पर्यावरण की सुरक्षा को प्रकृति की पहल

इस जलवायु को शुद्ध और साफ बनाए रखने की जिम्मेदारी केवल प्रकृति की ही नहीं है, बल्कि इनसान को अपने इस कत्र्तव्य के प्रति सजग रहने की जरूरत है। इनसान कई बार अपने छोटे-छोटे फायदे के लिए कुदरत की इस दरियादिली को नजरअंदाज करते हुए प्रकृति के साथ बहुत बेरहमी से पेश आता है। यही वजह है कि प्रकृति भी कई बार अपना रूप बदल कर इनसान को सोचने पर मजबूर कर देती है। पर्यावरण के संरक्षण का प्रकृति द्वारा दिया यह संदेश बहुत अहम है और इस संदेश को समझ कर इनसान को अपनी आदतों में सुधार करते हुए पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी को निभाना होगा…

देश और प्रदेश में मौसम के बदले हुए मिजाज की चर्चा आजकल हर जुबां पर है। इस वर्ष जब फरवरी महीने में गर्मी की तपिश ने अपना एहसास करवाया था तो ऐसा लगा था कि इस बार की गर्मियों से बचने के लिए कुछ अलग इंतजाम करने होंगे, लेकिन प्रकृति ने ऐसा रूप बदला कि गर्मियों के महीनों में सर्दियों से बचने के प्रयास करने पड़ रहे हैं। मार्च से लेकर अभी जून महीने तक गर्मियों में पारा उस स्तर तक नहीं पहुंच पाया जिस स्तर पर अमूमन इन महीनों के दौरान देखने को मिलता था। गर्मियों के इन महीनों में हो रही भारी बारिश ने न केवल पिछले कई वर्षों के बारिश के रिकॉर्ड तोड़े हैं बल्कि ठंड के नए रिकॉर्ड भी बना दिए हैं। जून महीने में पहाड़ों पर हो रही बर्फबारी और मैदानी इलाकों में हो रही झमाझम बरसात से लगता है कि प्रकृति इस बार कुछ अलग संदेश दे रही है और इस संदेश को समझना बहुत जरूरी है। इस बारिश ने जहां एक ओर किसानों की समस्याओं को दोगुना कर दिया है वहीं दूसरी ओर इनसान और पर्यावरण को कुछ लाभ भी पहुंचाए हैं। इस बेमौसमी बारिश से जहां पानी के प्राकृतिक स्रोतों पर दबाव कम हुआ है वहीं पर्यावरण में हरियाली आ जाने से नजारा बिल्कुल बदला हुआ सा महसूस हो रहा है। बारिश होने से वातावरण पूरी तरह से शुद्ध हो जाता है जिसके अनेक लाभ हमारे स्वास्थ्य को मिलते हैं।

वर्तमान में हमारा पर्यावरण अनेक प्रकार की चुनौतियों से जूझ रहा है और इनमें से सबसे बड़ी चुनौती वायु प्रदूषण की है। वायु प्रदूषण एक ऐसी स्थिति है जिसमें वातावरण में इनसान और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले तत्व ज्यादा मात्रा में जमा हो जाते हैं। इन तत्वों को विज्ञान पार्टिकुलर मैटर का नाम देता है। पार्टिकुलर मैटर हमारे वायुमंडल में उपस्थित बहुत छोटे छोटे कण होते हैं। अति सूक्ष्म होने के कारण ये कण हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और बहुत सी जानलेवा बीमारियों का कारण बनते हैं। ये मैटर फेफड़ों और हृदय को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं। भारत में पार्टिकुलर मैटर 2.5 का बढ़ता स्तर वायु प्रदूषण के हिसाब से सबसे गंभीर समस्या है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा पार्टिकुलर मैटर 2.5 की औसत वार्षिक रीडिंग 40 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर निर्धारित की गई है, लेकिन भारत के ज्यादातर शहरों में ये स्तर 100 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर बना रहता है जो कि देशवासियों के लिए एक खतरे की घंटी है। वायु प्रदूषण दुनिया के सबसे बड़े खतरों में से एक है और इस वजह से दुनिया में हर साल लगभग 70 लाख व्यक्तियों की मौत हो जाती है जिनमें से लगभग 6 लाख बच्चे होते हैं। वायु प्रदूषण के प्रमुख स्त्रोत परिवहन, भोजन पकाने के लिए बायोगैस का इस्तेमाल, उद्योग, जंगली आग और अपशिष्ट दहन हैं। यूं तो वायु प्रदूषण को रोकने के लिए अनेक प्रयत्न पिछले लंबे समय से विभिन्न सरकारों द्वारा किए गए हैं जिनमें सीएनजी और एलपीजी को गैसीय ईंधन के रूप में प्रयोग को बढ़ावा देना, पेट्रोल में इथेनॉल की मात्रा को बढ़ाना तथा बीएस-6 मानकों को लागू करना तथा राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक को जारी करना प्रमुख है। लेकिन इन सभी प्रयत्नों से अभी तक के परिणाम उल्लेखनीय नहीं हैं।

समय समय पर होने वाली बारिश पार्टिकुलर मैटर के स्तर को प्राकृतिक तौर पर कम करने में बहुत मददगार साबित होती है। इसलिए वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए ये बारिशें इनसान को बहुत राहत प्रदान कर रही हैं। इसके अलावा इस बार की यह बेमौसमी बारिश प्रदेश के जंगलों के लिए भी वरदान सिद्ध हुई है। इनसान अपने छोटे से फायदे के लिए जंगलों को आग के हवाले कर देता है जिसमें हमारी अमूल्य वन संपदा राख में बदल जाती है। जंगल की आग से उठने वाले धुएं से वायु प्रदूषण के स्तर में भी भारी मात्रा में इजाफा होता है। पिछले दो वर्ष हमारे प्रदेश की वन संपदा के लिए बहुत ही नुकसानदेह साबित हुए हैं। इन वर्षों में वनों में आग लगने की घटनाओं में बहुत ज्यादा वृद्धि हुई थी। आंकड़ों पर नजर दौड़ाई जाए तो पता चलता है कि नवंबर 2021 से लेकर जून 2022 तक प्रदेश में लगभग 5200 आग लगने की घटनाएं हुई जबकि नवंबर 2020 से जून 2021 तक आग लगने की घटनाओं का आंकड़ा 4100 था और नवंबर 2019 से जून 2020 तक केवल 550 आग लगने की घटनाएं हुई थी। अगर इस बार गर्मियों के इस मौसम में बारिश न होती तो शायद ये आंकड़ा इस बार और अधिक भयानक रूप ले लेता। लेकिन प्रकृति ने इस बार स्वयं आगे आकर जंगलों और उनमें रहने वाले जीव-जंतुओं को बचाने का प्रयास किया है।

इस वर्ष गर्मियों के इन महीनों में जंगलों में आग लगने की घटनाओं के आंकड़ों में भारी गिरावट आई है और यह सत्य है कि इस गिरावट के पीछे इनसानी प्रयास शून्य हैं। हिमाचल प्रदेश का 66 प्रतिशत भाग जंगलों से भरा हुआ है। इसी कारण से हिमाचल की जलवायु शुद्ध है। इस जलवायु को शुद्ध और साफ बनाए रखने की जिम्मेदारी केवल प्रकृति की ही नहीं है बल्कि इनसान को अपने इस कत्र्तव्य के प्रति सजग रहने की जरूरत है। इनसान कई बार अपने छोटे छोटे फायदे के लिए कुदरत की इस दरियादिली को नजरअंदाज करते हुए प्रकृति के साथ बहुत बेरहमी से पेश आता है। यही वजह है कि प्रकृति भी कई बार अपना रूप बदल कर इनसान को सोचने पर मजबूर कर देती है। पर्यावरण के संरक्षण का प्रकृति द्वारा दिया गया यह संदेश बहुत अहम है और इस संदेश को समझ कर इनसान को अपनी आदतों में सुधार करते हुए पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी को निभाना बहुत ही जरूरी है।

राकेश शर्मा

स्वतंत्र लेखक


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