दूसरों को उपदेश देना

By: Jul 15th, 2023 12:14 am

बाबा हरदेव
गतांक से आगे…
हे बाली तूने छोटे भाई की पत्नी को रनिवास में रखा है। हे मूर्ख! छोटे भाई की पत्नी, बेटे की पत्नी, बहन और कन्या के समान होती है। तेरा यह पाप क्षमा के योग्य नहीं है। भगवान राम कहते हैं जिसका मन निर्मल है, जिसका आचरण सही है, ऐसा संत मुझे प्रिय है और वही मुझे पा सकता है।
निर्मल मन जन सो मोहि पावा।
मोहि कपट छल-छिद्र न भावा।।
रामचरितमानस-43 (3)
जिनके हृदय में छल-कपट, वैर-विरोध और ऊंच-नीच की भावना है, ऐसे लोग ऊपर से अच्छा स्वभाव प्रकट भी करें, दूसरों को अच्छे उपदेश भी दें और अच्छा प्रभाव डालने के लिए कुछ शुभ कर्म भी करें, परंतु यदि मन शुद्ध नहीं है, तो इन कर्मों से वे प्रभु प्रेमी नहीं बन सकते। समाज में ऐसे लोग बहुसंख्यक हैं जो दूसरों को उपदेश देने में कुशल हैं। ऐसे लोग अपने चरित्र की ओर ध्यान नहीं देते। हम अपनी नजर को पारखी बनाएं और अंतर्मुखी होकर अपनी कमियों को परखें और उनमें सुधार लाए। जो सदा अपनी कमियों पर ध्यान देता है, सच्चे मन से अपनी गलतियों को स्वीकारता है और उनमें सुधार लाता है वह एक दिन चरित्रवान बन जाता है। ऐसे संतों के चरित्र दूसरों के लिए आदर्श बन जाते हैं।

श्रेष्ठ पुरुषों के चरित्र को अन्य लोग आदर्श मानकर उनका अनुसरण करते हैं। भगवान श्रीकृष्ण जी गीता में फरमाते हैं जिन का कर्म पवित्र और जिनका चरित्र ऊंचा है, ऐसे संत मेरा ध्यान करते हुए मुझ में ही समा जाते हैं। ऐसे संतों का चलना-फिरना, खाना-पीना, सोना-जागना सब मेरे ही अर्पण होता है अंत में मेरा सुमिरन करते हुए मुझ को ही प्राप्त होते हैं। चरित्र निर्माण के लिए सभी स्वतंत्र हैं, समर्थ योग्य और अधिकारी हैं। यदि सद्गुरु का आश्रय लेकर स्वयं को समर्पित कर दिया जाए, तो सद्गुरु स्वत: ही आ जाते हैं, इसलिए सद्गुणों का संग्रह और दुर्गुणों का त्याग करते रहना चाहिए। जो दिव्य गुणों को धारण करता है उसका व्यक्तित्व पवित्र गुणों की सुगंध बिखेरता है। हर मानव में हीरे ज्वाहरात जैसी भावनाएं दबी होती हैं इसलिए माता-पिता को चाहिए कि बच्चों के पालन-पोषण, स्वास्थ्य और शिक्षा आदि के साथ-साथ उनके चरित्र की ओर भी ध्यान दें, उन्हें अच्छे संस्कार दें। बच्चों को महान संतों की जीवनियां और चरित्र कहानी रूप में सुनाएं, क्योंकि बच्चे कहानी सुनने में रुचि रखते हैं। बच्चों को सत्संग में साथ लाएं, जिससे सत्संग की ओर उनकी रुचि बनेगी।

इन सद्कर्मों से हर बच्चे के चरित्र का निर्माण होगा और वह बड़ा होकर धनी व्यक्तित्व का मालिक बनेगा। कुछ बच्चे बड़े होकर कुछ ऐसे कार्य कर देते हैं, जिससे माता-पिता और समाज को उन पर गर्व होता है। आज के बच्चे कल के कर्णधार हैं इसलिए यह और भी जरूरी है कि बच्चों में अच्छे संस्कार हों। बच्चे सचरित्र और गुणवान हों तभी वे एक अनंत समाज का निर्माण कर सकते हैं। शास्त्रों के अनुसार माता-पिता लक्ष्मी-नारायण का स्वरूप होते हैं। संतान को चाहिए कि वे इसी रूप में अपने माता-पिता व बुजुर्गों का आदर-सम्मान करके उनसे आशीर्वाद प्राप्त करें। यह तभी संभव है यदि बच्चों के चरित्र निर्माण में शुरू से ही ध्यान दिया जाए। आज बाबा हरदेव सिंह जी महाराज की असीम कृपा से हर शहर और कस्बे में बाल संगतों का आयोजन होता है। जो बच्चे इन संगतों में भाग लेते हैं और ध्यान से सत्संग सुनते हैं, सुंदर वचनों को अपनाते हैं, उनमें सद्गुण व सदाचार आते हैं और वे उत्तम चरित्रवान मानव बन कर समाज व संसार की शोभा बनते हैं। –क्रमश:


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