लक्ष्य पूरा करना

By: Jul 15th, 2023 12:15 am

श्रीराम शर्मा

दूसरों को न तो खींच सकते हैं और न दबा सकते हंै। बाहरी दबाव क्षणिक होता है। बदलता तो मनुष्य अपने आप है अन्यथा रोज उपदेश, प्रवचन सुनकर भी इस कान से उस कान निकाल दिए जाते हैं। दबाव पडऩे पर बाहर से कुछ दिखा दिया जाता है, भीतर कुछ बना रहता है।
इन विडंबनाओं से क्या बनना है। बनेगा तो अंत:करण के बदलने से और इसके लिए आत्म प्रेरणा की आवश्यकता है। क्रांति अपने से ही आरंभ होगी। हम आत्म निर्माण में प्रवृत्त होकर ही समाज निर्माण का लक्ष्य पूरा कर सकेंगे। युग निर्माण परिवार के प्रत्येक सदस्य को अपनी स्थिति अनुभव करना चाहिए।
उसे विश्वास करना चाहिए कि उसने दैवी प्रयोजन के लिए यह जन्म लिया है। इस युगसंधि वेला में उसे विशेष उद्देश्य के लिए भेजा गया है। उसे शिश्नोदर परायण नर कीटकों की पंक्ति में अपने को नहीं बिठाना है। उसे लोभ-मोह के लिए नहीं सडऩा, मरना है। यह समय ऐसा है जैसा किसी-किसी सौभाग्यशाली के ही जीवन में आता है।
कितने व्यक्ति किन्हीं महत्त्वपूर्ण अवसरों की तलाश में रहते हैं। उन्हें उच्च स्तरीय प्रयोजनों में असाधारण भूमिका संपादित करने का सौभाग्य मिले और वे अपना जीवन धन्य बनाएं।
यह अवसर युग निर्माण परिवार के सदस्यों के सामने मौजूद है। उन्हें इसका समुचित सदुपयोग करना चाहिए। इस समय की उपेक्षा उन्हें चिरकाल तक पश्चाताप की आग में जलाती रहेगी।
यदि हम दूसरे तथाकथित समाजसेवियों की तरह बाहरी दौड़ धूप तो बहुत करें, पर आत्म चिंतन, आत्म सुधार, आत्म निर्माण और आत्म विकास की आवश्यकता पूरी न करें तो हमारी सामथ्र्य स्वल्प रहेगी और कुछ कहने लायक परिणाम न निकलेगा। लोक निर्माण व्यक्ति पर अवलंबित है और व्यक्ति निर्माण का पहला कदम हमें अपने निर्माणों के रूप में ही उठाना होगा।
युग परिवर्तन की अग्रिम पंक्ति में जिन्हें घसीटा या धकेला गया है उन्हें अपने को आत्मा का, परमात्मा का प्रिय भक्त ही अनुभव करना चाहिए और शांत चित्त से धैर्यपूर्वक उस पथ पर चलने की सुनिश्चित तैयारी करनी चाहिए। यदि आत्मा की पुकार अनसुनी करके वे लोभ-मोह के पुराने ढर्रे पर चलते रहे, तो आत्म धिक्कार की इतनी विकट मार पड़ेगी कि झंझट से बच निकलने और लोभ-मोह को न छोडऩे की चतुरता बहुत मंहगी पड़ेगी।
अपनी यह आस्था चट्टान की तरह अडिग होनी चाहिए कि युग बदल रहा है, पुराने सड़े-गले मूल्यांकन नष्ट होने जा रहे हैं। दुनिया आज जिस लोभ-मोह और स्वार्थ, अनाचार से सर्वनाशी पथ पर दौड़ रही है, उसे वापस लौटना पड़ेगा।
अंध परंपराओं और मूढ़ मान्यताओं का अंत होकर रहेगा। अगले दिनों न्याय, सत्य और विवेक की ही विजय वैजयंती फहरायेगी। बदलाव ही प्रकृति का नियम है और इसके साथ मनुष्य को भी चलना चाहिए।
अगर समय रहते मानव इस नियम को अपना ले, तो उसके लिए कुछ भी कठिन नहीं होगा। वह अपने रास्ते में आने वाली हर बाधा को पार कर सकता है। जीवन में आने वाली चुनौतियों को अपने पुरुषार्थ के साथ पूरा कर सकता है।


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