गीता रहस्य

By: Jul 22nd, 2023 12:20 am

स्वामी रामस्वरूप

श्रीकृष्ण महाराज का भाव है कि हे अर्जुन ! यदि तू भी इस संयम के रहस्य को जान जाएगा, तो अपने शरीर में ही ब्रह्मांड एवं परमेश्वर का दर्शन करने में समर्थ हो जाएगा और इससे आगे भी जो कुछ रचना आदि का अन्य विषय है, वह भी जान जाएगा…

गतांक से आगे…

जब भी कोई योगी इस प्रकार शरीर में संयम करेगा तो वह शरीर के अंदर ब्रह्मांड एवं परमेश्वर का दर्शन कर लेता है। श्रीकृष्ण महाराज का भाव है कि हे अर्जुन ! यदि तू भी इस संयम के रहस्य को जान जाएगा, तो अपने शरीर में ही ब्रह्मांड एवं परमेश्वर का दर्शन करने में समर्थ हो जाएगा और इससे आगे भी जो कुछ रचना आदि का अन्य विषय है, वह भी जान जाएगा। इस संयम के विषय में पातंजलि ऋषि ने योग शास्त्र सूत्र 3/4 में कहा, ‘त्रयमेकन्न संयम’ अर्थात किसी एक ध्येय विषय में ही तीनों का (धारणा, ध्यान, समाधि का) होना हो वह संयम है। यह वेद एवं अष्टांग योग विद्या का ज्ञाता कोई पूर्ण योगी ही करने में समर्थ है।

श£ोक 11/7 में (सचराचरम) अर्थात चर एवं अचर शब्द भी आए हैं जिनका अर्थ है जड़ एवं चेतन पदार्थ। यजुर्वेद मंत्र 40/1 में ‘जगम्यां जगत’ दो प्रकार के जगत अर्थात जड़ एवं चेतन जगत दोनों का वर्णन है। प्रकृति से बने यह सूर्य, चांद, जल, वायु, शरीर आदि जड़ जगत में आते हैं क्योंकि इनमें जीवात्मा का वास नहीं होता। मनुष्य एवं पशु-पक्षी, कीट-पतंग आदि के शरीर में निवास करने वाली चेतन जीवात्माएं हैं जो अदर्शनीय हैं और कर्मफल भोगने अथवा मनुष्य चोले में वेदों का ज्ञान प्राप्त करके और उस पर आचरण करके कर्म बंधन से छूटकर मोक्ष का सुख प्राप्त करने आई हैं। अत: यही जड़ एवं चेतन दो जगत हैं। श्रीकृष्ण महाराज का अर्जुन को समस्त भगवद्गीता में दिया गया यह विश्व प्रसिद्ध वैदिक ज्ञान वास्तव में दुर्लभ, अति सुंदर, विचारणीय एवं ग्रहण करने योग्य है। श्लोक में (मम देहे) अर्थात हे अर्जुन ! मेरे इस शरीर में यह सब देख।

– क्रमश:


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App