अंग्रेजों की धरती पर राम कथा के मायने

ऋषि सुनक को उनकी पार्टी के किसी नेता ने नहीं कहा कि आप मुरारी बापू की कथा में क्यों गए थे? विपक्षी दलों की ओर से नरेन्द्र मोदी पर सबसे बड़ा आरोप यही है कि वे मंदिरों में जाते हैं। सबसे बढ़ कर अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए किए गए शिलान्यास में भाग लेने के लिए जाने पर उन्हें घेरा गया। नेहरु सरदार पटेल से खफा थे कि वे महमूद गजनवी द्वारा ध्वस्त किए गए सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण क्यों करवा रहे हैं। इतने साल बीत जाने के बाद भी कांग्रेस उसी स्थान पर खड़ी है। नरेन्द्र मोदी बाबर द्वारा ध्वस्त कर दिए गए राम मंदिर का पुनर्निर्माण क्यों करवा रहे हैं? इंग्लैंड के लिए जो सहज है वह भारत में आपत्तिजनक क्यों है? भारत के सबसे पुराने दल का लालन-पालन विदेशी मानसिकता में हुआ…

ब्रिटेन के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में आजकल रामकथा हो रही है। इसमें ब्रिटेन, कनाडा और अमेरिका के अतिरिक्त अन्य अनेक देशों से श्रद्धालु भाग ले रहे हैं। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में राम कथा शायद पहली बार हो रही है। इसे संयोग ही कहा जाएगा कि जिस संस्थान में कथा हो रही है उसका नाम यीशु कालेज है। 12 अगस्त से शुरू हुई यह रामकथा 19 अगस्त तक चलेगी। कथा मोरारी बापू कर रहे हैं। मोरारी बापू अपनी राम कथा के लिए भारत भर में जाना पहचाना नाम है। पन्द्रह अगस्त को उनके श्रोताओं में एक ऐसा श्रोता भी आया जिसकी किसी ने आशा नहीं की थी। मोरारी बापू की राम कथा सुनने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक बैठे थे। सुनक का मोरारी बापू ने स्वागत किया और उन्हें प्रसाद दिया। उन्हें सोमनाथ का शिवलिंग दिया, जिसे सुनक ने श्रद्धापूर्वक स्वीकार कर माथे पर लगाया। सुनक ने स्वयं तो प्रसाद लिया ही, वहां बैठे लोगों को प्रसाद बांटा भी। सुनक ने उपस्थित श्रोताओं को जय सिया राम सम्बोधन से सम्बोधित भी किया।

उन्होंने कहा कि हिन्दू आस्था मेरा व्यक्तिगत मामला है। यही आस्था मुझे मेरे जीवन के विभिन्न पड़ावों पर दिशा देती है। ब्रिटेन का प्रधानमंत्री होना मेरे लिए गौरव की बात है। लेकिन यह पद अनेक चुनौतियों से भी भरा हुआ है। कई बार कठिन निर्णय लेने होते हैं। लेकिन ऐसे समय में मेरी आस्था ही मुझे सम्बल देती है। उन्होंने कहा कि 2020 का वह दिन मेरे लिए आज भी अविस्मरणीय है जब मैंने दिवाली के दिन प्रधानमंत्री के सरकारी आवास 10 डाऊनिंग स्ट्रीट के बाहर दीये जलाए। यह संयोग था कि सुनक जिस दिन रामकथा सुनने पहुंचे वह दिन भारत का अंग्रेजों की दासता से मुक्ति का दिन था। अनेक श्रोता तिरंगा झंडा फहरा रहे थे। मोरारी बापू अपनी कथा में व्यास आसन के पीछे हनुमान जी की सुनहरी मूर्ति रखते हैं। सुनक ने बताया कि मैं भी अपने कार्यालय में अपने मेज पर सदा गणेश जी की मूर्ति रखता हूं। इससे मुझे प्रेरणा मिलती है। सुनक ने कहा कि मैं यहां प्रधानमंत्री के तौर पर नहीं बल्कि एक सनातनी हिन्दू के तौर पर आया हूं।

उन्होंने कहा मैं सदा राम कथा स्मरण रखूंगा। मैं सदा भगवद्गीता और हनुमान चालीसा भी स्मरण रखता हूं। संकट का साहसपूर्वक सामना करने, नम्रता से सरकार चलाने और निस्वार्थ भाव से कार्य करने की प्रेरणा मुझे राम से ही मिलती है। कार्यक्रम के अन्त में सुनक ने आरती में भाग लिया। ऋषि सुनक हवन करते हैं, मंदिरों में जाते हैं और अपने प्रैकटाजिंग हिन्दू होने को कभी छिपाते नहीं हैं। सामान्य तौर पर कहा जा सकता है किसी व्यक्ति के हिन्दू होने और मंदिर वगैरह में जाने में ऐसी क्या बात है जिस पर इतना आश्चर्य चकित हुआ जाए। दरअसल ऋषि सुनक जिस देश के प्रधानमंत्री हैं वह ईसाई देश है। उस देश में हिन्दुओं की संख्या आटे में नमक के बराबर है। वहां के लोग केवल ईसाई ही नहीं हैं बल्कि जिसको आज की भाषा में पोंगापन्थी ईसाई कहा जाता है, उसी किस्म के ईसाई हैं। वहां का राजा ईसाई ही हो सकता है। यदि राजा के आसन का उत्तराधिकारी अपना मजहब बदल लेता है तो वह राजा नहीं बन सकता। जिस लोकसभा सीट से सुनक जीत कर आते हैं, वह तो है ही ईसाई बहुल सीट। लेकिन इस सबके बावजूद इंग्लैंड में ऋषि सुनक के राम कथा में जाने पर कोई हो-हल्ला नहीं मचा। किसी ने ऋषि सुनक के पूजा पाठ करने पर एतराज नहीं किया। लेकिन भारत में स्थिति इसके विपरीत है। यदि यहां के प्रधानमंत्री किसी मंदिर में जाते हैं तो अन्य दल हो-हल्ला मचाना शुरू कर देते हैं। उनके मुताबिक इससे सेक्लुरिजम खतरे में पड़ जाता है। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु इस प्रकार की आस्थाओं और सार्वजनिक रूप से उनका निर्वाह करने की सार्वजनिक रूप से निन्दा किया करते थे।

इस प्रकार की दो घटनाएं तो इतिहास का हिस्सा बन गई हैं। भारत के राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद कुम्भ के मेले में भाग लेने के लिए गए थे। नेहरु ने इसके लिए उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन राजेन्द्र प्रसाद नहीं रुके। तब नेहरु ने उनकी सार्वजनिक रूप से भत्र्सना की। दूसरी घटना भी नेहरु और डा. राजेन्द्र प्रसाद से ही ताल्लुक रखती है। महमूद गजनवी द्वारा खंडहर बना दिए गए सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण सरदार पटेल ने करवाया था। उन्होंने उसका उद्घाटन करने के लिए राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद को निमंत्रित किया। राष्ट्रपति ने इसे स्वीकार कर लिया। नेहरु को इसका पता चला। उन्होंने फिर राष्ट्रपति को रोका। राजेन्द्र प्रसाद का कहना था कि वे इस समारोह में व्यक्तिगत हैसियत से भाग लेंगे। नेहरु का कहना था कि राष्ट्रपति का कुछ व्यक्तिगत नहीं होता। लेकिन राजेन्द्र प्रसाद नहीं माने और मंदिर का उद्घाटन करने के लिए सोमनाथ गए। नेहरु और तो कुछ नहीं कर पाए। खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे। उन्होंने आकाशवाणी को आदेश दिया कि मंदिर के बारे में उद्घाटन अवसर पर दिया गया राष्ट्रपति का भाषण प्रसारित न किया जाए। आकाशवाणी ने यही किया। नेहरु को इन सबसे सेक्यलुरिजम को खतरा लगता था। ताज्जुब है कि इंग्लैंड को उनके प्रधानमंत्री ऋषि सुनक के मंदिर में जाने, आरती करने, मुरारी बापू को प्रणाम करने से सेक्युलरिजम को खतरा दिखाई नहीं देता। अभी कुछ दिन पहले मध्य प्रदेश के एक बड़े कांग्रेस नेता कमल नाथ बागेश्वर धाम की हनुमान कथा में चले गए थे।

उन्होंने वहां कथा कर रहे शास्त्री जी का सम्मान किया और आरती में भी हिस्सा लिया। उसी से कांग्रेस में हडक़म्प मचा हुआ है। प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के महासचिव रह चुके दिग्विजय सिंह झाग छोड़ रहे हैं। ऋषि सुनक को उनकी पार्टी के किसी नेता ने नहीं कहा कि आप मुरारी बापू की कथा में क्यों गए थे? विपक्षी दलों की ओर से नरेन्द्र मोदी पर सबसे बड़ा आरोप यही है कि वे मंदिरों में जाते हैं। सबसे बढ़ कर अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए किए गए शिलान्यास में भाग लेने के लिए जाने पर उन्हें घेरा गया। नेहरु सरदार पटेल से खफा थे कि वे महमूद गजनवी द्वारा ध्वस्त किए गए सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण क्यों करवा रहे हैं। इतने साल बीत जाने के बाद भी कांग्रेस उसी स्थान पर खड़ी है। नरेन्द्र मोदी बाबर द्वारा ध्वस्त कर दिए गए राम मंदिर का पुनर्निर्माण क्यों करवा रहे हैं? इंग्लैंड के लिए जो सहज है वह भारत में आपत्तिजनक क्यों है? भारत के सबसे पुराने राजनीतिक दल का लालन-पालन और शिक्षा-दीक्षा ब्रिटेन की उपनिवेशवादी चेतना में हुई है। वह अभी तक उस उपनिवेशवादी गुलामी से मुक्त नहीं हो सका है। वह अभी तक उन्हीं अवधारणाओं को पाल रहा है जिनकी रचना ब्रिटेन ने केवल अपने हितों को सुरक्षित रखने के लिए की थी। इन अवधारणाओं का भारतीय चेतना में कोई स्थान नहीं है। लेकिन अपने बुढ़ापे में भी यह दल उनको छोड़ नहीं पा रहा है। यही कारण है कि यह दल जनता में अपना बहुमत खो चुका है।

कुलदीप चंद अग्निहोत्री

वरिष्ठ स्तंभकार

ईमेल:kuldeepagnihotri@gmail.com


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