गीता रहस्य
स्वामी रामस्वरूप
योगी अपने शरीर में ईश्वर सहित संपूर्ण ब्रह्मांड को अनुभव करता है, परंतु देहधारी मनुष्य नहीं कर सकते। श्रीकृष्ण महाराज अर्जुन को अपनी योग शक्ति के प्रभाव से इस सत्य को समझा रहे हैं जिसे अर्जुन श्रीकृष्ण महाराज की कृपा से सहज में ही समझ रहा है और स्वीकार कर रहा है…
गतांक से आगे…
गीता श्लोक 11/7 में श्रीकृष्ण महाराज अर्जन से कह रहे हैं कि हे निद्रा को जीतने वाले अर्जुन ! आज यहां इस मेरे शरीर में एक स्थान में चित्त, जड़ और चेतन तत्त्व सहित संपूर्ण जगत को देख तथा इससे अन्य भी जो देखने की इच्छा करता है, वह भी देख।
भावार्थ: श्लोक 11/7 में वर्णन किया गया है कि जो यह ब्रह्मांड रचा गया है और आंखों से दिखाई दे रहा है, यह सब ब्रह्मांड मनुष्य के शरीर में भी है। ऋग्वेद मंत्र 10/114/8 इस विषय को इस तरह वर्णन करता है ‘यावत द्यावापृथ्वी’ जितने प्रमाण में द्युलोक और पृथ्वीलोक, संपूर्ण ब्रह्मांड है, ‘तावत इत् तत्’ उतना शरीर मात्र प्रमाण वाला है। अर्थात जो ब्रह्मांड में है जो पिंड (शरीर) में है। योगेश्वर श्रीकृष्ण महाराज का शरीर वैसे भी मनुष्य का शरीर न होकर तुरीय वाला शरीर है, जिसमें परमेश्वर एवं संपूर्ण ब्रह्मांड प्रकट है। तुरीय शरीर का अर्थ है वह योगी का शरीर जो सब कर्मबंधनों से छूट जाता है और परमात्मा के आनंद रूप में मग्र रहता है। श्रीकृष्ण महाराज अर्जुन को यह ज्ञान दे रहे हैं कि मेरे इस शरीर में ही यह संपूर्ण जड़ एवं चेतन जगत स्थित है। हे अर्जुन ! इसे देख और इसके अतिरिक्त भी और जो कुछ देखना चाहता है वह भी देख।
भाव यह है कि योगी अपने शरीर में ईश्वर सहित संपूर्ण ब्रह्मांड को अनुभव करता है, परंतु देहधारी मनुष्य नहीं कर सकते। श्रीकृष्ण महाराज अर्जुन को अपनी योग शक्ति के प्रभाव से इस सत्य को समझा रहे हैं जिसे अर्जुन श्रीकृष्ण महाराज की कृपा से सहज में ही समझ रहा है और स्वीकार कर रहा है।
पिछले छठे अध्याय में श्रीकृष्ण महाराज ने अर्जुन को योग विद्या की शिक्षा दी है। उसी संदर्भ में यहां यह भी ज्ञान दिया जा रहा है कि हे अर्जुन ! जो कोई भी अष्टांग योग की साधना करेगा और यदि धारणा, ध्यान, समाधि इन तीनों का किसी एक विषय में संयम करेगा, तो उस संपूर्ण विषय को जान जाएगा। –क्रमश:
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