चिकित्सा विज्ञान की खूबियां-खामियां

By: Aug 31st, 2023 12:06 am

हमारे चिकित्सा विज्ञान की सबसे बड़ी असफलता यह है कि यह भावनात्मक घावों को समझने और ठीक कर पाने में पूरी तरह से असफल है। दावा चाहे कुछ भी किया जाए, कोई भी प्रणाली सिर्फ शरीर के इलाज तक ही सीमित है। कोई भी प्रणाली मन का पूरा और सही-सही इलाज कर पाने में पूरी तरह से विफल है और उसके लिए आध्यात्मिक उपचार के अलावा और कोई साधन है ही नहीं। अब समय आ गया है कि हम अपने ज्ञान के अहंकार को छोडक़र आध्यात्मिक उपचार का महत्त्व समझें, और जहां जरूरत हो इसका उपयोग करके रोगी को सम्यक सेहत का उपहार दें…

आधुनिक समय में चिकित्सा विज्ञान ने बहुत प्रगति की है और तकनीक तथा अनुभव के मेल से चिकित्सा जगत से जुड़े लोग लाखों-करोड़ों मरीजों को जीवनदान दे रहे हैं। चिकित्सा जगत के शोध हमें नई राह दिखाते हैं और जीवन कुछ और आसान हो जाता है। आइए, चिकित्सा विज्ञान में हुए शोध की कुछ मुख्य बातों को समझने की कोशिश करते हैं। चिकित्सा विज्ञान मानता है कि हमारा शरीर एक सुपर कंप्यूटर है और अस्सी प्रतिशत बीमारियों को ये खुद ही ठीक कर सकता है, बिना किसी दवाई के। वस्तुत: आयुर्वेद तो यह भी कहता है, और जिसे अनुभव ने सिद्ध भी किया है, कि आम बुखार और सिरदर्द जैसी बीमारियां, जिन्हें हम बीमारी मानते हैं, बीमारी हैं ही नहीं बल्कि ये शरीर की किसी अन्य खराबी का संदेश देते हैं। ये सिर्फ संदेशवाहक हैं और दवाई लेकर हम इन संदेशवाहकों को चुप करवा देते हैं, उनका संदेश सुनते ही नहीं और असल रोग ठीक होने के बजाय अंदर ही अंदर पनपता चलता है जो बाद में कहीं ज्यादा कष्टप्रद रोग के रूप में सामने आता है। चिकित्सा विज्ञान यह मानता है कि बुखार को यदि बर्दाश्त करके खाने-पीने में उचित परहेज कर लिया जाए तो बुखार दो-तीन दिन में खुद ही ठीक हो जाता है और बुखार के कारण शरीर के अंदर जमा गंदगी को बाहर निकलने का रास्ता मिल जाता है, जिससे हम आने वाली बड़ी कठिनाई से मुक्ति पा लेते हैं। चिकित्सा विज्ञान यह भी स्वीकार करता है कि अस्सी प्रतिशत बीमारियां ऐसी हैं जिन्हें विज्ञान सेल्फ लिमिटिंग डिसीजिज मानता है, यानी ये बीमारियां ऐसी हैं जो ज्यादा बिगड़ती नहीं हैं, अत: इनके इलाज के लिए दवाई की नहीं बल्कि धीरज, आराम और परहेज की जरूरत होती है।

दवाई लेकर तो हम दरअसल बीमारी को और बढ़ाते हैं क्योंकि दवाई से बुखार दब जाता है और शरीर को अपनी सफाई का मौका नहीं मिल पाता। चिकित्सा विज्ञान की सबसे बड़ी उपलब्धि यह स्वीकार करना है कि अस्सी प्रतिशत बीमारियों का कारण हमारी भावनाओं से जुड़ा है। बचपन में या बाद में कभी भी निरंतर अपमान सहने, मारपीट सहने, चिढ़ाए जाने आदि के बाद उसका प्रतिकार न कर पाने के कारण अगर हम खुद को बेबस पायें तो हमारे मन को जो चोट लगती है वह हमारे अवचेतन मन में गहरे बैठ जाती है और उससे उपजी आत्मग्लानि, जीवन में किसी न किसी रोग के रूप में सामने आती है। लेकिन यही शोध चिकित्सा विज्ञान की एक बड़ी असफलता की ओर भी इशारा करता है। चिकित्सा विज्ञान की कोई भी प्रणाली भावनात्मक घावों को समझने और ठीक कर पाने में पूरी तरह से असमर्थ है। दावा चाहे कुछ भी किया जाए, एलोपैथी, होम्योपैथी, आयुर्वेद या विश्व में प्रचलित अन्य वैकल्पिक चिकित्सा प्रणालियां, कोई भी प्रणाली सिर्फ शरीर के इलाज तक ही सीमित है। उच्च शिक्षित मनोचिकित्सक भी मन में छुपे घावों का सही इलाज कर ही पायें, इसकी कोई गारंटी नहीं है। यही वह मुकाम है जहां आकर हमें आध्यात्मिक उपचार की महत्ता समझ में आती है, पर हम आध्यात्मिक उपचार की बात करें, उससे पहले चिकित्सा विज्ञान की कुछ और मान्यताओं पर भी बात कर लेना उपयोगी होगा। हम जानते ही हैं कि हमारी भावनाओं का हमारी सेहत से गहरा रिश्ता है, और प्रयोगों से यह सिद्ध हो चुका है कि प्लैसीबो इफैक्ट भी दवाई की तरह काम करता है, यानी, अगर किसी रोगी को यह कहा जाए कि उसे दवाई दी जा रही है और दवाई की जगह सादा पानी, चीनी या नमक, या कुछ भी ऐसा दे दिया जाए, तो भी रोगी इस तसल्ली से ही ठीक होना शुरू हो जाता है कि उसे रोग की दवाई मिल गई। इसी तरह यह भी सिद्ध हो चुका है कि यदि रोगी के आसपास के वातावरण को खुशनुमा बना दिया जाए, रोगी के मन में आशा का संचार किया जाए, तो बहुत संभव है कि रोगी अपने किसी अत्यंत गंभीर रोग से भी उबर जाए, जल्दी ठीक होना शुरू हो जाए, तेजी से ठीक होना शुरू हो जाए, या उसकी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाए और वह डाक्टरों की उम्मीद से कहीं ज्यादा लंबा जीवन जीने के काबिल हो जाए।

इसके विपरीत यदि किसी रोगी को डाक्टर ये बताए कि उसका रोग इतना गंभीर है कि वह कुछ ही महीनों का मेहमान है, तो यह बाकायदा संभव है कि उसकी मानसिक निराशा के कारण उसकी शारीरिक हालत और बिगड़ जाए और वह रोगी अपने समय से बहुत पहले ही मृत्यु को प्राप्त हो जाए। एक बड़ा सच यह भी है कि चिकित्सा विज्ञान की अब तक की प्रगति के बावजूद, यह स्वयंसिद्ध है कि चिकित्सा की कोई एक प्रणाली शत-प्रतिशत सफल नहीं है, अत: किसी डाक्टर, वैद्य, हकीम, प्राकृतिक चिकित्सक या वैकल्पिक चिकित्सा प्रणाली से जुड़े चिकित्सक को एक से अधिक चिकित्सा प्रणालियों में महारत हासिल है तो रोगी को उससे ज्यादा लाभ मिलने की संभावना सबसे ज्यादा है, और यदि इनमें से कोई भी आध्यात्मिक चिकित्सा प्रणाली का भी पोषक हो तो उसकी महारत का स्तर कई गुणा बढ़ जाता है। कारण यह है कि चिकित्सा विज्ञान की पहुंच सिर्फ शरीर तक है जबकि अधिकांश बीमारियों का कारण मानसिक है और एक सीमा के बाद पारंपरिक मनोचिकित्सक भी बेबस हो जाते हैं, लेकिन अगर उनकी शिक्षा के साथ आध्यात्मिक चिकित्सा प्रणाली का ज्ञान भी शामिल हो जाए तो सोने पर सुहागा जैसी स्थिति हो जाती है क्योंकि पारंपरिक चिकित्सा शिक्षा शरीर की कार्यप्रणाली की जानकारी देती है और आध्यात्मिक चिकित्सा प्रणाली एक चिकित्सक के लिए रोगी के अवचेतन मन का दरवाजा खोल देती है।

अवचेतन मन तक पहुंच कर चिकित्सक रोग की जड़ को समझ सकता है, उसका निवारण कर सकता है और रोगी का स्थायी और सफल इलाज कर सकता है। चिकित्सा विज्ञान की सीमाओं की बात करें तो हम जानते हैं कि वैकल्पिक चिकित्सा प्रणाली की असफलता इस बात में है कि उनके पास रोग की गंभीरता को मापने और इलाज के दौरान रोगी की प्रगति को मापने का कोई विश्वसनीय साधन नहीं है, जबकि ऐलोपैथी की असफलता इस बात में है कि उसके ज्यादातर इलाज, इलाज हैं ही नहीं, वो बीमारी को ठीक नहीं करते, बस कुछ समय के लिए उसे दबा देते हैं और परिणाम ये होता है कि पहली बीमारी तो ठीक होती नहीं, पर उस बीमारी के कारण और उसकी दवाई के साइड इफैक्ट के कारण कुछ सालों बाद एक और ज्यादा बड़ी बीमारी भी रोगी को घेर लेती है, जिसका आखिरी परिणाम रोगी की असमय मृत्यु के रूप में सामने आता है। हमारे चिकित्सा विज्ञान की सबसे बड़ी असफलता यह है कि यह भावनात्मक घावों को समझने और ठीक कर पाने में पूरी तरह से असफल है। दावा चाहे कुछ भी किया जाए, कोई भी प्रणाली सिर्फ शरीर के इलाज तक ही सीमित है। कोई भी प्रणाली मन का पूरा और सही-सही इलाज कर पाने में पूरी तरह से विफल है और उसके लिए आध्यात्मिक उपचार के अलावा और कोई साधन है ही नहीं। अब समय आ गया है कि हम अपने ज्ञान के अहंकार को छोडक़र आध्यात्मिक उपचार का महत्त्व समझें, और जहां जरूरत हो इसका उपयोग करके रोगी को सम्यक सेहत का उपहार दें।

पीके खु्रराना

हैपीनेस गुरु

ई-मेल: indiatotal.features@gmail.com


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App