आस्तिक ऋषि के ज्ञान की प्रासंगिकता

परमाणु युद्ध के मंडरा रहे खतरे के मद्देनजर वैश्विक शांति के लिए महर्षि आस्तिक जैसे विद्वान व्यक्तित्व की जरूरत है जो तबाही को अंजाम दे रहे रूस-यूक्रेन जैसे विनाशक युद्ध को अपनी विद्वता, ज्ञान व कूटनीति से रोकने की क्षमता रखता हो…

‘प्रतिशोध किसी समस्या का हल नहीं है राजन’! मान्यता है कि पांडव प्रपोत्र ‘जनमेजय’ द्वारा आयोजित सर्पसत्र यज्ञ के मण्डप में ‘जरतकारू’ मुनि व नागकन्या ‘मनसा’ के पुत्र बाल ऋषि ‘आस्तिक’ ने अपनी मधुरवाणी से इस प्रसंग का जिक्र किया था। दरअसल महाभारत युद्ध के साहसी योद्धा ‘अभिमन्यु’ के पुत्र ‘परीक्षित’ की मौत का कारण नागराज ‘तक्षक’ का जहरीला दंश बना था। परीक्षित की मौत के बाद उनके पुत्र जनमेजय ने राजपाट संभाला। ‘उतंक मुनि’ के एक तंज से जनमेजय ने प्रतिशोध में आकर नागवंश का समूल नाश करके अपने पिता परीक्षित की मौत का बदला लेने का मन बना लिया था। महर्षि शौनक की अगुवाई में वैश्म्पायन, सुमंतु व उग्रश्रवा जैसे विद्वान ऋषियों ने विशिष्ट मंत्रोच्चारण द्वारा एक घनघोर नागदाह यज्ञ का आयोजन किया था। यज्ञाग्नि में नागवंश के हो रहे संहार से चिंतित नागकन्या मनसा ने अपने पुत्र आस्तिक ऋषि से नागवंश को बचाने का आग्रह किया। जब ऋषियों के मंत्रोच्चारण की शक्ति से यज्ञकुंड में नागजाति का विनाश हो रहा था, उस समय बाल ऋषि आस्तिक उस यज्ञशाला में पहुंचे तथा वहां विराजमान जनमेजय व ऋषिगणों से वार्तालाप शुरू हुआ।

वेद-वेदांगों में परांगत महर्षि भार्गव के शिष्य आस्तिक ऋषि की मधुरवाणी से यज्ञ, अग्नि व ऋषिगणों की स्तुति सुनकर यज्ञ परिसर में उपस्थित ऋषि व सभासद काफी प्रभावित हुए। आस्तिक ऋषि का तर्क था कि एक प्राणी की गलती की वजह से उसके समस्त कुल व प्रजाति का विनाश कर देना उचित नहीं होता। बाल ऋषि आस्तिक के ज्ञान व विद्वता से राजा जनमेजय इस कदर प्रभावित हुए कि उन्होंने आस्तिक को वर मांगने को कहा। तब आस्तिक ने अपनी माता के कुल नागवंश को अभयदान देने के लिए सर्पसत्र यज्ञ को बंद करने का आग्रह किया था। संयोग से उस दिन श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि थी। पौराणिक मान्यता है कि उसी दिन से नाग पंचमी के त्योहार की शुरुआत हुई थी। महाभारत युद्ध के अंत में चिरंजीवी योद्धा अश्वथामा तथा अर्जुन द्वारा चलाए गए ब्रह्मास्त्रों को महर्षि वेदव्यास ने अपनी अलौकिक शक्ति के बल पर टकराने से रोक कर प्रकृति का विनाश होने से बचा लिया था। महर्षि आस्तिक ने अपने ज्ञान की शक्ति से अपने मामा ‘तक्षक’ तथा नागवंश का अस्तित्व बचा लिया था। वर्तमान में परमाणु युद्ध की तरफ बढ़ रही रूस-यूक्रेन जंग में नाटो में शामिल देश उतंक मुनि का किरदार निभाकर यूक्रेन को युद्ध की आग में धकेल कर तबाह करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। मगर प्रश्न यह है कि आस्तिक ऋषि की भूमिका कौन निभाए, ताकि लाखों बेगुनाहों का कत्ल करने वाली खूनी जंग बंद हो जाए। प्राचीन भारत में कई महान योद्धा व शूरवीर चक्रवर्ती सम्राट हुए। स्वाभिमान की रक्षा के लिए स्वर्णपुरी लंका को खाक में मिलाने वाले सूर्यवंशी क्षत्रिय श्रीराम तथा अपने सुदर्शन चक्र से कई शक्तिशाली दैत्यों को यमलोक भेजने वाले चंद्रवंशी क्षत्रिय श्री कृष्ण की कर्मभूमि भारत ही रहा है। परमाणु सिद्धांत का प्रतिपादन करने वाले महर्षि कणाद की जन्मभूमि भी भारत ही है। विश्व को शांति, सद्भाव, अहिंसा व अध्यात्म का संदेश देने वाले महात्मा बुद्ध, स्वामी महावीर तथा गुरु नानक देव जैसे महापुरुष भी इसी भारतवर्ष में हुए।

कलिंग युद्ध में मारे गए हजारों बेगुनाह सैनिकों की खून से लथपथ पड़ी खामोश लाशें जब सम्राट अशोक से सवाल करने लगीं तो मगध नरेश का हृदय इस कदर तब्दील हुआ कि कलिंग विजेता अशोक ने युद्ध जीतने के बाद विजय का त्याग करके बुद्ध की शरण में जाना उचित समझा था। क्रीमिया युद्ध (1853-1856) में रूसी सेना के सैनिक रहे दुनिया के महान उपन्यासकार ‘लियो टालस्टॉय’ ने क्रीमिया युद्ध की कत्लोगारत से आहत होकर रूसी सेना से इस्तीफा दे दिया था। तत्पश्चात टालस्टॉय ने अपने मशहूर उपन्यास ‘वार एंड पीस’ की रचना करके दुनिया को युद्ध के खौफनाक अंजाम से मुखातिब करवाया था। युद्ध ऐसी भयानक त्रासदी का नाम है जिसके जख्मों पर सिर्फ तबाही का मरहम नसीब होता है। बारूदी मिसाइलों, बमों की बरसात में खाक हुए आशियाने दशकों तक आबाद नहीं होते। रूस-यूक्रेन की मौजूदा जंग ने कई सबक सिखा दिए हैं। हर तरह से खुशहाल व सम्पन्न देश यूक्रेन की आवाम ऐशो-आराम की जिंदगी जी रही थी, मगर वैश्विक स्तर पर 22वें पायदान पर काबिज यूक्रेन की सेना उतनी मजबूत नहीं थी कि रूस की सैन्यशक्ति को अपनी सरहदों पर रोक सके या उसका मुकाबला पूरी शिद्दत से कर सके। यूक्रेन का सियासी नेतृत्व भी कूटनीतिक मोर्चे पर विफल रहा। यूक्रेन ‘नाटो’ व यूरोपियन यूनियन जैसे देशों पर जरूरत से ज्यादा निर्भर हो गया, नतीजतन रूस की सैन्य ताकत ने एक ही पलटवार से यूक्रेन में तबाही मचाकर लाखों नागरिकों को शरणार्थी बनने पर मजबूर कर दिया। मौत बांटने वाले जिन हथियारों की रूस अपने देश में नुमाईश करता था, यूक्रेन की धरती पर उनकी आजमाईश हो रही है। स्मरण रहे जब कूटनीति नाकाम होती है तो सैन्य कार्रवाई ही विकल्प बनती है। जिस देश के पड़ोस में शातिर चीन व आतंक का पैरोकार पाकिस्तान जैसे युद्ध थोपने वाले मुल्क मौजूद हों तो उस देश की सेना को पलटवार के लिए हर वक्त अचूक मारक क्षमता वाले विध्वंसक हथियारों से लैस होना लाजिमी है।

नौ अगस्त 2023 को जापान के नागासाकी में अमरीकी परमाणु हमले की 78वीं बरसी मनाई गई। परमाणु हमले की भयंकर मार झेलने वाला जापान दुनिया का एकमात्र देश है। जंग किसी भी बड़े मसले का अंतिम विकल्प होती है तथा युद्ध में एटमी ताकत का इस्तेमाल भी अंतिम विकल्प के तौर पर होता है। मगर वर्तमान में दुनिया का हर मुल्क पूरी कायनात का वजूद मिटाने वाले एटमी हथियारों से लैस होने को आमादा है। अत: परमाणु युद्ध के मंडरा रहे खतरे के मद्देनजर वैश्विक शांति के लिए महर्षि आस्तिक जैसे विद्वान व्यक्तित्व की जरूरत है जो तबाही को अंजाम दे रहे रूस-यूक्रेन जैसे विनाशक युद्ध को अपनी विद्वता, ज्ञान व कूटनीति से रोकने की क्षमता रखता हो। नाग पंचमी के शुभ अवसर पर शांति व सद्भाव कायम करने के लिए विश्व को महर्षि ‘आस्तिक’ के ज्ञान की प्रासंगिकता को जानना होगा।

प्रताप सिंह पटियाल

स्वतंत्र लेखक


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