प्रकृति संरक्षण की प्रणेता किंकरी देवी

स्मरण रहे प्रकृति संरक्षण का अलख जगाने वाली किंकरी देवी ने स्वीडन की ‘ग्रेटा थनबर्ग’ की तरह पर्यावरण पर एक भाषण देकर सुर्खियां नहीं बटोरी थी, मगर खनन माफिया से लडऩे के लिए पहाड़ की उस विख्यात पर्यावरणविद के पास पहाड़ जैसा हौसला व फौलादी जिगर जरूर था जिसके आगे खनन माफिया घुटने टेकने को मजबूर हुए थे…

कुदरत को निगाह-ए-नाज से देखने की तमन्ना रखने वाले प्रकृति प्रेमियों के जहन में हिमाचल के पहाड़ों का दिलशाद चेहरा जरूर आता है। आधुनिकता की चकाचौंध में भौतिकतावादी सुख-सुविधाओं की बेहिसाब हसरतों के बीच सुकून की तलाश में हजारों सैलानी हिमाचल की नजाफत भरी फिजाओं में पर्यटन का लुत्फ उठाकर पहाड़ की तहजीब का दीदार भी करते हैं। प्रकृति से सराबोर पहाड़ों की शरण में सुकून के लम्हें बिताने के लिए हर कोई बेताब रहता है। लेकिन मौजूदा दौर में विकास के मजमून लिखने को खुशुसी तवज्जो देकर पर्यटन स्थलों व धार्मिक स्थलों को एक ही नजरिये से देखा जा रहा है। भौतिक सुख सुविधाओं के तहत जीवन को बेहतर बनाने के लिए प्रकृति व पर्यावरण से खिलवाड़ हो रहा है। पहाड़ों को पर्यटन के तहत अर्थतंत्र का जरिया बनाने के लिए बेतरतीब निर्माण कार्यों के मंसूबों को अंजाम देकर हजारों जिंदगियों को जोखिम में डालने का काम हो रहा है।

विकास की आंधी में पहाड़ों पर मशीनीकरण के प्रहार व सुरंगों के लिए ब्लास्टिंग जैसी इनसानी दखलअंदाजी से उपजी आपदाओं ने पहाड़ों का कुदरती स्वरूप व खूबसूरती को इस कदर बिगाड़ दिया है कि सुकून भी अनियंत्रित विकास के पास गिरवी रहने को मजबूर है। ‘अर्ल नाइटेंगल’ के अनुसार पर्यावरण हमारे रवैये और अपेक्षाओं का आईना होता है। दुनिया के साइंसदानों ने पूरी कायनात का तवाजुन बिगाडऩे वाले एटमी जखीरे तैयार कर रखे हैं, मगर कुदरत के कहर से निपटने में विश्व भर के भूगर्भशास्त्री व भूकंपवेताओं की हर हिकमत बौनी साबित हो रही है। ज्ञात रहे आईना बोलता नहीं है, मगर चेहरे की कैफियत को पूरी तफसील से बयान करता है, ठीक उसी प्रकार प्रकृति अपने दोहन का दर्द लफ्जों से जाहिर नहीं करती, बल्कि अपने शोषण की एक हद के बाद पलटवार जरूर करती है। कुदरत के उस रौद्र रूप के बाद संभलने का मौका नहीं मिलता। हाल ही में जोशीमठ से लेकर तुर्की व सीरिया में प्रकृति विनाश की शदीद झलक दिखा चुकी है। पर्यटन हो, धार्मिक स्थल या प्राकृतिक आपदाएं, अपने जमाल से पूरी कायनात को अफरोज करने वाले पहाड़ अक्सर चर्चा का केंद्र बने रहते हैं। कुछ माह पूर्व झारखंड सरकार ने गिरीडीह जिले में पारसनाथ पहाड़ी पर स्थित जैन तीर्थस्थल ‘सम्मेद शिखर’ को पर्यटन स्थल के रूप में नोटिफाई किया था। सम्मेद शिखर की पवित्रता कायम रखने तथा पारसनाथ पहाड़ी का वजूद बचाने के लिए जैन समाज हजारों की तादाद में सडक़ों पर उतर गया था। जैन समुदाय के उस विरोध प्रदर्शन ने सिरमौर जिला की विख्यात पर्यावरणकत्र्ता ‘किंकरी देवी’ द्वारा हिमाचल के पहाड़ों को अवैध खनन से बचाने के संघर्ष को याद करा दिया था। दरअसल सन् 1980 के दौर में सर्वोच्च न्यायालय ने हिमालय के कुछ क्षेत्रों में खनन पर रोक लगाने का फरमान जारी किया था। उस समय प्राकृतिक संसाधनों से सराबोर हिमाचल के पहाड़ खनन माफिया की निगाहों का मरकज बने थे।

खनन माफियाओं ने हिमाचल की सरजमीं पर दस्तक देकर सिरमौर जिला की कुछ खदानों में अवैज्ञानिक ढंग से खनन को अंजाम दिया था। उस समय श्री रेणुका जी से ताल्लुक रखने वाली किंकरी देवी ने पहाड़ों का मसीहा बनकर अवैध खनन को चुनौती देने का साहस किया था। किंकरी देवी ने जिला के पहाड़ व जंगलों को अवैध खनन से बचाने की लड़ाई धरातल पर धरने प्रदर्शन से लेकर कानूनी रूप में उच्च न्यायालय तक लड़ी थी। हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के तत्कालीन न्यायाधीश पीडी देसाई ने पर्यावरण रक्षक किंकरी देवी के जज्बे को सलाम करके अवैध खनन के खिलाफ फैसला सुनाया था। खनन माफियाओं ने उच्च न्यायालय के फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में भी चुनौती पेश की थी, मगर सुप्रीम कोर्ट ने भी किंकरी देवी के पक्ष को जायज करार दिया था। पहाड़ों को खनन माफिया से बचाने की आवाज बुलंद करने वाली किंकरी देवी को उनके बेखौफ अंदाज ने देश-दुनिया में एक महान पर्यावरणविद के रूप में पहचान दिलाई थी। लेकिन विडंबना है कि हिमाचल के पहाड़ों के लिए एक योद्धा की तरह लडऩे वाली किंकरी देवी की पर्यावरणकत्र्ता की प्रतिभा को सबसे बड़ा सम्मान व पहचान विदेशी भूमि पर नसीब हुई थी। पूरा जीवन पहाड़ों को बचाने के लिए जद्दोजहद करने वाली किंकरी देवी के जज्बे का चश्मदीद चीन का बीजिंग शहर बना जब सन् 1995 में ‘बीजिंग’ में आयोजित चौथे अंतरराष्ट्रीय महिला सम्मेलन में किंकरी देवी को खास दावत दी गई थी। किंकरी देवी द्वारा पर्यावरण रक्षा के संघर्ष की दास्तां को सुनकर उस महिला सम्मेलन की मुख्य अतिथि व अमेरिका की प्रथम महिला ‘हिलेरी क्लिंटन’ इस कदर प्रभावित हुई कि उस सम्मेलन में किंकरी देवी को मंच पर बुलाकर द्वीप प्रज्वलित करने का सम्मान दिया गया।

पर्यावरण की प्रणेता किंकरी देवी को राष्ट्रीय स्तर पर भी कई सम्मान व पुरस्कारों से नवाजा गया था। वर्तमान में पर्यावरण संरक्षण एक ज्वलंत मुद्दा बन चुका है। पड़ोसी राज्यों से लगते हिमाचल के सरहदी क्षेत्र अवैध खनन के लिए कुख्यात हो चुके हैं। खनन माफिया इस कदर बेखौफ है कि अवैध खनन रोकने वाले अधिकारियों पर जानलेवा हमले हो रहे हैं। अत: प्रकृति संरक्षण के पेशेनजर पर्यावरणकर्ता का वास्तविक किरदार निभाने के लिए किंकरी देवी जैसे जज्बे व साहस की जरूरत है। विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर दुनिया को ज्ञान बांटने वाले लोगों को किंकरी देवी द्वारा पर्यावरण की पैरवी के लिए संघर्ष व योगदान से मुखातिब होना चाहिए। स्मरण रहे प्रकृति संरक्षण का अलख जगाने वाली किंकरी देवी ने स्वीडन की ‘ग्रेटा थनबर्ग’ की तरह पर्यावरण पर एक भाषण देकर सुर्खियां नहीं बटोरी थी, मगर खनन माफिया से लडऩे के लिए पहाड़ की उस विख्यात पर्यावरणविद के पास पहाड़ जैसा हौसला व फौलादी जिगर जरूर था जिसके आगे खनन माफिया घुटने टेकने को मजबूर हुए थे। पर्यावरण संरक्षण के प्रति किंकरी देवी की बेमिसाल व दूरदर्शी सोच प्रकृति प्रेमियों के लिए प्रेरणादायक है। बेहतर जीवन जीने के लिए पर्यावरण को अवश्य ही बचाना होगा।

प्रताप सिंह पटियाल

स्वतंत्र लेखक


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