हिमाचली हिंदी कहानी : विकास यात्रा

By: Jul 8th, 2023 7:38 pm

हिमाचल का कहानी संसार

विमर्श के बिंदु
1. हिमाचल की कहानी यात्रा
2. कहानीकारों का विश्लेषण
3. कहानी की जगह, जिरह और परिवेश
4. राष्ट्रीय स्तर पर हिमाचली कहानी की गूंज
5. हिमाचल के आलोचना पक्ष में कहानी
6. हिमाचल के कहानीकारों का बौद्धिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक व राजनीतिक पक्ष

लेखक का परिचय

नाम : डॉ. हेमराज कौशिक, जन्म : 9 दिसम्बर 1949 को जिला सोलन के अंतर्गत अर्की तहसील के बातल गांव में। पिता का नाम : श्री जयानंद कौशिक, माता का नाम : श्रीमती चिन्तामणि कौशिक, शिक्षा : एमए, एमएड, एम. फिल, पीएचडी (हिन्दी), व्यवसाय : हिमाचल प्रदेश शिक्षा विभाग में सैंतीस वर्षों तक हिन्दी प्राध्यापक का कार्य करते हुए प्रधानाचार्य के रूप में सेवानिवृत्त। कुल प्रकाशित पुस्तकें : 17, मुख्य पुस्तकें : अमृतलाल नागर के उपन्यास, मूल्य और हिंदी उपन्यास, कथा की दुनिया : एक प्रत्यवलोकन, साहित्य सेवी राजनेता शांता कुमार, साहित्य के आस्वाद, क्रांतिकारी साहित्यकार यशपाल और कथा समय की गतिशीलता। पुरस्कार एवं सम्मान : 1. वर्ष 1991 के लिए राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार से भारत के राष्ट्रपति द्वारा अलंकृत, 2. हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा राष्ट्रभाषा हिन्दी की सतत उत्कृष्ट एवं समर्पित सेवा के लिए सरस्वती सम्मान से 1998 में राष्ट्रभाषा सम्मेलन में अलंकृत, 3. आथर्ज गिल्ड ऑफ हिमाचल (पंजी.) द्वारा साहित्य सृजन में योगदान के लिए 2011 का लेखक सम्मान, भुट्टी वीवर्ज कोआप्रेटिव सोसाइटी लिमिटिड द्वारा वर्ष 2018 के वेदराम राष्ट्रीय पुरस्कार से अलंकृत, कला, भाषा, संस्कृति और समाज के लिए समर्पित संस्था नवल प्रयास द्वारा धर्म प्रकाश साहित्य रतन सम्मान 2018 से अलंकृत, मानव कल्याण समिति अर्की, जिला सोलन, हिमाचल प्रदेश द्वारा साहित्य के लिए अनन्य योगदान के लिए सम्मान, प्रगतिशील साहित्यिक पत्रिका इरावती के द्वितीय इरावती 2018 के सम्मान से अलंकृत, पल्लव काव्य मंच, रामपुर, उत्तर प्रदेश का वर्ष 2019 के लिए ‘डॉ. रामविलास शर्मा’ राष्ट्रीय सम्मान, दिव्य हिमाचल के प्रतिष्ठित सम्मान ‘हिमाचल एक्सीलेंस अवार्ड’ ‘सर्वश्रेष्ठ साहित्यकार’ सम्मान 2019-2020 के लिए अलंकृत और हिमाचल प्रदेश सिरमौर कला संगम द्वारा डॉ. परमार पुरस्कार।

डा. हेमराज कौशिक
अतिथि संपादक
मो.-9418010646

कहानी के प्रभाव क्षेत्र में उभरा हिमाचली सृजन, अब अपनी प्रासंगिकता और पुरुषार्थ के साथ परिवेश का प्रतिनिधित्व भी कर रहा है। गद्य साहित्य के गंतव्य को छूते संदर्भों में हिमाचल के घटनाक्रम, जीवन शैली, सामाजिक विडंबनाओं, चीखते पहाड़ों का दर्द, विस्थापन की पीड़ा और आर्थिक अपराधों को समेटती कहानी की कथावस्तु, चरित्र चित्रण, भाषा शैली व उद्देश्यों की समीक्षा करती यह शृंखला। कहानी का यह संसार कल्पना-परिकल्पना और यथार्थ की मिट्टी को विविध सांचों में कितना ढाल पाया। कहानी की यात्रा के मार्मिक, भावनात्मक और कलात्मक पहलुओं पर एक विस्तृत दृष्टि डाल रहे हैं वरिष्ठ समीक्षक एवं मर्मज्ञ साहित्यकार डा. हेमराज कौशिक, आरंभिक विवेचन के साथ किस्त-13

-(पिछले अंक का शेष भाग)
‘उपहार’ कहानी में कहानीकार ने चुनाव की प्रक्रिया और राजनेताओं के दांव पेचों और आदर्शों के मुखौटों को अनावृत किया है। ‘हथकड़ी’ कहानी में मिथ्या दोषारोपों और निंदनीय स्थितियों का निरूपण किया है जिससे मिथ्या आरोपण के कारण व्यक्ति दुर्दशा का शिकार होता है। ऐसी स्थिति में एक महिला अपना सर्वस्व लुटा कर अंत में समाज की भ्रष्ट सत्ता के विरुद्ध खड़ी होती है। गौतम शर्मा व्यथित का प्रथम कहानी संग्रह ‘उसके लौटने तक’ सन् 1987 में प्रकाशित है जिसमें उनकी ग्यारह कहानियां- देस परदेस, अगली मीटिंग में, चि_ी, पूजा का लोटा, मुरली, लापता, पंछी बोलता रहा, सजरी धूप, जिजीविषा, उसके लौटने तक और समझ आने तक संग्रहीत हैं। संदर्भित संग्रह की कहानियों में कथा की सहजता रसानुभूति के साथ प्रयोजनीयता और कलात्मकता एक साथ विद्यमान है। कहानी संग्रह के प्रारंभ में कहानीकार व्यथित ने सृजनकार के मंतव्य और सृजन प्रक्रिया को स्पष्ट किया है, ‘रचनाकार का कर्म रचना करना है और धर्म स्वाभाविकता का निर्वाह यथार्थ की सनातनता बनाए रखना। इसी सत्य को शब्द रूप देना मेरा स्वभाव रहा है। अनुभूति को सहज रूप में कहने के उद्देश्य से ही मैंने कहानियां लिखी हैं।

कहानीकार से मेरा किसी प्रकार का अनुबंध नहीं रहा। जीवन के विशाल फलक पर घटित घटनाओं को महज उकेरने का प्रयत्न नहीं है, बल्कि उनसे एक साक्षात्कार करने की कोशिश रही है। जब भी अनुभूति के साथ प्रतीति की तीव्रता बढ़ी, मेरी अभिव्यक्ति कहानी बन गई।’ ‘उसके लौटने तक’ शीर्षक कहानी गौतम व्यथित की बृहद कलेवर की कहानी है जिसमें मातृ-पितृ विहीन रासो प्रमुख चरित्र है। इस चरित्र की सृष्टि के माध्यम से लेखक ने घरेलू नौकर के जीवन के संघर्ष को चित्रित किया है। शहर में रहकर वह अपनी पत्नी पारो और दो बच्चों के गुजर-बसर करने के लिए प्रति मास मनीआर्डर से पैसे भेजता है, परंतु दो बालकों की मां पार्वती पति की घर से लंबी अनुपस्थिति के कारण उसके लौटने तक कहीं अन्यत्र किसी पुरुष से संबंध स्थापित करती है। इस कहानी के माध्यम से कहानीकार ने गांव का लोक जीवन, आस्था, विश्वास, वैवाहिक रीति रिवाज का चित्र ही प्रस्तुत नहीं किया है, अपितु गांव का भूगोल और ग्रामीण परिवेश जीवंत रूप से उभरा है। भाषा में लोक के लालित्य के साथ नगरीय जीवन के आपाधापी भरे जीवन को भी मुखरित किया है। नगर से गांव में आकर पत्नी के बदलते तेवर और मुद्रा को देखकर उसे संशय हो जाता है। ‘मुरली’ में गौतम व्यथित ने मुरली की अद्भुत सृष्टि की है। इसके माध्यम से कहानीकार ने श्रमिक वर्ग की पीड़ा को जिस जीवंतता से उभारा है वह स्वातंत्र्योत्तर भारत के श्रमिक वर्ग की पीड़ा, उसके अंधविश्वासों, रूढिय़ों, अंधश्रद्धाओं को रूपायित करती है। मुरली में घोर निराशा और अंधकार में भी जीवन संघर्ष के प्रति कहीं भी विमुखता नहीं है।

उसके चेहरे पर सदैव मुस्कुराहट है, उसमें अदम्य जिजीविषा, आशा का आलोक और घोर नैराश्य में भी चेहरे में मुस्कुराहट है। केशव के माध्यम से लेखक ने स्वतंत्र भारत की उस तस्वीर को सामने लाया है जिसमें विषमता और घोर दारिद्रय में भी जिजीविषा विद्यमान है। ‘पंछी बोलता रहा’ में कहानीकार ने प्रकृति के सौंदर्य की काव्यात्मक अभिव्यंजना के साथ विधवा मां और बेटे के संवाद के द्वारा जीवन के दुखद अध्याय को खोला है। ‘सजरी धूप’ में त्योहारों के प्रति गीता और रीता जैसी बेटियों के माध्यम से बालकों के लोहड़ी पर्व को मनाने के लिए उनकी आंतरिक प्रफुल्लित अवस्था का निरूपण है। ऐसे पर्वों पर बालकों के उल्लास को निरर्थक रूढिय़ों के द्वारा उनकी बालसुलभ उल्लासमय भावनाओं को दमित किया जाता है। पर्व को मनाने के लिए रोका जाता है और घर में शोकाकुल वातावरण निर्मित किया जाता है क्योंकि परिवार में किसी समय बूढ़े बाबा का इसी लोहड़ी के दिन देहावसान हुआ था। लोहड़ी का यह उत्सव तब तक नहीं मनाया जा सकता जब तक कि इस दिन घर में पुत्र का जन्म न हो जाए। उसके बाद ही लोहड़ी का त्योहार मनाया जा सकेगा। इस दिन घर में बुआ, ननदें, बहनें सभी आकर दुख प्रकट करती हैं। बच्चों का उल्लास, प्रसन्नता इन रूढि़वादी विश्वासों के तले दब जाते हैं। ‘देस परदेस’ में कहानीकार ने एक युवक जो पंद्रह वर्षों के अनंतर अपने गांव लौटता है और जिसकी स्मृतियों में पंद्रह वर्ष पूर्व का गांव बसा हुआ है जिसमें स्नेह और रागात्मकता, लोकमंगल, परोपकार, सहकारिता और आत्मीयता के सूत्र विद्यमान थे, उस गांव में लौटने के बाद वह जिस भौतिक विकास और रागात्मक शून्यता, संवेदनहीनता और परस्पर विमुखता को अनुभव करता है, इस परिवर्तन को देख कर वह घोर निराशा में डूब जाता है।

गौतम व्यथित में कहानी कहने की अनूठी कला है। वे आंचलिक जीवन में रच बस कर आंचलिक यथार्थ को लोक भाषा के स्थानीय उच्चारित रूपों को कथा भाषा का अंग बनाते हैं, उनसे गौतम व्यथित कथा भाषा और शैली की दृष्टि से निजी पहचान कायम करते हैं। पात्रों के संवादों के अनेकों उदाहरण कहानियों से उद्धृत किए जा सकते हैं। उनकी आंचलिक भाषा बोली का लालित्य कभी रूढिय़ों और अंधविश्वासों के संदर्भ में तो कभी सांस्कृतिक पर्व और त्योहारों में, तो कभी ग्रामीण श्रमिक वर्ग की दरिद्रता, अभावग्रस्त जीवन की बेचैनी और निराशा की स्थिति के संदर्भ में निरूपित हुआ है। उनकी कहानियों में लोक जीवन के वैविध्यपूर्ण, व्यापक प्रशस्त रूप परिलक्षित होते हैं। उनकी कहानियों में लोक संस्कृति की व्यापक धारा कहानी के कथा सूत्रों में नितांत स्वाभाविक रूप में नि:सृत हुई है। वह देश समाज के मूल्यों, मिथकों, संस्कारों, अंधविश्वासों, रूढिय़ों, रीति-रिवाजों और जीवन शैलियों आदि के रूप में मुखरित हुआ है। व्यथित की कहानियों की संवेदना भूमि सामाजिक और राजनीतिक सरोकारों को जिस अद्भुत कौशल से कहानी का अंग बनाते हैं, वह व्यथित की कहानी कला की विशिष्टता है। कर्नल विष्णु शर्मा के दो कहानी संग्रह ‘वर्षा आ गई अचानक’ (1987) और ‘वापसी’ (1989) प्रकाशित हैं। ‘वर्षा आ गई अचानक’ में बूढ़े की मौत, सुहागरात, साड़ी का छोर, नानी अलादाद, जीप और जीत, मतवाली, फूटी लालटेन, गति, वर्षा आ गई अचानक, मुंडू, बीमार दिल, सूली ऊपर, सेज पिया की और परंपरा संग्रहीत हैं। ‘बूढ़े की मौत’ में बूढ़े बाबा सुमेर सिंह और उसके एकमात्र पौत्र बिरजू की मार्मिक कहानी है। सुमेर सिंह भी विधुर है और बेटा कश्मीर में है। बाबा और पौत्र के संवादों से कहानी को गतिशील बनाया है। बाबा की पुत्र से अधिक आशाएं हैं, दोनों के चरित्र को लेखक ने मनोवैज्ञानिक धरातल पर निरूपित करते हुए दो पीढिय़ों के अंतर और उनकी जीवन दृष्टि को मूर्तिमान किया है। कर्नल विष्णु शर्मा के सैन्य जीवन के अनुभव कहानियों को और अधिक प्रामाणिक और विश्वसनीय बनाते हैं। ‘सुहागरात’ में भारत-पाकिस्तान के मध्य युद्ध का अनुभवजन्य चित्रण है।

सैन्य अनुभवों को कहानीकार ने कलात्मकता के साथ कहानी का प्रतिपाद्य बनाया है। कहानी में सूबेदार नायक को बधाई देता है और पूछने पर कहता है, ‘हां साहब लड़ाई की सफलता की पहली सुहागरात।’ ‘वर्षा आ गई अचानक’ शीर्षक कहानी सेना में हुए शहीद की विधवा पत्नी गंगी के जीवन के अतीत और वर्तमान को उकेरती कहानी है। सेना में राष्ट्र की रक्षा के लिए समर्पित शहीदों के पराक्रम और शौर्य के आधार पर सरकार उन्हें मरणोपरांत सेना पदक से उनकी विधवा पत्नियों के माध्यम से अलंकृत करती है। परंतु उन शहीदों की विधवा स्त्रियों की दशा को लेखक ने नितांत जीवंत रूप में सामने लाया है और समाज के समक्ष सवाल उठाए हैं। ‘फूटी लालटेन’ किसानों के उत्पाद के बाजार में पहुंचाने और उसके विपणन की समस्या पर केंद्रित कहानी है। लाला सोहनमल उन शोषण मूलक पूंजीपतियों, सेठ साहूकारों का प्रतिनिधि चरित्र है जो किसान के उत्पाद को नितांत सस्ते दामों में खरीद कर अधिकाधिक लाभ अर्जित करना चाहता है। सेना से अवकाश में आए हवलदार सूरत सिंह बाजार से लालटेन, पत्नी के लिए चोंचदार गुरगाबी खरीदना चाहता है। हवलदार पत्नी गंगी के साथ बाजार अखरोटों की बोरियों को खच्चर पर लाद कर बेचने जाता है। इस प्रक्रिया में खच्चर पर सामान ढोने का किराया, माल की चुंगी, आढ़त का पैसा चुकाने के बाद अखरोटों को लाला बहुत ही सस्ते में खरीदता है।

इस अवसर पर वह लाला की बेढंगी बातों और व्यंग्य से आहत और अपमानित अनुभव करता है और इस शोषण का प्रतिकार करते हुए अखरोटों को खच्चर पर लाद कर अपने घर लौटता है। घर आकर देखता है कि लाला ने उसे फूटी लालटेन बेची है। अत: दूसरे दिन शहर में फूटी लालटेन में टांका लगाने जाता है। कहानी यह भी उद्घाटित करती है कि सोहनमल जो प्रारंभ में छाबड़ी में सब्जी बेचता था और छोटे-छोटे कर्ज देता था, वही अपनी शोषणमूलक प्रवृत्ति से कई दुकानों और गाडिय़ों का मालिक बन घन्नासेठ बन गया है। ‘जीप और जीत’ कर्नल विष्णु शर्मा की चर्चित कहानी है जिसमें वे साधारण से कथा प्रसंग को कहानी के सांचे में ढालते हैं। कहानी में मेजर विनोद सेवानिवृत्ति के अनंतर एक जीप खरीदता है। उसकी उदारता और व्यवहार कुशलता के कारण जीप कोई न कोई मांगता रहता है। एक दिन एक पुलिस इंस्पेक्टर जीप ले जाते हैं और लौटते समय जीप वृक्ष से टकराती है जिसके कारण गाड़ी को वहीं छोड़ आते हैं। इस स्थिति में वहां कोई जीप की सीटें निकालते हैं तो कोई गाड़ी के कलपुर्जे ले जाते हैं, तो कोई टायर निकाल कर ले जाते हैं। नितांत स्वार्थ भरी इस स्थिति में मेजर साहब को गाड़ी लेने जाना पड़ता है। गाड़ी की खराब स्थिति को अनुभव कर मिस्त्री उन्हें परामर्श देता है कि वे गाड़ी को कबाड़ी को बेच दे। मेजर साहब पांच हजार में गाड़ी कबाड़ी को बेच देते हैं। प्रस्तुत कहानी के माध्यम से कहानीकार ने मानवीय व्यवहार की स्वार्थ केंद्रित स्थिति को निरूपित किया है। अपने स्वार्थों की तृप्ति के लिए दूसरे की मानवीयता और उदारता की उपेक्षा करता है और किसी दूसरे की क्षति की किंचित भी चिंता नहीं होती। कर्नल विष्णु शर्मा की कहानियों में सैन्य जीवन के अनुभव, अवकाश प्राप्त सैनिकों की दिनचर्या, सामाजिक जीवन में संघर्ष आदि का चित्रण है। स्वयं कहानीकार की स्वीकारोक्ति है, ‘सैनिकों के आनंद, द्वंद और व्यथाओं को यदि पाठक तक पहुंचा सकूं तो मुझे प्रसन्नता होगी।’ प्रस्तुत कहानी संग्रह डोगरा, गोरखा और सिक्ख सैनिकों को समर्पित है।
रतन सिंह हिमेश की सातवें दशक से कहानियां विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। ‘एक धौलाधार अंदर भी’ शीर्षक से कहानी संग्रह सन् 1987 में प्रकाशित हुआ। इस संग्रह में उनकी कुछ पूर्व प्रकाशित तथा कुछ नई कहानियां संग्रहीत हैं। मलाई चोर, परिवर्तन, सिलसिले, बदलते रिश्ते, गुर्गे और चोरी और सीनाजोरी कुछ उल्लेखनीय कहानियां हैं। हिमेश की कहानियों की संवेदना भूमि हिमाचली जनजीवन की सामाजिक विसंगतियों, अंधविश्वासों, सामान्य अभावग्रस्त जन के संघर्ष को रेखांकित करती हैं। उनकी कहानियां आम आदमी की तकलीफ और आजीविका के लिए संघर्ष को मूर्तिमान करती हैं।                                                    -(शेष भाग अगले अंक में)

पुस्तक समीक्षा : बच्चों को गुदगुदाती कहानियों का संग्रह

बच्चों की भावनाओं को समझना और उनके अनुकूल साहित्य, जो मनोरंजक होने के साथ-साथ प्रेरणादायी भी हो, का सृजन करना सचमुच ही कठिन कार्य है। ऐेसे ही कार्य को अंजाम दे रहे हैं प्रसिद्ध बाल कहानीकार पवन चौहान। इस बार वह बाल कहानी संग्रह ‘पूंछ कटा चूहा’ लेकर आए हैं। प्रकाशन विभाग, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार से प्रकाशित इस कहानी संग्रह की कीमत 200 रुपए है। आधुनिक परिवेश में बाल मनोविज्ञान को ध्यान में रखकर ये कहानियां लिखी गई हैं। कहानियों का कथानक प्रतिदिन की घटनाओं पर आधारित है, इसलिए सभी को अपने जीवन में घटी घटना प्रतीत होती है। बाल साहित्यकार पवन चौहान ने सुंदर शब्दों से इन कहानियों को सजाया है। ये मनोरंजन के साथ छोटी-छोटी सीख भी देती हैं। थैंक्स रीमा, पूंछ कटा चूहा, स्नेह भरी मुस्कान, वाह क्या आइडिया है, लौट आई काजल, सॉरी दोस्त, एक सुखद सुबह, तुम सही थे शौर्य, रजत की सैर, ऐेसे बनी बात, मम्मी का सुझाव, बिन्नी और मीतू तथा समझ गए दादाजी जैसी कहानियां बच्चों को खूब गुदगुदाएंगी, ऐसी आशा है।

हर कहानी के साथ मनोहारी चित्र भी प्रकाशित किए गए हैं जो बच्चों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। पवन चौहान अपनी कहानियों का ताना-बाना ऐसे बुनते हैं कि बच्चों की जिज्ञासा एकदम जाग उठती है और वे अपनी जिज्ञासा को शांत किए बिना नहीं रहते। उदाहरण के लिए ‘मम्मी का सुझाव’ कहानी की भूमिका देखिए- आज रविवार था। सर्दी की गुनगुनी धूम में तन्मय अपने खिलौनों के साथ खेलने में मस्त था। पापा कुर्सी पर बैठे अखबार पढ़ रहे थे। दूसरा पन्ना खोलते ही पापा अपने में ही बोल पड़े, ‘यह बहुत अच्छा हुआ। अब धरती को थोड़ी तो राहत मिलेगी।’ तन्मय पापा की बात पर चौंके बिना नहीं रह पाता। संग्रह की अन्य कहानियां भी बच्चों को खूब लुभाएंगी, ऐसी आशा है।                                                                                                                                                                             -फीचर डेस्क

कहानियों में लेखन का तिलिस्म पैदा करते योगेश्वर शर्मा

योगेश्वर शर्मा की निगाहों से जिंदगी के फलसफे, समाज के अनकहे, इतिहास के कहकहे और आजादी के पन्नों में बह गए कई नायक जी उठते हैं। वह अपनी ही कहानियों से रूबरू एक तिलिस्म पैदा कर देते हैं। ‘मेरी प्रिय कहानियां’ एक कहानी संग्रह नहीं, जीवन के संघर्ष का संग्रह है, जो उनके साहित्यिक समुद्र तक हमें ले जा रहा है, जहां एक तरफ बालू पर चलने की आदत में सारी तपिश चल रही है, तो दूसरी ओर अथाह गहराई में डूबकर कहानियां अपने मूल और मौलिक रूप में मुखातिब हो जाती हैं। अपने पूर्व के पांच कहानी संग्रहों के उद्गारों से आगे कुछ नया व कुछ एक साथ कहने की गुंजाइश में योगेश्वर शर्मा इस संग्रह में अठाईस कहानियां पेश कर रहे हैं। कहानियों में बहती जिंदगी और जिंदगी के ठहराव में उलझते कांटों का दर्द महसूस करता ‘नंगा आदमी’, जिसके दामन में अतीत की मजबूरियां रच-बस जाएं उसके व्यक्तित्व को क्या ढांपना और क्या सहेजना। सीटू की नंगई रोटी, कपड़ा और मकान के हिस्से आ गई, तब बिना कबाड़ की झोंपड़ी में ‘नंगा आदमी’ घोषित होकर सियासत का एक मोहरा बन कर रह जाता है।

समाज की खाइयों में ऊंच-नीच के हर भेदभाव के बीच गरीबी का चित्रण करती कहानी ‘पीलिया’ अपने शिल्प की बुनियाद पर खड़ी है। पीलिया भरी आंखों में गरीबी को देखने के लिए कहीं अमीरी की निगाहों में पीलिया खड़ा है। पहाड़ में हिमाचलियत ढूंढता लेखक जब पूछता है, ‘भराड़ीघाट किसने नहीं देखा’, तो शिमला के गंतव्य में इसकी अनुगूंज घर-घर पहुंच जाती है। ‘आ गया भराड़ीघाट’ कहानी अतीत से मुखातिब होकर प्रगति में बदलते भौगोलिक-भौतिक नक्शों के बीच अपने कदमों के निशान और मंजिलों के ठहराव ढूंढ रही है और जहां भराड़ीघाट के ढाबे का वह चूल्हा मर गया जिसके ऊपर पहले सिर्फ भात और कढ़ी चढ़ी रहती थी। कुछ इसी तरह ‘फोन पर महानगर’ कहानी में महानगर का आंखों देखा हाल गांव की दूब का हालचाल पूछने निकल आता है, जब मास्टर राधेश्याम गांव में रह गई पत्नी भागवंती से बतियाते हैं। वाकई शहर से आज भी कितना दूर रह गया है गांव।

‘पिकनिक’ कहानी में पहाड़ का दर्द उस बर्फ से चस्पां है जिसके ऊपर गर्मियों में पर्यटकों का आधिपत्य है, लेकिन सर्दियों में यही हिमपात बनकर जनजीवन को पराजित कर देता है। ऐसे में सर्दियों में पहाड़ की पिकनिक मैदान को ढूंढ रही है। योगेश्वर शर्मा का लेखन कलात्मकता के साथ बहुपक्षीय विचारोत्तेजना, लक्ष्य-लय और कहने की साधना के साथ प्रयोग करते हुए खुद से खुद का इम्तिहान लेता है। शिमला रिज पर, मंगेसर बाबू, रिडक़ू और कातकू, त्वारसू या बावड़ी ऐेसी पृष्ठभूमि की कहानियां हैं, जहां ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामाजिक पक्ष, मानव सभ्यता की परिक्रमा करता है। ये कहानियां परिवश में नहाई-धोयी, उजली सी कलम की सौगात हैं। इन्हें लिखने के लिए हिमाचल की बोलियां, शब्दों की उजास और परिदृश्य की कोमलता-सहजता चाहिए। अदालत और अस्पताल के बीच गरीब के जिंदा रहने की कशमकश के बीच ‘फागणू वल्द स्वारू’, ‘काला ढांग का मसाण’ मेें जीवन के हाड़-मांस से युद्धरत मनुष्य की अपनी परछाइयां और अपनी ही इच्छाएं हर दिन निर्वस्त्र होकर सत्य के नग्न दरबार में लगती हाजिरी। अपनी ही आवाजों की गिरफ्त में बाजीगर जीवणू और उसका हर दिन बदलता परिवार। तीसरी बीवी तक आते ही, उसके जीवन से लांघते प्रश्न अंतत: ‘रामकली’ के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और बड़ी हवेली की भूखी आंखें तृप्त हो जाती हैं। इस मसाण के आगे बाजीगर का तजुर्बा हार गया। बुजुर्गों के वजूद से दूर होती औलाद पर एक बेहद मार्मिक कहानी है ‘भूकंप’, ‘तो पानी पी लो भैया’ कहानी में, ‘प्रो. मिश्रा चुप हो गए। ऐसा लगा सारा महाविद्यालय चुप हो गया’, के एहसास में छात्र मन के विराम तोड़ डालती है। योगेश्वर शर्मा का लेखन कलात्मकता-लयबद्धता, लक्ष्य और कहने की साधना के साथ प्रयोग करते हुए खुद से खुद का इम्तिहान लेता है।

हर कहानी का एक भावुक पल है जहां लेखक बहुत कुछ शाश्वत लिखकर चिंतन का भाव पैदा करता है, ‘मेरे शहर में अब बहुत कुछ बदल गया है। जो बदलना नहीं था, वह भी बदल गया है’, एक खासियत और है उनमें, कि वे जिस तरह दूर से दिखाई देते हैं, वैसे ही न•ादीक से भी दिखाई देते हैं’, रामकली अपनी जवानी से झिझकी, अपने मैले कुचैले कपड़ों से झिझकी। अपनी औकात से झिझकी।’ राज्य सचिवालय के निष्ठुर परिवेश में आशाओं की गठरी बांधे कितने लोग अनजान प्रतीति को ढूंढ रहे हैं, ‘सचिवालय के बाहर’, तो ‘शिकायत दर शिकायत’ की बाहों में फंसी आम आदमी की इच्छाएं मुक्त होने को फडफ़ड़ा रही हैं। ‘टेकरी पर घर’, अपने भीतर दो संसारों से संघर्षरत है। यहां शहर बनाम गांव के दहलीज पर प्रश्न यही है, ‘वे गांव में बहुत कम आए हैं। जब भी आए हैं, इस टेकरी की ऊंचाई से डरते रहे हैं।’ ये कई दशकों की कहानियां, परिवर्तनों की कहानियां, बदलते समय-बदलती मांग की कहानियां हैं। ये कहानियां परिवेश में नहाई-धोयी, उ•ाली सी कलम की सौगात हैं।                                                                                                                                                                        -निर्मल असो

कहानी संग्रह : मेरी प्रिय कहानियां
लेखक : योगेश्वर शर्मा
प्रकाशक : आयुष पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली
कीमत : 550 रुपए


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