अहम ब्रह्मास्मि

By: Sep 28th, 2023 12:05 am

आत्महत्या करने वाले लोगों में अमीरों की संख्या ज्यादा है। गरीब को तो फिर भी लालसा होती है कि ये कर लूं, वो कर लूं, ये पा लूं, वो पा लूं, क्योंकि उसके जीवन में तो कमियां ही कमियां हैं, अभाव ही अभाव हैं, उसकी लालसाएं बाकी हैं, पर अमीर आदमी की तो कठिनाई ही यह है कि पैसे के दम पर उसने सब देख लिया, सब पा लिया। न करने को कुछ बाकी रहा, न पाने को। जीवन में कोई उत्साह नहीं, कोई लक्ष्य नहीं, कोई आशा नहीं, सब कर लिया, सब देख लिया, सब पा लिया, अब बोरियत ही बोरियत है। जीवन में कोई रस नहीं। सारे सुखों के बावजूद जीवनसाथी से रिश्ते अच्छे नहीं, बच्चे कहना नहीं मानते, तो आदमी घुटता है, निराश होता है, पैसा बेमानी लगने लगता है, सुख बेमानी हो जाता है और आदमी निराश होकर, हताश होकर आत्महत्या की ओर कदम बढ़ा लेता है। लेकिन अगर हम प्रकृति के मूल रहस्य को समझ लें, प्रकृति से एकाकार हो जाएं तो न प्रतियोगिता रह जाती है, न नफरत रह जाती है…

ब्रह्मांड के इस महासमुद्र में हम मानो सिर्फ एक कतरा हैं, एक बूंद भर हैं, पर इस बूंद में भी पूरा समुद्र समाया हुआ है। यह बूंद, यह कतरा, समुद्र का ही पानी है, इस बूंद में वो हर गुण है जो समुद्र में है, यह बूंद भी इस रूप में पूरा एक समुद्र है। बूंद-बूंद से समुद्र है और हर बूंद में खुद एक समूचा समुद्र है। यही इस बूंद की खासियत है, यही इस बूंद की महत्ता है। विज्ञान कहता है कि इस ब्रह्मांड की हर वस्तु इलैक्ट्रॉन, प्रोटोन और न्यूट्रॉन के संयोग से बनी है। इलैक्ट्रॉन, प्रोटोन और न्यूट्रॉन मिलकर ऐटम, यानी परमाणु बनाते हैं। ये ऐटम रासायनिक क्रियाओं के माध्यम से जब विभिन्न मात्राओं में आपस में जुडक़र अणु, यानी मालिक्यूल बन जाते हैं तो अलग-अलग वस्तुओं का निर्माण संभव हो जाता है। इसे फिर से दोहराना आवश्यक है कि इस ब्रह्मांड की हर वस्तु इलैक्ट्रॉन, प्रोटोन और न्यूट्रॉन के संयोग से ही बनी है। हर जीवित और मृत चीज इलैक्ट्रॉन, प्रोटोन और न्यूट्रॉन के संयोग से ही बनी है। हम, हमारा भोजन, हमारा घर, हमारा फर्नीचर, यानी हर चीज इलैक्ट्रॉन, प्रोटोन और न्यूट्रॉन के संयोग से ही बने हैं। प्रकृति की इस कारीगिरी को जरा गहराई से देखें तो प्रकृति के रहस्य उजागर होने शुरू हो जाते हैं। मेरा शरीर, मेरे शरीर का हर तंतु, हर नाड़ी, खून, मज्जा, हड्डी आदि सबके सब इलैक्ट्रॉन, प्रोटोन और न्यूट्रॉन के मेल से ही बने हैं। मैं ही नहीं, हम सबके शरीर भी इलैक्ट्रॉन, प्रोटोन और न्यूट्रॉन के मेल से बने हैं। मैं और आप इसी ब्रह्मांड का हिस्सा हैं। यह ब्रह्मांड हमसे और अन्य जीव-जंतुओं तथा वस्तुओं से बना है। यह हवा, ये बादल, यह आकाश, ये जीव-जंतु, ये वस्तुएं, सभी के सभी इलैक्ट्रॉन, प्रोटोन और न्यूट्रॉन के मेल से ही बने हैं।

हमारी शक्लें अलग हैं, रंग और रूप अलग हैं, ऊंचाई, मोटाई, गोलाई अलग है, पर हम सब का मूल एक ही है। प्रकृति की यही सबसे बड़ी कारीगिरी है। इलैक्ट्रॉन, प्रोटोन और न्यूट्रॉन की न कोई जाति है, न धर्म और न रंग। लगभग हर धर्म कहता है कि परमात्मा निराकार है, परमात्मा का कोई आकार नहीं है, लेकिन वह किसी भी आकार में प्रकट हो सकता है, प्रकट हो ही रहा है। अगर हम सब एक ही किस्म के इलैक्ट्रॉन, प्रोटोन और न्यूट्रॉन के मेल से बने होने के बावजूद अलग-अलग रंग, रूप, शक्ल, आकार और लिंग वाले हैं, और हम सब में उसी परमात्मा की चेतना है तो हम परमात्मा ही हैं, और परमात्मा हम सब में है तो परमात्मा कितने अलग-अलग रूपों, रंगों और आकार में मौजूद है, यह हम सबके सामने प्रत्यक्ष है, इसे और किसी प्रमाण की आवश्यकता ही नहीं है। पूरी मनुष्य जाति ही नहीं, बल्कि पेड़-पौधे, पशु-पक्षी और बाकी हर चीज भी इन्हीं इलैक्ट्रॉन, प्रोटोन और न्यूट्रॉन के संयोग से ही बने हैं तो कोई किसी से अलग नहीं है, हम सब उसी परमात्मा का रूप हैं। अगर हम इतनी सी बात समझ लें तो सारी लड़ाई खत्म हो जाती है, झगड़े खत्म हो जाते हैं, प्रतियोगिता खत्म हो जाती है, नफरत खत्म हो जाती है और हम प्रेममय हो जाते हैं। जब हम सब एक हैं तो किससे लड़ें, किससे नफरत करें और क्यों लड़ें या नफरत करें? साधु-संत, ऋषि-मुनि इसीलिए कहते आए हैं कि हम सब प्रेममय ही हैं, प्रेम ही हमारा असली स्वरूप है, क्योंकि हम किसी से अलग हैं ही नहीं। एक मेज पर छह जार पड़े हैं, अलग-अलग आकार के हैं और अलग-अलग स्वरूप के हैं, पर उन सब में वही हवा मौजूद है जो पूरे वातावरण में है। हवा जार के अंदर हो या जार के बाहर, वह वही हवा है।

जार का रंग कुछ भी हो, जार का आकार कुछ भी हो, जार के अंदर और बाहर जो हवा है, उसमें कहीं कोई अंतर नहीं है। ब्रह्मांड का यही रहस्य ऐसा रहस्य है जो असल में रहस्य नहीं है, हम इसे जानते हैं, हम इसे मानते हैं, फिर भी इस एक सच से अनजान भी हैं। यही हमारी दुर्गति का कारण है। हम एक अनंत दौड़ में शामिल हैं। सब कुछ इक_ा कर लेने की कोशिश में हम खुद को भुला बैठे हैं। हमारा परिवार, हमारी शिक्षा, हमारा समाज सब हमें सिर्फ दौडऩा सिखाते हैं, जीवन भर भाग-दौड़ में लगे रहना सिखाते हैं। स्कूल, कालेज, शिक्षा, नौकरी, व्यवसाय, प्रमोशन, पैसा आदि के चक्कर में हम घनचक्कर बने हुए हैं। हम बड़े होते हैं, काम करते हैं, शादी करते हैं, बच्चे पैदा करते हैं, बच्चे बड़े होते हैं, शादी करते हैं, और फिर हमारे बच्चे भी बच्चे पैदा करने में मशगूल हो जाते हैं। जीवन चक्र चलता रहता है। हम कोल्हू के बैल की तरह आंखें बंद करके एक ही दायरे में घूमते चले जाते हैं और अंतत: राम नाम सत्य हो जाता है। हम कितने ही अमीर हो जाएं, कितने ही सुखी हो जाएं, कितने ही पुरस्कार पा लें, कितने ही सम्मान मिल जाएं, पर कहीं न कहीं, कुछ न कुछ कमी रह जाती है, खालीपन रह जाता है, और हम समझ नहीं पाते कि कमी कहां है। गरीब आदमी गरीबी के कारण तनावग्रस्त है, अमीर आदमी अमीरी चली जाने के डर से तनावग्रस्त है। नानक दुखिया सब संसार।

यह एक जाना-माना तथ्य है कि आत्महत्या करने वाले लोगों में अमीरों की संख्या ज्यादा है। गरीब को तो फिर भी लालसा होती है कि ये कर लूं, वो कर लूं, ये पा लूं, वो पा लूं, क्योंकि उसके जीवन में तो कमियां ही कमियां हैं, अभाव ही अभाव हैं, उसकी लालसाएं बाकी हैं, पर अमीर आदमी की तो कठिनाई ही यह है कि पैसे के दम पर उसने सब देख लिया, सब पा लिया। न करने को कुछ बाकी रहा, न पाने को। जीवन में कोई उत्साह नहीं, कोई लक्ष्य नहीं, कोई आशा नहीं, सब कर लिया, सब देख लिया, सब पा लिया, अब बोरियत ही बोरियत है। जीवन में कोई रस नहीं। सारे सुखों के बावजूद जीवनसाथी से रिश्ते अच्छे नहीं, बच्चे कहना नहीं मानते, तो आदमी घुटता है, निराश होता है, पैसा बेमानी लगने लगता है, सुख बेमानी हो जाता है और आदमी निराश होकर, हताश होकर आत्महत्या की ओर कदम बढ़ा लेता है। लेकिन अगर हम प्रकृति के मूल रहस्य को समझ लें, प्रकृति से एकाकार हो जाएं तो न प्रतियोगिता रह जाती है, न नफरत रह जाती है और न झगड़े रह जाते हैं। यह ब्रह्मांड और मैं एक ही किस्म के इलैक्ट्रॉन, प्रोटोन और न्यूट्रॉन के संयोग से ही बने हैं तो न प्रतियोगिता रह जाती है, न नफरत रह जाती है और न झगड़े रह जाते हैं। फिर बस प्रेम ही प्रेम है, आनंद ही आनंद है। मैं समुद्र का एक कतरा हूं तो भी मैं खुद ही समुद्र भी हूं। मैं ब्रह्मांड का एक बहुत छोटा-सा अंश हूं तो मैं खुद पूरा ब्रह्मांड भी हूं। मैं ही ब्रह्म हूं। अहम ब्रह्मास्मि। यही सच है, यही एकमात्र सच है।

पीके खु्रराना

हैपीनेस गुरु, गिन्नीज विश्व रिकार्ड विजेता

ई-मेल: indiatotal.features@gmail.com


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