भूस्खलन का दौर, कसूरवार कौन?

इससे जान जोखिम में पड़ सकती है, लेकिन प्रशासन के आगाह करने के बावजूद जान को हथेली पर रख पर्यटक नदी-नालों में घुस जाते हैं…

हिमाचल प्रदेश का नाम जुबान पर आने पर ही सौंदर्यपूर्ण प्रकृति, कल-कल करते झरने-नदी, खूबसूरत वादियों, स्वच्छ वातावरण का चित्र मन में चित्रित होने लगता है तथा इनका लुत्फ उठाने पर्यटक पहाड़ों की तरफ निकल जाते हैं, लेकिन प्रकृति के अन्धाधुंध दोहन से बरसात के दिनों में मानो यह समस्त प्रकृति पहाड़, नदियां, पेड़ सब नीचे घूमने आ जाते हैं।
आजकल के दिनों में सोशल मीडिया में एक मीम्स तेजी से वायरल हो रही है कि ‘बरसात में पहाड़ों पर घूमने न जाएं क्योंकि आजकल पहाड़ खुद घूमने नीचे आ रहे हैं।’ कहीं न कहीं यह कहावत सच्चाई को बयान कर रही है। आज हिमाचल प्रदेश के ऊपरी इलाकों में जनजीवन अस्त व्यस्त हो गया है। जान बचाना दूभर हो गया है। पशु बह गए, घर बह गए, अपने संबंधी बह गए, गाड़ी बह गई, बचा तो केवल चारों तरफ पानी और मलबा। यही हाल हंै कुल्लू, मण्डी सहित हिमाचल के अन्य बाढ़ प्रभावित इलाकों के। सबसे ज्यादा नुकसान तो सरकार को सडक़ों के बह जाने का उठाना पड़ रहा है जहां सैंकड़ों सडक़ें अभी भी ठप्प पड़ी है तो कईयों का तो जहां सडक़ थी वहां से नामोनिशान ही मिट गया है। आखिर जीवन की गाड़ी को पटरी पर लाएं भी तो कैसे लाएं। पुल ही बह गए हैं जिससे स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। सैंज घाटी में तो बिजली, पानी, राशन, नैटवर्क सभी व्यवस्थाएं ठप्प पड़ी हैं। यहां तक कि राशन हवाई मार्ग से पहुंचाना पड़ा, ऐसी नौबत आ गई थी। हिमाचल प्रदेश में यह बरसात आफत बन कर बरसी है। 24 जून से मानसून आने के बाद से अब तक बारिश से जुड़ी घटनाओं और सडक़ दुर्घटनाओं में 183 लोगों की मौत हो चुकी है। राज्य के इमरजेंसी रेस्पोंस सेंटर के अनुसार तैंतीस लोग लापता हैं। प्रशासन के मुताबिक इस सीजन में बेतहाशा बारिश से राज्य को लगभग 5492 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। हिमाचल प्रदेश में अब तक 652 घर पूरी तरह तबाह हो गए हैं, जबकि छह हजार 686 घरों को आंशिक तौर पर नुकसान पहुंचा है। इसके अलावा 236 दुकानें और लगभग दो हजार 37 पशु घर तबाह हो गए हैं। हिमाचल प्रदेश में 24 जून से लेकर अब तक का 67 लैंडस्लाइड की घटनाएं और 51 फ्लैश फ्लड की घटनाएं दर्ज की गई हैं। यह नुकसान कहीं अधिक भी हो सकता है क्योंकि निरंतर अभी भी भूस्खलन की घटनाएं निरंतर घट रही हैं जिससे लोगों का जीवन पर संकट छा गया है।

मौसम वैज्ञानिक मानते हैं कि इस आपदा के लिए केवल जलवायु परिवर्तन ही जिम्मेवार नहीं है बल्कि कई मानवीय कारण भी इसके पीछे जिम्मेवार हैं। जैसे नदी-नालों पर अतिक्रमण, पहाड़ों को छिलना, अवैध खनन भी कहीं न कहीं इसके लिए जिम्मेवार है। माता हिडिंबा भी गुर के माध्यम से चेता चुकी है कि सुधर जाओ वरना व्यास नदी को अपने कदमों तक ले आऊंगी तो इस प्रकार की घटनाओं से सीख लेने की आवश्यकता है कि कहीं न कहीं मानवीय गलतियां भी इस आफत के लिए जिम्मेदार हैं। इस बरसात में तो न जाने प्रकृति अपने दोहन का पूरा हिसाब बराबर करने पर आतुर हो चुकी है क्योंकि 2023 की बरसात हिमाचल प्रदेश में लोगों के लिए आफत बनकर बरस रही है। हर साल न जाने कितने लोगों के घर बरसात के समय टूटते हैं। पहाड़ी राज्य होने के साथ हिमाचल प्रदेश को कई तरह के नुकसान झेलने को मिलते हंै जोकि यहां के लोगों व प्रदेश की सुंदरता पर जख्मों की तरह नजर आते हैं, ऐसे जख्म जो बहुत पीड़ादायक हैं। बरसात हर बार होती है लेकिन इस बार तो अभी ढंग से शुरू ही नहीं हुई कि ‘मानो पानी की जगह आफत बरस रही हो’ या कहा जा सकता है कि पिछली बरसातों से कोई सीख नहीं ली गई जिसका खामियाजा इस बरसात में भुगतना पड़ रहा है। हिमाचल प्रदेश में कुछ दिनों बाद बारिश का भले ही दौर थम जाएगा, लेकिन जख्म याद दिलवाते रहेंगे। कहें तो इस बरसात ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं तथा बरसात की जगह आफत नाम धारण कर लिया है। प्रत्येक सुबह समाचारों में एक ही खबर आजकल सुनने व देखने को मिलती है और वो होती है ‘यहां बादल फटा और इतना नुकसान।’ लोग रात को सोते हैं लेकिन आफत की बरसात सोचने पर मजबूर कर देती है कि सुबह हो न हो कहीं घर के साथ ही न बह जाएं। इसलिए वर्तमान समय में आवश्यकता है कि प्राकृतिक जल क्षेत्रों नदी, नालों से जितना दूर रहा जाए उतना ही जीवन के लिए लाभदायक है। दूसरी तरफ हिमाचल प्रदेश एक पर्यटन प्रदेश है जहां प्रकृति के सौंदर्य का नजारा लेने के शौक के कारण अन्य प्रदेशों से लोग खुले या खराब मौसम में भी दुर्गम क्षेत्रों में घूमने निकल जाते हैं, लेकिन बरसात के कारण किन्नौर जिला के पागल नाला जैसे कई ऐसे नदी नाले हिमाचल में हैं जो कभी भी बाढ़ का रूप धारण कर तबाही मचा देते हैं।

इसलिए पर्यटकों को भी इस मौसम में पहाड़ों की ओर रुख करने से परहेज करना चाहिए अन्यथा स्वयं तो मुसीबत में फंसेंगे ही, साथ में ही प्रशासन को भी रैस्क्यु में लगने का काम बेवजह सौंप जाएंगे। बाहरी प्रदेशों से आने वाले पर्यटक हिमाचल में स्वच्छ जलवायु का आनंद लेने भले ही बरसात में रुख करते हैं, लेकिन मैदानी इलाकों से आए इन पर्यटकों को पहाड़ों में विशेष सावधानी अपनाने की जरूरत होती है जिसे ये दरकिनार कर हादसों का ग्रास बन जाते हैं। पहाड़ों में रहने वाले लोग यहां की भौगोलिक हालत से भलीभांति परिचित होते हैं। मैदानी क्षेत्रों से आने वाले पर्यटकों को यहां विशेष सावधानी बरतने की आवश्यकता रहती है। कई पर्यटक सडक़ हादसों का शिकार होते हैं। मैदानी भागों व पहाड़ों की ड्राइविंग में रात-दिन का अंतर है। गति पर नियंत्रण के साथ हर पल सतर्क रहना जरूरी है। नदी-नालों के किनारे जाने से बचना चाहिए। गर्मियों में पहाड़ों में तेजी से बर्फ पिघलती है। इससे नदी-नालों का जलस्तर बढ़ जाता है। बड़े नदी-नालों पर कई पनविद्युत प्रोजेक्ट हैं। जलस्तर बढऩे पर प्रोजेक्टों के बांधों से अचानक पानी छोड़ा जाता है। इससे जान जोखिम में पड़ सकती है, लेकिन प्रशासन के आगाह करने के बावजूद जान को हथेली में लेकर पर्यटक नदी-नालों व झीलों में घुस जाते हैं। ऐसा कदम उठाने से पूर्व लोगों को अगली स्थिति का अंदाजा लगाकर विवेक से कार्य करना चाहिए ताकि सुरक्षित रहा जा सके और जान व माल के नुकसान से निश्चिंत हो सकें। प्रशासन अपना काम तो करेगा ही लेकिन कुदरत के आगे आखिर किसकी चलती है। वर्तमान मौसम के परिदृश्य में बेवजह सफर से भी बचना चाहिए क्योंकि कोई पता नहीं होता कब कहां से सडक़ धंस जाए या पत्थर आपके ऊपर आकर गिर जाए।

प्रो. मनोज डोगरा

शिक्षाविद


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