शिव कौन हैं…
सद्गुरु जग्गी वासुदेव
भारत में लगभग हर साधारण आदमी इस बारे में अचेतन रूप से जानता है। इसके पीछे के विज्ञान को जाने बिना भी वह इस बारे में बात करता है। एक दूसरे स्तर पर, जब हम शिव कहते हैं, तो हम एक खास योगी की बात कर रहे होते हैं, आदियोगी या पहले योगी और आदिगुरु या पहले गुरु भी। आज हम जिसे विज्ञान के रूप में जानते हैं, वह उसका आधार है….
जब हम शिव कहते हैं, तो हम दो बुनियादी पहलुओं की बात कर रहे होते हैं। शब्द शिव का सही अर्थ है, वह जो नहीं है। आज आधुनिक विज्ञान हमारे लिए सिद्ध कर रहा है कि हर चीज कुछ नहीं से आई है और वापस कुछ नहीं में चली जाएगी। अस्तित्व का आधार और ब्रह्मांड का मौलिक गुण विशाल यानी शून्यता है। आकाशगंगाएं बस एक छोटी सी घटना हैं, एक फुहार की बूंदों जैसी। बाकी सब पूरा रिक्त स्थान है, जिसे शिव का रूप बताया जाता है। वही गर्भ है जिससे हर चीज पैदा हुई है और वही शून्यता है जिसमें हर चीज वापस सोख ली जाती है। हर चीज शिव से आती है और और वापस शिव में चली जाती है। तो शिव का वर्णन एक प्राणी के रूप में नहीं, बल्कि एक अ-प्राणी या अनस्तित्व की तरह किया जाता है। शिव को प्रकाश के रूप में नहीं, बल्कि अंधकार के रूप में बताया जाता है।
मानवता के द्वारा प्रकाश का गुणगान करने का कारण उनके देखने के यंत्र (आंखों) की प्रकृति है। वरना जो चीज हमेशा है वह सिर्फ अंधकार है। प्रकाश इस मायने में एक सीमित घटना है कि प्रकाश का कोई भी स्रोत, चाहे वह एक बल्ब हो या सूर्य प्रकाश देने की अपनी क्षमता को अंतत: खो देगा। प्रकाश शाश्वत नहीं है। यह हमेशा एक सीमित संभावना है क्योंकि यह घटित होता है और खत्म हो जाता है। अंधकार प्रकाश से एक कहीं अधिक बड़ी संभावना है। कुछ भी जलने की जरूरत नहीं है, यह सदैव है यह शाश्वत है। अंधकार हर जगह है। सिर्फ यही वो चीज है जो सर्वत्र व्याप्त है। लेकिन अगर मैं कहता हूं ईश्वरीय अंधकार तो लोग सोचते हैं कि मैं कोई शैतान का पुजारी या वैसा कुछ हूं। असल में पश्चिम में कुछ जगहों पर यह फैलाया जा रहा है कि शिव एक दैत्य हैं। लेकिन अगर आप इसे एक अवधारणा के रूप में देखते हैं ,तो धरती पर सृजन की पूरी प्रक्रिया और यह कैसे घटित हुई है, इस बारे में इससे ज्यादा बुद्धिमानी की अवधारणा नहीं है। मैं विज्ञान के संदर्भ में, दुनियाभर के वैज्ञानिकों से, शिव शब्द का इस्तेमाल किए बिना, इसके बारे में बात करता रहा हूं और उन्हें आश्चर्य होता है क्या ऐसा है? यह बात पता थी, कब? हम यह हजारों सालों से जानते हैं।
भारत में लगभग हर साधारण आदमी इस बारे में अचेतन रूप से जानता है। इसके पीछे के विज्ञान को जाने बिना भी वह इस बारे में बात करता है। एक दूसरे स्तर पर, जब हम शिव कहते हैं, तो हम एक खास योगी की बात कर रहे होते हैं, आदियोगी या पहले योगी और आदिगुरु या पहले गुरु भी। आज हम जिसे विज्ञान के रूप में जानते हैं, वह उसका आधार है।
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