनी पहली प्रतिबद्धता के बाद से, भारतीय सैनिकों ने जटिल और असहनीय शांति अभियानों की निगरानी करने के साथ ही अपने पेशेवर उत्कृष्टता को लेकर के लिए सार्वभौमिक प्रशंसा अर्जित की है। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों के शांतिपूर्ण, और समावेशी दुनिया के निर्माण के लिए अथक परिश्रम करने के प्रयासों की सराहना की। उन्होंने कहा कि शांति सैंनिकों की अटूट प्रतिबद्धता, व्यावसायिकता और बलिदान ने सभी को प्रेरित किया है। ये शांतिसैनिक संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना अभियान स्थिरता बनाए रखने तथा संघर्षों को रोकने और ङ्क्षहसा से प्रभावित क्षेत्रों में शांति की बहाली की सुविधा प्रदान करने में सहायक रहे हैं। इस अवसर पर चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान, आर्मी चीफ जनरल मनोज पांडे, सेना के कई वरिष्ठ अधिकारी और विभिन्न दूतावासों के रक्षा अताशे भी मौजूद थे।
रूस और यूक्रेन युद्ध से बढ़ा ऊर्जा संकट
रक्षा मंत्री ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र शांति मिशनों का सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू यह है कि ये मिशन संघर्ष में शामिल पक्षों की सहमति से संचालित होते हैं। यह स्थानीय समुदायों या पार्टियों पर बाहर से नहीं थोपा जाता, बल्कि इसकी मांग भीतर से उठती है। रक्षा मंत्री ने रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे संघर्ष के बारे में भी चिंता व्यक्त की और कहा कि इससे विभिन्न अफ्रीकी और एशियाई देशों में खाद्य संकट पैदा होने के साथ ही दुनिया में ऊर्जा संकट भी बढ़ गया है।
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