भारत विरोधी मनोग्रंथी का शिकार कनाडा

बहरहाल भारत विरोधी तत्त्वों की हिमायत करने वाले पश्चिमी देश याद रखें कि चंदन के पेड़ों की खुशबू का शौक रखने वालों को सांपों के खतरे का अंदाजा भी होना चाहिए। दूसरों के आशियाने जलाने की हसरत रखने वालों को सचेत रहना होगा…

‘गुनाह को फैलाने का जरिया मत बनो। हो सकता है तुम गुनाह से तौबा कर लो लेकिन जिन ताकतों को तुमने गुनाह पर लगाया है वो आपकी आखिरत जरूर बिगाड़ देंगी’। यह प्रसंग कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो पर सटीक बैठता है। आलमी सतह पर भारत की बढ़ती प्रतिष्ठा से पश्चिमी देशों सहित कई अन्य देश भी भारत विरोधी मनोग्रंथी का शिकार हो चुके हैं। भारत के हमशाया मुल्क चीन व पाकिस्तान के हुक्मरानों को उनके जद्द-ए-अमजद से भारत के खिलाफ नफरत विरासत में मिली है। उसी प्रकार जस्टिन ट्रुडो को भी भारत के प्रति हिकारत भरा नजरिया अपने पूर्वज व कनाडा के पूर्व प्रधानमंत्री पियरे इलियट ट्रुडो से विरासत में मिला है। कनाडा की धरती से भारत को खंडित करने का जहालत भरा ख्वाब देखने वाले चंद अलगाववादियों से मोहब्बत का इजहार करके अपने सियासी वजूद को बचाने की जद्दोजहद में लगे जस्टिन ट्रुडो को भारतीय सेना के गौरवशाली इतिहास से मुखातिब होना चाहिए। शक्तिशाली राष्ट्र की पहचान राष्ट्र के लिए समर्पित उसकी ताकतवर सेना से होती है।

आतंक की पनाहगाह बन चुके कनाडा ने भारत में आतंक के दौर की उस भयानक तस्वीर को याद करा दिया जब सन् 1984 में पाकिस्तान प्रायोजित आतंक पंजाब में अपने चरम पर था। उस समय अमृतसर स्थित दरबार साहब में शरण ले चुके मोर्चाबंद चरमपंथियों को बाहर निकालने के लिए भारतीय सेना ने आपरेशन ब्लू स्टार को अंजाम दिया था। सेना की ‘ब्रिगेड ऑफ गाड्र्स’ की 10वीं बटालियन में तैनात हिमाचल प्रदेश के शूरवीर कैप्टन ‘जसबीर सिंह रैना’ ने उस आपरेशन में छह जून 1984 को हरमंदिर परिसर में सर्वप्रथम अपनी कंपनी के साथ मोर्चा संभाला था। आक्रामक सैन्य कार्रवाई में कै. रैना आतंकियों की भीषण गोलीबारी की चपेट में आकर गंभीर रूप से जख्मी हो चुके थे, मगर घायल होने के बावजूद कै. रैना ने अपने सैनिकों का सफलतापूर्वक नेतृत्व करके उस सैन्य मिशन को अंजाम तक पहुंचाया था। सैन्य अभियान में उल्लेखनीय बहादुरी के लिए भारत सरकार ने कै. जसबीर सिंह रैना को शांतिकाल के आलातरीन पदक ‘अशोक चक्र’ से नवाजा था। भारतीय सेना की उच्च परंपराओं का पालन करते हुए उसी सैन्य कार्रवाई में छह जून 1984 को बलिदान हुए ले. राम प्रकाश रोपडिय़ा ‘26 मद्रास’, मेजर भुकांत मिश्रा व नायक ‘निर्भय सिंह सिसोदिया’ ‘15 कुमांऊ’ तथा नायक ‘भवानी दत्त जोशी’ ‘नौवी गढ़वाल राइफल्स’ चारों शूरवीर सैनिकों को भी अदम्य साहस के लिए सर्वोच्च शांतिकालीन वीरता पदक ‘अशोक चक्र’ (मरणोपरांत) से अलंकृत किया गया था। भारत की एकता-अखंडता को कायम रखने के लिए सेना के 83 जवानों ने उस आपरेशन में अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया था। स्मरण रहे उस आपरेशन का नेतृत्व करने वाले पश्चिमी कमान के उप प्रमुख ले. ज. रणजीत सिंह दयाल, मे. ज. कुलदीप सिंह बराड़ व कै. जसबीर सिंह रैना का संबंध सिख समुदाय से ही था।

भावार्थ यह कि राष्ट्र प्रथम के सिद्धांत पर काम करने वाली भारतीय सेना राष्ट्र के स्वाभिमान से समझौता नहीं करती। ग्लोबल फायर पावर 2023 की ‘मिलिट्री स्ट्रेंथ’ रैंकिंग के अनुसार दुश्मन का तवाजुन बिगाडऩे की सलाहियत रखने वाली भारतीय सेना विश्व की चौथी सैन्य ताकत है। वहीं कनाडा 27वें पायदान पर काबिज है। अत: भारत का लहजा सबक सिखाने वाला है। राष्ट्र को खंडित करने वाली गतिविधियां किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं होंगी। आतंकियों से हमदर्दी रखने वाले कनाडा से भारत के रिश्तों में उतार-चढ़ाव का दौर एक मुद्दत से चला आ रहा है। सन् 1948 में कनाडा ने कश्मीर मसले पर दखलअंदाजी करके रायशुमारी के मशविरे का समर्थन किया था। मई 1974 में भारत के परमाणु परीक्षण पर भी कनाडा ने तल्ख मिजाज दिखाया था। सन् 1982 में भारत सरकार द्वारा कनाडा में पनाह ले चुके कुछ आतंकियों के प्रत्यर्पण की मांग पर कनाडा ने राष्ट्रमंडल का हवाला देकर भारत की अपील को ठुकरा दिया था। भारत द्वारा प्रत्यर्पण का अनुरोध ठुकराने वाला कनाडा खुद आतंक की जद में फंस गया जब 23 जून 1985 को एयर इंडिया के कनिष्क विमान को बम से उड़ा दिया गया, जिसमें सवार सभी 329 यात्री हलाक हो गए थे। मारे गए 268 लोगों का संबंध कनाडा से ही था। अब ट्रुडो भी अपने पिता के नक्शे कदम पर चल रहे हैं। गत दस सितंबर को भारत में आयोजित जी-20 शिखर सम्मेलन में ट्रुडो भी तशरीफ लाए थे, मगर अपने वतन वापिस लौटते ही ट्रुडो के तेवर बदल गए। कनाडा में पनाह ले चुके एक सिख रहनुमां के कत्ल का इल्जाम बिना किसी पुख्ता प्रमाण के भारत पर लगा दिया। दोनों देशों में तल्खियां इस कदर बढ़ चुकी हैं कि दोनों मुल्कों ने एक-दूसरे के सफीर वापिस भेज दिए। भारत को कनाडा का वीजा तक बैन करना पड़ा।

कनाडा में पढ़ाई कर रहे लाखों भारतीय छात्रों की पढ़ाई की महंगी फीस कनाडा की आर्थिकी का अहम हिस्सा है। कनाडा की निजी यूनिवर्सिटी का अर्थतंत्र पूरी तरह भारतीय छात्रों पर निर्भर करता है। वर्ष 2022 में यूक्रेन में पढ़ रहे हजारों छात्रों को वार जोन से निकालना पड़ा था। अत: छात्रों के भविष्य से जुड़े इस मुद्दे पर देश के हुक्मरानों को गौर फरमानी होगी कि भारतीय छात्र शिक्षा के लिए विदेश जाने को मजबूर क्यों हैं। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने आतंकी व गैंगस्टर नेटवर्क से जुड़े 43 कुख्यात आरोपियों की तस्वीरें जारी की हैं जिनमें कुछ कनाडा में शरण ले चुके हैं। बिना साक्ष्यों के भारत पर आरोप लगाकर फजीहत झेल रहे ट्रुडो को समझना होगा कि लफ्जों के भी कुछ जायके होते हैं। परोसने से पहले स्वाद चख लेना चाहिए। बुराई ढूंढने का शौक है तो शुरुआत खुद से करें, चरमपंथियों का आईना बनने की ख्वाहिश खुद मिट जाएगी। बहरहाल भारत विरोधी तत्त्वों की हिमायत करने वाले पश्चिमी देश याद रखें कि चंदन के पेड़ों की खुशबू का शौक रखने वालों को सांपों के खतरे का अंदाजा भी होना चाहिए। दूसरों के आशियाने जलाने की हसरत रखने वालों को मालूम होना चाहिए कि यदि हवाओं ने रुख बदला तो आग की जद में आकर खुद खाक होने में देर नहीं लगेगी। भारत के पास मजबूत सुरक्षा तंत्र है। फिलहाल कनाडा पर डिप्लोमेटिक स्ट्राइक की जरूरत है।

प्रताप सिंह पटियाल

स्वतंत्र लेखक


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App