जी-20 और भारत का विपक्ष

यही कारण था कि जब दुनिया के बाकी देश दिल्ली में आकर भारत की प्रशंसा कर रहे थे, इंग्लैंड के प्रधानमंत्री अपने सनातनी हिंदू होने पर गर्व कर रहे थे, तब राहुल गांधी इंडिया गठबंधन के प्रतिनिधि के तौर पर विदेशों में जाकर बता रहे थे कि यदि भारत में इसी प्रकार चलता रहा तो देश का पतन हो जाएगा। उनको वही भारत चाहिए था जो अंग्रेज छोड़ कर गए थे। राहुल एक बार महात्मा गांधी का हिंद स्वराज पढ़ लें तो उन्हें सब कुछ मिल जाएगा…

जी-20 की अध्यक्षता भारत को एक साल पहले मिली थी और सितम्बर 2023 को उसका समापन कार्यक्रम दिल्ली में तय हो चुका था जिसमें सभी देशों के राज्याध्यक्षों को आना था। जिस तरह से देश में वर्ष भर जी-20 की उपयोगिता, उसकी महत्ता और पूरे विश्व के एकात्म भविष्य का रास्ता खोजने के लिए चिन्तन होता रहा, उससे यह स्पष्ट होने लगा था कि भारत एक बार फिर से विश्व में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका के लिए तैयार हो रहा है। जी-20 के लोगो ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ से ही संकेत मिलने लगे थे कि अब भारत अपनी संस्कृति, धरोहर व दर्शन को लेकर ंएपोलोजेटिक नहीं है, बल्कि उस पर गर्व कर रहा है। जिस प्रकार भारत मंडपम् का निर्माण कार्य चल रहा था और वह भारत की सनातन धरोहर के रूप में उभर रहा था, उससे भारत के ‘राज परिवार’ को यह संकेत तो मिलने शुरू हो ही गए थे कि भविष्य का भारत अपने सनातन धरातल पर खड़ा होने जा रहा है। पिछले हजार साल से अरबों, तुर्कों, मुगलों (यानी एटीएम), पुर्तगालियों, डचों, फ्रांसीसियों व अंग्रेजों यानी एंग्लो सैक्सनों ने (यह संयोग है कि इसमें इटली शामिल नहीं था) इसी सनातन भारत को नष्ट करने का प्रयास किया था। भारत फिर से उठ रहा था। जी-20 में उसे पूरा विश्व देखने वाला था। लेकिन भारत के विपक्ष को भी भारत के इस अभ्युदय को रोकने का हर प्रयास करना था। विपक्ष अभी भी उसी इंडिया से चिपका रहना चाहता है जो एटीएम और पुर्तगाल, इंग्लैंड और फ्रांस (यानी पीईएफ) छोड़ कर गए थे। एटीएम और पीईएफ का दुर्भाग्य है कि किसी देश पर कब्जा करने के पुराने तौर तरीके खत्म हो गए हैं।

आज का युग हाईब्रिड वार का है। इसमें सेनाएं भेजने की जरूरत नहीं होती, बल्कि नैरेटिव गढ़े जाते हैं। वे नैरेटिव इंडिया में स्थापित किए जाते हैं। इंडिया के ही कुछ लोग उसे अपने चिन्तन का आधार बना लेते हैं और इन विदेशी नैरेटिवों या आख्यानों से सनातन भारत के नैरेटिव को ध्वस्त करने का प्रयास करते हैं। यह भारत में एटीएम और पीईएफ के अधूरे एजेंडे को इंडिया द्वारा ही पूरा करने की हाईब्रिड रणनीति कही जा सकती है। कांग्रेस के राजपरिवार के लिए लाजिमी था कि इस रणनीति पर जी-20 के समापन से पहले ही अमल करना शुरू कर दिया जाए, ताकि जब देश जी-20 के महासम्मेलन के अवसर पर दुनिया की राजनीति में भारत का नव उदय देख रहा हो तो इंडिया के आवरण तले सनातन भारत को चुनौती दी जा सके। समय व दिन तय थे। जी-20 का महासम्मेलन सितम्बर 2023 में होने वाला था। नया महाभारत होने वाला था। हजारों हजारों साल पहले धृतराष्ट्र ने संजय से पूछा था, ‘मेरे और पांडु पुत्रों ने क्या किया?’ भारत के पांडुपुत्र तो महासम्मेलन की तैयारी कर रहे थे। उधर पटना, बेंगलुरू में इंडिया भी तैयारी में जुट गया था। पटना व बेंगलुरू में स्वयं को भारत की सत्ता का वंशों के आधार पर दावेदार मानने वाले राजपरिवार तो जुलाई 2023 को जुटने शुरू हुए थे, लेकिन अपने एजेंडे पर इस ‘इंडिया’ के अलग-अलग घटकों ने अपने एजेंडे पर काम इससे भी कई महीने पहले ही काम शुरू कर दिया था। तमिलनाडु में प्रोग्रेसिव लेखकों के बैनर तले ‘सनातन भारतीय संस्कृति उन्मूलन’ सम्मेलन की तैयारियां तो मार्च अप्रैल में ही शुरू हो गई थी। तमिलनाडु में सोशल मीडिया के माध्यम से सूचनाओं का आदान-प्रदान भी शुरू हो गया था। डीएमके का राजपरिवार सनातन के उन्मूलन के लिए लड़ी जाने वाली इस लड़ाई में किन शब्दों को हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जाए, इसकी खोज में जुट गया था। शायद इसके लिए ‘इंडिया’ का पूरा थिंक टैंक ही जुट गया हो। हो सकता है इसके लिए इंडिया के आवरण के नीचे जुटने वाले अन्य घटकों या राजपरिवारों से भी सलाह मशविरा किया गया हो। यही कारण है कि सनातन भारतीय धरोहर को कोरोना, डेंगू, मलेरिया के समकक्ष स्थापित किया गया।

इंडिया के आवरण तले करुणानिधि का राजपरिवार इस नैरेटिव को आगे बढ़ाते हुए यहां तक पहुंच गया कि सनातन का केवल विरोध ही नहीं करना है, बल्कि उसका समूल नाश तक करना है। इंडिया के बाकी घटकों ने सनातन के समूल नाश के नैरेटिव को बहुत ही चालाकी से देश भर में आगे बढ़ाया। उन्होंने तमिलनाडु के इस राजपरिवार के इस नैरेटिव को मजहब से जोड़ कर लोगों को भ्रमित करने का प्रयास किया। उनकी व्याख्या थी कि राजपरिवार के प्रतिनिधि उदयनिधि भारतीय/हिन्दु समाज के भीतर की कुरीतियों को नष्ट करने की बात कह रहे थे। लेकिन इंडिया राजपरिवार जिसे नेहरु-गान्धी के ब्रांड नाम से जाना जाता है, वह भारत की सनातन धरोहर से इतना दूर जा चुका है कि उसे शायद हिन्दु समाज की कुरीतियों का पता भी नहीं है। सनातन उन्मूलन आन्दोलन की व्याख्या भी की जा रही है। कहा जा रहा है कि सनातन धर्म और हिन्दु धर्म दोनों अलग-अलग हैं। राहुल गान्धी सनातन धर्म और हिन्दु धर्म को अलग-अलग समझें, यह बात समझ में आती है। उनसे इस प्रकार की गहरी बातों की समझ की आशा भी नहीं की जा सकती। धर्म तो होता ही सनातन है। न्यायाधीश का धर्म बिना लालच और भय के न्याय करना है। यह धर्म समय के अनुसार बदल थोड़ा जाएगा। माता-पिता का धर्म अपने बच्चों का पालन करना है और बच्चों का धर्म बुढ़ापे में अपने माता-पिता की सेवा करना है। यह धर्म तो सनातन ही है। अन्याय का विरोध करना चाहिए, यह सभी का धर्म है। यह धर्म तो सनातन ही है। कर्मकांड या रिचुइलज का धर्म से कोई ताल्लुक नहीं है। कर्मकांड का संबंध मजहब से है। जब कर्मकांड रूढ़ हो जाते हैं तो वे कुरीतियों में बदल जाते हैं। कुरीतियों को दूर करना ही चाहिए। जाति-पांति भारत के एक हिस्से के लोगों की सामाजिक संरचना है। लेकिन यह सारे भारतीय/हिन्दु समाज का हिस्सा नहीं है। लेकिन सामाजिक संरचना का धर्म से कुछ लेना देना नहीं है। लेकिन धर्म है ही सनातन। इसी सनातन धर्म को भारत में हिन्दु धर्म कहा जाता है। धर्म का किसी सम्प्रदाय या मजहब से कोई संबंध नहीं है। इंडिया गठबन्धन के घटक सनातन के उन्मूलन को अपना एजेंडा घोषित कर रहे हैं। दूसरा मुद्दा भी उतना ही महत्वपूर्ण है।

कांग्रेस को पता ही था कि जी-20 का महासम्मेलन किस तिथि को होने वाला है। इस महासम्मेलन में भारत का गौरव बढ़ेगा। कांग्रेस को पता था कि देश के भीतर वह इसका मुकाबला नहीं कर सकती। इसलिए ‘इंडिया’ गठबंधन की रणनीति यह बनी कि इसका मुकाबला देश से बाहर जाकर किया जाए। राहुल गान्धी ने इसी रणनीति के तहत जी-20 के महासम्मेलन के दौरान विदेशों में जाकर मोर्चा सम्भाला। यही कारण था कि जब दुनिया के बाकी देश दिल्ली में आकर भारत की प्रशंसा कर रहे थे, इंग्लैंड के प्रधानमंत्री अपने सनातनी हिन्दु होने पर गर्व कर रहे थे, तब राहुल गान्धी इंडिया गठबन्धन के प्रतिनिधि के तौर पर विदेशों में जाकर बता रहे थे कि यदि भारत में इसी प्रकार चलता रहा तो देश का पतन हो जाएगा। उनको वही भारत चाहिए था जो अंग्रेज छोड़ कर गए थे। राहुल गान्धी का कहना है कि उन्होंने वेद, उपनिषद और गीता इत्यादि सब पढ़ लिए हैं, लेकिन उन्हें उसमें कहीं भी आज का हिन्दु धर्म नहीं मिला। वे केवल एक बार महात्मा गान्धी का हिन्द स्वराज पढ़ लें तो उन्हें सब कुछ मिल जाएगा। लेकिन क्या इंडिया के पास भारत को पढऩे व समझने का समय है?

कुलदीप चंद अग्निहोत्री

वरिष्ठ स्तंभकार

ईमेल:Ñkuldeepagnihotri@gmail.com


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