धर्म का मूल उद्देश्य

By: Sep 30th, 2023 12:20 am

स्वामी विवेकानंद

गतांक से आगे…

हेस्टी साहब की यह बात किसी उपलब्धि से कम नहीं थी। नरेंद्र के अंदर बचपन से ही धर्मभावना विद्यमान थी। तरुण होने पर वे उसी की प्रेरणा से अखंड ब्रह्मचर्य का पालन, साधना-भजन एवं कठोर तप में मग्र रहने लगे। नरेंद्र ध्यानमग्र रहते हुए व बिना सोए कितनी ही रातें इसी तरह गुजारने लगे। धर्मलाभ की आकांक्षा से उन्होंने ब्रह्मसमाज में आना-जाना शुरू कर दिया और समाज की प्रार्थना में शामिल होकर खुशी का अनुभव करते। लेकिन उपासना आदि के बारे में वो समाज के दूसरे सदस्यों से सहमत न हो सके। बुद्धिमान दृढ़वेत्ता नरेंद्र दूसरे के विचारों को स्वयं विचार किए बिना सहज ही मान लेने वाले न थे, इसलिए जब भी कोई मनुष्य अपना मत मानने के लिए युक्तियां पेश करता, तो वे पाश्चात्य संदेहवाली दार्शनिकों की युक्तियों को अपनी असाधारण प्रतिभा के बल पर इस प्रकार काटते कि प्रतिपक्षी को हार माननी पड़ती थी। नरेंद्र कठोर और निर्भीक समालोचक होने पर भी ब्रह्मसमाज के कर्ण धारकगण उनसे विशेष प्रेम रखते थे। नरेंद्र अच्छा गाते थे और ब्रह्मसामज की रविवारीय उपासना के समय मधुर ब्रह्म संगीत गाकर उसको खुश करते थे। कुछ ही समय में ये सुदर्शन, सुदृढ़ अनेक गुणों से युक्त केश्वचंद सेन आदि बाह्य नेताओं के विशेष पात्र बन गए।

ब्रह्मसमाज के सदस्य बनकर उन्होंने निराकार सगुण ब्रह्म समाज की उपासना में मीननिवेश किया। ब्रह्म समाजियों की तरह वो प्रकट रूप से हिंदू धर्म की रूढिय़ों तथा रीति रिवाजों की निंदा करने लगे और स्त्री स्वाधीनता आदि के प्रयोजन के संबंध में जोरों से प्रचार किया। धर्म का मूल उद्देश्य है ईश्वर लाभ। नरेंद्र अपने उद्देश्यों को पूरा करने के लिए उत्सुक हो उठे। सुख की तलाश में उनके प्राण व्याकुल हो उठे। प्राणों की व्याकुलता से प्रभावित होकर वो कलकत्ता के अलग-अलग धर्मप्रचारकों के पास जाने लगे। आखिर में एक दिन वो महर्षि देवेंद्रनाथ ठाकुर के पास पहुंचे। ध्यान, चिंतन और उपासना की सुविधा के लिए महर्षि उस समय कलकत्ता के निकट गंगा पर एक नाव में निवास कर रहे थे। नरेंद्र ने पागलों की भांति नाव में सवार होकर महर्षि से एकदम पूछा। महाशय क्या आपने ईश्वर को देखा है? महर्षि उस समय इस सवाल का जवाब देने के मूड में नहीं थे, कुछ देर तक तो वह नरेंद्र को इसी प्रकार ताकते रहे फिर कुछ देर बाद बोले, तुम्हारी आंखें बिलकुल योगी की तरह हैं। तुम्हारे शरीर में भी योगियों जैसी निशानियां हैं। सच्चे मन से साधना करोगे तो तुम्हें सत्य की प्राप्ति होगी। महर्षि की बात का नरेंद्र पर काफी असर पड़ा। यही नहीं उन्होंने निरामिष और परिमित भोजन, भूमि पर सोना, सफेद धोती और चादर की वेशभूषा आदि बाह्य शारीरिक कठोरता का भी अवलंबन किया। वो अपने मकान के पास मातामयी के किराये के एक कमरे में रहने लगे। यहां पर एकांत में उनके साधन भजन में सुविधा होती है, इसलिए नरेंद्र घर पर नहीं रहना चाहते। पुत्र की आजादी में हस्तक्षेप करने के अनिच्छुक विश्वनाथ जी ने भी इसके लिए कभी नहीं टोका था।

इसलिए एकांत में अध्ययन, संगीत की चर्चा आदि करने के बाद शेष समय साधन भजन में गुजारते थे। इस तरह दिन बीतते गए, लेकिन नरेंद्र की सत्य की तलाश और सत्य को जानने की इच्छा तृप्त तो नहीं हुई। – क्रमश:


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