धर्म और अध्यात्म का ढांचा

By: Jul 22nd, 2023 12:20 am

श्रीराम शर्मा

युग निर्माण योजना का प्रधान उद्देश्य है विचार क्रांति। मूढ़ता और रूढिय़ों से ग्रस्त अनुपयोगी विचारों का ही आज सर्वत्र प्राधान्य है। आवश्यकता इस बात की है कि सत्य, प्रेम, न्याय पर आधारित विवेक और तर्क से प्रभावित हमारी विचार पद्धति हो। आदर्शों को प्रधानता दी जाए और उत्कृष्ट जीवन जीने की, समाज को अधिक सुखी बनाने के लिए अधिक त्याग, बलिदान करने की स्वस्थ प्रतियोगिता एवं प्रतिस्पर्धा चल पड़े। वैयक्तिक जीवन में शुचिता, पवित्रता, सच्चरित्रता, ममता, उदारता, सहकारिता आए। सामाजिक जीवन में एकता और समता की स्थापना हो। इस संसार में एक राष्ट्र, एक धर्म, एक भाषा, एक आचार रहे, जाति और लिंग के आधार पर मनुष्य-मनुष्य के बीच कोई भेदभाव न रहे। हर व्यक्ति को योग्यता के अनुसार काम करना पडे आवश्यकतानुसार गुजारा मिले। धनी और निर्धन के बीच की खाई पूरी तरह पट जाए। न केवल मनुष्य मात्र को वरन् अन्य प्राणियों को भी न्याय का संरक्षण मिले। दूसरे के अधिकारों को तथा अपने कत्र्तव्यों को प्राथमिकता देने की प्रवृत्ति हर किसी में उगती रहे। सज्जनता और सहृदयता का वातावरण विकसित होता चला जाए, ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न करने में युग निर्माण योजना प्राणपण से प्रयत्नशील है। मनुष्य के शरीर में दो चीजें हंै, एक उसकी रचना अर्थात काया और दूसरी चेतना। मनुष्य के पास जो कुछ भी विशेषता और महत्ता है, जिसके कारण वह स्वयं उन्नति करता जाता है और समाज को ऊंचा उठा ले जाता है वह उसके अंतर की विचारधारा है। जिसको हम चेतना कहते हैं, अंतरात्मा कहते हैं, विचारणा कहते हैं।

यही एक चीज है, जो मनुष्य को ऊंचा उठा सकती है और महान बना सकती है। शांति दे सकती है और समाज के लिए उसे उपयोगी बना सकती है। मनुष्य की चेतना, जिसको हम विचारणा कह सकते हैं, किस आदमी का विचार करने का क्रम कैसा है? बस, असल में वही उसका स्वरूप है। आदमी लंबाई-चौड़ाई के हिसाब से छोटा नहीं होता, वरन् जिस आदमी के मानसिक स्तर की ऊंचाई कम है, वह आदमी ऊंचे सिद्धांत और ऊंचे आदर्शों को नहीं सुन सकता। जो व्यक्ति सिर्फ पेट तक और संतान पैदा करने तक सीमाबद्ध रहता है, वह छोटा आदमी है। उसे अगर एक इंच का आदमी कहें तो कोई अचंभे की बात नहीं है। उसकी तुलना कुएं के मेंढक से करें, तो कोई अचंभे की बात नहीं है। कीड़े-मकोड़ों में उसकी गिनती करें तो कोई बात नहीं है। पिछले दिनों जब हमारे देश के नागरिकों की विचारणा का स्तर बहुत ऊंचा था, तब शिक्षा के माध्यम से और अन्य वातावरणों के माध्यम से, धर्म और अध्यात्म के माध्यम से यह प्रयत्न किया जाता था कि आदमी ऊंचे किस्म का सोचने वाला हो एवं उसके विचार, उसकी इच्छा, आकांक्षा और महत्त्वाकांक्षाएं नीच श्रेणी के जानवरों जैसी न होकर महापुरुषों जैसी हों। जब ये प्रयास किए जाते थे, तो अपना देश कितना ऊंचा था। यहां के नागरिक देवताओं की श्रेणी में गिने जाते थे और यह राष्ट्र दुनिया के लोगों की आंखों में स्वर्ग जैसा दिखाई पड़ता था। इस महानता और विशेषता को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए धर्म और अध्यात्म का सारा ढांचा खड़ा किया गया है।


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