टमाटर की तासीर

छोटी चेरी तथा ग्रेप किस्मों के टमाटर छोटे होने के कारण पूरे खाये जाते हैं। भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने ऐसी किस्म तैयार की है जिसके एक पौधे पर 19-20 किलो टमाटर लगते हैं। कर्नाटक में कुछ वर्षों पूर्व इसकी खेती प्रारंभ की गयी थी। उत्तराखंड राज्य जैव विविधता परिषद के वैज्ञानिक इसकी एक झाड़ी समान विदेशी प्रजाति ‘टमरै-लो’ को भी उगाने का प्रयास कर रहे हैं। वैज्ञानिक आधार पर टमाटर एक प्रकार का सरस फल है, परंतु कई अन्य फलों की तरह इसमें मिठास नहीं होती है। वनस्पति विज्ञान में इस शाकीय पौधे को ‘लाइकोपर्सिकम एस्कुलेंटम’ कहते हैं जो ‘सोलोनेसी कुल’ का सदस्य है। यह विटामिन ए व सी के साथ पोटेशियम, कैल्शियम तथा फास्फोरस का भी अच्छा स्त्रोत है। फल को लाल रंग देने वाला रसायन ‘लायकोपीन’ कैंसर तथा हृदय रोग की रोकथाम में भी कारगर बताया गया है। पके फलों से इस रसायन को हमारा शरीर आसानी से अवशोषित कर लेता है। इसके अन्य औषधीय गुणों को जानने के लिए अनुसंधान किए जा रहे हैं…

आजकल अपनी चढ़ती-उतरती कीमतों से भारतीय बाजारों, रसोईघरों और होटलों में आतंक फैलाने वाला टमाटर अपनी शुरुआत के जमाने में क्या, कैसा था? क्या थी टमाटर की फितरत? इस आलेख में इसी विषय पर प्रकाश डालने की कोशिश करेंगे। वर्तमान में देश में कई चर्चित मुद्दे हैं जिनमें टमाटर की बढ़ी कीमत भी एक प्रमुख है। बढ़ी हुई कीमतों से यह हमारे भोजन की थाली से तो दूर हुआ ही है, परंतु इसकी लूट की भी कई घटनाएं हुई हैं। प्रमुख सब्जी के रूप में प्रचलित टमाटर की खोज 15वीं सदी में हुई थी। एक मान्यता के अनुसार टमाटर 700 ईसा पूर्व भी मौजूद था। मेक्सिको के आदिवासी अपनी भाषा में इसे टोमेटो कहते थे। आदिवासियों का शब्द टोमेटो अंग्रेजी में ऐसे ही स्वीकार कर लिया गया।

दक्षिणी अमेरिका के पेरू में पहली बार टमाटर की खेती की गयी थी। टमाटर की खोज के समय यह स्पष्ट नहीं था कि यह विषैला है या खाने योग्य। यूरोप में टमाटर 15 वीं सदी में ही पहुंच गया था, परंतु वहां लोग इसे 200 वर्षों तक खाने से डरते रहे एवं इसे ‘पाइजन-एपल’ कहा गया। इसका कारण यह था कि कई लोग टमाटर खाकर मर जाते थे। बाद में अध्ययन करने पर पाया गया कि मौत का कारण टमाटर नहीं, अपितु सीसे (लेड) की परत वाली प्लेट थी जिसमें रखकर टमाटर खाये जाते थे। प्लेट का सीसा टमाटर के साथ शरीर में जाकर मौत का कारण बनता था। कई  चिकित्सक भी 18वीं सदी तक इसे कैंसरजन्य एवं ‘ऐपीडी साइट’ का कारण मानते रहे। बाद में हुए कुछ अध्ययनों से पता चला कि इसका फल तो खाने योग्य है, परंतु इसकी पत्तियां एवं तना विषैला हो सकते हैं। फल को खाने योग्य माने जाने के बाद इसकी लोकप्रियता काफी बढ़ी। इटली एवं स्पेन के लोगों ने इसकी खेती शुरू की एवं इसका नाम ‘गोल्डन-एपल’ रखा गया। फ्रांस में टमाटर को ‘लव-एपल’ कहा गया।

26 सितम्बर 1820 को सेलम के कर्नल राबर्ट जॉनसन द्वारा दो-ढाई हजार लोगों के सामने टोकरी भर टमाटर खाने एवं कुछ नहीं होने पर अमेरिकी लोगों ने इसे फल व सब्जी के रूप में मान्य किया। अमेरिका के ही एक व्यापारी ने 1893 में यह दावा किया कि टमाटर एक फल है, इसलिए इस पर सब्जी-कर नहीं लिया जाए। वहां के उच्च न्यायालय ने इस दावे पर निर्णय दिया कि टमाटर ज्यादातर सब्जी के रूप में प्रयोग किया जाता है, अत: यह कर योग्य है। वर्तमान में टमाटर आलू एवं प्याज के समान ही लोकप्रिय है एवं विश्व की 10 लोकप्रिय सब्जियों में 06वें स्थान पर है।

हमारे देश में यह 16वीं सदी के प्रारंभ में पुर्तगालियों द्वारा लाया गया था। उस समय लोग इसे ‘विलायती बैंगन’ कहते थे। वर्तमान में इसकी खेती जिन ज्यादातर राज्यों में की जाती है, उनमें प्रमुख हैं महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, आंध्रप्रदेश एवं कर्नाटक। हमारे देश के अलावा चीन, तुर्की, ईरान, स्पेन एवं ब्राजील में भी यह काफी उगाया जाता है। इसकी बढ़ती लोकप्रियता के कारण कृषि वैज्ञानिकों ने इसकी कई किस्में तैयार की हैं। इन किस्मों में आकार, स्वाद एवं रंग में काफी भिन्नता है। छोटी चेरी तथा ग्रेप किस्मों के टमाटर छोटे होने के कारण पूरे खाये जाते हैं। भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने ऐसी किस्म तैयार की है जिसके एक पौधे पर 19-20 किलो टमाटर लगते हैं। कर्नाटक में कुछ वर्षों पूर्व इसकी खेती प्रारंभ की गयी थी। उत्तराखंड राज्य जैव विविधता परिषद के वैज्ञानिक इसकी एक झाड़ी समान विदेशी प्रजाति ‘टमरै-लो’ को भी उगाने का प्रयास कर रहे हैं।

वैज्ञानिक आधार पर टमाटर एक प्रकार का सरस फल है, परंतु कई अन्य फलों की तरह इसमें मिठास नहीं होती है। वनस्पति विज्ञान में इस शाकीय पौधे को ‘लाइकोपर्सिकम एस्कुलेंटम’ कहते हैं जो ‘सोलोनेसी कुल’ का सदस्य है। यह विटामिन ए व सी के साथ पोटेशियम, कैल्शियम तथा फास्फोरस का भी अच्छा स्त्रोत है। फल को लाल रंग देने वाला रसायन ‘लायकोपीन’ कैंसर तथा हृदय रोग की रोकथाम में भी कारगर बताया गया है। पके फलों से इस रसायन को हमारा शरीर आसानी से अवशोषित कर लेता है। इसके अन्य औषधीय गुणों को जानने के लिए अनुसंधान किये जा रहे हैं। स्पेन के ब्यूनाल में एक-दूसरे पर टमाटर फेंकने और उसके रस में भीगने का एक वार्षिक त्यौहार ‘ला-टामेटिया’ मनाया जाता है। इसे मनाने हेतु लगभग एक लाख किलो टमाटर का उपयोग किया जाता है।

अब टमाटर की बढ़ती कीमतों पर चर्चा अपरिहार्य है। भारत में ज्यादातर राज्यों में टमाटर के दामों को इन दिनों आग लगी हुई है। कुछ राज्यों में राज्य सरकारों तथा केंद्र सरकार की ओर से सस्ते दामों पर टमाटर बेच कर बाजार में इसके भावों को कम करने की कोशिश भी की जा रही है, इसके बावजूद दाम कम होने का नाम नहीं ले रहे हैं। यह भी दुर्भाग्य की बात है कि टमाटर खाने को हतोत्साहित करने के लिए इसे इस तरह प्रचारित किया जा रहा है कि टमाटर खाने से तो बीमारियां हो रही हैं।

कीमतें कम करने के लिए प्रयास किए जाने के बजाय यह दुष्प्रचार किया जा रहा है, लेकिन जनता सब कुछ जानती है। पत्रकार अगर टमाटर की बढ़ती कीमतों पर कोई सवाल करते हैं, तो सरकार के मंत्री भडक़ जाते हैं और असंतोषजनक जवाब देते हैं। केंद्र सरकार को टमाटर के दाम नीचे लाने के लिए खुद स्टाल लगाकर नो लॉस, नो प्रोफिट आधार पर टमाटर बेचना चाहिए। तभी इसकी कीमतों पर अंकुश लगेगा। जहां तक हिमाचल की बात है, तो मंडियों में टमाटर करीब 80 रुपए से 100 रुपए किलो बिक रहा है, लेकिन जैसे ही यह बाजार में पहुंचता है, तो दुकानदार इसे लगभग दुगने दामों में इन दिनों बेच रहे हैं। विभिन्न सरकारें इसके दाम करने के लिए प्रयास जरूर कर रही हैं, लेकिन अभी काफी कुछ किया जाना शेष है। यह भी एक तथ्य है कि कुछ किसान टमाटर बेचकर करोड़पति बने हैं।

डा. ओ. पी. जोशी

स्वतंत्र लेखक

-(सप्रेस)


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App