आत्मा की मुक्ति

By: Jul 8th, 2023 12:14 am

स्वामी विवेकानंद

गतांक से आगे…
प्रत्येक वस्तु का अपना स्थान निश्चित होता है यदि किसी में दूसरे से अधिक क्षमता हो, तो संसार उसका भी पता लगा लेगा। इस विश्व व्यवस्था में ऐसा ही होता आया है अत: असंतुष्ट रहने से कोई लाभ नहीं। कोई धनी व्यक्ति दुष्ट हो सकता है किंतु उसमें कुछ गुण भी अवश्य होंगे, जिन्होंने उसे धनवान बनाया। यदि किसी दूसरे व्यक्ति में भी वे ही गुण हों, तो वह भी धनी बन जाएगा। तब झगड़ा करने और शिकायत करने से लाभ ही क्या? उसमें हमें अच्छी बातों की ओर बढऩे में सहायता नहीं मिलेगी।

प्रत्येक कत्र्तव्य में रस लो, उसे कोसो मत
जो अपने हिस्से में आए हुए छोटे से काम को करते समय भी बुदबुदाता है, वह हरेक काम में बुदबुदाएगा। सदैव बुदबुदाते हुए वह एक दु:खपूर्ण जीवन बिताएगा और प्रत्येक कार्य में असफल होगा। किंतु वह व्यक्ति जो अपने कत्र्तव्य को पूरी शक्ति के साथ करता रहेगा, पहिए से अपना कंधा लगाए अंत में वह अवश्य ही फल पाएगा और अधिकाधिक उत्तरदायित्व निभाने का अवसर उसे मिलेगा। फल के प्रति आसक्ति रखने वाला कार्यकर्ता ही अपनी पूरी शक्ति के साथ उत्तरदायित्वों को निभाने में हिचकिचाहट दिखाता है। निरासक्त कार्यकर्ता के लिए सब कत्र्तव्य बराबर हैं अच्छे हैं।

प्रत्येक कत्र्तव्य उसके लिए स्वार्थ और विषयलोलुपता का उन्मूलन करने के लिए एक सुंदर अस्त्र बनकर आता है, उसके द्वारा वह आत्मा की मुक्ति प्राप्त करता है। असंतोषी को सब कत्र्तव्य अरुचिकर लगते हैं वह कभी संतुष्ट नहीं हो सकेगा और उसका संपूर्ण जीवन असफलता की कहानी बनकर रहेगा। हम कार्य करते चलें, जो कार्य हमारे हिस्से में आए उसे करें और उस कार्य के चक्र में अपना कंधा लगाए रहें, तब हमें उस ज्योतिर्मय के दर्शन होना निश्चित है। कोई कार्य तुच्छ नहीं। यदि मनपसंद कार्य मिल जाए, तो मूर्ख भी उसे पूरा कर सकता है किंतु बुद्धिमान पुरुष वही है जो प्रत्येक कार्य को अपने लिए रुचिकर बना ले। इस संसार में प्रत्येक वस्तु वटवृक्ष के बीज के समान है, जो यद्यपि देखने में तो सरसों के दाने के समान लघु दिखाई पड़ता है तथापि अपने अंदर विशाल वटवृक्ष को छिपाए हुए है। सचमुच महान वही है जो यह बात परख कर प्रत्येक कार्य को महान बनाने में सफलता प्राप्त कर दिखाए।

आत्मनिरीक्षण करो, अन्य को दोष मत दो
हमें यह जान लेना चाहिए कि हम तब तक कुछ नहीं बन सकते जब तक हम स्वयं ही उसके लिए तैयार न हों। जब तक शरीर की तैयारी न हो, कोई रोग पास नहीं फटक सकता। रोग का आगमन केवल कीटाणुओं पर ही नहीं निर्भर करता, अपितु शरीर में उसके लिए विद्यमान अनुकूलता पर भी निर्भर करता है। हम जिसके योग्य हैं वह हमें मिलता है। हम अपना घमंड छोड़ें और इस बात को समझ लें कि अकारण दु:ख कभी नहीं आता कोई अघात बिना उसका पात्र बने नहीं लगता। कोई बुराई नहीं थी जिसके लिए मैंने अपने हाथों रास्ता तैयार न किया हो, यह हमें समझ लेना चाहिए। अपना विश£ेषण करो, तो तुम्हें पता लग जाएगा कि तुम्हें प्रत्येक अघात मिला क्योंकि तुमने स्वयं को उसके लिए तैयार किया। – क्रमश:


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