पूजा में बिल्वपत्र का महत्त्व
शिवजी के पूजा-पाठ में कई वस्तुओं का प्रयोग किया जाता है, लेकिन बिल्वपत्र का पूजा में होना अत्यंत जरूरी होता है। शास्त्रों में तो इसके बारे में यहां तक कहा जाता है कि अगर आपके पास पूजा की कोई सामग्री न भी हो तो भी आप शिवजी को केवल बेलपत्र चढ़ा दें तो वह प्रसन्न हो जाते हैं।
ऐसे शुरू हुई थी बेलपत्र की अनोखी परंपरा
कथा मिलती है कि समुद्र मंथन के दौरान भगवान शिव ने जब विषपान किया था तो उनके गले में जलन हो रही थी। बिल्वपत्र में विष निवारक गुण होते हैं, इसलिए उन्हें बेलपत्र चढ़ाया गया ताकि जहर का असर कम हो। मान्यता है कि तभी से भोलेनाथ को बेलपत्र चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई। एक अन्य कथा के अनुसार बेलपत्र की तीन पत्तियां भगवान शिव के तीन नेत्रों का प्रतीक हैं। यानी शिव का ही रूप है, इसलिए बेलपत्र को अत्यंत पवित्र माना जाता है।
शिवपुराण में भी वर्णित है इसका महत्त्व
भोलेनाथ की पूजा में बेलपत्र यानी बिल्वपत्र का विशेष महत्त्व है। महादेव एक बेलपत्र अर्पण करने से भी प्रसन्न हो जाते हैं, इसलिए उन्हें ‘आशुतोष’ भी कहा जाता है। बेलपत्र में एक साथ तीन पत्तियां जुड़ी रहती हैं। इसे ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक माना जाता है। वैसे तो बेलपत्र की महिमा का वर्णन कई पुराणों में मिलता है, लेकिन शिवपुराण में इसकी महिमा विस्तार से बताई गई है। शिवपुराण में कहा गया है कि बेलपत्र भगवान शिव का प्रतीक है। भगवान स्वयं इसकी महिमा स्वीकारते हैं। मान्यता है कि जो भी बेल वृक्ष की जड़ के पास शिवलिंग रखकर भोले की पूजा करते हैं, वे हमेशा सुखी रहते हैं, उनके परिवार पर कभी कोई कष्ट नहीं आता।
बेलपत्र को इन तिथियों पर तोडऩे से बचें
कहा जाता है कि बेलपत्र को तोड़ते समय भगवान शिव का ध्यान करना चाहिए। इसके अलावा इस बात का भी ख्याल रखें कि कभी भी चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्या तिथि पर बेलपत्र न तोड़ें। साथ ही तिथियों के संक्रांति काल और सोमवार को भी बेल पत्र नहीं तोडऩा चाहिए। बेलपत्र को कभी भी टहनी के साथ नहीं तोडऩा चाहिए। इसे चढ़ाते समय तीन पत्तियों की डंठल को तोडक़र ही चढ़ाना चाहिए।
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