ईश्वर का स्वरूप

By: Jul 15th, 2023 12:14 am

श्रीश्री रवि शंकर

जैसे श्रावण में लोगों को गर्मी से राहत मिलती है, वैसे ही ज्ञान के श्रवण से मन को पीड़ा और बेचैनी से राहत मिलती है। श्रावण में लोग एकत्रित होकर ज्ञान श्रवण करते हैं। दिव्य कथाएं सुनते हैं। ईश्वर का गुणगान करते हैं, जिससे उन्हें संतोष प्राप्त होता है। जब मन पर ज्ञान का अभिषेक होता है, तो मन शांत और शीतल हो जाता है…

अखिल ब्रह्मांंड ईश्वर का स्वरूप है। श्रावण मास में बरस रही जलधारा ऐसी ही प्रतीत होती है, मानो प्रकृति इस धरा का अभिषेक कर रही है। प्रकृति के इसी कृत्य का अनुकरण हम मानव भी करते हैं। श्रावण मास में हम भी शिवलिंग पर जल चढ़ा कर अपने आपको ईश्वर के उसी कृत्य के साथ जोड़ लेते हैं। ईश्वर अथवा प्रकृति के गुणों को अपनाना सदाचार है।

श्रावण मास हमें यह अवसर देता है। जल जीवन है और यह धरती को पुनर्जीवित करता है। वर्षा से प्रकृति पनपती है। तपती हुई धरती पर जब वर्षा होती है, तो उसे शीतलता का आभास होता है। वनस्पतियां उगने लगती हैं, पेड़ों पर नए-नए पत्ते लगने लगते हैं। जैसे श्रावण में लोगों को गर्मी से राहत मिलती है, वैसे ही ज्ञान के श्रवण से मन को पीड़ा और बेचैनी से राहत मिलती है। श्रावण में लोग एकत्रित होकर ज्ञान श्रवण करते हैं।

दिव्य कथाएं सुनते हैं। ईश्वर का गुणगान करते हैं, जिससे उन्हें संतोष प्राप्त होता है। जब मन पर ज्ञान का अभिषेक होता है, तो मन शांत और शीतल हो जाता है। श्रावण को सबसे पवित्र महीना माना जाता है, क्योंकि यह अनेक धार्मिक उत्सवों और पर्वों को अपने साथ लाता है। हिंदू कैलेंडर में श्रावण मास भगवान शिव को समर्पित है। शिव परिवर्तन के लिए उत्तरदायी ऊर्जा हैं। शिव जीवन के मार्ग की बाधाओं को दूर करने वाले हैं। वह पुरातन को विनष्ट कर नूतन के लिए मार्ग प्रशस्त करते हैं। शिव कल्याणकारी हैं। शिव कैलाश पर्वत पर निवास करते हैं।

कैलाश का अर्थ ही है कि जहां केवल उत्सव हो, केवल आनंद हो। श्रावण के महीने में संपूर्ण वातावरण उत्सव से भर जाता है। शिव तत्व अपने चरम पर होता है, यह सहजता से उपलब्ध होता है। इसलिए यह मास भगवान शिव की पूजा करने के लिए सर्वोत्तम मास है। हमारे प्राचीन ऋषि अत्यंत बुद्धिमान थे। वे जानते थे कि हर मानव के भीतर इच्छाएं होती हैं, कुछ शुभ और कुछ अशुभ। जीवन में प्रगति के लिए आवश्यक है कि शुभ इच्छाएं फलित हों।

विवेक के उपयोग से मनुष्य यह निर्णय ले सकता है कि कौन सी इच्छाएं उसके लिए लाभदायक हैं और उन इच्छाओं को प्राप्त करने के लिए क्या कार्य कर सकता है। लेकिन कभी-कभी ऐसा भी हो सकता है कि व्यक्ति चाहे कितना भी प्रयत्न कर ले, लेकिन वह अपने इच्छित लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाता है। उसे मार्ग में अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ता है। इसलिए ध्यान और पूजा के माध्यम से हम अपने मन को शांत कर सकते हैं और भगवान की भक्ति में लीन हो सकते हैं।


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