प्रकृति संरक्षण के लिए बनना होगा प्रकृति मित्र

जितना संभव हो, उतने पेड़-पौधे लगाकर उनका संरक्षण करने का भाव मन में जागृत होना आवश्यक है। अपने आसपास के वातावरण को स्वच्छ और हरा-भरा रखने के प्रयास करें, प्लास्टिक का उपयोग करने से बचें और दूसरों को भी जागरूक कर पुनीत कार्य के भागीदार बनना चाहिए। हवा में जहरीली लहरें बह रही हैं। जहरीली गैसों की मात्रा को कम करने के लिए सौर ऊर्जा का अधिक से अधिक उपयोग करना समय की आवश्यकता है। इस ओर हमें बढऩा होगा तथा जल का संतुलित रूप से उपयोग कर धरा के रक्त को संचयित रखना होगा। तभी प्रकृति रहने लायक रह पाएगी, अन्यथा आने वाले समय में ग्लोबल वार्मिंग से जीवन संकट में पड़ते समय नहीं लगेगा। इसका जीता-जागता उदाहरण हमारे समक्ष मौजूद है, मई-जून में भारी बारिश व बर्फबारी इसी का परिणाम है। हमें अब सचेत हो जाना चाहिए…

प्रकृति के संरक्षण हेतु आज पूरा विश्व नए चिंतन मंथन कर आगे की राह पर अग्रसर है। हमारी भारतीय संस्कृति में तो प्रकृति को मां की संज्ञा प्राप्त है। यहां नदी को मां कहते हैं तथा पहाड़ों को, पेड़ों को पूजा जाता है। हमारी जीवनशैली प्राचीन काल से ही प्रकृतिमैत्री की रही है। विश्व में पर्यावरण संरक्षण के विषय में जागरूक करने हेतु पांच जून का दिन चुना गया है। पर्यावरण दिवस संपूर्ण विश्व के लोगों को पर्यावरण के संरक्षण के प्रति जागरूक करता है। विश्व में पहली बार सन 1974 में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून को मनाया गया था। सन 1972 में अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण राजनीतिक विकास के लिए सर्वप्रथम सम्मेलन 5 से 16 जून तक स्वीडन, स्टॉकहोम में कार्यक्रम आयोजित किया गया था। इस सम्मेलन का लक्ष्य मानव पर्यावरण को संरक्षित और बढ़ते प्रदूषण पर नियंत्रण पाना था।

सम्मेलन में ही संयुक्त राष्ट्र द्वारा एक तिथि 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में निर्धारित किया गया। विश्व पर्यावरण दिवस आयोजन के लिए हर साल एक नई थीम चुन कर पर्यावरण संरक्षण का संदेश प्रसारित करने हेतु तय हुआ। यह दिवस हमें पर्यावरण के प्रति हमारे कर्तव्यों, जिम्मेदारियों को याद दिलाकर हमें पर्यावरण की सुरक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाने के लिए अभिप्रेरित करता है। वृक्षों की अंधाधुंध कटाई पर्यावरण के संतुलन को बिगाड़ती है। वर्तमान समय में जिस प्रकार से मानव लगातार वनों को काटकर आवासीय भूमि, फ्लैट एवं फैक्ट्री आदि लगा रहा है जिससे पर्यावरण को बहुत ही नुकसान पहुंचता है। यदि हमें पर्यावरण को बचाना है तो वनों एवं वृक्षों की अंधाधुंध कटाई पर तत्काल प्रभाव से रोक लगानी होगी। पर्यावरण की अनुकूलता को ध्यान में रखते हुए हमें सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग न करते हुए पर्यावरण के अनुकूल पुनर्नवीकरणीय (ऐसे पदार्थ जो रीसाइकिल हो जाएद्ध) ऐसे उत्पादों का प्रयोग करने पर जोर देना चाहिए। सिंगल यूज प्लास्टिक पर्यावरण के लिए अत्यंत हानिकारक है क्योंकि यह सिंगल यूज प्लास्टिक सैकड़ों साल तक भूमि में गलती नहीं है। इसलिए हमें सिंगल यूज प्लास्टिक के स्थान पर मिट्टी के बने कुल्हड़, तेंदूपत्ता से बने दोना-पत्तल इत्यादि का प्रयोग विभिन्न प्रकार के आयोजनों (विवाह, पार्टी एवं सार्वजनिक कार्यक्रमों) आदि में करना चाहिए। क्योंकि मिट्टी से निर्मित कुल्हड़, तेंदूपत्ता से बने दोना-पत्तल इत्यादि आसानी से भूमि में गल (री साइकिल) जाते हैं। यही कारण है कि मिट्टी से निर्मित कुल्हड़, तेंदूपत्ता से बने दोना-पत्तल से पर्यावरण को कोई भी हानि नहीं पहुंचती है। इसलिए हमें इनका अधिक से अधिक उपयोग शादी समारोह, सामाजिक कार्यक्रमों, सरकारी कार्यालयों, निजी कार्यालयों, यात्रा करते समय, बस स्टॉप, रेलवे स्टेशनों एवं फैक्ट्री इत्यादि में खानपान में करना चाहिए।

पृथ्वी पर यदि जीवन संभव है तो इसके पीछे सबसे बड़ा कारण हरे-भरे वृक्ष एवं वन इत्यादि ही हैं क्योंकि मनुष्य एवं अन्य प्राणियों को जीवित रहने के लिए प्राणवायु ऑक्सीजन हमें वृक्षों से ही मिलती है। वृक्षों से हमें केवल ऑक्सीजन ही नहीं मिलती है अपितु इनका उपयोग अनेक प्रकार की जलजनित बीमारियों के उपचार में भी किया जाता है। अत: हमें वृक्षों के महत्व को समझते हुए अधिक से अधिक पेड़-पौधे लगाने चाहिए एवं पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए सभी लोगों को वनों की कटाई को बंद कर देना चाहिए क्योंकि वन एवं हरे-भरे वृक्ष न केवल वर्षा में सहायक है अपितु ये भूमि के कटान को भी रोकने में सहायक हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि हरे-भरे वृक्ष पर्यावरण के परम मित्र हैं। हमें स्वयं से शुरुआत कर औरों को भी प्रेरित कर कचरा रिसायकल की प्रक्रिया को अपनाना चाहिए, साथ में ही वर्षा जल-संचयन प्रणाली का उपयोग मुख्य रूप से किया जाना चाहिए ताकि जल की उपलब्धता सुनिश्चित रहे। भूमि की उपजाऊ क्षमता हेतु जैविक खाद का उपयोग महत्वपूर्ण रूप से करना आवश्यक है अन्यथा जमीन में दिन-प्रतिदिन जहर घुलता जा रहा है जोकि मनुष्य व प्रकृति दोनों के लिए घातक है। जितना संभव हो, उतने पेड़-पौधे लगाकर उनका संरक्षण करने का भाव मन में जागृत होना आवश्यक है।

अपने आसपास के वातावरण को स्वच्छ और हरा-भरा रखने के प्रयास करें, प्लास्टिक का उपयोग करने से बचें और दूसरों को भी जागरूक कर पुनीत कार्य के भागीदार बनना चाहिए। हवा में जहरीली लहरें बह रही हैं। जहरीली गैसों की मात्रा को कम करने के लिए सौर ऊर्जा का अधिक से अधिक उपयोग करना समय की आवश्यकता है। इस ओर हमें बढऩा होगा तथा जल का संतुलित रूप से उपयोग कर धरा के रक्त को संचयित रखना होगा। तभी प्रकृति रहने लायक रह पाएगी, अन्यथा आने वाले समय में ग्लोबल वार्मिंग से जीवन संकट में पड़ते समय नहीं लगेगा। इसका जीता-जागता उदाहरण हमारे समक्ष मौजूद है, मई-जून में भारी बारिश व बर्फबारी इसी का परिणाम है। हमें सचेत होना होगा।

प्रो. मनोज डोगरा

शिक्षाविद


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