गरीबी उन्मूलन : भारत से सीखे दुनिया

प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत मार्च 2023 तक गरीब महिलाओं को 9.59 करोड़ गैस कनेक्शन दिए जा चुके हैं और मार्च 2023 तक देश में कुल 31.26 करोड़ एलपीजी गैस कनेक्शन थे। ऐसा माना जाता है कि हमारी आबादी का बहुत कम प्रतिशत बचा है जिसके पास एलपीजी गैस कनेक्शन के रूप में स्वच्छ खाना पकाने के ईंधन तक पहुंच नहीं है। आज देश के दूरदराज के गांवों तक भी बिजली पहुंच चुकी है और सरकार का दावा है कि देश के 100 प्रतिशत गांवों में बिजली पहुंच चुकी है। ये दुनिया के लिए एक सबक है। बहुआयामी गरीबी को भी दूर किया जा सकता है, इसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति और आवश्यक प्रयासों की जरूरत है…

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) द्वारा प्रकाशित बहुआयामी गरीबी सूचकांक 2023 रिपोर्ट में भारत की इस बात के लिए सराहना की गई है कि उसने गरीबी उन्मूलन में अन्य देशों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है। 2015 में, सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) में से एसडीजी-1 में उम्मीद की गई थी कि दुनिया में 2030 तक सभी प्रकार की गरीबी समाप्त हो जाएगी। वर्ष 2023 की रिपोर्ट इस लक्ष्य के लिए निर्धारित 15 वर्षों के लगभग मध्य में आई है जिसमें इस बात पर संतोष व्यक्त किया गया कि वैश्विक स्तर पर इस लक्ष्य की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति हुई है।

बहुआयामी गरीबी क्या है?

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, यूएनडीपी गरीबी की एक परिभाषा का उपयोग करता है जिसे बहुआयामी गरीबी कहा जाता है। यह परिभाषा सभी देशों के लिए समान है। विश्व के विभिन्न देशों की सरकारों द्वारा उपयोग की जाने वाली गरीबी की भिन्न-भिन्न परिभाषाओं के कारण गरीबी का एक समान आकलन संभव नहीं हो पाता है और इसके कारण विश्व के विभिन्न देशों के बीच तुलना करना भी कठिन हो जाता है। यूएनडीपी के बहुआयामी गरीबी माप में कई अभाव तत्व शामिल हैं, जो सभी देशों में समान हैं। इसमें पोषण, बाल मृत्यु दर, स्कूली शिक्षा के वर्ष, स्कूल में उपस्थिति, रसोई ईंधन, स्वच्छता, पीने का पानी, बिजली, आवास और संपत्ति शामिल हैं। गौरतलब है कि विभिन्न देशों में डेटा की उपलब्धता के आधार पर अलग-अलग वर्षों में बहुआयामी गरीबी का अनुमान लगाया गया है। अत: यूएनडीपी के आंकड़ों से किसी एक वर्ष में विभिन्न देशों में गरीबी का तुलनात्मक अध्ययन संभव नहीं है। विभिन्न देशों के लिए यूएनडीपी के पास उपलब्ध प्रारंभिक डेटा 2005-06 से 2019-21 तक है। इसलिए रिपोर्ट में प्रकाशित आंकड़ों से यह पता लगाना संभव नहीं है कि एक निश्चित अवधि के दौरान दुनिया के सभी देशों में तुलनात्मक रूप से गरीबी कितनी और कब कम हुई है। भारत के संदर्भ में, यूएनडीपी डेटा तीन वर्षों- 2005-06, 2015-16 और 2019-21 का विवरण देता है। इस डेटा के मुताबिक, भारत में साल 2005-06 में 55.1 फीसदी आबादी यानी 64.5 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से पीडि़त थे। 10 साल बाद 2015-16 में यह आंकड़ा 27.7 फीसदी यानी 37 करोड़ तक पहुंच गया। इन 10 वर्षों के दौरान गरीबी के प्रतिशत में कमी की दर सालाना 6.6 प्रतिशत रही। लेकिन 2015-16 से 2019-21 की अवधि में, बहुआयामी गरीबी से पीडि़त गरीबों का अनुपात घटकर जनसंख्या का केवल 16.4 प्रतिशत रह गया और गरीबों की संख्या घटकर केवल 23 करोड़ रह गई।

यानी सिर्फ 5 साल में 14 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आ गए और गरीबी कम होने की रफ्तार बढक़र सालाना 10 फीसदी से भी ज्यादा हो गई। यह बताना महत्वपूर्ण है कि 2015-16 और 2019-21 के बीच, केवल 5 वर्षों में गरीबों की संख्या में 38 प्रतिशत की गिरावट आई है, जिसमें एक वर्ष से अधिक की सबसे खराब महामारी भी शामिल है। ऐसे में यह समझना जरूरी होगा कि इस दौरान ऐसा क्या खास हुआ कि गरीबी कम करने में अभूतपूर्व तेजी आई, जिससे यूएनडीपी को भारत की तारीफ करनी पड़ी। ये भारत के लिए तो अच्छी खबर है ही, दुनिया के लिए भी ये एक अहम खबर और सबक है। चूंकि यूएनडीपी ने बहुआयामी गरीबी के जो आंकड़े प्रकाशित किए हैं, वे अलग-अलग वर्षों के हैं, यूएनडीपी द्वारा मूल्यांकन किए गए 81 देशों (जिनके बारे में एजेंसी ने डेटा प्रकाशित किया है) के 150.8 करोड़ गरीब लोगों में से 64.5 करोड़ लोग भारत से थे। यानी इन 81 देशों के 42.8 फीसदी से ज्यादा गरीब भारत में रहते थे। लेकिन यूएनडीपी के ताजा आंकड़े बताते हैं कि दुनिया के इन 81 देशों में गरीबों की कुल संख्या अब घटकर 97.4 करोड़ हो गई है, लेकिन इसमें उल्लेखनीय और दिलचस्प तथ्य यह है कि इस संख्या में भारत का योगदान केवल 230 करोड़ ही है। यानी अब इन 81 देशों के केवल 23.7 प्रतिशत गरीब लोग ही भारत से आते हैं। इसका मतलब यह भी है कि बहुआयामी गरीबी के तहत लोगों की संख्या में कुछ अन्य देशों का योगदान पहले से ही बढ़ गया है। इतना ही नहीं, जहां 81 देशों का संयुक्त बहुआयामी गरीबी सूचकांक अब 0.275 से घटकर 0.203 पर आ गया है, वहीं भारत का सूचकांक 2005-06 में 0.283 से घटकर 2015-16 में 0.122 और 2019-21 में सिर्फ 0.069 पर आ गया है जो कि एक बड़ी उपलब्धि है। यह भारत के लिए गर्व की बात है और दुनिया के लिए चिंता का कारण है। दुनिया को इससे सबक लेने की जरूरत है कि उसे भी भारत की तर्ज पर बहुआयामी गरीबी दूर करने के प्रयासों में तेजी लानी चाहिए।

भारत का मॉडल है क्या?

नरेंद्र मोदी सरकार का बहुआयामी गरीबी के निर्धारकों पर विशेष ध्यान रहा। आज भारत में बाल मृत्यु दर घटकर मात्र 1.5 प्रतिशत रह गई है जो 2015-16 में 2.2 प्रतिशत थी। यह भारतीय बच्चों के पहले से बेहतर स्वास्थ्य का जीता जागता सबूत है। पोषण और कुपोषित बच्चों के प्रतिशत में भी भारी सुधार हुआ है जो 2005-06 में 44.3 प्रतिशत से घटकर 2015-16 में 21.1 प्रतिशत और 2019-21 में केवल 11.8 प्रतिशत रह गया है। आवास की बात करें तो पिछले 8 वर्षों में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत शहरी और ग्रामीण दोनों मिलाकर लगभग 3 करोड़ घर बनाए गए हैं जिस पर केंद्र द्वारा 5 लाख करोड़ रुपए (लगभग 60 अरब डॉलर) की सहायता दी गई है। कोरोना के कारण सबके लिए पक्के आवास का लक्ष्य समय पर पूरा नहीं हो सका, लेकिन अब तक मुश्किल से कुछ लाख लोग ही बचे हैं जिनके पास पक्का घर नहीं है। यूएनडीपी के अनुसार वर्ष 2015-16 में कुल 23.5 प्रतिशत आबादी पक्के और आरामदायक घरों से वंचित थी और 2019-21 में केवल 13.6 प्रतिशत। नरेंद्र मोदी सरकार की एक और महत्वाकांक्षी योजना हर घर नल से जल (सभी घरों तक पाइप से पानी) पर तेजी से काम हुआ है और अब यूएनडीपी के अनुसार 2019-21 में केवल 2.7 प्रतिशत आबादी सुरक्षित पेयजल से वंचित थी। स्वच्छता की बात करें तो पिछले 8 वर्षों में 11 करोड़ शौचालयों का निर्माण किया गया है। प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत मार्च 2023 तक गरीब महिलाओं को 9.59 करोड़ गैस कनेक्शन दिए जा चुके हैं और मार्च 2023 तक देश में कुल 31.26 करोड़ एलपीजी गैस कनेक्शन थे। ऐसा माना जाता है कि हमारी आबादी का बहुत कम प्रतिशत बचा है जिसके पास एलपीजी गैस कनेक्शन के रूप में स्वच्छ खाना पकाने के ईंधन तक पहुंच नहीं है। आज देश के दूरदराज के गांवों तक भी बिजली पहुंच चुकी है और सरकार का दावा है कि देश के 100 प्रतिशत गांवों में बिजली पहुंच चुकी है। ये दुनिया के लिए एक सबक है। बहुआयामी गरीबी को भी दूर किया जा सकता है, इसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति और आवश्यक प्रयासों की जरूरत है। इस तरह पिछले कुछ वर्षों में भारत ने बेहतर काम किया है।

डा. अश्वनी महाजन

कालेज प्रोफेसर


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